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केपानगिहान क्या है | केपानगिहान विवाह किसे कहते है किस जनजाति के लोगों में Kepanggihan in hindi

Kepanggihan in hindi केपानगिहान क्या है | केपानगिहान विवाह किसे कहते है किस जनजाति के लोगों में पाया जाता है ?

विवाह-‘केपानगिहान‘ (Marriage- ‘Kepanggihan’)
अब से कुछ समय पहले तक, जावा में विवाह माता-पिता की पसंद से कराए जाते थे। किन्तु आज कल वहाँ लड़के लड़कियों की पसंद और समझ महत्वपूर्ण होने लगी है। फिर भी मर्यादा के लिये लड़कों के अभिभावक (मां-बाप) की ओर से औपचारिक अनुरोध ‘लमरान‘ (स्ंउंतंद) की प्रथा अब भी प्रचलित है। दोनों (लड़के/लड़की) के माता-पिता एक अत्यंत औपचारिक बातचीत में ‘‘नानटोनी‘‘ (Nontoni) लड़की (दिखाने) पर राजी होते हैं। लड़का अपने माता-पिता के साथ लड़की के घर जाता है, लड़की शर्माते हुए चाय देती है, और लड़का तिरछी नजर से लड़की को देखता है। वह यदि पसंद करता है तो अपने मां बाप से वैसा कहता है और शादी तय हो जाती है।

शादी या “केपांगिहान‘‘ (‘‘सभा‘‘) हमेशा लड़की के घर ही होती है। (लड़के का खतना करने) की भांति लड़की की शादी उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है और उसके माता-पिता इस शादी के लिए जो कर सकते हैं, करते हैं। विवाह से पहले वाली शाम को दोनों पक्ष के माता-पिता के लिये स्लामेतान आयोजित किया जाता है इसमें लड़का मौजूद नहीं रहता। “स्लामेतान‘‘ के बाद लड़की को साधारण कपड़े पहना कर घर के बीचोंबीच लगभग पांच घंटे के लिए स्थिर अवस्था में बैठाया जाता है। माना जाता है कि लड़की में एक फरिश्ता प्रवेश कर जाता है, इसी से लड़की शादी के दिन इतनी सुन्दर लगती है। इस बीच लड़की की मां केमबंग मजांग पौधे से बना सजावट का सामान खरीदती है। लड़के और लड़की दोनों के लिये दो-दो पौधे खरीदे जाते है, जो कि इनके शुचिता होने के प्रतीक होते हैं। इनमें से दो पौधों को मां अपनी बेटी के पास रख देती है और इस प्रकार शाम गुजर जाती है।

अगली सुबह किसी शुभ घड़ी में लड़का अपने साथियों के साथ नायब के कार्यालय में सरकारी धर्म कार्यालय) में जाता है जहां उसके विवाह को वैध स्वीकृति दी जाती है। लड़की स्वयं नहीं जाती, उसका प्रतिनिधित्व उसका ‘‘वली‘‘ (इस्लाम के अनुसार उसका कानूनी अभिभावक) जाता है। नायब के कार्यालय में लड़का अरबी में एक संबद्ध आयत पढ़ता है (फिर उसे जावाई में दुहराता है) फिर वह “वली को 5 रुपया ‘‘मस कवीन‘‘ या शादी का सोना भेंट के रूप में अदा करता है, फिर नायब लड़का और अनुपस्थित लड़की को विवाहित घोषित करते हुए आयोजन की समाप्ति करता है।

उधर लड़की के घर में चहल पहल शुरू हो जाती है। उपस्थित मेहमान काफी पीने, नाश्ता करते, एक दूसरे से मिलते जुलते हैं। लड़की को उसके रिश्तेदार तैयार करते हैं। प्रथा के अनुसार लड़के लड़की को राजकुमार राजकुमारी की तरह गहने-जेवर से सजाया संवारा जाता है। इस ठाट बाट की प्रथा अब केवल प्रिजाजी अभिजात वर्ग में देखी जाती है ‘‘एबंगन‘‘ लड़कियाँ अब या तो पाश्चात्य लिबास में रहती हैं या फिर नित प्रतिदिन के लिबास में थोड़े गहने और फूलों का प्रयोग करके सजती-संवरती है। हममें से अधिकांश लोगों ने हिन्दू एंव अन्य धर्मों के विवाह समारोह देखे होंगे इनसे अध्ययनकर्ता को स्पष्ट हो गया होगा कि विवाह संबंधी अनुष्ठान उच्च रूप से प्रतीकात्मक हैं और ऐसे समारोहों की गूढ़ मौजूदगी दर्शाती है कि बहुत से समाजों में ऐसे अनुष्ठान सामाजिक दृष्टि से केंद्र बिंदु है।

