JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: sociology

कार्ल मार्क्स की विचार पद्धति क्या है karl marx thoughts methodology in hindi  सामाजिक संघर्ष और परिवर्तन

( karl marx thoughts methodology in hindi) कार्ल मार्क्स की विचार पद्धति क्या है सामाजिक संघर्ष और परिवर्तन बताइये ?

कार्ल मार्क्स की विचार पद्धति
कार्ल मार्क्स ने अपने समकालीन सामाजिक विज्ञान में एक नयी विचार पद्धति और अनेक नयी परिकल्पनाओं और अवधारणाओं का समावेश किया जिनका इतिहास, राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र पर गहरा प्रभाव पड़ा। समाज के प्रति अपने दृष्टिकोण और उसके अध्ययन की पद्धति को मार्क्स अपने पूर्ववर्ती सामाजिक चिंतकों की अपेक्षा अधिक सुस्पष्ट और प्रत्यक्षवादी स्वरूप देता है। सबसे पहले आइए हम मार्क्स की विचार पद्धति (उमजीवकवसवहल) के प्रकाश में उसके इतिहास के भौतिकवादी विश्लेषण पर एक नजर डालें।

इतिहास का भौतिकवादी विश्लेषण
आजीविका के लिए मनुष्य प्रकृति से जीवन-साधन प्राप्त करता है। मार्क्स के अनुसार यही इतिहास की प्रेरक शक्ति है। भौतिक साधनों का उत्पादन ही इतिहास का पहला कदम है। प्रारंभिक आवश्यकताओं की पूर्ति से मनुष्य संतुष्ट नहीं होते। नई जरुरतें जन्म लेती हैं जिनकी पूर्ति के लिये मनुष्य को एक दूसरे से सामाजिक संबंध बनाने पड़ते है। भौतिक जीवन के विकास के साथ-साथ सामाजिक संबंध भी पेचीदा होते जाते हैं। समाज में श्रम का विभाजन होता है और सामाजिक वर्गों का निर्माण होता है। मार्क्स के अनुसार सामाजिक वर्गों का आधार है उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व। परिणामस्वरूप, समाज दो वर्गों में बंट जाता है – पहला वर्ग उत्पादन के साधनों का स्वामी होता है (मालिक वर्ग) और दूसरा वर्ग स्वामित्व से वंचित है (श्रमिक वर्ग)।

आपने पहले पढ़ा है कि मार्क्स समाज की आर्थिक या भौतिक नींव पर जोर देता है। यही समाज का मूल आधार है जो अन्य सामाजिक पक्षों को ढाल कर विशिष्ट स्वरूप प्रदान करता है। संपूर्ण सांस्कृतिक “अधिसंरचनाष् (ेनचमतेजतनबजनतम) उत्पादन की विशिष्ट प्रणाली और उससे जुड़े अन्य सामाजिक संबंधों पर स्थित है। न्याय, राजनीति, सांस्कृतिक संरचना इत्यादि को उनके आर्थिक आधार से अलग किया जा सकता है। इस प्रकार, मार्क्स समाज को एक संपूर्ण इकाई के रूप में देखता है।

वह समाज के विभिन्न समूहों, संस्थाओं, मान्यताओं और विचारधाराओं के बीच अंतर्सबंध को खोजता है। समाज को व्यवस्था के रूप में देखना और उसके विभिन्न घटकों या अंगों के परस्पर संबंधों को देखना मार्क्स की विचार पद्धति की पहचान है।

इसके बावजूद मार्क्स मानता है कि आर्थिक या भौतिक नींव (आधार) ही मूलतः समाज की अधिसंरचना को विशिष्ट स्वरूप प्रदान करने में निर्णायक होती है। इतिहास के इस भौतिकवादी विश्लेषण को दशति हुए मार्क्स इतिहास को निश्चित काल खंडों में विभाजित करता है। प्रत्येक काल खंड की विशिष्ट उत्पादन प्रणाली होती है जिसके फलस्वरूप विशिष्ट प्रकार के सामाजिक संबंध और वर्ग-संघर्ष निर्मित होते हैं।

