हिंदी माध्यम नोट्स
कुमायूं हिमालय किन नदियों के बीच स्थित है , हिमालय का प्रादेशिक विभाजन map kumaon himalayas lies between which two rivers in hindi
kumaon himalayas lies between which two rivers in hindi कुमायूं हिमालय किन नदियों के बीच स्थित है , हिमालय का प्रादेशिक विभाजन map ?
प्रादेशिक भूआकारिकी – भारत
(REGIONAL GEOMORPHOLOGY & INDIA)
भूआकृति विज्ञान में प्रादेशिक भूआकृति के अंर्तगत धरातल के वृहद, मध्यम व लघुस्तरीय स्थानिक मापक वाले प्रदेशों को सम्मिलित किया जाता है। वृहद्स्तरीय स्थानिक मापक पर वृहद् प्रदेशों (यथा-सम्पूर्ण महाद्वीप तथा कभी-कभी अपरदन सतहों के अध्ययन के लिए संपूर्ण भूमण्डल) की भूआकारिकी के अध्ययन को मेगा आकारिकी कहते हैं तथा महाद्वीपों के विभिन्न भ्वाकृतिक प्रदेशों या एक ही भ्वाकृतिक प्रदेश के विभिन्न उप भ्वाकृतिक प्रदेशों की आकृतिक विशेषताओं के अध्ययन को मेसो भूआकारिकी कहते है। छोटे क्षेत्रों की स्थलाकृतियों का अध्ययन माइक्रो भूआकारिकी के अन्तर्गत किया जाता है। आकृतिक अध्ययन के लिए अपवाह बेसिन सर्वाधिक मान्य तथा आसान भ्वाकृतिक इकाई है। भारत की प्रादेशिक भूआकारिकी के अध्ययन के लिए कतिपय भूआकृतिक प्रदेशों का रैण्डम तरीके से एवं सोद्देश्य चयन किया जा रहा है किन्तु इस बात पर ध्यान अवश्य दिया गया है कि सभी चार प्रमुख भूआकृतिक प्रदेशों (हिमालय प्रदेश, विशाल मैदान प्रदेश, प्रायद्वीपीय पठार तथा तटीय मैदान) का प्रतिनिधित्व हो जाये।
(1) हिमालय प्रदेश (कुमाऊ हिमालय)
यह प्रदेश हिमालय का ही भाग है जिसके अन्तर्गत हिमालय की तीनों समानान्तर श्रेणियों, अर्थात् हिमाद्रि तथा शिवालिक का भाग आता है। इसकी स्थिति 28° 44‘ उ.-30° 49‘ उ. अक्षाशों एवं 78° 45‘ पू.-8°, 01‘ पूर्वी देशान्तरों के बीच है तथा इस प्रदेश का भौगोलिक क्षेत्रफल 21,035 वर्ग किलोमीटर है जिसके अन्तर्गत उत्तराखण्ड के कुमायूँ मण्डल के तीन जिलों, नैनीताल, अलमोड़ा तथा पिथौरागढ़ का क्षेत्र भी साम्मलित है। प्रमुख अपवाह तंत्र के अन्तर्गत अलकनन्दा तंत्र के सीमित क्षेत्र, रामगंगा अपवाह तंत्र तथा काली अपवाह तंत्र के अपवाह क्षेत्र आते हैं। रामगंगा तथा सरजू नदियाँ अनुवर्ती हैं जो प्रादेशिक ढाल का अनुसरण करती हुई दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित होती हैं।
भौमिकीय संरचना (Geological Structure)
कुमाऊँ हिमालय की भौमिकीय संरचना को निम्न तीन प्रमुख स्ट्रैटीग्रैफिक मण्डलों में विभाजित किया जाता है-
जाता है
(1) उपहिमालय या शिवालिक :- उपहिमालय शैलस्तर मण्डल की रचना मुख्य रूप से टर्शियरी अवसादी शैलों से सहुई है। इस मण्डल के अन्तर्गत हिमालय के वाह्य भाग की पदस्थली पहाड़ियों को सम्मिलित किया जाता है जिन्हें शिवालिक कहते हैं। इस मण्डल की अश्मिकी की रचना बालुकापत्थर, चूनापत्थर, शेल, मृत्तिका तथा काग्लोमरेट से हुई है। अवसादी शैलों की गहराई 5000 से 5500 मीटर तक पायी जाती है।
