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Categories: Geologyindianworld

लिओनार्डो द विंची कौन थे ? leonardo da vinci in hindi लियोनार्डो द विंची कौन थे संक्षेप में लिखिए

लियोनार्डो द विंची कौन थे संक्षेप में लिखिए लिओनार्डो द विंची कौन थे ? leonardo da vinci in hindi ?

(1) लिओनार्डो द विंसी (Leonardo-da-Vinci) , 1452-1519) – ये इटली के प्रशिद्ध वास्तुकार, इंजिनियर तथा वैज्ञानिक थे. इन्होंने भूसतह पर धीमी गति से बनने वाली भू-आकतियों का निरीक्षण किया तथा प्रथम बार स्पष्ट किया कि नदियाँ स्वयं ही बिना किसी बाहरी प्रक्रम की सहायता से अपरदन क्रिया द्वारा घटियों का निर्माण करती हैं। प्रवाहित जल अपदरन द्वारा प्राप्त तलछट को अन्यत्र ले जाकर जमा करता है। अट्टाहरवीं शताब्दी में कुछ ऐसे इंजिनियरों का विज्ञान विकास में योगदान रहा जो भू-आकरों के गातिक पक्ष से अवगत थे। ये विद्वान् भूआकारों के गतिक पक्ष का अध्ययन नहरों तथा सडकों के निमार्ण के लिए करते थे। ड्बॉयज ने नदी द्वारा प्रवाहित कणों तथा प्रवाह वेग में सम्बन्ध स्पष्ट किया। ये सड़क एवं पुल अभियान्त्रिक थे। इन लोगों ने प्रायोगिक दृष्टिकोणों से भूआकृतिक विचारों को विकसित करने का आधार प्रदान किया। लुइस फिलिप के शासन के अन्त होने के बाद सुरेल ने इन विचारों का अनुसरण करते हुए प्रचण्ड धारा सिद्धान्त दिया तथा 1ः25,000 तथा 1ः50,000 मापनी पर मानचित्र भी प्रस्तुत किये।

आकस्मिकवाद की विशेषताएं :
1. पृथ्वी की आयु कुछ हजार वर्ष ही की गयी।
2. आकस्मिक भूगर्भीय घटनाओं, ज्वालामुखी भूकंप, बाढ़, सूखा आदि को महत्व दिया गया।
3. इसमें जीवों का अचानक उदभव और वृद्धि हुई
(IV) जलीय अपरदन की अवधारणा का अभ्युदय काल (Period of the Emergece of the Concept of Fluvial Erosion)
15वीं सदी तक स्थलरूपाों को स्थायी माना गया तथा उनका वर्णन धार्मिक एवं तत्कालीन सामाजिक विचारधारा के अनुरूपा किया जाता रहा। परन्तु 16वीं सदी के आरम्भ से ही स्थलरूपाों की नश्वरता का आभास हो गया। स्थलरूपाों का अध्ययन वैज्ञानिक आधारों पर प्रारम्भ हो गया। विद्वानों को यह विश्वास हो गया कि स्थलरूपाों में अपक्षय एवं अपरदन द्वारा परिवर्तन एवं विनाश होता रहता है। इस युग में जलीय अपरदन अर्थात सरिता अपरदन से सम्बन्धित अध्ययन का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। इस युग में निम्नलिखित विदवानों ने अहम् योगदान दिया।
(2) बफन (Bffuon, 1707-1788) – प्रसिद्ध फ्रांसीसी विद्धान बफन ने अपरदन के सभी प्रक्रमों में नदियों को सर्वाधिक शक्तिशाली माना है। नदियाँ किसी भी उत्थित भाग को धीरे-धीरे अपरदित करके सागर तल तक ले जाती है।
(3) टागायोनी-टोजेटी (Targioni – tozetty, 1712-1784) – प्रसिद्ध इटेलियन विद्धान टोजेटी ने भी नदी अपरदन की शक्ति को स्पष्ट किया उनके अनुसार नदियाँ सर्वत्र समानरुप में अपरदन नहीं करती हैं जिसका प्रमुख कारण चट्टानी सरंचना में भिन्नता है। कठोर चट्टानें देर से तथा मुलायम चट्टानें शीघ्रता से कट जाती हैं।
