हिंदी माध्यम नोट्स
करनाल का युद्ध कब हुआ था , किसके मध्य लड़ा गया था कौन जीता , karnal war in hindi who won
karnal war in hindi who won करनाल का युद्ध कब हुआ था , किसके मध्य लड़ा गया था कौन जीता ?
कंधार/कंदहार (31°37‘ उत्तर, 65°43‘ पूर्व)
कंधार अफगानिस्तान में स्थित है। यहां एक विशाल किला है। सीमावर्ती शहर कंधार किसी समय भारत एवं पर्शिया के मध्य विवाद का एक प्रमुख कारण था। हेरात से मध्य एशिया, काबुल एवं भारत के बीच मुख्य व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने की वजह से कंधार सामरिक एवं वाणिज्यिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थल था। विजयों एवं पुनर्विजयों को लेकर कंधार की एक लंबी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। कंधार पर लंबे समय तक भारत के मुगल शासकों का अधिकार रहा। 1545 में हुमायूं ने इसे अपने भाई कामरान मिर्जा से वापस प्राप्त किया। अकबर के काल में निरंतर इस पर मुगलों का अधिकार बना रहा। यद्यपि जहांगीर के समय 1622 में फारस के सफावी शासक ने अचानक कंधार पर आक्रमण किया तथा इसे हस्तगत कर लिया।
प्रतिष्ठा का प्रश्न होने की वजह से शाहजहां ने कंधार को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। उसने दाराशिकोह, औरंगजेब एवं मुराद के नेतृत्व में कई सेनाएं कंधार पर अधिकार करने के लिए भेजीं, किंतु शाहजहां के सभी प्रयास असफल साबित हुए। मुगलों को इस असफलता की पूरी कीमत 90 वर्ष उपरांत चुकानी पड़ी, जब फारस के शासक नादिरशाह ने 13 अप्रैल 1739 को करनाल के युद्ध में मुगल शासक मुहम्मद शाह रंगीला को पराजित कर दिया तथा सम्पूर्ण दिल्ली को तहस-नहस कर दिया। नादिरशाह के आक्रमण ने दुर्बल मुगल साम्राज्य को भारी आघात पहुंचाया। कंधार को भारत के बाग एवं फलों के उद्यान के रूप में जाना जाता था। यहां तक कि आज भी सबसे अच्छी किस्म के अनार को श्कंधारीश् कहा जाता है। कंधार व्यापार के प्रमुख केंद्र के रूप में भी उभरा तथा आज भी अपनी बहुमूल्य धातुओं के लिए प्रसिद्ध है।
कांचीपुरम (12.82° उत्तर, 79.71° पूर्व)
चेन्नई से लगभग 70 किमी. दूर कांचीपुरम छठी से आठवीं शताब्दी तक पल्लव शासकों की ऐतिहासिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रहा। बाद में यह चोलों, विजयनगर शासकों, मुसलमानों और अन्त में अंग्रेजों के नियंत्रण में रहा। कांचीपुरम तमिल शिक्षा एवं संस्कृति का महान केंद्र था। यह कई शताब्दियों तक धार्मिक शिक्षा का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बना रहा। कांचीपुरम पूरे विश्व में अपनी रेशमी साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। यह अपने हस्तनिर्मित रेशम एवं विभिन्न रंगों के सूती वस्त्र के लिए भी प्रसिद्ध है।
कांचीपुरम में कई सुंदर, भव्य एवं प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी समय इसे ‘हजार मंदिरों का शहर‘ के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में यहां लगभग 126 मंदिर हैं। इनमें से कुछ मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं, जैसे-कामाक्षी अम्मान मंदिर तथा बैकुंठ पेरूमाल मंदिर।
