JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: indian

kuda caves history in hindi , कुडा गुफाएं कहां स्थित है , कुडा गुफाओं का निर्माण किसने करवाया था

जानिये kuda caves history in hindi , कुडा गुफाएं कहां स्थित है , कुडा गुफाओं का निर्माण किसने करवाया था ?

कुडा गुफाएं (18.29° उत्तर, 72.96° पूर्व)
कुडा गुफाएं महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित हैं। ये पत्थरों को तराश कर बनाई गई प्राचीन बौद्ध गुफाओं का समूह है जो वर्तमान की जंजीरा खाड़ी के निकट है। इन गुफाओं के निर्माण को दो कालों में बांटा जा सकता है। प्रथम चरण में इनका निर्माण प्रथम शताब्दी ई.पू. से तृतीय शताब्दी ई.पू. के बीच हीनयान संप्रदाय द्वारा किया गया तथा द्वितीय चरण में इनका निर्माण महायान संप्रदाय द्वारा पांचवी तथा छठी शताब्दी के बीच किया गया। प्रायः शिला तराश कर बनाई गई बौद्ध गुफाओं का निर्माण बंदरगाहों के निकट अथवा प्राचीन व्यापार मार्ग पर किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि कुडा गुफाएं मंदगोरा के प्राचीन बंदरगाह के निकट थी। इसका उल्लेख ग्रीको-रोमन भूगोलशास्त्री टोलेमी ने किया है।
कुडा गुफा समूह में शिला काट कर बनाई गई 26 गुफाएं एवं 11 शिला काट कर बनाए गए जलाशह हैं। जिन का उपयोग संभवतः जल संग्रह के लिए किया जाता था। कुछ छोटी गुफाएं भी हैं परंतु ये छोटे कक्ष अधिक प्रतीत होते हैं। ये गुफाएं समुद्र तल से लगभग 45 से 60 मी. की ऊंचाई पर स्थित हैं तथा पहाड़ी के अंदर 75 मी. की ऊंचाई तक जाती हैं। सभी गुफाएं सघन रूप से एक समूह में स्थित हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने इनका संख्यांकन प् से लेकर ग्ग्टप् तक किया है।
ऐसा प्रतीत होता है गुफाओं के अग्रभाग में स्थित मूर्तियां, अभिलेख तथा चित्रकलाओं का प्राकृतिक कारणों से क्षरण हो गया है, परंतु भीतरी भाग में स्थित अभिलेख व कलाकृतियां संरक्षित हैं। लगभग सभी गुफाएं आंतरिक रूप से समान हैं-कोरी एवं बिना किसी सज्जा के। परंतु गुफा संख्या ट1 में अत्यधिक साज-सज्जा तथा काफी उभरी हई नक्काशी हैं। काफी गुफाओं में अभिलेख पाए गए हैं। लगभग सभी अभिलेखों में मठों को दानदाताओं के नामों व दान दी गई वस्तुओं का उल्लेख है। गुफाओं की दीवारों पर मिट्टी तथा चावल के भूसे का लेप था।

कुम्भारिया/कुम्भरिया
(23.01° उत्तर, 69.95° पूर्व)
कुम्भारिया उन 18 गांवों में से एक था, जिनको कच्छ के गुर्जर क्षत्रीय, जिन्हें मिस्त्री भी कहा जाता था, द्वारा बसाए गए थे। वर्तमान में यह गांव गुजरात के कच्छ जिले के अंजार तालुका में स्थित है। ऐसा माना है कि मिस्त्री समुदाय सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में राजस्थान से सौराष्ट्र आया तथा बाद में 12वीं शताब्दी में इनके एक प्रमुख समूह ने कच्छ में प्रवेश किया और घनेती नामक स्थान में बस गए। तत्पश्चात् ये अंजार तथा भुज के मध्य घूमते रहे और कुछ गांवों जैसे अंजार, सिनुगरा, संभरा नागलपार, खेदोई, कुकमा, नागोर, कुंभारिया आदि को बसाया। ये क्षत्रिय अपनी वीरता के लिए तो जाने जाते थे बल्कि ये प्रतिभाशाली वास्तुकार भी थे। इन्होंने कच्छ की ऐतिहासिक स्थापत्य कला में काफी योगदान दिया। मंदिर, सामुदायिक भवन तथा विशाल तालाब इत्यादि इन्होंने निर्मित किए। (इस प्रकार का निर्माण 19वीं शताब्दी के मध्य तक जारी रहा)।
कुम्भारिया अपने जैन मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है, जिनका निर्माण लगभग 900 वर्ष पहले किया गया था। मंदिरों का यह समूह पांच जैन तीर्थकरों यथा-महावीर, पाश्र्वनाथ, नेमीनाथ, शांतिनाथ तथा संभवनाथ को समर्पित है। कहा जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण एक व्यापारी विमल शाह ने कराया था। किवदंती के अनुसार, देवी मां अंबिका ने विमल शाह को 360 जैन मंदिरों के निर्माण करने को कहा, परंतु विमल शाह इन मंदिरों में देवी की मूर्ति की स्थापना करना भूल गया तो देवी ने क्रोधित होकर पांच मंदिरों को छोड़कर बाकी सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया। बाद में जब विमल शाह को अपनी भूल का एहसास हुआ तो उसने इन बाकी बचे मंदिरों में देवी की मूर्ति को स्थापित किया। ये मंदिर श्वेत संगमरमर के बने हैं तथा इनमें देवी, देवताओं, संगीतज्ञों, कन्याओं की मूर्तियों को तराशा गया है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि ये सभी मंदिर उत्तर दिशा की ओर अभिमुख हैं।