(4) गुएट्हार्ड (Guethard, 1715-1786) : ये प्रमुख फ्रांसीसी भूवैज्ञानिक थे। इन्होंने नदियों द्वारा पर्वतों के अवक्रमण (Degradation) द्वारा काटकर नीचा करने की क्रिया को स्पष्ट किया। निक्षेपण के बारे में उन्होंने बताया कि नदियाँ अपरदन से प्राप्त तलछट को समुद्र में न ले जाकर उसके अधिकाशं भाग का नदी के मार्ग में ही जमा करती है। स्थलीय भागों के अवक्रमण अथवा निम्नीकरण में उन्होंने नदी की तुलना में सागरीय अपरदन को प्रभावी माना है। उन्होंने उत्तरीय फ्रांस के तटीय भागों पर अपरदन से निामत भृगुओं का अध्ययन किया।
(5) देस्मारेस्त (Desmarest , 1725-1815 A-D.) – ये प्रसिद्ध फ्रासीसी भूवैज्ञानिक थे। उन्होंने बताया कि मध्यवर्ती फ्रांस की नदी घटियों का निर्माण स्वयं इन नदी घटियों ने ही किया है जिनसे होकर प्रवाहित हो रही है। देस्मारेस्त महोदय ने भूआकारों के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का भी अध्ययन किया था।
(6) डी-सॉसर (De Saussure.1740-1700 AD) – सॉसर स्वीटजरलैण्ड के प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक थे जिन्होंने ही सर्वप्रथम तत्कालीन समय में भूविज्ञान शब्द का प्रयोग किया। आल्पस पर अनके शोध किये तथा स्पष्ट किया कि यहाँ पायी जाने वाली गहरी नदी घाटियों का निर्माण स्वयं इन नदियों द्वारा ही किया गया है। इन्होंने हिमनदियों के अपरदन कार्यों का भी अध्ययन किया। डी-सॉसर महोदय न A से निर्मित स्थलाकृति ‘मेष शिला‘ का नामकरण किया था।
(अ) एकरूपातावाद का काल (Period of Uniformitarianism)
आकस्मिवाद की संकल्पना के विरोध में प्रमुख स्कॉटिश भूगर्भ विज्ञान जेम्स हटन (1726-1797)ने एकरूपातावाद की संकल्पना का प्रतिपादन निम्न दो आधारभूत अवधारणाओं के आधार पर किया।
– वर्तमान भूत की कुंजी हैं।
‘न तो आदि का पता है, न अन्त का भविष्य‘।
यद्यपि प्रारम्भिक इतिहास गहनता में तिरोहित हो गया है परन्तु वर्तमान के आधार पर उसे संवारा जा सकता हैय हटन ने बताया कि अतीत में जो भूगर्भिक परिवर्तन हुए हैं, वे न तो आकस्मिक तथा त्वरित थे और न वर्तमान समय न होने वाले परिवर्तनों से सर्वथा भिन्न बल्कि आये दिन घटित होने वाले परिवर्तनों के समरूपा थे। हटन की इस संकल्पना को ‘एकरूपातावाद‘ कहते हैं।
हटन ने सर्वप्रथम अपने विचारों को एक ‘शोधपत्र‘ के रूपा में सन् 1785 ई. में ‘रायल सोयायटी ऑव एडिनवर्ग‘ के समक्ष प्रस्तुत किया। इन विचारों का प्रकाशन सर्वप्रथम (Theory of the Earth, or An Investigation of Laws Observable in the Composition, Dissolution and Restoration of Land Upon the Globe” नामक शीर्षक के अन्तर्गत रायल सोसायटी आफ एडिनबर्ग के श्ज्तंदेंबजपवदश् में 1788 में किया गया। हटन के विचारों का सबसे अधिक प्रचार तथा सम्वर्द्धन जॉन प्लेफेयर (1748-1819) ने किया, जिसने 1802 ई. में इन्हें (Industration of the Huttonian Theory of the Earth’) के रूपा में प्रकाशित किया। हटन ने अपने समय से आगे बढ़कर प्रगत सकल्पनाओं का प्रतिपादन किया था। इसी कारण