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Categories: chemistry

law of mass action in hindi , सक्रिय द्रव्यमान का नियम क्या है , परिभाषा इकाई class 11 derivation

रसायन विज्ञान का law of mass action in hindi , सक्रिय द्रव्यमान का नियम क्या है , परिभाषा इकाई class 11 derivation महत्वपूर्ण टॉपिक है |

सक्रिय द्रव्यमान का नियम (Law of Mass Action) : अभिक्रियाओं के वेग के बारे में गुलबर्ग एवं वागे (Guldberg and Waage) ने 1867 में अपना एक नियम दिया जिसे सक्रिय द्रव्यमान का नियम (law of active mass) कहा जाता है। इस नियम के अनुसार,

“किसी अभिक्रिया की गति उसके क्रियाकारकों के सक्रिय द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती होती है।”

यहां सक्रिय द्रव्यमान से तात्पर्य पदार्थ की आण्विक सान्द्रता (molecular concentration) से है, अर्थात इकाई आयतन (T litre) में उपस्थित किसी पदार्थ के ग्राम अणुओं या मोलों की संख्या को उसका सक्रिय द्रव्यमान कहते हैं।

अतः एक सामान्य अभिक्रिया [समीकरण (1)] के लिए अभिक्रिया वेग

  • Dc/dt – CA x CB
  • Dc / dt = KcA . CB

जहां k एक स्थिरांक है जिसे बेग स्थिरांक (rate constant) कहा जाता है। ।

प्रारम्भिक वेग (Initial Rate)

ऊपर हमने बताया कि किसी अभिक्रिया की गति उसके क्रियाकारकों की सान्द्रता (यहां सान्द्रता से तात्पर्य उसकी आण्विक सान्द्रता अथवा सक्रिय द्रव्यमान से ही है) के समानुपाती होती है। अतः किसी भी अभिक्रिया की प्रारम्भिक गति तो बहुत अधिक होनी चाहिए क्योंकि क्रियाकारकों की प्रारम्भिक सान्द्रता अधिक होती है, लेकिन जैसे-जैसे अभिक्रिया सम्पन्न होती जायेगी. क्रियाकारकों की सान्द्रता घटती जायेगी और उसी अनुपात में अभिक्रिया की गति भी कम होती जायेगी और अन्ततः शून्य के समीप पहुंच जायेगी। अभिक्रिया की गति शून्य तो अनन्त पर ही जाकर होती है, अतः हम सैद्धान्तिक रूप से मानते हैं कि अभिक्रिया की गति शून्य कभी नहीं होती। यदि किसी अभिक्रिया की गति को समय के साथ आलेखित किया जाय तो चित्र 7.2 जैसा वक्र प्राप्त होता है। समय इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी अभिक्रिया का वेग सदैव अधिकतम होता है, जो समय के साथ बड़ी तेजी से । कम होता जाता है। बाद में वेगों को बढ़ाने अथवा अधिक वेग को बनाये रखने के लिए हमें आवश्यकतानुसार अभिक्रिया का ताप, दाब, किसी क्रियाकारक की सान्द्रता अथवा उत्प्रेरक की उपस्थिति, आदि को नियन्त्रित करना होता है।

अभिक्रिया वेग की इकाई (Unit of Rates of Reaction)

किसी अभिक्रिया की दर सान्द्रता के परिवर्तन व समय के परिवर्तन के अनुपात को प्रदर्शित करती है।अतः

अभिक्रिया का वेग  = सान्द्रता / समय =  मोल प्रति लिटर (molt’) / सेकण्ड (s)

अतः अभिक्रिया वेग की इकाई =molr’s-1

अभिक्रिया वेग को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting the Rate of a Reaction) किसी अभिक्रिया के वेग को निम्न कारक प्रभावित करते हैं :

  • अभिक्रिया का ताप (Temperature of the Reaction) किसी अभिक्रिया का ताप उसके वेग को बहुत अधिक प्रभावित करता है। सामान्य अभिक्रियाओं में तापमान बढ़ाने से अभिक्रिया के वेग में वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि ताप के बढ़ने से अणुओं की गतिज ऊर्जा का मान बढ़ जाता है जिससे अभिक्रिया के वेग में वृद्धि हो जाती है।
  • अभिक्रिया का दाब (Pressure of Reaction) अभिक्रिया वेग पर दाब का प्रभाव केवल गैसीय अभिक्रियाओं पर ही पड़ता है और गैसीय अभिक्रियाओं में भी विशेष रूप से उन अभिक्रियाओं पर जिनके स्टॉइकियोमितीय समीकरण में अणुओं की संख्या में परिवर्तन हो रहा हो। उदाहरणार्थ,