कुरुक्षेत्र (29.96° उत्तर, 76.83° पूर्व)
कुरुक्षेत्र, दिल्ली के उत्तर में हरियाणा राज्य में स्थित है। पुराणों एवं महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र, प्राचीन भारत के प्रसिद्ध राज्य कुरु एवं उसके उत्तराधिकारियों कौरवों एवं पांडवों से संबंधित है। प्रारंभिक संस्कृत साहित्यों में कुरुक्षेत्र से संबंधित कई भौगोलिक नामों एवं प्रमुख व्यक्तियों का उल्लेख प्राप्त होता है।
महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध कुरुक्षेत्र में ही लड़ा गया था तथा यहीं भागवतगीता की रचना हुई थी। थानेश्वर (हर्षवर्धन का साम्राज्य) ज्योतिश्वर वह स्थान है, जिसके लिए यह माना जाता है कि यहीं पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
मत्स्य पुराण के अनुसार, कुरुक्षेत्र द्वापर युग का सबसे पवित्र स्थान था तथा जम्बूद्वीप के 16 महाजनपदों में से एक था। यह झीलों एवं कमलनुमा मनकों के लिए प्रसिद्ध था, जिन्हें आज भी यहां देखा जा सकता है। कुरुक्षेत्र का ब्रह्म सरोवर पूरे देश के तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। सूर्य ग्रहण के अवसर पर पूरे देश से श्रद्धालु यहां आते हैं तथा इस पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं। मनु ने कुरुक्षेत्र के लोगों की वीरता की प्रशंसा की है। बाण ने इसका उल्लेख वीरों की भूमि के रूप में किया है। पाणिनी की अष्टाध्यायी में भी कुरुक्षेत्र का उल्लेख प्राप्त होता है। गौतम बुद्ध ने भी यहां की यात्रा की थी। सिखों के दस गुरुओं में से दूसरे गुरु अंगददेव को छोड़कर अन्य सभी गुरुओं ने कुरुक्षेत्र की यात्रा की थी।

कुशीनगर (कसिया)
(26.74° उत्तर, 83.88° पूर्व)
कुशीनगर (कुसीनारा या कुसावती भी कहा जाता है) की पहचान आधुनिक कसिया नामक स्थान से की गई है, जो उत्तर प्रदेश के पडरौना जिले में अवस्थित है। कुशीनगर में ही गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण (483 ईसा पूर्व) प्राप्त किया था तथा जन्म-मृत्यु के चक्र से सदैव के लिए मुक्त हो गए थे। यहां पांचवी शताब्दी में मरणासन्न बुद्ध की एक छह फीट ऊंची प्रतिमा है, जो पांचवी शताब्दी में स्थापित की गई थी। कुशीनगर को कुशीनारा नाम से भी जाना जाता था। कुशीनगर में अनेक विहार हैं, एक तिब्बती गोम्पा, जोकि शाक्य मुनि को समर्पित है, एक बर्मा का विहार तथा चीन और जापान के मंदिर हैं। निर्वाण मंदिर (स्तूप) जो कि कुमार गुप्त प्रथम (413-455 ई.) के समय का है, बुद्ध की विशाल प्रतिमा के कारण सुप्रसिद्ध है। रंभर स्तूप वह स्थल माना जाता है जहां मल्ल ने बुद्ध को दफनाया था। मुक्तबन्धन स्तूप को माना जाता है कि इसे बुद्ध के स्मृति चिन्हों को संरक्षित करने के लिए बनाया गया था।
यद्यपि गुप्त काल के पश्चात कुशीनगर का महत्व समाप्त हो चुका था। जब ह्वेनसांग ने इस स्थान की यात्रा की थी तो उसने इसे उजड़ा हुआ पाया था।
कुशीनगर की अन्य प्रमुख इमारतों में 10वीं शताब्दी का एक माता कौर मंदिर एवं विश्व बौद्ध सांस्कृतिक संस्थान द्वारा बनवाया गया एक जापानी मंदिर भी है। इतिहासकारों का कहना है कि कुसावती मल्ल की राजधानी थी, जब मल्ल ने साम्राज्य स्थापित किया था। नाम को बदल कर कुसीनारा कर दिया गया, जब मल्ल ने गण संघ (गणराज्य) व्यवस्था को अपना लिया था।