खंड 2 में आपने मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवादी विश्लेषण के बारे में पढ़ा। मार्क्स को “सापेक्षवादी इतिहासकार‘‘ कहा जाता है क्योंकि वह सामाजिक संबंधों और विचारों को उनके विशिष्ट परिवेश में देखता है। हालांकि वह मानता है कि हर ऐतिहासिक काल में वर्ग संघर्ष पाया जाता है, फिर भी इन संघर्षों के स्वरूप और उनमें भाग लेने वाले व्यक्ति भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिये प्राचीन युग के दास, सांमती कृषिदास और आधुनिक औद्योगिक मजदूर समान नहीं हैं।

संक्षेप में, मार्क्स मानता है कि आर्थिक या भौतिक आधार ही अंततः समाज के अन्य अगों का स्वरूप तय करने में निर्णायक होता है। मार्क्स समाज को एक संपूर्ण इकाई मान कर उसके विभिन्न अंगों के अंतर्सबंधों का अध्ययन करता है, साथ ही वह इतिहास के काल खंडों की विशिष्टताओं को भी ध्यान में रखता है। उसके अनुसार मानव समाज के इतिहास को वर्ग संघर्षों के संदर्भ में देखना चाहिए। लेकिन वह मानता है कि हर ऐतिहासिक युग और वर्ग संघर्ष की अपनी-अपनी विशेषताएँ होती हैं।

मार्क्स की विचार पद्धति का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है सामाजिक संघर्ष और सामाजिक परिवर्तन । आइए, इस पर चर्चा करें।

 सामाजिक संघर्ष और परिवर्तन
खंड 1 में आपने पढ़ा है कि किस तरह प्रारंभिक समाजशास्त्र उद्विकास की अवधारणा से प्रभावित था। ऑगस्ट कॉस्ट और हर्बर्ट और स्पेंसर जैसे चिंतक सामाजिक परिवर्तन को उद्विकास की क्रिया मानते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रारंभिक समाजशास्त्रियों ने परिवर्तन को शान्तिमय वृद्धि और क्रमिक विकास की दृष्टि से देखा है। सामाजिक संतुलन उनका मूल मंत्र है। इसलिए उन्होंने संघर्ष या तनाव को हानिकारक और व्याधिकीय अथवा रोगात्मक माना है।

इन विचारों के परिवेश को ध्यान में रखते हुए हमें मार्क्स के विचारों के महत्व का एहसास होगा। मार्क्स यह मानता है कि समाज मूलतः परिवर्तनशील है। परिवर्तन अंदरूनी अंतर्विरोधों और संघर्षों का फल है। इतिहास के प्रत्येक युग में अंतर्विरोध और तनाव होते है। समय बीतते-बीतते ये तनाव इतने तीव्र हो जाते हैं कि रूढ़ सामाजिक व्यवस्था टूट जाती है और एक नयी व्यवस्था का जन्म होता है। दूसरे शब्दों में हर युग का सर्वनाश उसके अपने अंदरूनी तनावों का परिणाम है। नया युग पुराने तनाव भरे युग की कोख से जन्म लेता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मार्क्स संघर्ष को रोगात्मक नहीं, बल्कि एक रचनात्मक शक्ति मानता है। उसके अनुसार संघर्ष ही विकास का बीज है।

संघर्ष की यह परिकल्पना उसकी विशिष्ट विचार पद्धति में झलकती है जिससे वह न केवल सिर्फ अतीत और वर्तमान का अध्ययन करता है, बल्कि साथ-साथ भविष्य की प्रत्याशा भी करता है। मार्क्सवादी चिंतन का यह एक समस्यामूलक पक्ष है, जहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या समाज का तटस्थ अध्ययन और राजनैतिक प्रतिबद्धता परस्पर विरोधी हैं? आइए, पहले सोचिए और करिये 1 को पूरा करें तथा फिर इस प्रश्न पर चर्चा करें।