N2 + 3H2 = 2NH3 इस अभिक्रिया में क्रियाकारक के चार अण मिलकर उत्पाद के दो अणु बना रहे हैं अर्थात् अभिक्रिया की प्रगति के साथ अभिक्रिया मिश्रण में अणओं की संख्या में कमी होती जा रही है, स्वाभाविक है कि अणुओं की कमी के साथ दाब में कमी होती जाएगी. अतः ऐसी अभिक्रियाएं अधिक दाब पर तेजी से सम्पन्न होती है।

उपर्युक्त के विपरीत निम्न अभिक्रिया,

2N2O5→4NO2 +02

भिक्रिया के सम्पन्न होने में अणओं की संख्या में वद्धि होती जाती है, अतः एसी अभिक्रियाओं को दाब पर सम्पन्न करवाते हैं।

  • सान्द्रता का प्रभाव (Effect of Concentration) हम जानते है कि किसी भी अभिक्रिया का वेग उसके क्रियाकारकों की सान्द्रता के समानुपाती होता है। अतः किसी भी अभिक्रिया के वेग को बनाए रखने के लिए उसके क्रियाकारकों की सान्द्रता को बढ़ाते जाते हैं।

(iv) उत्प्रेरक की उपस्थिति (Presence of Catalyst)-कई अभिक्रियाओं का वेग उत्प्रेरक की उपस्थिति से बहुत अधिक प्रभावित होता है। सामान्यतया उत्प्रेरक की उपस्थिति से अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा का मान कम हो जाता है, अतः अभिक्रिया तेजी से सम्पन्न होती है।

  • क्रियाकारकों की प्रकृति (Nature of the Reactants)—क्रियाकारकों की प्रकृति का भी अभिक्रिया वेग पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में कुछ पुराने बन्ध टूटते हैं व नए बन्ध बनते हैं, अतः अणु जितने सरल होंगे उतने ही उसमें कम बन्ध टूटेंगे और उनकी अभिक्रिया की गति उतनी ही तेज हो जाएगी जबकि जटिल अणुओं में अधिक बन्ध टूटेंगे, अतः उनका वेग कम हो जाएगा। उदाहरणार्थ, नाइट्रिक ऑक्साइड, NO के ऑक्सीकरण का वेग (r1) CH4 के ऑक्सीकरण (दहन) के वेग (r2) से अधिक होता है। अर्थात् r1 > r2

2NO(g) + O2(g)  –  2NO2g

CH4 (g) + 2O2 (g) –  CO2(g) + 2H2 O(l)

  • क्रियाकारक की सतह का क्षेत्रफल (Surface Area of the Reactants)—कुछ विषमांगी (heterogeneous) अभिक्रियाओं में अभिक्रिया क्रियाकारक की सतह पर सम्पन्न होती है। अतः ऐसी अभिक्रियाओं में सतह का क्षेत्रफल, उसकी सछिद्रता (porosity), आदि का अभिक्रिया वेग पर बहुत प्रभाव पड़ता है। क्रियाकारकों के कणों का आकार जितना छोटा होगा उसकी सतह का क्षेत्रफल उतना ही अधिक हो जाएगा. अतः ऐसी अभिक्रियाओं में क्रियाकारक जितने महीन चूर्ण की अवस्था में लिया जाए उतनी ही तेजी से अभिक्रिया सम्पन्न होती है।
  • विकिरणों का प्रभाव (Effect of Radiations) वे अभिक्रियाएं जो उपयुक्त तरंग-दैर्घ्य वाले विकिरणों से प्रेरित होती हों प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाएं (Photochemical reactions) कहलाती हैं। ऐसी अभिक्रियाएं अधिकांशतः सामान्य ऊष्मीय अभिक्रियाओं की तुलना में अधिक तेजी से सम्पन्न होती हैं। ऐसा इसलिए होता है कि इन अभिक्रियाओं में फोटॉन अपनी समस्त ऊर्जा अणुओं को उत्तेजित होने के लिए दे देता है जिससे कि अणु शीघ्रता से सक्रियित होकर उत्पाद बना लेते हैं।
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