(2) मध्य हिमालय :- मध्य या निचली हिमालय संरचना के अन्तर्गत इयोसीन अवसादी शैलें बिलुकापत्थर, चूनापत्थर, क्वार्टजाइट शेल) तथा ग्रेनाइट एवं अन्य रवेदार शैलें आती हैं। इस मण्डल की अश्मिकी के अन्तर्गत निम्न को सम्मिलित किया जाता है- (i) क्राल मेखला की (अ) इन्फ्रा क्राल, (ब) क्राल का पत्थर, (ब) क्राल चनापत्थर तथा (द) क्राल क्वार्ट्साइट, (ii) देवहन तेजम मेखला तथा (iii) अल्मोड़ा दूदाटोली रवेदार भाग। नैनीताल के आस-पास शैलों में वलन एवं भ्रंशन के कारण व्यवस्था एवं विरूपण होने से जटिलता आ गई है।
(3) वृहद हिमालय :- उच्च या वृहद् हिमालय संरचना का मध्य हिमालय संरचना से मेन सेण्ट्रल थ्रस्ट द्वारा अलगाव होता है। इसके अन्तर्गत क्वार्टजाइट. मिगमैटाइट. नीस. गार्नेट-शिष्ट, डायोराइटिक एम्फीबोलाइट एवं जीवावशेष युक्त अवसादी शैलें प्रमुख हैं। जलवायु पर्यावरण
ऊंचाई एवं धरातलीय विभिन्न्ताओं के कारण कमायं हिमालय में विभिन्न जलवायु दशायें पायी जाती है। मूलतः यहाँ की जलवायु मानसूनी है परन्तु तंगतामितिक कारक के कारणस्वरूप इसमें अत्यधिक स्थानिक भिन्नताएं पायी जाती हैं। ग्रीष्मकाल में अधिकतम तापमान 29° से 30° सें या इससे ज्यादा लो, में दिन का तापमान 4.5° से 10° से. तक रहता है। रातें अधिक सर्द हो जाती हैं तथा कभी-कभी हिमपात होता रहता है। वर्षाकाल 15 जन से 30 सितम्बर तक रहता है। औसत वार्षिक वर्षा 1350 मिमी. है।
अपवाह तंत्र
(drainage System)
कुमायं हिमालय का अपवाह तंत्र तथा अपवाह प्रतिरूप को अश्मिकी एवं संरचनात्मक प्रतिरूप् ने बड़े पैमाने पर नियंत्रित किया है। सरिताओं को स्थानीय भाषा में गाद एवं गधेरा कहते है। इस प्रदेश के अपवाह की रचना काली सिस्टम, रामगंगा सिस्टम एवं को सिस्टम की नदियों के ऊपरी भागों से हुई है। कुमायूं हिमालय के अत्यधिक भाग पर काली नदी की सहायक सरिताओं का जल प्रवाहित होता है।
प्रमख नदियों का जलमार्ग ढाल तेज होता है तथा ये ऊपरी भागों में संकरी एवं गहरी घाटियों से तथा निचले भाग में चैड़ी घाटियों से होकर प्रवाहित होती हैं। काली नदी के ऊपरी मार्ग में 13 किमी. की होता है। यह प्रदेश झील प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस प्रदेश में कई महत्वपूर्ण झीलों का समावेश है।
(3) हिमाद्रि या वृहद हिमालय प्रदेश की अधिकतर चोटियाँ हमेशा हिममण्डित रहती है। इसकी ऊँचाई 3000 से 7000 मीटर है जबकि अधिकांश गिरि शिखरों की ऊँचाई 7000 मीटर से अधिक है। प्रदेश की रचना नन्दादेवी मैसिफ, पंचचुली समूह (6,994 मीटर) एवं पिरग्नाजंग (6,904 मी.) समूह की हिमानी युक्त श्रेणियों से हुई है। वृहद हिमालय मेखला का नदियों द्वारा विच्छेदन हुआ है। इस प्रदेश में भूमिस्खलन की घटनायें वर्षाकाल में प्रायः होती रहती हैं। यद्यपि भूमिस्खलन प्राकृतिक भ्वाकृतिक प्रक्रिया का प्रतिफल है परन्तु मनुष्य के बढ़ते आर्थिक क्रियाकलापों के कारण तीव्र पहाड़ी ढाल अव्यवस्थित एवं असन्तुलित हो रहे हैं जिस कारण भूमिस्खलन की आवृत्ति एवं परिमाण में वृद्धि हो रही है।
(4) ट्रांस-हिमालय प्रदेश हिमाद्रि के उत्तर व उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह प्रदेश वृष्टिछाया के अन्तर्गत आता है। गोरी धौलीगंगा, काली इत्यादि नदियों की घाटियाँ मुख्य भ्वाकृतिक आकृतियाँ हैं।
(II) गंगा का विशाल मैदान :-