लखुडियार (29.62° उत्तर, 79.67° पूर्व)
लखुडियार का शाब्दिक अर्थ है एक लाख गुफाएं। लखुडियार उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में सुयाल नदी के तट पर स्थित है। यहां पाए गए शैलाश्रय स्थल अपनी प्रागैतिहासिक चित्रकलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। ये चित्रकलाएं पुरापाषाण तथा नवपाषाण काल की हैं। इन शैलचित्रों को प्रमुख रूप से तीन वर्गों में बांटा जा सकता है-मानव, पशुओं, तथा सफेद, काले व गेरुए लाल रंग के ज्यामितीय पैटर्न। मानवों को इनमें रेखाओं के माध्यम से दर्शाया गया है, जबकि जानवरों को आकृतियों के रूप में। एक थूथनों वाला जानवर, एक लोमड़ी एवं छिपकली सदृश कई पांवों वाला जीव, जिससे तत्कालीन लोग परिचित होंगे, दर्शाए गए हैं। अधिकांश दर्शाई गई मानव आकृतियां हाथों में हाथ लेकर नृत्य करती हुई पंक्तिबद्ध हैं। इनको जमीन से 3.75 मी. की ऊंचाई पर तराशा गया है। एक समूह में उपमानव आकृतियां बनी हैं तो दूसरे में 24 मानव आकृतियां हैं। लहरदार रेखाएं, आयताकार ज्यामितीय डिजाइन, तथा बिन्दुओं के समूहों को भी दर्शाया गया है। कुछ जगह एक चित्र के ऊपर दूसरे चित्र को अध्यारोपित किया गया है, जिसमें पहले के चित्र काले, उसके ऊपर लाल गेरुए एवं सबसे ऊपर सफेद रंग से चित्र बनाए गए हैं। इस क्षेत्र में पाई गई सांस्कृतिक महत्व की अन्य हैं वस्तुओं में सम्मिलित हैं-महापाषाण, स्मारक स्तम्भ (उमदीपते), शवाधान, समाधि में रखे गए मृदभांड, मनके इत्यादि।

ललितगिरी (20.58° उत्तर, 86.25° पूर्व)
ओडिशा राज्य में स्थित ललितगिरी, प्रथम शताब्दी ईस्वी का प्राचीन स्थल है। हाल ही के पुरातात्विक उत्खननों से इस बात का ज्ञान हुआ है कि ललितगिरी बौद्ध धर्म का एक महान केंद्र था। ईंटों से निर्मित मठ के अवशेष, चैत्यगृह के अवशेष तथा कई स्तूपों के अवशेष तथा जीर्णाेद्धार किया गया पाषाण स्तूप है, जोकि छोटी, ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी के शीर्ष पर है, भी यहां से प्राप्त किए गए हैं।
ललितगिरी के संग्रहालय में महायान बौद्ध धर्म से संबंधित कई वस्तुएं रखी हुई हैं। जैसे-ध्यानमग्न बुद्ध की मूर्ति, बोधिसत्वों की कई प्रतिमाएं, तारा (बोधिसत्व अवलोकितेश्वर की पत्नी) की मूर्ति इत्यादि। इनके अतिरिक्त भी यहां कई और वस्तुएं हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से अधिकांश मूर्तियों में छोटे लेख लिखे हुए हैं। बुद्ध की एक खड़ी प्रतिमा कंधों से लेकर घुटनों तक वस्त्रों से ढंकी हुई है। इससे इस मूर्ति पर गंधार एवं मथुरा कला का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।
पहाड़ी के शीर्ष भाग पर स्थित स्तूप से एक पात्र मिला है, जिसमें धार्मिक वस्तुएं रखी हुई हैं। अनुमान है कि यह पात्र स्वयं बुद्ध (तथागत) का ही था। ललितगिरी, समस्त विश्व में प्रसिद्ध एक प्रमुख बौद्ध स्थल है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरण से भी यहां पहाड़ी के शीर्ष पर एक सुंदर स्तूप होने के प्रमाण मिले हैं। ह्वेनसांग के अनुसार, पुष्पागिरी पर एक सुंदर एवं भव्य महाविहार अवस्थित था। पुष्पागिरी का ललितगिरी से क्या संबंध था, यह जानने का प्रयास इतिहासविदों एवं अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किया जा रहा है।

