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Law of Stream Length in hindi नदी प्रवाह की लम्बाई का नियम क्या है सिद्धांत Stream length definition
Stream length definition Law of Stream Length in hindi नदी प्रवाह की लम्बाई का नियम क्या है सिद्धांत ?
3. लम्बाई अनुपात (Length Ratio = RL) – दो क्रमिक श्रेणियों के समस्त सरिताओं की लम्बाई के अनुपात को लम्बाई अनुपात (RL) कहते हैं। इसकी गणना के लिये सर्वप्रथम सभी सरिता श्रेणियों की लम्बाई आपिसोमीटर की सहायता से ज्ञात कर उनका सारणीकरण किया जाता है। (आपिसोमीटर के अभाव में धागे की सहायता से लम्बाई ज्ञात करके मापक के अनुसार परिवर्तित कर लिया जाता है)। तत्पश्चात् प्रत्येक श्रेणी की लम्बाई में उस श्रेणी के सरिता की संख्या का भाग देकर औसत लम्बाई अनुपात (Lu) ज्ञात कर लिया जाता है। सामान्यतः यह देखा जाता है कि प्रवाह-बेसिन में प्रथम श्रेणी के सरिता खण्डों की औसत लम्बाई न्यूनतम होती है, परन्तु यह तभी सम्भव होता है जबकि अध्ययन के लिये लघुतम मापक का प्रयोग किया जाय।
औसत सरिता लम्बाई = Lu =Σ Lu / Nu
Σ Lu = किसी श्रेणी के समस्त सरिता खण्डों का योग, तथा
Nu = उसी श्रेणी के समस्त सरिता खण्डों की संख्या ।
लम्बाई अनुपात = RL = Lu / L(u-1)
सारणी 4.5 खारकी नदी की औसत लम्बाई तथा लम्बाई अनुपात!।
श्रेणी औसत लम्बाई संचयी लम्बाई लम्बाई अनुपात
(U) (किलोमीटर) (किलोमीटर) (RL)
1 0.61 0.61 3.06
2 0.61 1.49 1.90
3 0.88 5.74 4.64
4 4.25 8.49 0.39
5 14.00 22.49 –
हार्टन ने ‘सरिता लम्बाई का सिद्धान्त‘ (Law of Stream Length) का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार – ‘क्रमिक श्रेणियों के सरिता खण्डों की संचयी औसत लम्बाई में गुणात्मक-क्रम होता है, जो स्थिर लम्बाई अनुपात के अनुसार प्रथम श्रेणी से प्रारम्भ होकर उच्च श्रेणी की ओर बढ़ता जाता है।’ स्पार्क के अनुसार – “The law of Stream length is the mean lengths of stream segments of successive stream orders approximate to a direct geometric sequence in which the first term is the average length of a first order stream”.
हार्टन के इस नियम को निम्न समीकरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है-
Lu = L1 RL (u-1)
L1 = प्रथम श्रेणी के सरिता खण्डोंकी औसत लम्बाई ।
सरिता-श्रेणी एवं सरिता खण्डों की संचयी औसत लम्बाई को लघुगणितीय मापक (Logorithims Scale) पर अङ्कित करें, तो एक प्रतीपगमन (regression) की सीधी रेखा का निर्माण होता है।
स्पार्क के शब्दों में- if the logorithims of the mean lengths of the Stream segments of dffierent orders are plotted against stream order, the result is usually an approximately straight line.!2
4. वक्रता सचकांक (Sinuosity Index) – नदियों के मार्ग के स्वभाव पर संरचना, जलवायु, वनस्पति तथा समय आदि का प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि नदियों का मार्ग वक्राकार अवश्य होता है। यह एक सीधी रेखा से कभी नहीं प्रवाहित हो सकती है। इनका मार्ग वक्राकार अवश्य होगा, चाहे थोड़ा ही क्यों न हो। वक्रता सूचकांक के आधार पर नदियों के मार्ग के स्वभाव का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन के लिये नदी के मार्ग की लम्बाई (Channel Lenght = CL) तथा उसकी घाटी की लम्बाई (Valley Length = VL) का अनुपात लिया जाता है। यह अनुपातः यदि 1 से 1.3 आता है, तो नदी
Prasad, Gayatri. 1984: A geomorphological study of Chhindwara Plateau.
Spark B. W. 1972: Geomorphology, pp. 160.