उत्तरी भारत में विशाल मैदान के अन्तर्गत राजस्थान मैदान, पंजाब मैदान तथा गंगा मैदान को सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार गंगा मैदान उत्तरी भारत के विशाल मैदान के वृहद् भाग का प्रतिनिधित्व करता है। इस मैदान का निर्माण अन्तिम टर्शियरी एवं क्वाटरनरी युगों में सतलज, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्रों की सरिताओं द्वारा अवसादीकरण की प्रक्रिया द्वारा हुआ है। वास्तव में विशाल मैदान उत्तर में हिमालय एव दक्षिण में दक्खन पठार के मध्य एक संक्रमण मेखला है जिसके अन्तर्गत पश्चिम में राजस्थान से पूर्व म बंगाल तक 7,77,000 वर्ग किमी. का क्षेत्र फैला है। विशाल मैदान पश्चिम से पूर्व 2400 किमी. का लम्बाइ तथा पश्चिम में 480 किमी. एवं पूर्व में 144 किमी. की चैड़ाई में विस्तृत है।
भूरचना के दृष्टिकोण से गंगा मैदान की रचना क्वाटरनरी जलोढ से हुई है जिसमें मृत्तिका, सिल्ट रेत एवं बजरी अनेक संयोजनों में पायी जाती है। इस तरह स्पष्ट है कि भौमिकीय रचना का दृष्टि से गंगा मैदान नीरस है। केवल उत्तरी सीमा पर कुछ विविधता मिलती है जहाँ पर हिमालय के भाबर का मैदान में परिवर्तन होता है। कई प्रयासों के बावजूद जलोढ़ की गहराई तथा उसके आधार का पता नही सका है। गंगा का जलोढ मैदान खादर व भांगर दो प्रकारों से मिलकर बना है। नदियों के तटीय भागों में नवीन जलोढ़ जमाव को खादर कहते हैं। इसके विपरीत अपेक्षाकत उच्च भागों के जमाव, जहाँ पर नहीं पहुंच पाता है, उस भाग को भाबर कहते हैं। भाबर तथा तराई प्रदेश में मोटी रेत, ककड़, क्ले, सिल्ट आदि से युक्त बजरी जमाव पाया जाता है।
भूआकृतिक विशेषताएँ :- भूआकृतिक दृष्टि से समस्त गंगा मैदान नीरस है क्योंकि किसी भी तरह का दृढ़ उच्चावच्च नहीं मिलता है। विस्तृत बाढ़ मैदान, प्राकृतिक तटबन्ध, तेज मियाण्डर मेखला, गोखुर झील, बिहड़ीकृत नदी तटीय क्षेत्र गुम्फित जलधारा, ब्लफ आदि प्रमुख आकृतिया है। गंगा के मैदान को तीन प्रमुख प्रदेशों में विभक्त किया गया है-
(1) ऊपरी गंगा मैदान पश्चिम में यमना घाटी एवं पूर्व में 100 मीटर की समोच्च रेखा के मध्य उत्तरप्रदेश के 1,49,029 वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत है। इस भाग पर गंगा अपवाह तंत्र का जाल फैला हुआ है। अधिकांश नदियाँ समानान्तर रूप में प्रवाहित होती हुई प्रमुख सरिता से न्यून कोण पर मिलती है।
गंगा नदी द्वारा उत्तर प्रदेश से बिहार में प्रतिवर्ष 23,456 हैक्टेयर मीटर या 328,384 मिलियन टन अवसाद का विसर्जन किया जाता है। जबकि उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा पर गंगा का वार्षिक वाहीजल 21,328 हजार हेक्टेयर मीटर (213,38 हजार मिलियन घन मीटर) है। गंगा अपवाह तंत्र का औसत वार्षिक सिल्ट लोड फैक्टर 3,476 हेक्टेयर मीटर/100 वर्ग किमी./वर्ष (0.3476 मिलीमीटर प्रतिवर्ष) है। इसका तात्पर्य है कि ऊपरी गंगा मैदान से प्रतिवर्ष 3.476 मिलीमीटर मिट्टी की परत का अपरदन हो जाता है।