कांचीपुरम हिन्दुओं के सात प्रमुख स्थलों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने यहां एक धार्मिक पीठ की स्थापना की थी। हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान से पूर्व यह बौद्ध धर्म का एक प्रसिद्ध केंद्र था। इसलिए इसे दक्षिण भारत की धार्मिक राजधानी की संज्ञा से अभिहीत किया जाना पूर्णतया उचित है।
कांचीपुरम, द्रविड़ कड़गम के संस्थापक एवं तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरई का जन्म स्थान भी है।
कांगड़ा (32.1° उत्तर, 76.27° पूर्व)
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में अवस्थित है। कांगड़ा का छोटा-सा नगर पूर्वकालीन चांद शासकों की राजधानी था। यह नगर धौलाधर पर्वत श्रृंखलाओं की कांगड़ा घाटी में स्थित होने के कारण अत्यधिक सुरम्य एवं दर्शनीय है।
कांगड़ा नगर का इतिहास काफी उथल-पुथल भरा रहा है। वज्रेश्वरी मंदिर (कांगड़ा मंदिर) में अतुल धन-सम्पदा एकत्रित होने के कारण यह लुटेरों की आंख में सदैव खटकता रहता था। इसीलिए यहां पर बहुत से लुटेरों ने आक्रमण किए। मुहम्मद गजनवी भी इस मंदिर की सम्पत्ति के कारण ही आकर्षित हुआ था। 1009 ई. में उसने इस मंदिर पर आक्रमण किया तथा इससे विशाल मात्रा में सोने एवं चांदी के जवाहरात इत्यादि लूटकर ले गया। 1360 में यहां दिल्ली सल्तनत के तुगलक शासक फिरोजशाह तुगलक ने आक्रमण किया। यद्यपि मुगल शासकों ने इस मंदिर को भरपूर संरक्षण प्रदान किया तथा जहांगीर के समय इस मंदिर को चांदी की प्लेटों से सुसज्जित कर दिया गया।
नगरकोट का प्राचीन किला कांगड़ा से मात्र 2.5 किमी. दूर था। कांगड़ा जिले का एक छोटा नगर मसरूर अपने मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। मसरूर में चट्टानों को काटकर बनाए गए 15 मंदिर हैं, जो 10वीं शताब्दी ईस्वी से संबद्ध हैं। यद्यपि इनमें से अधिकांश मंदिर सुंदर नहीं हैं तथा ये बहुत बुरी अवस्था में हैं।
कांगड़ा में ज्वालादेवी का भी मंदिर है। संभवतः यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां प्राकृतिक रूप से ज्वाला की लौ निकलती है।
कन्हेरी गुफाएं (19°12‘ उत्तर, 72°54‘ पूर्व)
कन्हेरी वर्तमान महाराष्ट्र के ठाणे जिले में है। यह प्रथम शताब्दी की बौद्ध गुफाओं एवं मठों के लिए प्रसिद्ध है। एलीफैन्टा की सुंदर गुफाओं की तुलना में कन्हेरी की गुफाएं कुछ साधारण किस्म की हैं।
कन्हेरी गुफा समूह में, पहाड़ियों को काटकर बनाई गई सैकड़ों छोटी-छोटी गुफाएं हैं। प्रत्येक गुफा में एक पत्थर को बड़े आकार में समतल रखा गया है, जो चारपाई का कार्य करता था। यहां एक चैत्य भी है, जो पाषाण के बहुत से स्तंभों से बना हुआ है। इसमें श्दागोबाश् (एक तरह का बौद्ध मंदिर) भी है। यहां अंतिम हीनयान चैत्य भी देखा जा सकता है। कान्हेरी पश्चिमी भारत में बौद्ध धर्म के उत्थान एवं पतन की घटना का साक्षी रहा है।
ये गुफाएं प्रथम से छठी शताब्दी पुरानी हैं तथा मुख्यतः सातवाहन काल से संबंधित हैं। कन्हेरी की गुफाओं से सातवाहन वंश के अंतिम शक्तिशाली शासक यज्ञश्री शतकी का एक लेख भी पाया गया है।
कन्हेरी से एक अन्य लेख भी प्राप्त हुआ है, जिससे यह सूचना मिलती है कि शकों एवं सातवाहनों के मध्य वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ था। राष्ट्रकूट शासकों के समय कन्हेरी बौद्ध धर्म का एक महान केंद्र था किंतु भारत से बौद्ध धर्म के पतन के साथ ही कन्हेरी का महत्व भी कम होने लगा।
