JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Uncategorized

कुकी विद्रोह कहां हुआ था आंदोलन कब हुआ था | कुकी जनजाति किस राज्य से संबंधित है kuki movement in hindi

kuki movement in hindi कुकी विद्रोह कहां हुआ था आंदोलन कब हुआ था | कुकी जनजाति किस राज्य से संबंधित है kuki tribe belongs to which state , the kuki tribes are mainly found in which state of india ?

उत्तर : कुकी आन्दोलन मुख्य रूप से मणिपुर और मिजोरम से सम्बन्धित माना जा सकता है |

मणिपुर में जनजातीय आंदोलन
मणिपुर में आंदोलनों का एक लंबा इतिहास देखने को मिलता है। इनमें 1917-19 का कुकी विद्रोह 1930-32 का जेलियांग्रोग का नागा विद्रोह और अंग्रेजों की व्यापार नीति के खिलाफ महिला आंदोलन, मेतेई राज्य समिति इत्यादि मुख्य हैं।

मणिपुर एक रियासत थी जिसका विलय भारत में 1949 में हो गया था। तब से लेकर 1972 में राज्य का दर्जा मिलने तक वह एक केन्द्र शाषित प्रदेश रहा। काबुई राज्य में आंदोलनों और विद्रोहों के फिर से उभरने के पीछे कई कारण बताते हैं जैसे पहचान का संकट, भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का खोखलापन, आर्थिक शोषण, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और विदेशी शक्तियों का प्रभाव और विचारधारा । जैसा कि हमने पीछे कहा है इस राज्य में भी अनेक आंदोलन हुए हैं, जिनमें से मुख्य आंदोलनों के बारे में हम अब आपको जानकारी देंगे।

प) 1967 मैतेई राज्य समित का गठन में मणिपुर के भारत में विलय के विरोध में हुआ। इस संगठन ने धीरे-धीरे एक क्रांतिकारी रूप धारण कर लिया जो एक ऐसे स्वंतत्र मणिपुर की मांग करने लगा जिसका संचालन इराबोत सिंह की समाजवादी विचारधारा के अनुसार हो। लेकिन मगर कुछ ही वर्षों में यह आंदोलन धीमा पड़ गया और फिर 1971 में समिति ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस आंदोलन की असफलता के मुख्य कारण इस प्रकार थेः क) इसके नेता कम पढ़े लिखे थे, ख) नेताओं में आंदोलन को उद्देश्यों के लेकर स्पष्ट समझ नहीं थी, ग) बुनियादी संगठनों और समर्थन की कमी।

पप) मणिपुर में कुकी विद्रोह 1917-19 में जनजातीय लोगों के पांरपरिक सामाजिक ढांचे और जीवन-शैली में अंग्रेज शासकों के दखल के कारण भड़का था। इस आंदोलन को ब्रिटिश हुकूमत ने दबा दिया। मगर फिर मेतेई लोगों के साथ सरकार के बर्ताव को लेकर भी यही प्रतिक्रिया हुई जो कुकी आंदोलन के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। इस आंदोलन को सनमाही पंथ की बढ़ती महत्ता से तेज गति मिली जिससे यह मिथक धराशायी हो जाता है कि मेतेई लोग मूलतः आर्य हैं, जिन्होंने अट्ठारहवीं सदी में हिन्दू धर्म अपना लिया था। इस आंदोलन में मणिपुर नेशनल फ्रंट की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, जिसका ध्येय मंगोल विरासत को पुनर्जीवित करना और इसके जरिए सनमाही और पूर्वोत्तर की अन्य मंगोल जातियों को एकता के सूत्र में बांधना है। मणिपुर नेशनल फ्रंट समाज को अपने आदिवासी धर्म की ओर ले जाने का प्रयास कर रहा है और ब्राह्मणवादी और वैष्णव प्रथाओं के वर्चस्व और शोषण से उनकी मुक्ति चाहता है। सनमाही पंथ के पुनरोदय के परिणामस्वरूप मेतेइर लिपि, भाषा और साहित्य को पुनर्जीवन मिला जिससे मेतेई लोगों की एक विशिष्ट पहचान बनी। मगर वहीं इस पहचान की पुनर्स्थापना के मूल में हिन्दुओं और अन्य बाहरी लोगों के प्रति आक्रोश भी था। आंदोलन ने मणिपुर के गौरव और भारत से उसकी सांस्कृतिक भिन्नता को उभारा। मेतेई राष्ट्रवाद के इस उदय का एक परिणाम यह रहा है कि मणिपुर और मणिपुरी शब्दों की जगह अब क्रमशः कांगलेईपक और मेतेई ने ले ली है, जिन्हें एक स्वतंत्र मेतेई राष्ट्र के निर्माण से प्राप्त किया जा सकता है।