(2) मध्य गंगा मैदान का पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं समस्त बिहार के मैदान के 1.44,409 वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत है। लगभग चैरस मैदानी सतह के कारण इस भाग का ऊपरी एवं निचले गंगा मैदान से अलगाव परिलक्षित नहीं हो पाता है। यह मैदानी भाग गंगा एवं उसकी सहायक नदियों, यथा-घाघरा, गंडक, कोसी.सोन, पुनपुन, मेहानी तथा उनकी उनेकों सहायक सरिताओं द्वारा प्रवाहित होता है। नदियों ने अत्यधिक सर्पिलाकार एवं मियाण्डरिंग मार्ग का विकास किया है। ये अपनी बाढ़ो एवं बार-बार मार्ग परिवर्तन के लिये कख्यात हैं। मानसूनोपरान्त गंगा नदी की जलधारा कई शाखाओं में विभक्त होकर गम्फित हो जाती है तथा उसके बेड में कई मौसमी भूआकृतियाँ बन जाती हैं, यथा-रिफल्स, पूल, ब्रेड, सैण्ड बार, रेत द्वीप, बालुकास्तूप आदि। उत्तरी मध्य गंगा मैदान में कई आद्य जलधारायें, गोखुर झीलें, ताल-तलैया आदि जलधाराओं के मार्ग परिवर्तन के कारण बन गयी हैं। दक्षिणी गंगा मैदान में ऐसी आकृतियों का प्रायः अभाव है।
(3) निचला गंगा मैदान बिहार के पूर्णिया जनपद की किशनगंज तहसील, पुरुलिया जनपद एवं दार्जिलिंग के पर्वतीय भाग को छोड़कर समस्त पश्चिमी बंगाल एवं बांग्लादेश के अधिकांश भाग पर विस्तृत है। यद्यपि इस समस्त मैदानी भाग को डेल्टा प्रदेश के रूप में जाना जाता है परन्तु वास्तविक डेल्टा का विस्तार समस्त मैदान के दो तिहाई क्षेत्र पर है। भारत में स्थित गंगा का मैदान 80,968 वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत है। इसके उत्तर में दार्जिलिंग हिमालय की पदस्थली से दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक 580 किमी. की लम्बाई तथा पश्चिम में छोटा नागपुर उच्चभूमि के पूर्वी किनारे से पूर्व में बांग्लादेश की सीमा तक 200 किमी. की चैड़ाई में विस्तृत है।
(II) दक्षिण भारतीय पठारी प्रदेश
(अ) छोटा नागपुर का पठार- द. पू. छोटानागपुर प्रदेश छोटानागपुर उच्चभूमि का दक्षिणीपूर्वी भाग है तथा 21°58‘-23°11‘ उत्तरी अक्षांशों एवं 85°-86°54‘ पूर्वी देशान्तरों के मध्य स्थित 13,447 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैला है। यह प्रदेश स्वर्णरेखा एवं उसकी सहायक सरिताओं एवं दक्षिणी कोयल एवं उसका दो प्रमुख सहायक उत्तरी एवं दक्षिणी कारों नदियों एवं उनकी सहायक सरिताओं द्वारा प्रवाहित होता है। इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से झारखण्ड का सिंहभूमि जनपद आता है। द. पू. छोटानागपुर की उत्पत्ति विभिन्न भौमिकीय रचनाओं द्वारा हुई है। पश्चिमी उच्चभाग में धारवाड़ एवं कुडापा शैलों, मध्य पठारी भाग विभिन्न में ग्रेनाइट-नीस, तथा तथा स्वर्णरेखा बेसिन में कांग्लोमरेट, फाइलाइट, डाल्मा एवं धनजोरी उच्चभाग का लावा, आइरन ओर सिरीज तथा उसके ऊपर टर्शियरी ग्रिट, बजरी एवं अभिनव जलोढ़ का विस्तार पाया जाता है। इस प्रदेश में वलन, भ्रंशन, नमन, ज्वालामुखी क्रिया, उत्थान, अपरदन एवं निक्षेपण की अनेक अवस्थायें हो चुकी हैं। जलवाय मानसनी है तथा वार्षिक वर्षा 1200 से 1500 मिलीमीटर के मध्य होती है। वानस्पतिक आवरण के अन्तर्गत शुष्क पतझड़ वन, आर्द्र पतझड़ वन, झाड़ियाँ तथा घासें प्रमुख हैं। जलवायु सम्बन्धी दशाओं वनस्पतिक आवरण एवं मृदा के विशिष्ट संयोजन के फलस्वरूप यह प्रदेश एक सुनिश्चित लघु कारजनक प्रदेश बन गया है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…