घर के सामने लड़की का एक पुराना “सारंग” (साड़ी जैसा कपड़ा) फैलाया जाता है उसके नीचे बैलों की जोड़ी रोक रखा जाता है और उसके ऊपर फूल से छिड़के पानी का बर्तन और एक अंडा रखा जाता है। घर के चारों और “साइजन‘‘ (Sadjins) रखे रहते हैं, जिससे कि घर पर बुरी आत्माओं का प्रभाव न पड़े। शुभ महूर्त पर लड़की के साथ दो अविवाहित कुंवारी कन्याएं उसका ‘‘केम्बांग मेजांग” (सजावट के पौधे) लिये उपस्थित होती है, लड़के के साथ भी दो अविवाहित लडके उसके ‘‘केम्बांग भेजांग‘‘ लेकर लडकी की ओर बढ़ते हैं। जब दोनों नजदीक आते हैं तो एक दूसरे पर सुपाड़ी फेंकते हैं। पहले जिसकी सुपाड़ी दूसरे को लगती है, उसे दांपत्य जीवन में अधिक प्रभावशाली या हावी माना जाता है। ग्यट्र्स कहते हैं, कि लड़की लगभग यह मान लेती है कि वह इस खेल में हार गई है। दोनों उस पुराने सैरांग (साड़ी जैसे वस्त्र) पर खड़े होते हैं। यह पति के सामने पत्नी की नंग्नता का प्रतीत हैं, फिर दोनों इस्लाम में हाथ मिलाने (स्लेमान) के लहंगे में एक दूसरे का हाथ छूते हैं। अविवाहित लड़के लड़कियां ‘‘केम्बांग मेजांग‘‘ बदल लेते हैं। लड़की घुटने के बल गिर कर लड़के के पैरों पर अंडा फोड़ती है, यह उसके शील समर्पण का प्रतीक है। आज कल इस प्रथा को नजर अंदाज किया जाता है, क्योंकि यह लिंग भेदं समानता की भावना के विरूद्ध है। योक पर दोनों का खड़ा होना दोनों की एकात्मता और अविच्छिन्नता का प्रतीक है।

लड़का लड़की घर लौटते हैं और चुपचाप बैठकर मेहमानों की अगवानी करते हैं। जैसा कि ऊपर संकेतित है कि जावा में निश्चलता की तुलना आध्यात्मिक चिंतन और शक्ति से है जिसे ‘‘आंतरिक और बाहय शक्तियों को पाने के मुख्य रास्ते‘‘ के रूप में स्वीकार जाता है।

विवाह विशेषज्ञ फिर उस दंपत्ति के हमेशा साथ रहने की प्रार्थना और लड़की के सौन्दर्य की प्रशंसा के मंत्र पढ़ते हैं। मंत्रोच्चार के पश्चात ‘‘स्लेमान” का आयोजन किया जाता है। शुद्धता और प्यार का प्रतीक क्रमशः सफेद और पीला चावल परोसा जाता है। लड़का और लड़की एक दूसरे की थाली से लेकर खाना चखते हैं फिर लड़के की थाली में उलट कर दोनों को एक बना दिया जाता हैं फिर उसे हटा कर अलग रख दिया जाता है, जब वह सड़कर महकने लगता है तो विवाह पूर्ण माना जाता है।

जावा की शहरी शादियों और खतना करने के अनुष्ठान ‘‘रूकुन‘’ (तनानद) के मूल्यों जिन्हें ग्यट्र्स पारम्परिक सहकारिता का नाम देता है, के अच्छे उदाहरण हैं। इसका अर्थ यह है कि कृषक लोग समूह में केवल सामूहिक एकता के लिये ही नहीं, व्यक्तिगत भौतिक फायदे के लिये एकत्रित होते हैं। इतने बृहद समारोह के आयोजन में जितना पैसा और जितनी मेहनत लगती है वह पड़ोसियों और रिश्तेदारों की मदद के बिना संभव नहीं होती है अतः ‘‘रूकुन‘‘ से जहां एक और व्यक्तिगत फायदे होते हैं, वहीं सामाजिक एकता भी बढ़ती है।

बोध प्रश्न 4
1) बताइए कि निम्नलिखित कथनों में से कौन से सही हैं और कौन से गलत।
क) प्रथा के अनुसार जावा के लड़के लड़कियां नायब के कार्यालय में जाकर शादी कर लेते थे।
ख) लड़की का वली लड़के को शादी करने के लिये पैसे देता है।
ग) “स्लामेतान‘‘ में सफेद चावल प्यार का प्रतीक हैं।
1) “रूकुन‘‘ का क्या अर्थ है? अपना उत्तर दो पंक्तियों में दीजिए।

बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 4
1) (क) (गलत) (ख) (गलत) (ग) (गलत)
पप) ‘‘रूकुन” को पारम्परिक सहकारिता भी कह सकते हैं। इसका अर्थ है कि कृषक लोग महत्वपूर्ण आयोजन में सहयोग केवल समूह के लिये नहीं देते बल्कि उनका व्यक्तिगत स्वार्थ भी इसमें निहित होता है। इसलिये “रूकुन’ व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों काम करता है।

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