हिंदी माध्यम नोट्स
कच्चातिवु विवाद क्या था | श्रीलंका के साथ कच्चातिवु विवाद क्या है katchatheevu conflict in hindi
katchatheevu conflict in hindi sri lanka dispute कच्चातिवु विवाद क्या था | श्रीलंका के साथ कच्चातिवु विवाद क्या है ?
कच्छातिवू विवाद
पाक जलडमःमध्य में जाफना तट के किनारे कच्छातिवू नामक एक वर्ग मील निर्जन इलाके के स्वामित्व को लेकर एक क्षेत्रीय विवाद पैदा हो गया। इस द्वीप पर हर वर्ष मार्च में भारत और श्रीलंका के तीर्थयात्री स्थानीय रोमन कैथोलिक चर्च में सेंट एंथनी के चार दिवसीय पर्व पर पूजा करने जाते थे। १९६८ में महोत्सव के दौरान भारत ने वहां श्रीलंका की पुलिस की मौजूदगी का विरोध किया। इससे संघर्ष पैदा हो गया। दोनों ही देश किसी भी गंभीर स्थिति से बचना चाहते थे। भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों ने दो मुलाकातों के बाद यह तय किया कि द्वीप पर और उसके बाहर यथास्थिति बने रहने दी जाए। यह तय किया गया कि भारत और श्रीलंका दोनों ही सेंट एंथनी के महोत्सव में न तो अपनी पुलिस को वर्दी में भेजेंगे, न ही वहाँ कस्टम के अधिकारी मौजूद होंगे। इसके अलावा हवाई सर्वेक्षण और नौसैनिक निरीक्षण पर भी प्रतिबंध लगाया गया। अंततः, एक संक्षिप्त समझौते के तहत भारत ने कच्छातिवू द्वीप पर श्रीलंका के स्वामित्व को स्वीकार कर लिया।
बोध प्रश्न १
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का उपयोग करें।
ख) अध्याय के अंत में दिए गए मानक उत्तरों से अपने उत्तरों का मिलान करें।
१) यूएनसीआईपी क्या है? इसकी प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
२) भारत और श्रीलंका के बीच कच्छातिवू विवाद का समाधान कैसे हुआ?
बोध प्रश्न १ उत्तर
१) यूएनसीआईपी भारत और पाकिस्तान के लिए गठित संयुक्त राष्ट्र का आयोग है जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिशद ने १९४८ में नियुक्त किया था। १९४८ में जमा की गई यू.एन.सी.आई.पी. की जाँच रपट में दोनों देशों के बीच उग्रता को कम करने तथा जनमत संग्रह के संबंध में निम्नलिखित सिफारिशें दी गईं। सर्वप्रथम, संघर्ष विराम के बाद पाकिस्तान अपनी सैन्य टुकड़ियां जम्मू-कश्मीर से जल्द से जल्द हटाए तथा उन कबीलाई और पाकिस्तानी नागरिकों को वापस बुलाए जो जम्मू-कश्मीर के निवासी नहीं हैं। दूसरे, पाकिस्तानी टुकड़ियों द्वारा खाली किए गए क्षेत्रों का प्रशासन आयोग की देखरेख में स्थानीय अधिकारी करें। तीसरे, इन दो शर्तों के पूरी हो जाने और भारत को इसकी सूचना दिए जाने के बाद वह भी अपनी अत्यधिक सैन्य टुकड़ियों को वहां से हटा ले। अंतिम सिफारिश थी कि अंतिम समझौते के तहत भारत सीमित संख्या में वहाँ अपनी टुकड़ियाँ स्थापित करे जो सिर्फ कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पर्याप्त हो।
२) जाफना के तट से कुछ दूरी पर स्थित निर्जन द्वीप कच्छातिवू भारत और श्रीलंका के बीच १९६० के दशक में विवाद का मुद्दा बना। इस मसले का हल द्विपक्षीय वार्ता से निकाल लिया गया, जब भारत ने द्वीप पर श्रीलंका के स्वामित्व को स्वीकार कर लिया।
जातीय संघर्ष
श्रीलंका में तमिलों और सिंहलियों के बीच जातीय संघर्ष ने १९८३ में गंभीर रूप धारण कर लिया। इसे ‘जातीय विस्फोट‘ और ‘श्रीलंका के हत्याकांड‘ का नाम दिया गया। १९८३-८६ के बीच करीब दो लाख तमिल बेघर होकर शरणार्थी हो गए। हजारों मारे गए और घायल हो गए। इसके बावजूद सर्वदलीय शांति वार्ता ने पूरे गणराज्य को भ्रम में डाले रखा। अंत में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस जातीय हिंसा के समाधान के मकसद से पहल की। श्रीलंका सरकार के आमंत्राण पर भारतीय प्रधानमंत्री दो दिवसीय यात्रा पर कोलंबो गए और वहाँ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत भारतीय शांति रक्षक बल (आईपीकेएफ) को श्रीलंका में भेजने का प्रावधान था जिससे वहाँ स्थितियाँ सामान्य हो सकें।
राजीव-जयवर्द्धने समझौते के अनुरूप हजारों भारतीय सैन्य टुकड़ियों को श्रीलंका में शांति कायम करने के लिए भेजा गया। लेकिन शांति सेना की तैनाती भारत के लिए महंगी पड़ी। व्यवस्था कायम करने के लिए भारतीय सेना पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। तमिल अतिवादियों के साथ संघर्षों में सैकड़ों भारतीय सैनिक मारे गए। इसके बावजूद जातीय संघर्ष को नियंत्रित नहीं किया जा सका। आईपीकेएफ की व्यर्थता को समझते हुए भारत ने अपनी टुकड़ियों को वापस बुलाने का फैसला किया। मार्च १९९० तक सारी टुकड़ियों को वापस बुला लिया गया।
श्रीलंका में अलगाववादी आंदोलन का भारत-श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। हालांकि भारत ने यह सुनिश्चित करने के लिए सभी वाजिब कदम उठाए थे कि श्रीलंका विरोधी गतिविधियों के लिए भारत की धरती का इस्तेमाल न किया जा सके। कहना न होगा कि भारतीय सेना को भेजे जाने के परिणामस्वरूप लोकसभा चुनावों की दौड़ में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कथित तौर पर एक मानव बम द्वारा हत्या कर दी गई।
श्रीलंका की वर्तमान राष्ट्रपति श्रीमती चंद्रिका कुमारतुंग की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच बेहतर समझदारी वाला माहौल बन सका। भारत अभी भी श्रीलंका में जारी जातीय संकट के ऐसे शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में है, जो देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के दायरे में हो और जिसे बाहरी ताकतों की दखलंदाजी न हो। भारत ने श्रीलंका के उस हालिया प्रस्ताव का स्वागत किया है जिसमें सत्ता हस्तांतरण के द्वारा उन क्षेत्रों के लिए कुछ हद तक स्वशासन की बात कही गई है जहां तमिल अल्पसंख्यकों की आबादी ज्यादा है।
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…