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कोणार्क मंदिर किसने बनवाया था , konark sun temple was built by in hindi

konark sun temple was built by in hindi कोणार्क मंदिर किसने बनवाया था  ?

कोणार्कः ओडिशा स्थित कोणार्क भारतीय हिंदू धर्म का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है।
इसका निर्माण राजा लंगुला नरसिंह देव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। हालांकि हो सकता है इसी स्थान पर नौवीं शताब्दी में भी सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ हो। खोंडालाइट से निर्मित इस मंदिर के निर्माण में 1200 मजदूरों ने 16 वर्ष का समय लगाया था। 1830 में कुर्धा (कर्धा) राजा ने इस मंदिर के तीन प्रवेश द्वारों को नष्ट कर दिया था।
मंदिर में प्रवेश के लिए 180 मीटर लंबे प्रवेश माग्र से होकर गुजरना पड़ता है। विस्तृत क्षेत्र में फैली मंदिर परिसर आसपास की भूमि से 2 मीटर नीची है। परिसर के पूर्वी भाग में भोगा मंदिर स्थित है, जिसे कुछ लोगों द्वारा नटमंडप की संज्ञा दी जाती है। इसके पश्चिमी भाग में जगमोहन नामक द्वारमण्डप स्थित है, जो लगभग 39 मीटर ऊंचा है। पूर्वी भाग में स्थित मण्डप मूल मण्डप था, जो लगभग 60 मीटर ऊंचा था।
परिसर को दक्षिणी भाग से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर का निर्माण युद्ध में प्रयुक्त एक रथ के रूप में किया गया है। 4 मीटर ऊंचे प्लेटफाॅर्म पर निर्मित पहियों के 12 युग्म मंदिर को आधार प्रदान करते हैं।
मंदिर में प्रवेश पूर्वी भाग से किया जा सकता है। भोगा मंदिर की दीवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है। इन प्रतिमाओं के विषय सामान्य जीवन से लिए गये हैं नृत्य, नर्तकों, संगीतकार, दरबार, प्रेम एवं विवाह आदि दृश्य। परिसर में निर्मित विविध प्रतिमाएं वस्तुतः उड़िया वास्तुशिल्प को अपने में समेटे हुए हैं। द्वारमण्डप की छत तीन कतारों में बंटी हुई है। निचली एवं मध्यम परतों के मध्य संगीतकारों का वाद्य यंत्रों को बजाते हुए चित्रित किया गया है। मंदिर स्थित ‘उपाना’ को अनेक चित्रवल्लरियों (1700 भिन्न हाथी!) से सजाया गया है।

उदयपुरः राजस्थान स्थित उदयपुर साम्भर नदी के उत्तर-पूर्व में अरावली पर्वत-श्रेणियों में अवस्थित है। इसकी स्थापना सिसोदिया वंश के शासक महाराणा उदयसिंह ने की थी। उदयपुर स्थित राजमहल, राज्य का सबसे विशाल महल है। राजमहल में बाड़ी महल, दिलखुश महल, मानक महल, सूरज चैपड़, शिव विलास आदि दर्शनीय हैं। पिछोला झील उदयपुर की सबसे प्रसिद्ध झील है। इसके बीच में जग मंदिर और जग निवास महल हैं, जिनका प्रतिबिम्ब झील में पड़ता है। उदयपुर के उत्तर में 48 किलोमीटर दूर स्थित श्री नाथद्वारा में वैष्णवों का सुप्रसिद्ध मंदिर है, जो श्रीनाथ जी का तीर्थ स्थान है। नाथद्वारा से लगभग 11 किलोमीटर पश्चिम में मेवाड़ इतिहास की प्रसिद्ध रणस्थली हल्दीघाटी अवस्थित है।
उदयपुर से 56 किलोमीटर दूर कुरावड़ स्थित जगत ग्राम में अम्बिका देवी का भव्य मंदिर है। कला एवं शिल्प की दृष्टि से अत्यंत आकर्षक इस मंदिर को राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है। उदयपुर से 21 किलोमीटर दूर स्थित एकलिंग जी का मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। रणकपुर के जैन मंदिर भी कला एवं शिल्प के अनुपम भण्डार हैं। चैमुख मंदिर रणकपुर के मंदिरों में प्रमुख है। सहेलियों की बाड़ी, सज्जन निवास बाग तथा कुम्भलगढ़ दुग्र उदयपुर स्थित अन्य प्रसिद्ध स्थल हैं।
