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lead silver system in hindi phase rule सीसा रजत (चांदी) तंत्र क्या है प्रावस्था नियम सूत्र चित्र

सीसा रजत (चांदी) तंत्र क्या है प्रावस्था नियम सूत्र चित्र lead silver system in hindi phase rule ? 

टोस-द्रव साम्य (Solid Liquid Equilibria)

 संघनित तंत्र (Condensed system)

द्विघटक तंत्रों में निम्न लिखित पाँच प्रकार के प्रावस्था साम्य संभव हैं- ठोस – ठोस, ठोस-द्रव, ठोस-गैस, द्रव-गैस एवं द्रव-द्रव साम्य, परन्तु इनमें सबसे महत्वपूर्ण ठोस – द्रव साम्य हैं। चांदी – सीसा तत्र इसी श्रेणी का तंत्र है इस प्रकार के साम्य पर दाब का प्रभाव उपेक्षणीय होता है। जैसा कि उपर बताया जा चुका है कि द्विघटक तंत्रों के अध्ययन में एक चर को स्थिर रखा जाता है। ठोस द्रव साम्य में दाब स्थिर रखा जाता है। यह करना सरल भी है क्योंकि तंत्र का अध्ययन यदि खुले पात्र में किया

जाता है तो दाब एक वायुमण्डल (स्थिर) ही रहेगा। इन परिस्थितियों में वाष्प प्रावस्था की उपेक्षा की जाती है ।

वे तंत्र जिनमें दाब स्थिर रखा जाता है वाष्प प्रावस्था की उपेक्षा की जाती है, संघनित तंत्र (Condensed system) कहलाता है।

संघनित तंत्र के अध्ययन के लिये प्रावस्था नियम को संशोधित करना होता है। चूंकि एक चर (दाब) स्थिर रखा जाता है अतः स्वातन्त्र्य कोटि की संख्या में एक कमी हो जाती है, अर्थात

F = C – P + 2

F = C – P + 1

F + P = C+1…………….(2)

समीकरण (42) प्रावस्था नियम का संशोधित रूप है जिसका संघनित तंत्रों के अध्ययन में उपयोग किया जाता है। तथा इस समीकरण को समानीत प्रावस्था नियम समीकरण (Reduced Phase Rule Equation) कहते हैं। संघनित तंत्र में पदार्थ की केवल संघनित प्रावस्थाएँ ठोस तथा द्रव ही होते हैं। वाष्प प्रावस्था की उपेक्षा की जाती है।

 सीसा – रजत (चांदी) तंत्र (Lead-silver system)

सीसा-रजत तंत्र एक द्वि-घटक तंत्र है। इस का प्रावस्था आरेख चित्र 4.4 में दिखाया गया है। सीसा एवं रजत द्रव अवस्था (पिघली हुई अवस्था) में पूर्णतया मिश्रणीय है तथा ये आपस में कोई रासायनिक क्रिया द्वारा यौगिक नहीं बनाते हैं।

प्रावस्था आरेख प्राप्त करना द्रव अवस्था का संघटन X अक्ष पर तथा ताप Y अक्ष पर प्रदर्शित किया गया है। सम्पूर्ण अध्ययन में दाब स्थिर रखा जाता है। बिन्दु A शुद्ध सीसे का हिमांक (327°C) है.

अर्थात् इस ताप पर ठोस व द्रव सीसा साम्यवस्था में है यदि इसमें रजत मिलाई जाती है तो सीसे

का हिमांक कम हो जाता हैं और ठोस सीसा तथा रजत का सीसे में विलयन (द्रव) साम्यवस्था

में आ जाता है। द्रव में रजत का प्रतिशत शून्य से अधिक हो जाता है। इसी प्रकार धीरे-धीरे रजत मिलाने पर द्रव में रजत का प्रतिशत बढ़ता जाता है और वक्र AO प्राप्त होता है। बिन्दु 0 पर द्रव में रजत 2.6 % है। बिन्दु B शुद्ध रजत का हिमांक है। अतः इस ताप पर ठोस व द्रव रजत साम्यावस्था में हैं यदि इसमें सीसा मिलाया जाता है तो रजत का हिमांक कम हो जाता है अर्थात् ठोस रजत एवं सीसे का रजत में विलयन (द्रव) साम्यावस्था में आ जाते हैं और द्रव में सीसे का प्रतिशत शून्य से अधिक हो जाता है। इस प्रकार धीरे- धीरे सीसा मिलाने पर वक्र BO प्राप्त होता है। बिन्दु O का ताप 303°C है। इस ताप के नीचे द्रव प्रावस्था समाप्त हो जाती है।