कपिलवस्तु (27°32‘ उत्तर, 83°3‘ पूर्व)
कपिलवस्तु प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध शहर था, जो गौतम बुद्ध के पिता, शुद्धोधन (शाक्य कुल के प्रधान) की राजधानी भी था। परम्पराओं के अनुसार यह माना जाता है कि यह नगर कपिलमुनि की कुटी के स्थल पर बसा हुआ था। तथा राप्ती नदी की सहायक नदी रोहिणी के तट पर स्थित था। कपिलवस्तु नेपाल की तराई में स्थित था। यह एक गणराज्य था तथा यहां का निर्वाचित प्रमुख श्राजनश् कहलाता था। धर्म चक्रप्रवर्तन के उपरांत गौतम बुद्ध ने यहां की यात्रा की थी। तथा अपने पिता, पत्नी, पुत्र एवं भाई देवदत्त को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था।
कापुगल्लु/कुपगल्लू (16°56‘ उत्तर, 79°59‘ पूर्व)
कापुगल्लु या कुपगल्लू तेलंगाना के नालगोंडा जिले में स्थित है तथा यह नवपाषाण काल की अपनी गुफा चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध है।
कारसांबल/खादसमला (18.50° उत्तर, 73.33° पूर्व)
कारसांबल गांव महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित है तथा यह पत्थर को काटकर बनाए गए बौद्ध मंदिरों, बौद्ध परम्परा की चित्रकारी व मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। कारसांबल गुफाएं पत्थर को काटकर बनाई गई 37 संरचनाओं का समूह है तथा ये चैल के प्राचीन बंदरगाह नगर की ओर जाने वाले व्यापार मार्ग पर स्थित था। इतिहासकारों का मानना है कि इन गुफाओं का निर्माण द्वितीय शताब्दी ई.पू. के लगभग हुआ था तथा पांचवीं ई. में इन्हें छोड़ दिया गया, जब चैल पत्तन नष्ट हो गया। इन गुफाओं की ओर 1881 में एच. कौसेन्स का ध्यान गया। यह भी माना जाता है कि इन गुफाओं का इस्तेमाल, छुपने के स्थान के तौर पर, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वासुदेव बलवंत फड़के जैसे भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा किया गया।
हाल ही में किए अध्ययन में पता चला कि यहां मुख्य गुफा एक बौद्ध मठ था जिसमें एक चैत्य व स्तूप था, ऐसा छत पर मिले खोखले खंड से प्रतीत होता है। बाद में इस गुफा को स्तूप हटाकर रूपांतरित एवं विस्तृत किया गया। मुख्य गुफा के दक्षिण में 17 कमरों वाला एक विहार भी मिला है, जिनमें भिक्षु रहते थे। ऐसा अनुमान है कि गुफा के मुख पर अत्यंत विस्तृत काष्ठ कार्य किया गया था। (ऐसा फर्श व छत में मिले छिद्रों द्वारा साबित होता है।) इसी प्रांगण में एक अन्य गुफा है जिसमें दो स्मृति स्तूप, तथा लाल, काला तथा सफेद रंग को बनाए रखने हेतु चित्रित लेप के निशान मिले हैं।
गुफाओं के मुख्य समूह से लगभग 250 मी. दूर दक्षिणी दिशा में पांच विहारों का एक अन्य समूह है जिन्हें स्थानीय रूप से ‘चमर लेनश् कहा जाता है। इन गुफाओं का अग्रभाग क्षतिग्रस्त हो गया है, ऐसा पाषाण की बनी गुफामुख के गिरने के कारण हुआ है।
कड़ा (25°42‘ उत्तर, 81°2‘ पूर्व)
कड़ा को आधुनिक इलाहाबाद के रूप में माना गया है। यह अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य का एक हिस्सा था तथा दिल्ली सल्तनत का शासक बनने से पूर्व अलाउद्दीन खिलजी यहां का राज्यपाल रह चुका था। कड़ा से ही अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरी के राजा रामचंद्र देव पर आक्रमण किया था तथा उसे परास्त किया था। इस अभियान में अलाउद्दीन खिलजी को अपार दौलत मिली थी, जो बाद में उसके शासक बनने में सहायक सिद्ध हुई। खिलजी वंश के प्रथम शासक जलालुद्दीन खिलजी, जो अलाउद्दीन खिलजी का श्वसुर भी था को कड़ा में ही अलाउद्दीन खिलजी ने षड्यंत्रपूर्वक मार डाला था तथा इसके बाद वह सल्तनत का शासक बन बैठा था।