ऋषिकेशः उत्तरांचल स्थित ऋषिकेश गंगा के समीप हिमालय की अंतिम पहाड़ियों में बसा है। ऋषिकेश चारों धामों के तीर्थ का आधार केंद्र है। वस्तुतः ऋषिकेश आश्रमों का नगर है। यहां स्थित त्रिवेणी घाट पर प्रत्येक संध्या को प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है। आश्रमों के आत्मिक स्वग्र के रूप् में प्रसिद्ध पौड़ी गंगा के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। यहां स्थित अनेक आश्रम आध्यात्म, योग, आत्मिक-ज्ञान तथा वेदांत के निर्देशों के केंद्र है। शिवनंदंद आश्रम, ओमारकनंद आश्रम (दुग्र मंदिर) स्वग्र आश्रम तथा परमार्थ निकेतन यहां स्थित प्रमुख आश्रम हैं। चार धाम के माग्र में स्थित लक्ष्मण झूले तथा शिवानंद झूले का विशेष महत्व है। यहां से कुछ दूर चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित मुनी-की-रेती में भी कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं।
एलोराः महाराष्ट्र स्थित एलोरा की गुफाएं हिंदू, जैन तथा बौद्धों की श्रेष्ठतम गुफाएं हैं। ऐसी मान्यता है कि उज्जैन माग्र पर अवस्थित इन गुफाओं का निर्माण राहगीर भक्तों द्वारा किया गया है। एलोरा में कुल 34 गुफाएं हैं। इनमें 12 बौद्ध (600-800 ईसवी) 17 हिंदू (600-900 ईसवी) तथा पांच जैन (800-1100 ईसवी) गुफाएं हैं। बौद्ध गुफाओं का संबंध वज्रयान संपद्राय से है।
एहोलः कर्नाटक स्थित एहाले चालुक्यों की पहली राजधानी थी। यहां निमिर्त मंदिरों में राष्ट्रकूट तथा चालुक्य मंदिर सम्मिलित हैं। एहोल को भारतीय मंदिरों की वास्तुकला की जन्मस्थली कहा जाता है। एहोल में लगभग 140 मंदिर हैं। एहाले स्थित कछु प्िर स) दशर्न ीय मंि दर हंै दुर्गीगुडी मंदिर, लड खान मंदिर, गोदरगुडी मंदिर, चिक्की मंदिर, रावण पहाड़ी गुफा मंदिर, बौद्ध मंदिर, मेगुटी मंदिर तथा कुंती समूह में चार हिंदू मंदिर हैं। इन मंदिरों के अतिरिक्त यहां स्थित हुछप्पाया मठ का संबंध 7वीं शताब्दी से है।
ओरोविलेः तमिलनाडु स्थित ओरोविले के विकास का श्रेय मदर मीरा अलफासा को है। मदर द्वारा विश्व-बंधुत्व के उद्देश्य से स्थापित इस केंद्र में मैत्री मंदिर तथा भरत निवास विशेष भाग हैं।
कटकः उड़ीसा स्थित कटक की स्थापना नृपति केसरी (920-935) ने की थी। 1956 तक कटक उड़ीसा की राजधानी थी। महानदी के डेल्टा पर स्थित तथा कठजूरी नदी से घिरा कटक एक टापू का रूप लिए हुए है। पुरातात्विक विभाग द्वारा खोजे गए 13वीं शताब्दी के बाराबती किले का पुराना जगन्नाथ मंदिर तथा बक्शी साहब की मजार विशेष रूप से दर्शनीय हैं। कदम रसूल 18वीं शताब्दी में निर्मित प्रसिद्ध मस्जिद है। रत्नगिरि, ललितगिरि एवं उदयगिरि में बौद्ध धर्म के वज्रयान सम्प्रदाय के अवशेष हैं।
कन्याकुमारीः तमिलनाडु स्थित कन्याकुमारी बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर तथा अरब सागर के मिलन स्थल पर अवस्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। समुद्र तट से 400 मीटर दूर समुद्र में स्थित स्वामी विवेकानंद स्मारक विशेष दर्शनीय स्थल है। कन्याकुमारी के सूर्योदय तथा सूर्यास्त का दृश्य भी विशेष है। कन्याकुमारी स्थित गांधी मंडप तथा कन्याकुमारी मंदिर दर्शनीय स्थल हैं। कन्याकुमारी से 10 किलोमीटर दूर स्थित सुचिंदरम 17वीं शताब्दी में पांड्यों द्वारा निर्मित सुचिंदरम मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। सुचिंदरम में शिव, ब्रह्मा तथा विष्णु को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। कन्याकुमारी से 19 किलोमीटर दूर स्थित नागेरकोइल नागराज मंदिर तथा जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।
