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Categories: indianrajasthan

भूमि संसाधन किसे कहते हैं Land Resources in hindi meaning definition भूमि संसाधन क्या है उपयोग

भूमि संसाधन क्या है उपयोग भूमि संसाधन किसे कहते हैं , Land Resources in hindi meaning definition ?

भूमि संसाधन
Land Resources
भारत का कुल क्षेत्रफल 32.87 लाख वर्ग किमी. से अधिक है और यह विश्व का सातवां बड़ा देश है। अतः हमारे देश में भूमि संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इसके कुल क्षेत्रफल का 10.7 प्रतिशत भाग 2135 मीटर से ऊंचा है और पर्वतीय प्रदेश कहलाता है। 18.6 प्रतिशत भाग 305 से 2135 मीटर ऊंचा है, जिसे पहाड़ी भाग कहते है। इसका 27.7 प्रतिशत भाग पठारी (305 से 915 मीटर) है और शेष 43 प्रतिशत भाग मैदानी है, जो 305 मीटर से कम ऊंचा है। इसके पर्वतीय एवं पहाड़ी भागों में वन उगे हुए हैं और इन इलाकों में सदानीरा नदियों के स्रोत हैं। पठारी भागों में उपजाऊ मिट्टी मिलती है और पठारी भूमियों में अपार खनिज संसाधन पाए जाते हैं। झारखंड का छोटा नागपूर पठार इसका ज्वलंत उदाहरण है। भारत का उत्तरी विशाल मैदान भू-आकृतिविहीन सपाट भू-भाग है, जो नदियों द्वारा निक्षेपित उपजाऊ मृदा से निर्मित है। अतः यह भारत में कृषि का मूल आधार है। इसके तटीय मैदानों में भी काफी उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है, जो कृषि के लिए अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करती है। स्पष्ट है कि, भारत भूमि संसाधनों की दृष्टि से बड़ा भाग्यशाली देश है।
भूमि उपयोग के प्रतिरूप
(Land Use Patterns)
किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाने के लिए वहां के भूमि-उपयोग का ज्ञान होना आवश्यक है। भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.88 करोड़ हेक्टेयर है, जिसमें से 30.52 करोड़ हेक्टेयर (अर्थात 92.8ः भाग) के उपयोग सम्बन्धी आंकड़े उपलब्ध हैं। भारत में भूमि-उपयोग कई भौगोलिक तथा सामाजिक तत्वों पर निर्भर करता है। भौगोलिक तत्वों में धरातल, जलवायु, मृदा आदि का प्रभाव सर्वश्रेष्ठ है।
1. भारत 2010, वार्षिक संदर्भ ग्रंथ, पृ. 334
1. वन प्रदेश (Forests)
जहां कानूनी तौर पर वनों का विस्तार घोषित किया जाए वह क्षेत्र वन प्रदेश कहलाता है। वनों में विस्तृत चरागाह भी इसी श्रेणी में सम्मिलित किए जाते है। वनों के वर्गीकरण तथा वृक्षारोपण कार्यक्रम के परिणामस्वरूप हमारे देश में वन क्षेत्र में कुछ वृद्धि हुई है। वन प्रदेश में 1950-51 से 1970-71 के बीच विशेष वृद्धि हुई। 1950-51 में वन प्रदेश केवल 4.0 करोड हेक्टेयर था जो 1970-71 में बढकर 6.60 करोड़ हेक्टेयर हो गया। अर्थात बीस वर्षों की अवधि में वन क्षेत्र में डेढ़ गुना से भी अधिक वृद्धि हुई। इसी अवधि में इसकी कुल भूमि में प्रतिशत मात्रा भी 14.24% से बढ़कर 21.55% हो गई। परन्तु इसके बाद वन क्षेत्र में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। सम्भवतः यह वन उत्पादों की मांग बढ़ने से वनों को काटे जाने के कारण हो रहा है। इस समय हमारे देश में 697.8 लाख हेक्टेयर अर्थात कुल क्षेत्र का 21.86% भाग वनाच्छादित है जबकि भारत जैसे उष्ण कटिबन्धीय देश में लगभग 33ः भाग में वन होने चाहिए।
मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में विस्तृत क्षेत्र पर वन उगे हुए हैं। इन क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा होती है। कुल ग्यारह राज्यों में वनाच्छादित क्षेत्र का प्रतिशत भारत के औसत प्रतिशत से अधिक है। कुल क्षेत्र के अनुपात में वन क्षेत्र की दृष्टि से मिजोरम (88.63ः), नागालैण्ड (82.75), अरुणाचल प्रदेश (80.93%) तथा अंडमाननिकोबार द्वीप समूह (80.36%) के नाम उल्लेखनीय है। उत्तरी मैदानी भाग में कृषि अधिक होने से वन क्षेत्र बहुत कम है। उदाहरणतः पंजाब तथा हरियाणा में क्रमशः 4% तथा 3% भाग पर ही वन उगे हुए है।

2. कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि
(Land not available for Cultivation)

इसके अंतर्गत निम्नलिखित दो प्रकार की भूमि सम्मिलित की जाती हैः
(क) गैर-कृषि प्रयोजनों में लगाई गई भूमि (Land putto Non agricultural Uses)ः इस वर्ग के अन्तर्गत वह भूमि आती है, जो कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए उपयोग की जाती है। इस वर्ग की भूमि का प्रयोग नहरों सड़कों, रेलों, कारखानों नगरों तथा अन्य बस्तियों के विकास के लिए किया जाता है। इस वर्ग की भूमि में निरन्तर वृद्धि हो रही है। सन् 1950-51 में इस वर्ग की भूमि केवल 1.1 करोड़ हेक्टेयर थी जो बढ़कर 2005-06 में 4.2 करोड़ हेक्टेयर हो गई। इसका कारण यह है कि भारत में तीव्र गति से उद्योग यातायात तथा नगरीकरण का विकास हो रहा है।
(ख) बंजर तथा कृषि रहित क्षेत्र (Barren and Nculturable Land)ः यह वह भूमि है जो बंजर व कृषि के लिए अयोग्य है। भारत में तकनीकी विकास के साथ-साथ इस भूमि में कमी आ रही है। बहुत-सी बंजर भूमि को सिंचाई, खाद तथा उत्तम बीजों के प्रयोग से कृषि योग्य बनाया जा रहा है। इस प्रकार इस भूमि का विस्तार 1950-51 में 3.58 करोड़ हेक्टेयर से घटकर 2005-06 में 1.3 करोड़ हेक्टेयर रह गया।
अधिकांश बंजर भूमि पूर्वांचल (विशेषतया नागालैण्ड, मेघालय व मणिपुर) की ऊबड़-खाबड़ व अपरदित भूमि तथा राजस्थान के मरुस्थल हैं। गुजरात का रन कच्छ का इलाका भी बंजर है। पर्वतीय एवं पठारी दशाओं के कारण मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर आदि राज्यों की 63 से 85ः भूमि बंजर है। मिजोरम, असम, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और राजस्थान में इस प्रकार की भूमि का प्रतिशत 14 से 36% के बीच है। हिमाचल प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, त्रिपुरा आदि में 14% से कम भूमि बंजर है।
3. अन्य कृषि रहित भूमि, जिसमें परती भूमि सम्मिलित नहीं(Other Uncultivated Areaexcluding Fallow Land)
यह वह भूमि है जिस पर कृषि नहीं की जाती, परन्तु इसमें परती भृमि (थ्ंससवू स्ंदक) को सम्मिलित नहीं किया जाता। इस भूमि में निरन्तर कमी आ रही है। सन् 1950-51 में यह 4.89 करोड़ हेक्टेयर (17.4%) थी, जो घटकर 2005-06 में 1.1 करोड़ हेक्टेयर (3.67%) रह गई। इस प्रकार की भूमि में निम्नलिखित वर्ग की भूमियां सम्मिलित की जाती हैंः
(क) स्थाई चरागाह तथा अन्य चराई भूमि (Permanent Pastures and other Grazing Lands)ः सन् 1950-51 में यह भूमि (0.66 करोड़ हेक्टेयर (2.35%) थी, जो 1960-61 में 1.28 करोड़ हेक्टेयर (4.41%), 1970-71 में 1.21 करोड़ हेक्टेयर (3.95%) तथा 2005-06 में 1.04 करोड़ हेक्टेयर ( 3.42%) हो गई। हिमाचल प्रदेश में यह भूमि सबसे अधिक है जहा पर 23% भूमि पर चरागाह पाए जाते हैं। कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गजरात, राजस्थान उडासा तथा महाराष्ट्र में 4 से 8 प्रतिशत भूमि पर चरागाह हैं। अन्य राज्यों में 4% से कम भूमि या चरागाह है। देश के कई इलाकों में इस प्रकार की भूमि को साफ कर कृषि के योग्य बनाया जा सकता है।
