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Categories: chemistrychemistry

laws of crystallography in hindi , क्रिस्टल विज्ञान के नियम क्या है , अन्तराफलक कोण की स्थिरता का नियम

पढ़े B.sc का महत्वपूर्ण टॉपिक laws of crystallography in hindi , क्रिस्टल विज्ञान के नियम क्या है , अन्तराफलक कोण की स्थिरता का नियम किसे कहते हैं ?

क्रिस्टल विज्ञान के नियम (Laws of Crystallography)

यह विज्ञान की उस शाखा का नाम है जिसमें क्रिस्टल तथा क्रिस्टलीय पदार्थों के गुणों, उनकी संरचना व ज्यामिति का अध्ययन किया जाता है। ज्यामितीय क्रिस्टल विज्ञान में हम क्रिस्टल में तलों (planes) की विशेष व्यवस्था एवं उनके ज्यामितीय आकार का अध्ययन करते हैं। ज्यामितीय क्रिस्टल विज्ञान मुख्य रूप से निम्न तीन नियमों पर आधारित है

(1) अन्तराफलक कोण की स्थिरता का नियम (The Law of Constancy of Interfacial Angles);

(2) परिमेय घातांक का नियम (The Law of Rational Indices);

(3) सममितता का नियम (The Law of Symmetry)|

उपर्युक्त तीनों नियमों के विस्तृत अध्ययन से पहले हम कुछ पदों (terms) तथा प्रतीकों (designations) . का वर्णन करेंगे जिनका उपयोग हम इन नियमों के अध्ययन में करते हैं

(i) फलक (Face) वे द्विविमीय (Two-dimensiona) तल (planes) जिनसे क्रिस्टल बंधा रहता है, फलक (faces) कहलाते हैं। सामान्यतया ये फैलकं । समतल होते हैं।

(ii) किनारा (Edge) जिस स्थान पर दो फलक मिलते हैं अर्थात् दो फलकों के प्रतिच्छेदन (intersection) वाले स्थान को हम । किनारा कहते हैं।

(iii) अन्तराफलक कोण (Interfacial angles) किन्हीं दो प्रतिच्छेदी फलको (intersecting faces) से लम्बवत् खींची गयी अन्तराफलक कोण रेखाओं के मध्य का कोण अन्तराफलक कोण (interfacial angle) कहलाता है। उदाहरण चित्र 5.9 के लिए, चित्र 5.9 में फलक F तथा फलक F2 के मध्य का अन्तराफलक कोण A है। किसी क्रिस्टल के अन्तराफलक कोण को जिस उपकरण से नापा जाता है वह गोनियोमीटर (goniometer) कहलाता है।

(iv) घन कोण (Solid angle) वह कोण जहा दो से अधिक फलक मिल रहे हों घन कोण कहलाता है। किसी क्रिस्टल के लिए घन कोणों की संख्या (a) निम्न सम्बन्ध द्वारा ज्ञात की जा सकती है

a – e + 2 – f

जहां किनारों (edges) की संख्या है व फलको (faces) की संख्या है।

(v) क्रिस्टलोग्राफिक अक्ष (Crystallographic axes) क्रिस्टल एक त्रिविमीय संरचना होती है। अतः इसकी व्याख्या करने के लिए तीनों अक्षों की आवश्यकता पड़ती है। चूंकि क्रिस्टल को कैसे भी पकड़ा जा सकता है इसलिए इसकी किसी भी अक्ष को x-अक्ष तथा उसके सापेक्ष दो अक्षों को y व z अक्ष कहा जा सकता हा इन अक्षों के मध्य के कोणों को Bव द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। किसी क्रिस्टल के उन । अक्षों को क्रिस्टलीय या क्रिस्टलोग्राफिक अक्ष कहते हैं जिनसे क्रिस्टल की ज्यामिति व गुणों की व्याख्या की जा सकती हो। इनकी विस्तृत चर्चा क्रिस्टल समदाय (प्र. 212) पर की गई है।