ललितपाटन (27°42‘ उत्तर, 85°20‘ पूर्व)
वर्तमान नेपाल की राजधानी काठमांडू ही ललितापाटन थी। परम्पराओं के अनुसार, पाटन या ललितापाटन नगर की स्थापना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में अशोक द्वारा तब की गई थी, जब उसने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु नेपाल की यात्रा की थी। अशोक ने यहां कई स्तूपों की स्थापना भी करवाई थी, जिनमें सबसे प्रमुख काठमांडू की पहाड़ियों पर स्थित श्स्वयंभू स्तूपश् था। बाद में इसमें चतुर्दिक पाषाण स्तंभ जोड़ा गया, जिसमें चार जोड़ी आंखें, चारों दिशाओं की ओर बनी हुई है। इन चारों जोड़ों को लाल, काले एवं सफेद रंगों से रंगा गया है। ये आदि-बुद्ध या महायान बौद्ध धर्म के बुद्ध की आंखें मानी गई हैं। यद्यपि इस स्तंभ के निर्माण की तिथि ज्ञात नहीं है किंतु ऐसा अनुमान है कि इस स्तंभ की स्थापना वसुबंधु की नेपाल यात्रा के पश्चात ही की गई होगी। वसुबंधु महायान बौद्ध धर्म के उपदेशक एवं चिंतक थे, जिन्होंने इसके प्रचार हेतु नेपाल की यात्रा की थी। नेपाल में बौद्ध धर्म की महायान एवं वज्रयान दोनों शाखाओं का प्रभाव था, जोकि आठवीं या नवीं शताब्दी में बंगाल से अन्य क्षेत्रों में फैलनी शुरू हो गई थी।

लेनयाद्रि गुफाएं (19°14‘ उत्तर, 73°53‘ पूर्व)
लेनयाद्रि (जिसे जीर्णापुर तथा लेखन पर्वत भी कहा जाता है) महाराष्ट्र के पुणे जिले में जुन्नार के समीप कुकडी नदी के उत्तर-पश्चिम तट पर स्थित है। यह शिला काटकर बनाई गई लगभग 30 बौद्ध गुफाओं की श्रृंखला के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से एक गुफा, जिसे संख्या 7 कहा जाता है, को हिन्दू मंदिर में रूपांतरित किया गया था तथा यह भगवान गणेश को समर्पित था। इस गणेश मंदिर को अष्टविनायक मंदिरों में से एक माना जाता है। ‘लेनयाद्रि‘ नाम का अर्थ है पर्वतीय गुफा तथा इसका उल्लेख हिन्दू ग्रंथों-गणेश पुराण व स्थल पुराण में हुआ है। एक प्राचीन अभिलेख में इस स्थान को कपिचित्र कहा गया है।
यहां सभी गुफाएं एक पंक्ति में हैं तथा पूर्व से पश्चिम की ओर पंक्तिबद्ध हैं। ये दक्षिण की ओर कुकाडि नदी घाटी की ओर अभिमुख हैं। पूर्व से पश्चिम की ओर अंकित गुफा संख्या टप् तथा गुफा संख्या ग्प्ट चैत्य हैं तथा शेष विहार हैं जिनमें से गुफा संख्या टप्प् सबसे बड़ी है। इन गुफाओं का निर्माण प्रथम शताब्दी से तीसरी शताब्दी के मध्य हुआ था। गुफा संख्या टप् जो कि मुख्य चैत्यगृह है, हीनयान चैत्यगृहों के सबसे प्राचीन उदाहरणों में से एक है।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

2 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now