JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: history

कोतवाल किसे कहते हैं | कोतवाल कौन था उसके प्रमुख कार्य क्या थे अर्थ मतलब kotwal in hindi

kotwal in hindi post in history meaning definition and his works कोतवाल किसे कहते हैं | कोतवाल कौन था उसके प्रमुख कार्य क्या थे अर्थ मतलब इतिहास में ?

प्रश्न : मध्यकालीन राजस्थान की केन्द्रीय प्रशासनिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिये। यह कहाँ तक मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्था पर आधारित थी ? विवेचना कीजिये। 

उत्तर : मध्ययुगीन राजपूताना के नरेश , छोटी से छोटी इकाई के राजा होते हुए भी अपने आपको प्रभुतासम्पन्न शासक मानते थे। राज्य का शासन , न्याय वितरण , उच्च पदों पर नियुक्ति , दण्ड , सैन्य संचालन , संधि , आदेश आदि के सूत्र का सम्पूर्ण आधार इनके व्यक्तित्व में निहित था।
इसी भावना से प्रेरित होकर वे महाराजाधिराज , राजराजेश्वर , नृपेन्द्र आदि विरुदों (उपाधियों) को धारण करते थे।
मंत्री वर्ग : सर्वोपरि राजसत्तात्मक शासन में भी राजपूताना में मंत्रिमण्डल के उल्लेख मिलते है जिसकी नियुक्ति स्वयं शासक करता था। ये कभी वंशानुक्रम से आने वाले सदस्यों से बनता था तथा कभी इनमें नयी नियुक्तियाँ भी होती थी। पूर्व मध्यकाल में , सारणेश्वर शिलालेख से विदित होता है कि मेवाड़ में ‘आमात्य’ (मुख्यमंत्री) , सन्धिविग्रहिक (युद्ध तथा संधि का मंत्री) , अक्षपटलिक (पुरालेख मंत्री) , वंदिपति (मुख्य धुक) , भिषगाधिराज (मुख्य वैद्य) आदि मंत्रीमण्डल के सदस्य थे।
प्रधान : मुगलों के आगमन से और उनके साथ संधि होने अथवा उनके दरबार के सम्पर्क में आने से मध्यकालीन शासन में कुछ परिवर्तन आये तथा विशेष रूप से कुछ नए पदों का सृजन हुआ और पुराने पदों को मुगल ढंग से कहा जाने लगा। प्रधान का पद राजा से दूसरी श्रेणी में था जो शासन , सैनिक तथा न्याय सम्बन्धी कार्यों में उनकी सहायता करता था। प्रधान को मुख्यमंत्री अथवा मंत्रीप्रवर कहते थे।
दीवान : दीवान मुख्य रूप से अर्थ विभाग का अध्यक्ष होता था। जहाँ प्रधान नहीं होते थे , दीवान प्रधान का कार्य भी करते थे। इस पदाधिकारी के कार्यों में मुख्य रूप से आर्थिक कार्य , कोष तथा कर संग्रह के कार्य थे। इनके नीचे कई कारखाने जात के दरोगा , रोकडिया , मुंशी , पोतदार आदि होते थे। राज्य में नियुक्तियाँ , पदोन्नति , स्थानान्तरण आदि सम्बन्धी निर्णय उसकी सहमती के बिना नहीं लिए जाते थे। उसकी स्वतंत्र मुहर होती थी जिस पर उसका नाम खोदा जाता था। राजा की अनुपस्थिति में जब राज्य शासन की बागडोर दीवान के हाथों में रहती थी , तब उसे ‘ देश दीवान ‘ कहा जाता था।
बक्शी : बक्शी प्रमुख रूप से सैन्य विभाग का अध्यक्ष होने के नाते सेना के वेतन , रसद , सैनिकों के प्रशिक्षण , भर्ती , अनुशासन आदि को देखता था। युद्ध में घायल सैनिकों और पशुओं के उपचार और उनकी सुरक्षा का प्रबन्ध करता था। वह सैनिकों का वेतन भी निश्चित करता था। वेतन सम्बन्धी पत्र उसके विभाग से प्रधान अथवा दीवान के कार्यालय में जाते थे।
खान सामां : वैसे तो वह दीवान के अधीन होता था लेकिन राजपरिवार के अधिक निकट होने से वह सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति समझा जाता था। उसके सुपुर्द निर्माण कार्य , वस्तुओं का क्रय , राजकीय विभागों के सामान की खरीद तथा संग्रह होते थे। राजदरबार और राजप्रसाद से सम्बन्धित सभी व्यक्तियों तथा कार्यो से उसका सम्बन्ध होता था।
कोतवाल : जन सुरक्षा तथा शांति सम्बन्धी व्यवस्था बनाये रखने के लिए कोतवाल का उल्लेख मिलता है , उसके मुख्य कार्य चोरी डकैती का पता लगाना , वस्तुओं के दामों को निर्धारित करना , नाप तोल पर नियंत्रण रखना , चौकसी का प्रबन्ध करवाना , मार्गों की देखभाल करना , साधारण झगड़े निपटाना आदि थे।
खजांची : राज्यों में खजांची होते थे जो कोष रखने तथा रुपये जमा करने तथा व्यय करने का बौरा रखते थे। उसका ईमानदार तथा विवेकी होना गुण समझा जाता था। मेवाड़ में इस अधिकारी को ‘कोषपति’ कहा जाता था। मितव्ययता खजान्ची का आवश्यक गुण था ताकि वह खजाने में वृद्धि कर सके।