(vi) क्रिस्टलीय प्रतीक प्रणाली (Crystallographic designation) किसी क्रिस्टल के फलक, अक्ष, आदि के सम्बन्ध को संक्षेप में दर्शाने वाली पद्धति को क्रिस्टलीय प्रतीक प्रणाली कहते हैं। इसके लिए कई पद्धतियां हैं जिनमें वाइस व मिलर सूचकांक (indices) की विधियां महत्वपूर्ण है।

  • अन्तराफलक कोण की स्थिरता का नियम (The Law of Constancy of Interfacial Angles) : जैसा कि हम जानते हैं कि किन्हीं दो प्रतिच्छेदी फलकों (intersecting faces) के लम्बरूप खीची गया रेखाओं के मध्य का कोण अन्तराफलक कोण कहलाता है। स्टेनो (Steno) ने 1669 में अन्तराफलक कोण व क्रिस्टल से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण नियम दिया जिसे अन्तराफलक कोण की स्थिरता का नियम (Law of Constancy of Interfacial Angles) कहते हैं। इस नियम के अनुसार, “किसी पदार्थ के लिए अन्तराफलक कोण का मान सदैव स्थिर (constant) रहता है, चाहे उसके किसी भी क्रिस्टल का कोई भी फलक किसी भी दिशा में कितनी ही वृद्धि क्यों न कर ले और कोई भी आकार क्यों न ग्रहण कर ले।” अथवा ऊपर से देखने पर (apparently) किसी पदार्थ के क्रिस्टलों का आकार भिन्न-भिन्न प्रतीत हो सकता है, लेकिन उन सभी के अन्तराफलक कोणों के मान सदैव समान होते हैं।

उदाहरण के लिए, क्वार्ट्स के क्रिस्टल षट्कोणीय होते हैं। अतः किसी क्वार्ट्स के लम्बवत् यदि एक सतह काटी जाये तो उसका आकार षट्कोणीय होना चाहिए तथा उनका आन्तरिक कोण 120′ का होना चाहिए, जैसा कि चित्र 5.10(A) में दर्शाया गया है। किन्तु वास्तव में अलग-अलग परिस्थितियों में क्रिस्टलों की असमान वृद्धि के कारण अलग-अलग आकृतियों में क्रिस्टल बन जाते हैं, जैसा कि चित्र 5.10(B) व (C) में दर्शाया गया है। किन्तु इन सभी आकृतियों वाले क्रिस्टलों में अन्तराफलक कोण अथवा आन्तरिक कोण 120° ही है। इससे अन्तराफलक कोण की स्थिरता के नियम की पुष्टि होती है।

  • परिमेय घातांक का नियम (The Law of Rational Indices) : यह नियम आर. जे. हॉय ( J. Houy) ने 1784 में दिया था। इस नियम के अनुसार, किसी क्रिस्टलीय अक्ष पर क्रिस्टल के किसी फलक के अन्तःखण्ड (intercept) या .तो इकाई अन्तःखण्ड (a, b,c) के बराबर होते हैं अथवा उनके सरल गुणक होते हैं। उदाहरणार्थ,na, nb n”c, आदि जहां n n तथाn”, आदि सरल पूर्ण संख्याएं हैं।

चित्र 5.11 में माना Ox, OY तथा OZ क्रिस्टलीय अक्षों को प्रदर्शित करते हैं। माना ABC एक इकाई तल है अतः इकाई अन्तःखण्ड a, b व c होंगे। इस नियम के अनुसार इन्हीं तीन अक्षों पर किसी भी फलक के अन्त:खण्ड, उदाहरणार्थ, KLM के मान क्रमशः a, b व c के पूर्णाक गुणक होंगे। जैसा कि चित्र 5.11 से स्पष्ट है कि ये पूर्ण । अंक 2,2 व 3 है।

माइस सूचकांक (Weiss Indices) इनके द्वारा किसी क्रिस्टल के फलक का क्रिस्टलीय अक्षों से सम्बन्ध दर्शाया जाता है। क्रिस्टलीय वर एकांक फलक के अन्तःखण्डों का अनुपात अक्षानुपात (axial ratio) कहलाता है। किसी क्रिस्टल के अक्षानुपात लिखने में यह परिपाटी है कि b अक्ष पर अन्तःखण्ड को 1 (one) मानकर अक्षानुपात निकाला। जाता है। उदाहरण के लिए, पोटैशियम सल्फेट क्रिस्टलों के लिए फलकों का अक्षानुपात निम्न होता है