कांगड़ाः हिमाचल प्रदेश स्थित कांगड़ा को त्रिगर्त एवं नगरकोट के नाम से भी जागा जाता है। अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अनुरूप यहां अनेक मंदिर हैं ब्रजेश्वरी, बैजनाथ, ज्वालामुखी तथा चामु.डा देवी का मंदिर। निचली पहाड़ियों में स्थित कांगड़ा एक सुंदरमतम घाटी है। कांगड़ा घाटी में ही धौलाधार श्रेणी स्थित है। कांगड़ा की स्थानीय राजपूत शैली और मुगलशैली की मिश्रित चित्रकारी से विकसित ‘कांगड़ा चित्रकला शैली’ का वर्तमान में विशिष्ट स्थान है।
कांचीपुरमः तमिलनाडु स्थित कांचीपुरम का संबंध चोल काल (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) से है। अपने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध कांचीपुरम हिंदुओं के सात पवित्र नगरों में से एक है। कांचीपुरम हिंदू धर्म-स्थलों के अतिरिक्त शंकराचार्य तथा बुद्ध से भी संबंधित है। कांचीपुरम में निर्मित हजारों मंदिरों में से अब केवल 70 ही शेष हैं। एकामबरेश्वर यहां स्थित मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध ह।ै कैलाशनाथ मंदिर यहां स्थित मंदिरों में सबसे सुंदर है। इसका निर्माण 7वीं शताब्दी में नरसिंह वर्मन प्प् ने करवाया था। विष्णु को समर्पित बैकुंठ पेरुमल मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में नंदीवर्मन ने करवाया था। वर्धराजा, कमाक्क्षी, वर्धमान तथा चंद्रप्रभा यहां स्थित अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं।
काजाः हिमाचल प्रदेश स्थित काजा एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है। टाबो, धनकर एवं घुंगरी यहां स्थित प्रसिद्ध गोम्पा हैं। यहां स्थित टाबो गोम्पा की गणना विश्व के प्राचीनतम गोम्पाओं में की जाती है। यहां लगभग 60 लामा निवास करते हैं। यहां बुद्ध की लगभग 1,000 मुद्राओं को चित्रबद्ध किया गया है। धनकर स्थित गोम्पा का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। धनकर में 4,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक सुंदर तालाब भी है। किब्बर स्थित की मठ यहां स्थित मठों में सबसे बड़ा है। किब्बर (गीत) विश्व का सबसे ऊंचा (12810 फीट) गांव है। काजा से 22 किलोमीटर दूर स्थित लालुंग गोम्पा लकड़ी पर की गई नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
कुरुक्षेत्रः हरियाणा स्थित कुरुक्षेत्र का संबंध महाभारत काल से है। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। कुरुक्षेत्र स्थित तालाब में सूर्य ग्रहण के दिन हजारों श्रद्धालु पवित्र स्नान करते हैं। इस तालाब के समीप ही अनेक मंदिर भी स्थित हैं। कुरुक्षेत्र में हिंदू शैली में निर्मित अनेक मंदिरों के अतिरिक्त एक मुस्लिम किला, चिलि जलाल का मकबरा तथा लाल मस्जिद आदि दर्शनीय स्थल हैं। कुरुक्षेत्र के समीप स्थित थानेश्वर हर्षवर्धन की जन्म स्थली है। पेहोवा एवं कैथल कुरुक्षेत्र के समीप स्थित अन्य दर्शनीय स्थान है।