इन तंत्र के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित है-

(i) वक्र AO तथा OB एक चर तंत्र को प्रदर्शित करते हैं।

(ii) विभिन्न क्षेत्र ( areas) द्विचर तंत्र को प्रदर्शित करते हैं।

(ii) बिन्दु O गलन क्रान्तिक बिन्दु है जो कि अचर तंत्र को प्रदर्शित करता है।

अब हम इन लक्षणों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

वक्र AO- बिन्दु A शुद्ध सीसे का हिमांक दर्शाता है इस ताप (327°C) पर ठोस सीसा तथा द्रव सीसा साम्यावस्था में है यदि इसमें रजत मिलाई जाती है तो हिमांक वक्र AO के अनुसार घटता जाता है। अतः वक्र AO सीसे का रजत की उपस्थिति में गलन वक्र (fusion curve) है। इस वक्र पर ठोस सीसा और द्रव (रजत का सीसे मे विलयन) साम्यावस्था में है। अतः इस वक्र के प्रत्येक बिन्दु पर प्रावस्था दो (P = 2 ) है। चूंकि C = 2 है अतः संशोधित प्रावस्था नियम (F= C – P + 1) के अनुसार-

F = 2-2 + 1 =1

इस प्रकार वक्र के प्रत्येक बिन्दु पर तंत्र एक चर है।

वक्र BO – बिन्दु B शुद्ध रजत का हिमांक है इस ताप ( 961°C) पर ठोस रजत व द्रव रजत साम्यावस्था में हैं। यदि इसमें सीसा मिलाया जाता है तो हिमांक वक्र BO के अनुसार घटता जाता है। अतः वक्र BO रजत का सीसे की उपस्थिति में गलन वक्र (Fusion curve) है। इस वक्र पर ठोस रजत और द्रव (सीसा का रजत में विलयन) साम्यावस्था में पाये जाते हैं। अतः इस वक्र के प्रत्येक बिन्दु पर P = 2. C = 2 तथा F = 1 है। अतः वक्र BO पर तंत्र एक चर है।

गलन क्रान्तिक बिन्दु “0” (Eutectic Point)- वक्र AO तथा BO दोनों बिन्दु O पर मिलते हैं इस बिन्दु पर तीन प्रावस्थाऐं ठोस सीसा, ठोस रजत एवं द्रव (विलयन) साम्यवस्था में होती है। चूंकि P = 3. C = 2 हैं। अतः ये मान संशोधित प्रावस्था नियम में प्रतिस्थापित करने पर-

F = C – P + 1

= 2 – 3 + 1 =0

इस प्रकार बिन्दु O पर तंत्र अचर होगा। अतः तीनों प्रावस्थाऐं साम्यवस्था में एक निश्चित ताप (303°C) तथा निश्चित संघटन (2.6% Ag) पर ही अस्तित्व में होंगी। यह बिन्दु गलन क्रान्तिक बिन्दु कहलाता है। यदि ताप मे अथवा संघटन में परिवर्तन किया जाता है तो कोई एक प्रावस्था लुप्त हो जायेगी। ताप कम करने पर पूरा द्रव, ठोस में परिवर्तित हो जायेगा जब कि ताप बढ़ाने पर ठोस द्रव हो जायेगा। अतः 303°C वह न्यूनतम ताप है जिस पर द्रव प्रावस्था ठोस Pb तथा ठोस

में परिवर्तित Ag के साथ अस्तित्व में होती है। यह तापमान क्रान्तिक ताप तथा बिन्दु 0 गलन क्रान्तिक बिन्दु कहलाता है। बिन्दु O पर संघटन (2.6% Ag) गलन क्रान्तिक संघटन (Eutectic Compostion) कहलाता है। 2.6% Ag तथा 94.4% Pb का ठोस मिश्रण गलन क्रान्तिक मिश्रण (Eutectic mixture) कहलाता है। जिसका गलनांक 303°C है। यद्यति इस मिश्रण का व्यवहार एक यौगिक के समान है परन्तु यह यौगिक नहीं होता क्योंकि दोनों धातु रससमीकरणमितीय अनुपात (Stoichiometric proportion) में नहीं होते ।

