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लॉ शातैलिए का नियम (Le Châtelier’s principle) , ऑरेनियस का सिद्धांत , लुईस क्षार , लुईस अम्ल
अम्ल (acid) :
उदाहरण : HCl ⇌ H+ + Cl–
HNO3 ⇌ H+ + NO3–क्षार (base) :
उदाहरण : NaOH ⇌ Na+ + OH–
Ca(OH)2 ⇌ Ca2+ + 2OH–
कमियां
- यह सिद्धांत अम्ल व क्षारों की व्याख्या जलीय विलयन में ही करता है , स्वयं पदार्थ के रूप में नहीं।
- H+ जल में स्वतंत्र अवस्था में नहीं पाए जाते है क्योंकि ये जल में क्रिया करके हाइड्रोनियम आयन (H3O+) बना लेते है।
- यह सिद्धांत अमोनिया (NH3) की क्षारीय प्रवृति को नहीं समझाता।
- यह सिद्धान्त CO2 , AlCl3 , व BF3 आदि को नही समझाता।
- अम्ल व क्षारों के आपेक्षिक सामर्थ्य को इस सिद्धांत के द्वारा नहीं समझाया जा सकता है।
[II] ब्रान्सटेड व लोरी सिद्धान्त (bronsted lowry theory) : वे पदार्थ जो प्रोटोन (H+) त्यागते है उन्हें अम्ल कहते है तथा वे पदार्थ जो जो प्रोटोन ग्रहण करते है उन्हें क्षार कहते है अत: इस सिद्धांत को प्रोटोन दाता-ग्राही सिद्धांत भी कहते है।
H2SO4 ⇌ H+ + HSO4–
क्षार (base) :
R-NH2 + H+ ⇌ R-NH3+
[I] प्रोटोन ग्राही (protophilic) : वे विलायक जो प्रोटॉन को चाहते है उन्हें प्रोटोन ग्राही कहते है।
उदाहरण : NH3, R-NH2 आदि।
[II] प्रोटॉन दाता (protogenic) : वे विलायक जो प्रोटोन देते है उन्हें प्रोटोन दाता कहते है।
उदाहरण : HCl ,
HNO3 , H2SO4 आदि।
[III] Amphiprotic : वे विलायक जो उभयधर्मी अर्थात प्रोटोन दे भी सकते है व प्रोटोन ले भी सकते है उन्हें amphiprotic कहते है।
उदाहरण : H2O आदि।
[IV] A protic : वे विलायक जो न तो प्रोटोन लेते है और न ही प्रोटोन देते है A protic कहते है।
उदाहरण : AlCl3, SO2 आदि।
कमियां : AlCl3, CO2 , BF3 आदि की अम्लीय प्रवृत्ति को उस सिद्धांत के द्वारा नहीं समझाया जा सकता है।
A protic विलायको में होने वाली अम्ल व क्षारों की क्रियाओं को इस सिद्धांत के आधार पर नहीं समझाया जा सकता है।
[III] लुईस सिद्धांत (Lewis theory) : वे पदार्थ जो एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म त्यागते है उन्हें लुईस क्षार कहते है तथा वे पदार्थ जो एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करते है उन्हें लुईस अम्ल कहते है।
1. लुईस क्षार : सभी ऋणायन एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म देते है अत: ये लुईस क्षार की भाँती व्यवहार करते है।
उदाहरण : SO42-, OH– , SO32- , CN– आदि।
वे अणु जिनके केन्द्रीय परमाणु पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म पाए जाते है वे भी लुईस क्षार की भाँती व्यवहार करते है।
2. लुईस अम्ल : (i) सभी धनायनो में रिक्त कक्षक होते है जिसके कारण ये एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण कर सकते है अत: ये लुईस अम्ल की तरह व्यवहार करते है .
उदाहरण : Na+, Mg2+ , Al3+ आदि।
(ii) वे अणु जिनके केन्द्रीय परमाणु की आखिरी कक्षा में 6 इलेक्ट्रॉन होते है वे एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण कर लुईस अम्ल की तरह व्यवहार करते है।
उदाहरण : AlCl3, BF3 , BCl3 आदि।
(iii) वे यौगिक जिनके केन्द्रीय परमाणु में रिक्त d कक्षक होते है , वे भी लुइस अम्ल की तरह व्यवहार करते है।
उदाहरण : PCl5, SF6 , PCl3 आदि।
(iv) वे परमाणु जिनकी आखिरी कक्षा में 6 इलेक्ट्रॉन होते है , वे भी लुईस अम्ल की तरह व्यवहार करते है।
(v) बहुबंध वाले यौगिक जिनमें भिन्न भिन्न विद्युत ऋणता वाले परमाणु उपस्थित होते है वे सभी लुईस अम्ल की तरह व्यवहार करते है।
उदाहरण : CO2, SO2 आदि।
कमियां :
- HCl ,
HNO3 , H2SO4 आदि की अम्लीय प्रवृति को इस सिद्धांत की सहायता से नहीं समझाया जा सकता है। - इस सिद्धान्त की सहायता से उदासीनीकरण की क्रिया को भी नहीं समझाया जा सकता है क्योंकि उदासीनीकरण की क्रिया बहुत तेज गति से होती है जबकि इस क्रिया में उपसहसंयोजक का बनना धीमी प्रक्रिया को प्रदर्शित करता है।
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