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law of equipartition of energy in hindi Principle ऊर्जा के समविभाजन का सिद्धांत क्या है
ऊर्जा के समविभाजन का सिद्धांत क्या है law of equipartition of energy in hindi Principle ?
ऊर्जा के समविभाजन का सिद्धान्त (Principle of Equipartition of Energy)
इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम मैक्सवेल ने किया। इस नियम के अनुसार उन सब स्वतन्त्रता की कोटिया से, जिनके लिए ऊर्जा स्वतन्त्रता की कोटि को निर्दिष्ट करने वाले चर का द्विघाती फलन होती है, औसतन समान मात्रा में ऊर्जा सम्बद्ध होती है और यदि सभी स्वातन्त्र्य कोटियाँ इसी प्रकृति की है तो कुल ऊर्जा उनमें समान परिमाण में बंटी होती है। जब किसी स्वतन्त्रता की कोटि से सम्बद्ध ऊर्जा, स्वतन्त्रता की कोटि को निर्दिष्ट करने वाले चर की द्विघाती फलन होती है तो मैक्सवेल – बोल्ट्जमान सांख्यिकी के आधार पर प्रत्येक स्वातन्त्र्य कोटि से सम्बद्ध ऊर्जा का माध्य मान KT/2 होता है, जहाँ k बोल्ट्जमान नियतांक है तथा T परम ताप है। द्वारा निर्दिष्ट ऊर्जा के समविभाजन के सिद्धान्त की व्यापक व्युत्पत्ति के लिये ऊष्मीय साम्यावस्था में ऐसे गतिकीय निकाय पर विचार कीजिये जिसको f स्थिति निर्देशांकों q1 , q2, q3 तथा f संगत संवेग निर्देशांकों P1, P2….. किया जाता है। इस निकाय की ऊर्जा E इन चरों का फलन होगी अर्थात् E = E (q1, q2,……qp P1, P2 , ….Pf) इस ऊर्जा फलन को निम्न रूप में भी लिखा जा सकता है। E = ∈i + E’ जहाँ ∈i केवल एक विशिष्ट संवेग निर्देशांक Pi का फलन है तथा E’,Pi फलन है।
इस प्रकार केवल एक निर्देशांक Pi अर्थात् एक स्वातन्त्र्य कोटि से सम्बद्ध माध्य ऊर्जा KT/2 होती है। इसी प्रकार का परिणाम pi के स्थान पर निर्देशांक q लेकर भी प्राप्त होगा ।
समविभाजन सिद्धान्त के अनुप्रयोग : विशिष्ट ऊष्मा का चिरसम्मत सिद्धान्त
(Applications of the Equipartition Principle: Classical Theory of Specific Heats)
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियमानुसार किसी निकाय की आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन निकाय को दी गई ऊष्मा δQ व निकाय द्वारा किये गये कार्य SW के अन्तर के तुल्य होता है अर्थात्
dU = U2 – U1 = δQ-δw
आयतन नियत होने पर निकाय द्वारा किया गया कार्य SW शून्य होता है, अतः यदि ऊष्मा δQ देने से निकाय के ताप में परिवर्तन dT होता है तो नियत आयतन पर विशिष्ट ऊष्मा
Cv = δQ/dT
एक मोल आदर्श गैस के लिये नियत दाब पर
δW = pdV = R dT
जिससे नियत दाब पर विशिष्ट ऊष्मा
किसी भी विकाय के आणविक प्रतिरूप का उपयोग कर हम उसके अणुओं की ऊर्जाओं के योग से उसकी आंतरिक ऊर्जा अभिनिर्धारित कर सकते हैं। यदि प्रत्येक अणु का स्वातन्त्र्य कोटियों की संख्या हैं और अणुओं की N संख्या है तो आंतरिक ऊर्जा
जहाँ n = N/N0 मोल संख्या है तथा R = आवोगाद्रो संख्या × बोल्ट्जमान नियतांक, अतः एक मोल के लिये U = f RT/2 जिससे नियत आयतन पर सोलर विशिष्ट ऊष्या
Cv = dU/dT – fR/2
आदर्श गैस के लिये नियत दाब पर विशिष्ट ऊष्मा
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