(ख) फुटकर वृक्षों, फसलों तथा उपवनों के अधीन अधिक बोए गए निबल क्षेत्र में शामिल नहीं (Landana Miscellaneous Trees, Crops and Groves not in cluded in Net Area Sown)ः इस वर्ग में ऐसी भूमि सम्मिलित की गई है जिस पर बाग व अनेक प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं जिनसे फल आदि प्राप्त होते हैं। 1950-51 में इस भूमि का क्षेत्रफल 1.96 करोड़ हेक्टेयर (6.98%) था जो घटकर 1976-77 में 0.40 करोड़ हेक्टेयर (1.31%) तथा 2005-06 में 0.34 करोड़ हेक्टेयर (1.11%) रह गया। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की उदर-पूर्ति के लिए उस भूमि के बहुत से भाग पर कृषि होने लगी है। यह ऐसी भूमि है जहां आसानी से हाथ डाला जा सकता है और लोग देश के दीर्घकालीन हितों की अनदेखी करके अपनी तुरन्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस भूमि का ह्रास कर रहे हैं। इस वर्ग में आने वाली भूमि गुजरात में सबसे अधिक है जहां कुल भूमि का 8% भाग फुटकर वृक्षों, फसलों तथा उपवनों के अधीन है। त्रिपुरा तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप-समूह में क्रमशः 7% व 6% भूमि पर इस प्रकार का प्रयोग किया जाता है। आन्ध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, उड़ीसा, पंजाब, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश तथा गोवा में भारतीय औसत से कम प्रतिशत भूमि पर फुटकर वृक्षों, फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि है।
(ग) कृषि योग्य परन्तु बंजर भूमि (Culturable Waste Land)ः यह वह भूमि है जो किसी काम के लिए प्रयोग नहीं की जाती। आधुनिक तकनीकी ज्ञान की सहायता से उत्तम बीज व खाद तथा सिंचाई की व्यवस्था करके कृषि के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है। बढ़ती हुई जनसंख्या के सन्दर्भ में भारत के लिए इस भूमि का बड़ा महत्व है। इसमें कुछ भूमि होती है, जो पहले कृषि के अधीन थी परन्तु अब कुछ कारणों से बंजर हो गई। कुछ भूमि में काँस, हरिया, दुब आदि भर रही है, जिससे वहा पर कृषि करना कठिन हो गया है। कुछ भूमि में रेह है जिससे उसकी उपजाऊ शक्ति समाप्त हो गई है। पंजाब हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में इस प्रकार की भूमि का काफी विस्तार मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में इस भूमि में सुधार करने के प्रयल किए गए है। इन प्रयत्नों के फलस्वरूप बजर भूमि के विस्तार में पर्याप्त कमी आई है। सन् 1950-51 में यह 2.27 करोड़ हेक्टेयर (8.07%) थी, जो घटकर 1960-61 में 2.19 करोड़ हेक्टेयर (7.21%) तथा 1970-71 में 1.58 करोड़ हेक्टेयर (5.26%) हो गई। इसके पश्चात् इसमें थोड़ी-सी वृद्धि हुई और 1976-77 में यह 1.71 करोड़ हेक्टेयर (5.79%) हो गई। इसके बाद फिर इसमें कमी आनी शुरू हुई और सन् 2005-06 में यह केवल 1.31 हेक्टेयर (5.36%) रह गई।

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