इन सभी कारणों ने मणिपुर में विद्रोह को भड़काया और फैलाया है। इस विद्रोह के मुख्य सूत्रधार दो संगठन हैं। इनमें से एक पिपुल्स रिवोलुशनरी पार्टी आफ कांगीलेईपक (प्रिपाक) मार्क्सवादी लेनिनवादी दल है जो मेतेई पुनरुत्थान से घनिष्ठ रूप से जुड़ा है। दूसरा संगठन, पिपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) है जो एक आमूल परिवर्तनवादी विचारधारा मानती है। गांवों में इसका जनाधार बड़ा मजबूत है। यह साम्यवादी विचारधारा को फैलाना चाहती है और पूर्वोत्तर में सक्रिय विभिन्न विद्रोही संगठनों को एकता के सूत्र में बांधना चाहती है। इस प्रकार मेतेई लोगों को हम दोराहे पर खड़ा एक रोचक समूह पाते हैं, जिन्होंने अपने पांरपरिक धर्म को पुनर्जीवित तो कर लिया है मगर जिन्हें जनजातीय, मूल आदिवासी होने का दर्जा नहीं मिल पाया जिसके लिए वे संघर्ष कर रहे हैं। यह दर्जा नहीं मिल पाने के कारण उन्हें संविधान की अनुसूची छह में निहित विशेषाधिकार नहीं मिल पाए हैं।

कुकी आंदोलन 1946 में कुकी नेशनल एसेंब्ली के गठन के साथ फिर से उभरा। धीरे-धीरे इस आंदोलन ने कुकी इंबाल लोगों के लिए एक स्वायत्तशासी जिले या राज्य के लिए राजनीतिक मांग को स्वर देना शुरू किया। इसका उद्देश्य अपनी संस्कृति और जीवनशैली को खोया गौरव वापस दिलाना है।

पपप) मणिपुर की महिलाओं ने अंग्रेजों की चावल व्यापार और निर्यात नीति का विरोध किया। इस आंदोलन की वजह एक तात्कालिक समस्या थी जो मौसम की अनिश्चितता के कारण अनाज में आई भारी कमी से पैदा हुई थी। तिस पर चावल के निर्यात और निहित व्यापारिक हितों के दबाव के कारण स्थानीय बाजार में चावल की कीमतें बेहद बढ़ गईं। इस स्थिति में अरीबाम चाओतियन नाम की एक मणिपुरी महिला ने कुछ साथी महिलाओं को एकजुट करके मिल मालिकों को धान बेचना बंद कर दिया। देखते-देखते उनके इस आंदोलन में अन्य महिलाएं भी शामिल हो गई। अंग्रेजों ने हालांकि इस विद्रोह को कुचल दिया मगर यह आंदोलन राज्य के प्रशासनिक ढांचे और सांस्कृतिक स्वरूप पर अपनी छाप अवश्य छोड़ गया।

पअ) जेलियांगोंग आंदोलन की शुरुआत जेमेई, लियांगमेई और रोंगमेई तीन आदिवासी समूहों ने की थी जिन्हें सामूहिक रूप से जेलियांगोंग कहा जाता था। इस विद्रोह की शुरुआत पहले एक सामाजिक सुधार आंदोलन के रूप में हुई जिसका नेतृत्व रोंगमेई नागा जदोनांग और उसकी चचेरी बहन रानी गैदिनलुई ने किया था। दोनों ने हेराका पंथ की स्थापना की, जिसने कुछ रीति-रिवाजों को खत्म करने और पांरपरिक धर्म को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। इन प्रयासों के मूल में हिन्दू और ईसाई धर्म के बढ़ते प्रभाव की काट करना था। यह आंदोलन अंग्रेजों के विरुद्ध होने के साथ-साथ कुकी विरोधी भी था और इसका उद्देश्य जेलियांगोंग पहचान बनाकर नागा शासन स्थापित करना था। जदोनांग की गिरफ्तारी और फिर उसे फांसी हो जाने से इस आंदोलन को बड़ा धक्का पहुंचा। मगर उसकी बहिन गैदिनलुई ने इसे ब्रिटिश शासन के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में हो रहे राष्ट्रीय आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन से जोड़कर अपने आंदोलन को आगे बढ़ाया। मगर इस बीच उसे 14 वर्ष तक कारावास में रहना पड़ा। इस दौरान आंदोलन ठंडा पड़ गया। धीरे-धीरे इसने पूर्णतरू शांतिपूर्ण स्वरूप धारण कर लिया और फिर अनेक जनजातीय संगठनों जैसे कबनुई समिति (1934), कबुई नागा एसोसिएशन (1946) जेलियांग्रोंग कांउसिल (1947) मणिपुर जेलियांगोंग यूनियन (1947) का भी उदय हुआ जिनका उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकना था। दो दशकों के बाद इस आंदोलन का उद्देश्य राजनीतिक बन गया। अब यह आंदोलन मणिपुर, नगालैंड और असम की कछार पहाड़ियों के जेलियांगोंग बहुल क्षेत्रों को मिलाकर एक पृथक जेलियांगोंग प्रशासनिक इकाई की स्थापना की मांग करने लगा है।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

2 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now