ड्योढ़ीदार : यह महल की सुरक्षा , देखरेख और निरिक्षण का कार्य करने वाला अधिकारी था।
मुत्सद्दी : राजस्थान की रियासतों में प्रशासन का सञ्चालन करने वाले अधिकारी ‘मुत्सद्दी’ कहलाते थे।
अन्य विभागीय अध्यक्ष : उपरोक्त अधिकारियों के अतिरिक्त छोटे मोटे विभाग होते थे जिनके अधिकारी अपने विभाग के कार्यों से जाने जाते थे। उदाहरणार्थ : “दरोगा ए डाक चौकी”  डाक प्रबंध रखता था , “दरोगा ए सायर” दान वसूली करता था , ‘मुशरिफ’ अर्थ विभाग का सचिव होता था , “वाक् ए नवीस” सूचना भेजने के विभाग पर था , “दरोगा ए आबदार” , खाना पानी का दरोगा था , “दरोगा ए फराशखाना” सामान के विभाग का अध्यक्ष था। “दरोगा ए नक्कारखाना” , बाजे तथा नगाड़ों के विभाग के ऊपर था। इनके अतिरिक्त जवारखाना , शिकारखाना , दारुखाना , अस्तबल , गौशाला , रसोड़ा आदि पर भी अलग अलग विभागीय अधिकारी होते थे।
प्रश्न : मध्यकालीन राजस्थान की स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिये।
उत्तर : प्रशासन की सुविधा के लिए राज्य को परगनों में बाँटा गया। प्रत्येक परगने में 20 अथवा इससे अधिक मौजे (गाँव) होते थे। जयपुर राज्य में परगना अधिकारियों की तीन श्रेणियाँ थी। प्रथम श्रेणी में केवल आमिल आते थे। दूसरी श्रेणी में फौजदार , नायब फौजदार , कोतवाल , खुफियानवीस , फोतेदार , तहसीलदार , मुशरिफ , आवारजा नवीस , दरोगा , श्तायत आदि होते थे।
तीसरी श्रेणी में महीनदार आते थे जिनमें हाजरी नवीस , चोबदार , निशानबदार , दफलरबंद , दफ्तरी आदि भी होते थे। रोजिनदारों में साधारण में साधारण मजदूर और नौकर आते थे जिन्हें वेतन प्रतिदिन मिलता था।
हाकिम : सभी शासकीय और न्याय सम्बन्धी कार्यो के लिए हाकिम परगने का सर्वेसर्वा था जो सीधा महाराजा द्वारा नियुक्ति अथवा पदच्युत किया जाता था।
फौजदार : परगने का दूसरा उच्च अधिकारी फौजदार होता था। जो पुलिस तथा सेना का अध्यक्ष होता था। वह परगने की सीमा की सुरक्षा का प्रबंध करता था। वह अमलगुजार , अमीन तथा आमिल को राजस्व वसूल करने के सम्बन्ध में सहायता पहुँचाता था। उसके निचे कई थानों के थानेदार रहते थे , जो चोर तथा डाकुओं का पता लगाते थे अथवा उनकी निगरानी रखते थे।
आमिल : यह परगने का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी था और परगने में इसे सर्वाधिक वेतन मिलता था। आमिल का मुख्य कार्य परगनों में राजस्व की वसूली करना था। भूमि राजस्व की दरें लागू करने और वसूली में अमीन , कानूनगो , पटेल , पटवारी , चौधरी आदि उसकी सहायता करते थे। आमिल के अन्य कार्यो में किसानों के हितों का ध्यान रखना , परगने में कृषि को बढ़ावा देना , सूखा पड़ने पर तकावी ऋण बांटना आदि थे।
ओहदेदार : कहीं कहीं बड़े परगनों में एक ओहदेदार भी होता था जो हाकिम को शासन में सहायता पहुँचाता था। इन अधिकारियों के सहयोगी शिकदार , कानूनगों , खजांची , शहने आदि होते थे जो वैतनिक और फसली अनाज के एवज में राजकीय सेवा करते थे।
खुफिया नवीस : यह परगने की रिपोर्ट दीवान के पास भेजता था। परगने का खजांची ‘पोतदार’ होता था जो परगना खजाने में आमद और खर्च का हिसाब रखता था।
गाँव का प्रशासन : मध्यकाल में राज्य में प्रशासन की सबसे छोटी इकाइयाँ होती थी , जिन्हें ग्राम , मण्डल , दुर्ग आदि कहते थे। ग्राम का प्रमुख अधिकारी ग्रामिक , मण्डल का मण्डलपित तथा दुर्ग का दुर्गाधिपति और तलारक्ष होता था।
गाँवों की स्थानीय व्यवस्था के लिए ग्राम पंचायत होती थी जिसमें गाँव का मुखिया और गाँव के सयाने व्यक्ति रहते थे। ये लोग मिलकर न्याय करना , झगडे निपटाना , धार्मिक तथा सामाजिक विषयों पर विचार करना आदि कार्यो को सम्पादित करते थे। इन संस्थाओं तथा राज्य के कर्मचारियों के मध्य ऐसा तारतम्य रहता था कि वे एक दुसरे से मिल जुलकर काम करते थे। ग्राम पंचायत और जाति पंचायतों के निर्णय राज्यों द्वारा माननीय होते थे।
Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

11 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

11 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now