प्रायः यह कहा जाता है कि हटन अपने युग से आगे था। उसने जलीय और सागरीय दोनों तरह के अपरदनात्मक कार्यो का अवलोकन किया परन्तु उसके सरिता अपरदन तथा नदी घाटी के विकास पर अधिक बल दिया। ग्रेनाइट के निर्माण के विषय में उसने नूतन तथा विश्वसनीय संकल्पना का प्रतिपादन किया। हटन को इस तथ्य का भी आभास मिल चुका था कि नदियाँ अपनी घाटियों को निर्माण स्वयं करती हैं तथा स्थलाकृति का निर्माण नहीं होता, वरन् कटाव से अविर्भाव होता है – Topography is carved out and not built up. अर्थात स्थलरूपाों का निर्माण सरिता अपरदन से होता है, न कि निक्षेपण द्वारा। जोन प्लेफेयर ने इन तथ्यों को आगे चलकर संकल्पना के रूपा में प्रस्तुत किया। चार्ल्स ल्येल: 1797 में हटन के प्रमुख समर्थक के रूपा में वे इस दुनिया में आये ल्येल ने आगे चलकर जीव विज्ञान सम्बन्धी प्रगत विचारों का प्रतिपादन किया जो कि आगे चलकर चार्ल्स डार्विन की पुस्तक व्तपहपवद व िैचमबपमेश् की आधारशिला बने। डार्विन ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनकी पुस्तक का आधा भाग ल्येल के मस्तिष्क की देन है। चार्ल्स ल्येल का ध्यान भू-विज्ञान की ओर उस समय गया जबकि उन्होंने अपने माता-पिता के साथ यूरोप महाद्वीप का भ्रमण 1818 में किया। ल्येल एक घनी पिता की सन्तान थे, अतः उन्हें भ्रमण के लिये पर्याप्त सुविधा थी। अपनी विशद खोजों के बाद ल्येल ने ‘आधुनिक ऐतिहासिक भूविज्ञान‘ (Historical Geology) की नींव डाली तथा भूविज्ञान की सुसंगठित परिभाषा प्रस्तुत की He defined geology as that science which investigates the successive changes that have taken place in the organic and inorganic kingdoms of nature . ल्येल को लोग ‘armchair geologist’ कहते थे परन्तु यह सत्य नहीं है क्योंकि उन्होंने क्षेत्रों का पर्याप्त भ्रमण किया है। कहते हैं कि ल्येल का इतना महनीय कार्य करने की प्रेरणा उनकी खूबसूरत शिष्ट, करुणामयी तथा बुद्धिमान पत्नी से मिलती रही। यही कारण है कि अपनी पत्नी की मृत्यु (1873) के पश्चात् ल्येल अधिक दिन तक जीवित नहीं रह सके।
(IV) भू-आकृतिक चिन्तन का आधुनिक काल (19शताब्दी) (Modern Age of Geomorphic Thoughts) –
उन्नीसवीं सदी के प्रथम चरण के साथ ही भ्वाकृतिक विचारों का सम्वर्द्धन प्रादेशिक रूपा में प्रारम्भ होता हैं। नूतन संकल्पनाओं से इस विज्ञान का खजाना भरता जाता है। इस काल में यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में भूआकृति विज्ञान का सर्वाधिक विकास हुआ। प्रमुख रूपा से संयुक्त राज्य अमेरिका ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी आदि में इस विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हुआ। इस काल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि विद्धानों के विचारों में प्रादेशिक स्तर पर पर्याप्त समता दृष्टिगत होती है। इस समय दो सम्प्रदायों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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