वक्र (Sinuous) होती है, और जब अनुपात 1.3 से अधिक आता है, तो नदी विसर्पित (meandering) कही जाती है। मूलर (1962) के अनुसार वक्रता सूचकांक निम्न ढंग से ज्ञात किया जाता है-
जलमार्ग सूचकांक (Channel Index = CI) = CL/Air (जलीय एवं स्थलाकृतिक वक्रता)
घाटी सूचकांक (Valley Index = VI) = VL / Air (स्थलाकृतिक वक्रता)
जलीय वक्रता सूचकांक
HSI = : equivalent of CI – VI/ CI – 1
TSI = : equivalent of VI – 1/CI-1
वक्रता सूचकांक का विश्लेषण करें तो स्थलाकृतिक नियन्त्रण के कारण स्थलाकृतिक वक्रता सूचकांक का प्रतिशत जलीय वक्रता सूचकांक से अधिक होता है। यदि हम मैदानी भाग का विश्लेषण करें, तो
Mueler, J. E., 1968 : An Introduction of Hydroveic Sinuosity Index.’ Ann, Assoc. Geogr, Vol. 38, No. 2, pp. 371-385.
जलीय वक्रता सूचकांक अधिक होता है। छिन्दवाड़ा पठार की कुछ प्रवाह-बेसिनों का वक्रता सूचकांक सारणी 4.6 में अंकित है।
5. प्रवाह-बेसिन की आकार-ज्यामिति (Geometry of Basin Shape) – प्रवाह-बेसिन के आकारा क विषय में कई विद्वानों ने अपना-अपना योगदान दिया है। इसमें हार्टन, स्टोडार्ट (1965), मिलर, सम (Schumm), शोर्ले, Malm, Progo=elshi आदि प्रमुख हैं। सामान्यतया एक प्रवाह-बेसिन का आकार नाशपाती जैसा होता है, परन्तु बेसिन के आकार पर उनके क्षेत्रीय विस्तार, प्रमुख नदी की लम्बाई तथा नदी की परिधि का प्रभाव पड़ता है। बेसिन के इन सभी तथ्यों पर निरक्षेप उच्चावच, ढाल, भू-वैज्ञानिक-संरचना, जलवायु, वनस्पति आदि का प्रभाव पड़ता है। इसलिये विद्वानों ने प्रवाह-बेसिन का विस्तार, नदी की लम्बाई तथा इसकी परिधि के आधार पर वेसिन का आकार निर्धारित करने का प्रयास किया है।
(i) Horton’s Form Factor (F)
F = A/L2
जबकि F = Form Factor, जो बेसिन के दैर्घ्यबृद्धि सूचकांक को इंगित करता है।
A = प्रवाह-बेसिन का क्षेत्रफल ।
L = बेसिन की लम्बाई।
F का मान O से 1 के बीच आता है। 1 से जितना कम मान आयेगा, बेसिन का आकार उतना ही लम्बा होता है तथा यदि मान 1 के आस-पास रहेगा, तो बेसिन का आकार गोलाई लिए हुए एक पत्ती की भाँति होगा।
(ii) Stodart’s Ellipticity Index (E) (1965) – इन्होंने अण्डवृत्ताकृति सूचकांक के लिये निम्न सूत्र बताया –
E = L / 2b = πL2/4A
E का मान सदैव 0 से 1 के बीच रहता है।
(iii) Miller’s ;1953) Circularity Index;C)
C = बेसिन का क्षेत्रफल / ऐसे वृत्त का क्षेत्रफल, जिसकी परिधि बेसिन की परिधि के बराबर है
अथवा,
C = 4 π A/P2
C का मान सदैव 0-1 के बीच रहता है। ब् का मान जितना अधिक होगा बेसिन का आकार उतना ही गोल होगा।
;iv) Schumm’s ;1956) Elongation Ratio ;R)
Ùj ऐसे वृत्त का व्यास, जिसका क्षेत्रफल बेसिन के क्षेत्रफल के बराबर क्षेत्र का हो।/बेसिन की लम्बाई
R = 2 √;;A/π))
L = 2/√π √;;A/L^2)) = 2/√π × √F
or ;F= π/4R)2
R का मान 0-1 के बीच रहता है। R का मान जितना अधिक होगा बेसिन का आकार उतना ही अधिक गोल होगा।
;V) Chorley, Malm and Progo=elski’s ;1957) Leminiscate Method ;K)
Ùj (बेसिन की लम्बाई)2 / 4 (बेसिन का क्षेत्रफल)
= L2/4A
K का मान जितना अधिक होगा, वेसिन का आकार उतना ही अधिक लम्बा होगा।
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