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भारतीय जीवन बीमा निगम का इतिहास क्या है | भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना कब हुई प्रकार Life Insurance Corporation in hindi
Life Insurance Corporation in hindi भारतीय जीवन बीमा निगम का इतिहास क्या है | भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना कब हुई प्रकार किसे कहते है क्या है ?
भारतीय जीवन बीमा निगम
भारत में जीवन बीमा का कारोबार वर्ष 1956 में इसके राष्ट्रीयकरण और भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना होने तक मुख्य रूप से निजी क्षेत्र के हाथ में था। वर्ष 1955 में, लगभग 170 बीमा कार्यालयों और 80 भविष्य निधि समितियों का पंजीकरण जीवन बीमा कारोबार करने के लिए कराया गया था।
भारतीय जीवन बीमा निगम 1 सितम्बर, 1956 को अस्तित्व में आया। इस निगम का मूल उद्देश्य जनता और उसके परिवार के जोखिम को न्यूनतम करने के क्रम में जीवन बीमा में निवेश करने के लिए जनता को प्रोत्साहित करना है। इस प्रक्रिया में एल आई सी अपार निधियाँ एकत्र करती है। जिसे वह समाजोन्मुखी परियोजनाओं जैसे सार्वजनिक परिवहन, विद्युत, आवास, जलप्रदाय इत्यादि में निवेश करती है। 31 मार्च 1999 की स्थिति के अनुसार एल आई सी के कुल निवेश का. 84.49 प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र में, 1.84 प्रतिशत सहकारी क्षेत्र में और 13.67 प्रतिशत निजी क्षेत्र में लगा हुआ था।
निगम देश में औद्योगिक विकास को बल प्रदान करने में सहायता करती है। यह सहकारी औद्योगिक सम्पदाओं और औद्योगिक विकास निगमों की स्थापना के लिए ऋण स्वीकृत करके लघु और मध्यम उद्योगों की सहायता करती है। निगम राज्य वित्त निगमों, आई डी बी आई, आई एफ सी आई, आई सी आई सी आई इत्यादि द्वारा जारी बॉण्डों और डिबेंचरों में अभिदान करके इन संस्थाओं को सहायता पहुंचाती है। निगम कारपोरेट क्षेत्र में कंपनियोंध्निगमों को दीर्घ, मध्य और अल्पकालिक ऋण के रूप में प्रत्यक्ष निवेश भी करती है। नीचे दी गई तालिका 27.5 इन वर्षों में एल आई सी द्वारा किए गए निवेश की मुख्य विशेषताओं को दर्शाते हैं:
नोट: (1 और 2) बुक वैल्यू पर तथा मद (3 और 4) सकल निवेश पर दर्शाया गया है।
31.3.99 की स्थिति के अनुसार, समाजोन्मुखी निवेश का बुक वैल्यू 88.331 करोड़ रु. और कारपोरेट क्षेत्र तथा अन्य निवेशों सहित कुल निवेशों का बुक वैल्यू 1,20,446 करोड़ रु. है।
उपर्युक्त सभी मद बुक वैल्यु पर दर्शाए गए हैं।
’ इसमें आवासन के अंतरित 175 एच डी एफ सी ऋण सम्मिलित नहीं है।
स्रोत: एल आई सी की वेबसाईट
उपर्युक्त तालिका 27.5 में यह देखा जा सकता है कि एल आई सी केन्द्र और राज्य सरकार दोनों की प्रतिभूतियों तथा आधारभूत संरचना परियोजनाओं में अपार राशि निवेश करती रही है। जहाँ तक उद्योगों के वित्त पोषण का संबंध है कारपोरेशन मुख्य रूप में डिबेंचरों और इक्विटी शेयरों में निवेश करता है।
एल आई सी की निधियों के मुख्य स्रोत हैं: (1) प्रीमियम आय और (2) निवेशों से आय।
उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप:
ऽ भारत में औद्योगिक वित्तीय संस्थाओं की संरचना से परिचित हो पाएँगे;
ऽ प्रत्येक वित्तीय संस्थाओं की भूमिका, क्षेत्राधिकार और अधिदेश समझ पाएँगे; और
ऽ उद्योगों के लिए इन संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत विभिन्न स्कीमों, लिखतों और वित्त के प्रकार के बारे में समझ पाएँगे।
प्रस्तावना
पिछली दो इकाइयों में हमने व्यापार और उद्योग के लिए वित्त के विभिन्न प्रकार के स्रोतों पर चर्चा की। इस इकाई में हम वित्त उपलब्ध कराने वाले विभिन्न प्रकार की संस्थाओं और संगठनों पर चर्चा करेंगे। इन संगठनों को मोटे तौर पर विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं में बाँटा जा सकता है। नीचे दिए गए चित्र 27.1 से भारत में प्रमुख वित्तीय संस्थाओं की सामान्य संरचना का पता चलता है।