A : b : c = 0.5727 : 1 : 0.7418

इसी प्रकार जिप्सम के क्रिस्टलों में फलकों का अक्षानुपात निम्न होता है

Ab : c = 0.6899 : 1: 0.4124

किसी क्रिस्टल से एक-एक त्रिभजीय तल के प्रवाहित होने पर जो अन्तःखण्ड प्राप्त होते जाते हैं उन्हें वाइस अंक (Weiss indices) कहते हैं, और इनका वर्णन एकांक फलक के अन्त खण्डों के अनुपात के रूप 4: (c) में करते हैं। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि किसी एक चुने हुए अन्तःखण्ड को मानक (standard) मानकर किसी अन्य अन्तःखण्ड का वर्णन वाइस पैरामीटर के आधार पर कर सकते। हैं। उदाहरण के लिए, चित्र 5.12 में चुने हुए अन्तःखण्ड ABC के वाइस पैरामीटर निम्न हैं (a: b: c)

अतः इन्हें मानक पैरामीटर मानकर अन्तःखण्ड LMN के वाइस पैरामीटर निम्न माने जायेंगे

(2a : 3b : 3c) x (a)

यदि कोई फलक किसी अक्ष के समान्तर होता है तो यह मानते हैं कि वह अक्ष को अनन्त पर काटेगा, अतः उसके पैरामीटर के रूप में उस सम्बन्धित अक्षर a अथवा b अथवा c से पहले ० (infinite) लिखकर प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए. यदि कोई फलक और b अक्षों को एकांक फलक की तुलना में क्रमश: 1 और 2 एकांक लम्बाई पर। काटता है और यह c अक्ष के समान्तर है तो इस तल के वाइस पैरामीटर निम्न होंगे

(a : 2b c)

वाइस अंक अथवा वाइस पैरामीटर को अंश या भिन्न (fraction) में भी प्रकट किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, चित्र 5.12 में अन्त खण्ड PQR के वाइस पैरामीटर निम्न होंगे

(1/2 a : 3/2 b : 3/2 c)

A,b.c को सदा इसी क्रम में लिखते हैं, अतः वाइस प्रतीको को हम इनके गुणक (coefficients) अंक को बड़े कोष्ठक में लिखकर भी प्रकट कर सकते हैं। इस प्रकार LMN के वाइस प्रतीक (233) होंगे।

मिलर सूचकांक (Miller Indices) मिलर ने किसी फलक के अक्षीय अनुपातो व अन्तःखण्डों के सामान्य सम्बन्ध के उपयोग से उस फलक को क्रिस्टलीय अक्षों के पदों में व्यक्त किया। इसके अनुसार किसी फलक की व्याख्या तीन पूर्णाकों (h,k व द्वारा की जाती है। ये तीनों पूर्णाक एकांक तल के अन्तःखण्ड और उस दिये गये फलक के अन्तःखण्डों के अनपात को व्यक्त करते हैं। किसी फलक के मिलर अंक (Miller indices) प्राप्त करने के लिए उसके वाइस पैरामीटर के अंकों (coefficients) के व्युत्क्रमो (reciprocals) को किसी ऐसी छोटी-से-छोटी संख्या। से गणा करते हैं कि तीनों अंक पूर्णाक में प्राप्त हो जायें। यही पूर्णाक मिलर अंक की उदाहरण के लिए, चित्र 5.12 में फलक LMN के वाइस पैरामीटर निम्न हैं।

(2a : 3b : 3c)

अक्षीय क्रम a,b, C में वाइस पैरामीटर के अंकों के व्युक्रमों

1 /2, 1/3, 1/3

को छः से गुणा करके पूर्णाकों में प्राप्त किया जा सकता है अतः 3,2, 2 (322) LMN फलक के मिलर अंक कहलाते हैं। इसे हम तीन सौ बाइस नहीं पढ़ते अपित तीन दो दो (Three Two Two) पढ़ते हैं। इसी प्रकार यदि किसी फलक का वाइस प्रतीक

