करवा चौथ क्या है | करवा चौथ का व्रत कब है कब आती है कब मनाई जाती है Karwa Chauth in hindi

Karwa Chauth in hindi करवा चौथ क्या है | करवा चौथ का व्रत कब है कब आती है कब मनाई जाती है निबंध ?

करवा चैथ (Karwa Chauth)
यह सुहागन स्त्रियों का पर्व होता है और अधिकतर पंजाब के उच्च वर्ग और देश के हिन्दी सीमित है। भोज गिरिजा/गौरी की पूजा इस पर्व की विशेषताएं हैं। गौरी पति के प्रति स्त्री के संपूर्ण की प्रेम प्रतीक है। इसमें चांद और सूरज और आलेखन और चित्रकला की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

सांझी की तरह करवा चैथ में भी कला का पक्ष इसमें अंतर्निहित नहीं है और इसलिए हर जगह उससे जुड़ा नहीं होता। यह प्रत्येक परिवार और क्षेत्र में नहीं होता। लखनऊ के आसपास गाँवों में अवध कहलाने वाले भाषाई- सांस्कृतिक क्षेत्र में करवा को दीवार पर बनाया और रंगा जाता है। यह किसी भित्तिचित्र जैसा दिखता है।

किनारेदार पटल पर देवी की आकृति बनाई जाती है। यह सुहागन स्त्री का प्रतीक होती है। इसके साथ सूरज, चांद और सितारे भी बनाए जाते हैं। इनके अलावा अन्य तमाम प्रतीक होते हैं पालकी में ले जाई जाती सुहागिनें और एक सांस्कारिक भेंट के रूप में अपनी बहन के घर करवा ले जाता भाई। करवा पूजा में काम आने वाला मिट्टी या कांसे का बर्तन होता है।

करवा अक्तूबर-नवम्बर के चंद्रमास (कार्तिक) के कृष्ण पक्ष के चैथे दिन मनाया जाता है। यह दिवाली से बारह दिन पहले पड़ता है। इस महीने में अनेक पर्व पड़ते हैं। जिनमें तांत्रिक शक्ति का पुट होता है। करवा चैथ उन्हीं में से एक है। करवा मानने वाली स्त्री दिन भर का उपवास रखती है। शाम को उगते चांद की मद्धिम रोशनी में देवी की पूजा की जाती है और चांद को जल चढ़ाया जाता है। कुछ जगहों पर जल चढ़ाने के बाद स्त्रियाँ एक छलनी में से चांद को देखती हैं। पूजा समाप्त होने के बाद स्त्री अपने पति के पांव छूती है। इसके बाद परिवार का भोज होता है।

करवा चैथ मानने वाली स्त्री अपने सुहागन जीवन की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती है और उसमें भावानात्मक सुरक्षा पाने का प्रयास करती है। ऐसा देखने में आया है कि करवा चैथ वहां मनाया जाता है जहां स्त्रियों को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं है और विधवापन को बुरा समझा जाता है। इसलिए यह पर्व नीची जातियों और अछूतों में नहीं मनाया जाता क्योंकि उनमें स्त्रियों को तलाक, पुनर्विवाह और विधवा विवाह की छूट है। गढ़वाल में इसकी परंपरा नहीं है क्योंकि वहां ऊंची जातियों में भी स्त्रियों को पुनर्विवाह की अनुमति है।

अब देहरादून और मैदानी शहरों में रहने वाले कुछ गढ़वाली परिवारों में भी करवा चैथ मनाया जाने लगा है । नीची जातियों की नई पीढ़ी की स्त्रियाँ भी इसे प्रतिष्ठा के चिह्न के रूप में धीरे-धीरे अपनाती जा रही हैं। करवा के चित्रों को भी नया रूप दिया जा रहा है और उसमें नए चित्रों को जोड़ा जा रहा है। लखनऊ के पास के एक गाँव में एक पढ़ी लिखी लड़की ने करवा के चित्र में एक टेलीविजन सैट और हल जोतता किसान भी जोड़ा था। उसका सूरज और चांद का चित्र निश्चित रूप से प्रतीकात्मक तो है लेकिन इससे कहीं अधिक मानवीकरण का रूप है।