सोचिए और करिए 1
दैनिक समाचार पत्र ध्यान से पढ़कर किसी एक राष्ट्रीय या अतंराष्ट्रीय संघर्ष का चयन कीजिये। मार्क्स की विचार पद्धति का उपयोग कर इस संघर्ष का अध्ययन करने का प्रयास कीजिए। एक पृष्ठ का विवरण लिखिए और यदि संभव हो तो अपने विवरण की अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों द्वारा लिखे विवरणों से तुलना कीजिए।

 “प्रैक्सिस” (praxis ) की अवधारणा
सामाजिक सिद्धांतों और राजनैतिक प्रतिबद्धता के परस्पर संबंध या विरोध के बारे में समाजशास्त्र के उद्गम से लेकर आज तक विवाद होता रहा है। मार्क्स उस पक्ष का प्रतिनिधि है जो मानता है कि सामाजिक सिद्धांत और राजनैतिक विचारधारा एक-दूसरे के पूरक हैं। पूँजीवादी समाज के बारे में मार्क्स अपने मत स्पष्ट करता है। उसके अनुसार पूँजीवादी समाज एक अमानवीय, अत्याचारी व्यवस्था है। उसका पूर्वानुमान यह है कि पूँजीवादी व्यवस्था अपने अंदरूनी संघर्षों और तनावों के कारण नष्ट होगी और उसकी जगह एक नई साम्यवादी व्यवस्था जन्म लेगी। सामाजिक विरोध और वर्गीकरण की समाप्ति होगी। मार्क्स “प्रैक्सिसष् या आचरण पर जोर देता है जिसमें न सिर्फ समाज का अध्ययन शामिल है, बल्कि समाज को बदलने का कार्यक्रम भी। “प्रैक्सिस‘‘ की अवधारणा के बारे में कोष्ठक 18.1 में कुछ विस्तार से जानकारी दी गई है। इसे आप पढ़ें और इस अवधारणा को स्पष्ट रूप से समझें।

कोष्ठक 18.1ः प्रैक्सिस की अवधारणा
प्रैक्सिस शब्द मूलतः यूनानी है। इसका अर्थ है हर प्रकार की क्रिया या हर तरह का कार्य। लैटिन भाषा के माध्यम से इस शब्द का समावेश आधुनिक यूरोपीय भाषाओं में हुआ। अरस्तु नामक प्रख्यात यूनानी दार्शनिक ने इस शब्द के अर्थ को नपे-तुले ढंग से स्पष्ट किया और मनुष्य के कार्य तक ही सीमित किया। उसने इसकी तुलना सिद्धांत (थ्योरेटिका) से की।

मध्यकालीन यूरोपीय दर्शन में इस शब्द का प्रयोग सिद्धांतों को आचरण या व्यवहार में लाने के संबंध में किया गया है। उदाहरण के तौर पर सैद्धांतिक ज्यामिति (थ्योरेटिका) और व्यावहारिक या प्रायोगिक ज्यामिति (‘‘प्रैक्सिस‘‘)। मध्यकालीन यूरोपीय विद्वान फ्रांसिस बेकन का यह मानना था कि सच्चा ज्ञान वही है जो आचरित होता है, जिसे “प्रैक्सिस‘‘ में लाया जाता है। लॉक ने इसके नैतिक पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित किया। उसके अनुसार प्रैक्सिस वह क्रिया है जिससे सभी व्यक्तियों के लिए अपनी शक्ति और कर्म का उपयोग कर अच्छी और उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त करना संभव होता है। इमानुएल कंत (ज्ञंदज) ने क्रिटीक ऑफ प्योर रीजन नामक अपनी कृति में दर्शन के सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप स्पष्ट किये। सिद्धांत हमें बताते हैं कि वस्तु स्थिति क्या है जब कि व्यवहार बतलाता है कि क्या होना चाहिए। कंत ने व्यावहारिक दर्शन को अधिक महत्व दिया। हीगल भी सिद्धांत और आचरण/व्यवहार के इस वर्गीकरण से सहमत था और आचरण को अधिक महत्व देता था। जब सिद्धांत और आचरण एक होते हैं तब तीसरे और उच्च स्तर की उत्पत्ति होती है। हीगल की दार्शनिक प्रणाली के तीन भाग हैं-तर्क, प्राकृतिक दर्शन और आत्मा का दर्शन । प्रत्येक भाग में सिद्धांत और व्यवहार/आचरण के द्वंद्व से एक नया, उच्च संश्लेषण प्रकट होता है। हीगल के विचार में “प्रैक्सिस‘‘ परम सत्य का क्षण है। मार्क्स की विचारधारा का केन्द्र बिन्दु ‘‘प्रैक्सिस‘‘ ही है। वह मानता है कि दर्शन को क्रांतिकारी कार्यों द्वारा आचरित कर दुनिया को बदला जा सकता है। मार्क्स के विचार में प्रैक्सिस स्वतंत्र सचेतन क्रिया है जिसके द्वारा अलगाव (ंसपमदंजपवद) को मिटाया जा सकता है। दूसरे शब्दों में प्रैक्सिस द्वारा अलगावादी श्रम को रचनात्मक स्वतंत्र कार्य में परिवर्तित किया जा सकता हैं।