कारगिलः जम्मू-कश्मीर स्थित कारगिल सूरू नदी के किनारे अवस्थित है। कारगिल से 39 किलोमीटर दूर स्थित मुलबेख में मैत्री बुद्ध की विशालकाय मूर्ति है। इसी गांव में दो गोम्पा भी हैं। यहां से 13 किलोमीटर दूर स्थित नामिका ला प्रसिद्ध दर्रा है। लामायूरू अपनी प्राकृतिक सुंदरता के अतिरिक्त बौद्ध विहार के लिए प्रसिद्ध है। कारगिल के समीप स्थित अन्य प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हंै शेरगोल, रिजोंग, ससपोल, अल्छी, लेकिर, बासगो, स्पीतुक आदि।
कालीबंगनः राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित कालीबंगन हड़प्पा काल की सबसे प्रमुख स्थली है। यहां पाये गए अवशेषों का संबंध पूर्व-हड़प्पा काल से (2920 से 2550 ईसा पूर्व) है। कालीबंगन के समीप स्थित हनुमानगढ़ का महत्व भी पुरातात्विक स्थल के रूप में है।
कुल्लूः हिमाचल प्रदेश स्थित कुल्लू प्राचीन काल से अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहां स्थित सुल्तानपुर महल में कुल्लू शैली की चित्रकारी को देखा जा सकता है। यहां स्थित रघुनाथजी मंदिर दशहरा उत्सव का प्रमुख मंदिर है। कुल्लू से कुछ दूरी पर स्थित जगन्नाथजी मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर तथा बिजली महादेव स्थित शिव मंदिर अन्य प्रमुख मंदिर हैं। कुल्लू से 10 किलोमीटर दूर स्थित कटराईं फलों के वृक्षों तथा मछली पालन केंद्र के लिए प्रसिद्ध है। कुल्लू से 15 किलोमीटर दूर स्थित बजौरा उद्यानों तथा भगवान विश्वेश्वर के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। कुल्लू से 10 किलोमीटर दरू स्थित, मणिकर्ण में गर्मजल के चश्मे हैं। यहां स्थित पार्वती गंगा स्थल, शिव एवं राम को समर्पित मंदिर तथा गुरुद्वारा प्रसिद्ध हैं।
केदारनाथः उत्तराखण्ड स्थित केदारनाथ, रुद्रप्रयाग से 77 किलोमीटर दूर 3,584 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां स्थित केदारखंड का निर्माण पांडवों ने करवाया था। यहीं पर शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक अवस्थित है। यहां स्थित केदारनाथ मंदिर को लकड़ी से बने मंडप तथा घुमावदार स्तंभ विशिष्टता प्रदान करते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही नंदी की प्रतिमा है। यहां से हिमाच्छिदत केदारनाथ शिखर (6,970 मीटर) को भी देखा जा सकता है। यहां से 2 किलोमीटर दूर स्थित वसुकी ताल (5,200 मीटर) सोन गंगा नदी का उद्गम स्थल है। यहां से उत्तर-पश्चिम में स्थित पन्या ताल के स्वच्छ जल में तालाब के आधार में स्थित चैकोर पत्थरों को देखा जा सकता है।
पंच केदार में सम्मिलित हैं केदारनाथ, मधमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ तथा कल्पेश्वर। ऐसी मान्यता है कि नंदी बैल के पांच भाग इन पांचों स्थलों पर गिरे थे। उखीमठ में शरद काल में इन पांचों भागों को इकट्ठा किया जाता है। नंदी बैल का कूबड भाग केदारनाथ, पेट मधमहेश्वर, हाथ तुंगनाथ, मुख रुद्रनाथ तथा केश कल्पेश्वर में गिरे थे। 3,030 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मधमहेश्वर मंदिर से चैखंभा शिखर (7164 मीटर) को देखा जा सकता है। 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ से नंदा देवी, नीलकंठ, केदारनाथ शिखरों को देखा जा सकता है। भूरे पत्थर से बने रुद्रनाथ मंदिर (3,030 मीटर) के पास से ही रुद्रगंगा नदी प्रवाहित होती है। यहां से नंदा देवी, त्रिशूल एवं हरी पर्वत को देखा जा सकता है।

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