जैसा कि चित्र 27.1 में देखा जा सकता है, सभी वित्तीय संस्थाओं को सामान्य रूप से विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं, बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं में बाँटा जा सकता है। विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं में हमने आई डी बी आई, आई एफ सी आई, आई सी आई सी आई, आई आई बी आई, एक्जिम बैंक, सिडबी, एस एफ सी और एस आई डी सी को शामिल किया है। ये सभी संस्थाएँ मुख्य रूप से विकासात्मक वित्त अथवा परियोजना वित्त अथवा दीर्घकालिक वित्त उपलब्ध कराती है। इन संस्थाओं का अधिदेश देश में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना है। बैंको की स्थापना का मूल उद्देश्य आम जनता से बचत जुटाना है। इस इकाई के परवर्ती भाग में अलग तालिका में बैंकिंग क्षेत्र की संरचना विस्तार में प्रस्तुत किया गया है। भारतीय जीवन बीमा निगम और साधारण बीमा निगम की स्थापना भी जनता को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिए की गई है। इस प्रक्रिया में वे भी भारी धनराशि जुटाते हैं और ये संगठन भी इन निधियों का विभिन्न रूपों में उद्योगों में निवेश करते है। यू टी आई की स्थापना परस्पर निधि (डनजनंस थ्नदक) के तर्ज पर की गई थी और यह भी भारी धनराशि जुटाता है और उन्हें उद्योगों में निवेश करता है।
चित्र 27.1 में प्रस्तुत संस्थाओं में से कुछ मुख्यतः अल्पकालिक वित्त उपलब्ध कराती है और कुछ मुख्यतः दीर्घकालिक वित्त उपलब्ध कराती है। इनमें से अधिकांश संगठन राष्ट्रीय स्तर के संगठन हैं और कुछ राज्य स्तर के संगठन हैं। इसके अलावा इनमें से अनेक संगठन बृहत् और मध्यम संगठनों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं और कुछ लघु उपक्रमों को सहायता उपलब्ध करा रहे है। इन संगठनों में से प्रत्येक वित्तपोषण की ठीक-ठीक प्रकृति के बारे में इस इकाई में बाद में चर्चा की गई है। इन वित्तीय संस्थाओं के प्रचालन के स्तर के बारे में जानकारी देने के लिए, नीचे तालिका-27.2 में वर्ष 1999-2001 के दौरान विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत और वितरित वित्तीय सहायता संबंधी आँकड़ा प्रस्तुत है।
सारांश
यह इकाई आय को विभिन्न विकासात्मक वित्तीय संस्थाओं, बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाओं जैसे एल आई सी, यू टी आई, जी आई सी से परिचित कराती है। इस इकाई में इन संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली विभिन्न प्रकार की स्कीमों और उनके द्वारा चलाई जा रही विभिन्न प्रकार की गतिविधियों पर चर्चा की गई है।
शब्दावली
पूँजी संरचना ः पूँजी संरचना निधियों के विभिन्न श्रोतों का मिश्र निरूपित करता है। इसमें दीर्घकालिक ऋण का अनुपात, इक्विटी पूँजी का अन पात और अल्पकालिक उत्तरदायित्व का अनुपात-सम्मिलित है। संक्षेप में, पूँजी संरचना का अभिप्राय तुलन पत्र का संपूर्ण श्रोत भाग है।
विकासात्मक वित्तपोषण ः मुख्य रूप से विकासात्मक परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक आधार पर वित्तीय संस्थाओं द्वारा उपलब्ध कराया गया वित्त ।
कुछ उपयोगी पुस्तकें एवं संदर्भ
भोले एल. एम., (1992). फाइनेन्शियल इन्स्टीच्युशन एण्ड मार्केट्स, टाटा मैक ग्रा हिल पब्लिशिंग कंपनी लिमिटेड, नई दिल्ली।
आई डी बी आई, (2002). रिपोर्ट ऑन डेवलपमेंट बैंकिंग इन इण्डियाः 2000-01, इण्डस्ट्रीयल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इण्डिया, मुम्बई।
माचिराजू, एच. आर., (2002). इण्डियन फाइनेन्शियल सिस्टम, विकास पब्लिशिंग हाऊस कंपनी लिमिटेड, नई दिल्ली।
आर बी आई, (2002). रिपोर्ट ऑन ट्रेण्ड एण्ड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन इण्डियाः 2000-01, रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, मुम्बई।
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