क्षेत्र ACO तथा BDO ACO तथा BDO क्षेत्रों में क्रमशः ठोस सीसा एवं द्रव तथा ठोस रजत एवं द्रव साम्यावस्था में रहते हैं। अर्थात् इन क्षेत्रों में किसी बिन्दु पर दो प्रावस्थाएं साम्यवस्था में है। अतः तंत्र एक चर है। द्रव प्रावस्था का संघटन उस बिन्दु से एक क्षेतिज रेखा खींचकर ज्ञात किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त रेखा को टाई रेखा (Tie Line) कहते हैं। क्षेत्र BDO में ताप T बिन्दु पर एक टाई रेखा TRM खींची गई है जो कि वक्र BO को M पर काटती है अतः M बिन्दु पर ठोस रजत एवं द्रव (जिसका संघटन बिन्दु N द्वारा दर्शाया जाता है।) साम्यवस्था में है। टाई रेखा पर कोई भी बिन्दु ठोस रजत एवं द्रव के अनुपात को प्रदर्शित करता है। बिन्दु R पर ठोस रजत एवं N संघटन के द्रव का अनुपात निम्न

प्रकार प्रदर्शित किया जाता है।

अतः बिन्दु R यदि M के अधिक निकट है तो द्रव अधिक व ठोस रजत कम होगी और R बिन्दु यदि के निकट है तो द्रव कम व ठोस रजत अधिक होगी। इसी प्रकार से क्षेत्र ACO में भी टाई रेखा की व्याख्या की जा सकती है। वक्र AOB को लिकुइडस (Liquidus) वक्र तथा वक्र ACODB को सॉलिड (Solidus) वक्र कहते हैं।

वक्र AOB के ऊपर का क्षेत्र इस क्षेत्र मे केवल द्रव प्रावस्था ही अस्तित्व में रहती है, अर्थात सीसा व चांदी पूर्ण रूप से मिश्रणीय द्रव है। चूंकि P=1,C = 2 है | अतः F = 2 होगा। इस प्रकार इस क्षेत्र में तंत्र द्विचर होगा।

क्षेतिज रेखा COD के नीचे का क्षेत्र- इस क्षेत्र में द्रव प्रावस्था अस्तित्व में नहीं रहती है। केवल ठोस रजत एवं ठोस सीसा दो प्रावस्थाऐं अस्तित्व में रहती हैं। ये दोनों ठोस दो आकार के क्रिस्टलों में पाये जाते हैं। ठोस रजत एवं सीसे के बड़े क्रिस्टल तथा ठोस रजत एवं सीसे के बहुत छोटे क्रिस्टल ( चूर्ण के रूप में) रजत व सीसे के इन छोटे क्रिस्टलों के मिश्रण (गलन क्रान्तिक मिश्रण) में रजत का अनुपात 2.6% है तथा इसका एक निश्चित गलनांक (303°C) है जबकि सीसे के बड़े क्रिस्टलों का गलनांक 327°C तथा रजत के बड़े क्रिस्टलों का गलनांक 961°C हैं इस क्षेत्र में चूंकि दो प्रावस्थायें अस्तित्व में है, तथा C = 2 है अतः तंत्र एक चर होगा यह चर केवल ताप है एक समतापी (Isothermal) प्रावस्था जो कि क्षेतिज रेखा klmn के अनुसार हो रहा है, इस पर ध्यान दीजिये पर ठोस सीमा अस्तित्व में हैं। यदि इसमें रजत मिलाई जाती है तो ठोस सीसे के साथ एक द्रव (सीसे में रजत का विलयन) अस्तित्व में आ जाता है। से / की ओर बढ़ने पर (और रजत मिलाने पर) ठोस सीसे की मात्रा कम और द्रव की मात्रा अधिक होती जाती है । पर ठोस सीसे की मात्रा बहुत कम हो जाती है।। तथा के मध्य द्रव प्रावस्था ही अस्तित्व में रहती हैं अर्थात् ठोस सीसा भी द्रव में परिवर्तित हो जाता है। ” बिन्दु पर ठोस रजत के क्रिस्टल दिखाई देने लगते है अर्थात् ठोस रजत व द्रव साम्यवस्था में आ हैं। m से n की आरे बढ़ने से द्रव की मात्रा क़म और ठोस रजत की मात्रा बढ़ती जाती है। बिन्दु पर ठोस रजत रह जाती है तथा द्रव प्रावस्था समाप्त हो जाती है।

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