मुगल काल में कड़ा साम्राज्य का एक हिस्सा बन गया। जहांगीर ने कड़ा में ही अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया था तथा अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी थी। जहांगीर के पुत्र खुसरो को कड़ा में ही दफनाया गया था। इस प्रकार मध्यकालीन समय में कड़ा एक प्रसिद्ध स्थान था।
कारगिल (34°33‘ उत्तर, 76°08‘ पूर्व)
कारगिल जम्मू एवं कश्मीर राज्य में स्थित है। यह सुरू घाटी संफु तथा टैंगोल गांव का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। यहां से एक प्राचीन शिव मंदिर की प्राप्ति से यह सूचना मिलती है कि यह संभवतः कश्मीर में शैववाद का एक प्रमुख केंद्र था। इसे कश्मीर में ‘कश्मीर शैववाद‘ या ‘त्रिक शैववाद‘ के नाम से जाना जाता था।
रंगदम में बौद्ध बस्तियों एवं मलबेक तथा फेकर में शैल गुफाओं की प्राप्ति से यह सिद्ध होता है कि यह स्थान बौद्ध धर्म का भी एक प्रमुख केंद्र था।
वर्ष 1999 में, पाकिस्तान द्वारा यहां अनधिकृत रूप से घुसपैठ करने का प्रयास किया गया था। इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने ‘आपरेशन विजय‘ नामक अभियान चलाया तथा पाकिस्तानी प्रयास को विफल कर दिया।
कार्ल (18.78° उत्तर, 73.47° पूर्व)
कार्ले बाणघाट पहाड़ियों में मुम्बई के समीप महाराष्ट्र में स्थित है। यह स्थान बौद्ध गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां से खोजी गई गुफाएं काफी लंबी एवं सुरक्षित हैं। ये गुफाएं गुहा स्थापत्य की सुंदर शैली का नमूना हैं। ये गुफाएं पूर्व के वास्तुकला परंपरा में क्रमिक विकास दर्शाती हैं, जो कि अग्रभाग में लकड़ी की परंपरागत सजावट से क्रमिक मुक्ति तथा बेहतर अलंकरण है।
कार्ले का चैत्य पश्चिमी भारत के सभी चैत्यों में सबसे लंबा एवं सबसे सुंदर है। गुफा के प्रवेश द्वार पर एक विशाल स्तंभ बना हुआ है, जिसके ऊपर चार सिंह विराजमान हैं। मण्डल में प्रवेश हेत तीन प्रवेश द्वार हैं। द्वारों के सामने के भाग में स्त्रियों एवं पुरुषों की सुंदर आकृतियां बनी हुई हैं। अष्टकोणीय स्तंभों की दो पंक्तियां घड़े के आकार के आधार के साथ आंतरिक स्थल को तीन भागों में विभक्त करती हैं तथा एक चैड़ा गलियारा बनाती हैं, जो भक्तों को स्तूप की परिक्रमा करने का स्थान प्रदान करता है। चैत्य गृह के स्तंभों पर सुंदर नक्काशी भी देखने को मिलती है। इसकी सुंदर नक्काशी एवं मध्य परिमाण बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेता है। आश्चर्यजनक रूप से नश्वर अवशेष तभी से अस्तित्व में हैं, जब से यह हॉल उपयोग में लाया जाता था। सागौन की लकड़ी की मेहराब गुंबदाकार छत पर लगी हुई यह दर्शाती हैं कि पत्थर पर नक्काशी कर उसे लकड़ी की संरचना के नमूने के समरूप बनाया गया है। स्तूप के ऊपर नक्काशी किए हुए लकड़ी के छाते के अवशेष हैं।
कार्ले मढ़ों का महत्व इस तथ्य में है कि ये गुफा को काट कर बहुमंजिली विहार बनाया गया है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…