A : 3b : c

हो तो उसका मिलर सूचकांक होगा

(1,1 /3,1/ ∞)= (3, 1, 0) = (310)

अर्थात् ‘तीन एक शून्य’ (Three one naught)। उपयुक्त विवरण से स्पष्ट है कि मानक या एकांक तल ABC के मिलर अंक h.k व ! के मान इकाई होंगे अतः इसे (111) तल कहेंगे। यदि किसी तल का अन्तःखण्ड ऋणात्मक हो अर्थात चित्र 5.24 में दिखाये गये अक्षों को उनके विपरीत दिशा में बढ़ने पर काटें तो मिलर सूचकांक पर हम एक ‘बार’ (bar) चिह्न लगा देते हैं। ‘बार’ का उपयोग हम ऋणात्मक स्थिति को दर्शाने के लिए करते हैं। अतः यदि किसी फलक का अन्तःखण्ड a, b,c है। तो उसके मिलर सूचकांक (111) होंगे। चूंकि तीनों अंक a. b व c के क्रम में हैं अतः जो अक्ष अन्तःखण्ड को ऋणात्मक दिशा में काटे, उसी अंक के ऊपर एक बार का चिह्न लगा देते हैं। उदाहरण 5.1. एक क्रिस्टल तल अन्त खण्ड की तीन क्रिस्टलीय अक्षों क्रमशः a,1/2 bव3/2 c पर हैं।

जहां a, b तथा c क्रमशः अक्ष x, y तथा 7 पर इकाई लम्बाइयां हैं। इस तल के मिलर सूचकांक ज्ञात करो।

हल : इस अन्तःखण्ड तल के वाइस सूचकांक निम्न होंगे

1, ½, 3/2

इन सूचकांकों के व्यक्रम होंगे 1, 2, 2/3

3 से गुणा करने पर, 3,6,2

अतः इस तल के मिलर सूचकांक (362) होंगे।                  उत्तर

उदाहरण 5.2.उन क्रिस्टल तलों के मिलर सूचकांक ज्ञात करो जो क्रिस्टलीय अक्ष को निम्न पर काटें (i) (2a, 3b,c) (i) (a, b,c) (iii) (6a, 3b, 3c) (iv) (2a,-3b,-3c)

हल : (i) तल के वाइस सूचकांक =2,3,1

इनके व्युत्क्रम = ½, 1/3, 1

6 से गुणा करने पर = 3,2,6

अतः मिलर सूचकांक = (326)               उत्तर

(ii) तल के वाइस सूचकांक = 1, 1,1

इनके व्युत्क्रम = 1,1,1

अतः मिलर सूचकांक = (111)               उत्तर

(iii) तल के वाइस सूचकांक = 6,3,3

इनके व्युत्क्रम -1/6, 1/3, 1/3

6 से गुणा करने पर = 1, 2, 2

मिलर सूचकांक = (122)                      उत्तर

(iv) तल के वाइस सूचकांक =2,- 3 3

इनके व्युत्क्रम =1/2, – 1/3, -1/3

6 से गुणा करने पर = 3,-2,-2

मिलर सूचकांक = (322)                 उत्तर

बिन्दु A, B व C क्रमश: X, Y एवं z अक्षों पर उपस्थित हैं अतः इनके निर्देशांक निम्न होंगे

: A-(a, 0,0); B – (0,b,0); C–(0,0,c)

माना कि तल (Plane) ABC की समीकरण निम्न है: Ax + By + C2 +D = 0 ….(5.2)

तीनों बिन्दु A, B व C तल ABC पर स्थित हैं अतः । A.a + B.0 + C.0 + D = 0 अर्थात् A = D/a

A.0 + B.b +C.0 +D = 0 अर्थात B = -D/b

A.0 + B.0 +C.c +D = 0 अर्थात् C = – D/c

A, B व C के मान तल की समीकरण (5.2) में रखने पर,

x/a + y/b + z/c = 1            ….(5.3)

इसी समीकरण (5.3) को ही हम अन्त खण्ड रूप में तल की समीकरण कहते हैं।

Sbistudy

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