मार्क्स की विचार पद्धति के इस विवेचन के बाद आइए हम दर्खाइम की समाजशास्त्रीय पद्धति के बारे में पढ़ें। जैसा कि आपको ज्ञात है कि दर्खाइम ने अपने जीवन काल में समाजशास्त्र को एक नये विषय के रूप में विकसित कर उसे एक सम्माननीय दर्जा दिया। कॉलिन्स (1985ः 1123) के अनुसार दर्खाइम ने समाजशास्त्र को एक विशिष्ट विज्ञान का स्वरूप दिया जिसके अपने नियम और सिद्धांत थे।

बोध प्रश्न 1
निम्नलिखित प्रश्नों में हर प्रश्न का उत्तर तीन वाक्यों में लिखिए।
प) “शोध तकनीक‘‘ और ‘‘विचार पद्धति‘‘ में क्या अंतर है?
पप) मार्क्स ने समाज का अध्ययन एक संपूर्ण इकाई के रूप में किस तरह किया है?
पपप) “मार्क्स सापेक्षवादी इतिहासकार है।” इसकी व्याख्या कीजिए।
पअ) निम्नलिखित वाक्यों को रिक्त स्थानों की पूर्ति द्वारा पूरा कीजिए।
क) मार्क्स के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारण ………………….. है।
ख) मार्क्स के अनुसार “प्रैक्सिसश् का अर्थ ……………… का मेल है।

बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 1
प) विचार पद्धति शोध तकनीकों का समन्वयन है जिससे किसी विषय का अध्ययन किया जा सकता है। शोध तकनीक वे साधन हैं जो कि विचार पद्धति के अंग हैं।
पप) मार्क्स समाज के विभिन्न समूहों, संस्थाओं, मान्यताओं और विचारधाराओं के बीच अंतर्संबंध, खोजता है। समाज को व्यवस्था मानकर और उसके विभिन्न अंगों के परस्पर संबंधों को देखकर मार्क्स ने समाज का अध्ययन सम्पूर्ण इकाई के रूप में किया।
पपप) मार्क्स सामाजिक संबंधों और विचारों को विशिष्ट ऐतिहासिक परिवेश में देखता है। उदाहरण के तौर पर मार्क्स के अनुसार वर्ग-संघर्ष हर ऐतिहासिक युग में पाया जाता है। फिर भी वह इस बात पर जोर देता है कि इस वर्ग संघर्ष का स्वरूप बदलता रहता है। इसीलिए मार्क्स “सापेक्षवादी इतिहासकार‘‘ कहलाया जाता है।
पअ) क) संघर्ष और अंतर्विरोध
ख) सामाजिक सिद्धांत और राजनैतिक प्रतिबद्धता

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

2 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

4 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

6 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

6 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

6 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now