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कांगड़ा चित्रकला शैली क्या है | kangra painting in hindi कांगड़ा चित्रकला शैली किस राज्य से संबंधित है इस राज्य संबंध है
kangra painting in hindi कांगड़ा चित्रकला शैली क्या है , कांगड़ा चित्रकला शैली किस राज्य से संबंधित है इस राज्य संबंध है ?
प्रश्न: पहाड़ी चित्रकला की क्षेत्रीय शैली के रूप में ’कांगड़ा चित्रकला शैली’ की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: गुलेर शैली के पश्चात् ’कांगड़ा शैली’ नामक एक चित्रकला की एक अन्य शैली का उद्गम अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम चतुर्थांश में हुआ जो पहाड़ी चित्रकला के तृतीय चरण का प्रतिनिधित्व करती है। कांगड़ा शैली का विकास गुलेर शैली से हुआ। इसमें गुलेर शैली के आरेखण में कोमलता और प्रकृतिवाद की गुणवत्ता जैसी प्रमुख विशेषताएं निहित हैं। चित्रकला के इस समूह को कांगड़ा शैली का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि ये कांगड़ा के राजा संसार चन्द की प्रतिकृति की शैली के समान है। इन चित्रकलाओं में, पार्शिवका में महिलाओं के चेहरों पर नाक लगभग माथे की सीध में हैं, नेत्र लम्बे तथा तिरछे हैं और ठुड्डी नुकीली है, तथापि आकृतियों का कोई प्रतिरूपण नही है और बालों को एक सपाट समूह माना गया है। कांगड़ा शैली कांगड़ा, गुलेर, बसौली, चम्बा, जम्मू, नूरपुर, गढ़वाल, आदि विभिन्न स्थानों पर उन्नति करती रही। कागड़ा शैली की चित्रकलाओं का श्रेय मख्य रूप से नैनसुख परिवार को जाता है। कुछ पहाड़ी चित्रकारों को पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह और उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में सिख अभिजात वर्ग का संरक्षण मिला था तथा कांगड़ा शैली के आशोधित रूप में प्रतिकृतियों और अन्य लघु चित्रकलाओं का निष्पादन किया था जो उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक जारी रहा।
प्रश्न: पहाड़ी चित्रकला की लोक शैली के रूप में ’कुल्लू-मण्डीय चित्रकला’ की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: पहाड़ी क्षेत्र में प्रकृतिवादी कांगड़ा शैली के साथ-साथ, कुल्ल-मण्डी क्षेत्र में चित्रकला की एक लोक शैली ने भी उन्नति की तथा इसे मुख्य रूप से स्थानीय परम्परा से प्रेरणा मिली। इस शैली की विशेषता मजबूत एवं प्रभावशाली आरेखण और गाढे़ तथा हल्के रंगों का प्रयोग करना हैं। हालांकि कुछ मामलों में कांगड़ा शैली के प्रभाव को देखा जाता है, फिर भी इस शैली ने अपनी विशिष्ट शास्त्रीय विशेषता को बनाए रखा है। कुल्लू और मण्डी के शासकों की बड़ी संख्या में प्रतिकृतिया और अन्य विषयों पर लघु चित्र इस शैली में उपलब्ध हैं।
राष्ट्रीय संग्रहालय के संग्रह में भागवत की श्रृंखला से एक लघु चित्र को 1794 ईसवी में श्री भगवान ने चित्रित किया था। इन सचित्र उदाहरणों में कृष्ण को अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाए हुए दिखाया गया है, ताकि गोकुलवासियों को इन्द्र के क्रोध से बचाया जा सके क्योंकि वे मूसलाधार वर्षा कर रहे हैं। काले बादलों और सफेद बिन्दु रेखाओं के रूप में वर्षा को पृष्ठभूमि में दिखाया गया है, आकृतियों का आरेखण ठोस रूप में है। चित्र में किनारे पीले पुष्पों के द्वारा चित्रित है।
कुल्लू चित्रकला के अन्य उदाहरण में दो युवतियां पतंग उड़ा रही हैं। यह लघु चित्र अठारहवीं शताब्दी की लोक शैली में है और ठोस व मजबूत आरेखण तथा हल्की वर्ण योजना इसकी विशेषताएं हैं। पृष्ठभूमि हल्की नीले रंग की है। युवतियों ने प्ररूपी परिधान और आभूषण पहने हुए हैं जो उस अवधि में कुल्लू क्षेत्र में प्रचलित थे। दो उड़ते हुए तोते आकाश को प्रतीकात्मक रूप में दर्शाते हैं। इस लघु चित्रकला का संबंध राष्ट्रीय संग्रहालय के संग्रह से है।
प्रश्न: चम्बा की लघु चित्रकला पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: चम्बा की घाटी को ’कला की घाटी’ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चम्बा हिमाचल प्रदेश के अंतर्गत आता है। ’राजा पृथ्वीसिंह’ (1641-64 ई.) के समय से लेकर 19वीं शताब्दी तक चम्बा कला का मुख्य केन्द्र बना रहा। इनके पश्चात ’छतरसिंह’ (1664-1690 ई.) चम्बा की गद्दी पर आये। इनके समय के एक-एक चित्र प्राप्त हैं, जो चम्बा के प्राचीन चित्रों में गिने जाते हैं।
चम्बा कलम का उदय सत्रहवीं शताब्दी के मध्य माना गया है। चम्बा शैली पर बसोहली और गुलेर का प्रभाव देखा जा सकता है। चम्बा चित्र शैली में दो प्रकार के चित्र विशेषतया नजर आते हैं, जिन्हें ’भूरसिंह संग्रहालय’ में देखा जा सकता है। पौराणिक विषयों में ’अनिरुद्ध और उषा’, ’कृष्ण और रुक्मिणी’ तथा ’सुदामा और कृष्ण’। उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त ऋतु विषयक छः चित्रों के सैट, बाल्मीकि रचित रामायण के छः काण्डों की लम्बी चित्र श्रृंखला चित्रित हुई है। रूप चित्रों में चम्बा के राजाओं, जिनमें राजा ’पृथ्वीसिंह’, राजा ’छतरसिंह’, राजा ’उम्मेदसिंह’, राजा ’राजसिंह’, राजा ’जीतसिंह’ राजा ’चड़तसिंह’ और पड़ोसी राज्यों के शासकों के भी चित्र हैं। चम्बा चित्र शैली के संदर्भ में हम जिन चित्रकारों के नाम से परिचित होते हैं, उनमें ’लैहरू’ और ’निक्का’ है। रंगमहल के अलावा चम्बा में जिन अन्य भवनों में भित्तिचित्रों का निर्माण हुआ, उनमें ’अखण्ड चण्डी महल’, ’लक्ष्मीनारायण मंदिर’ व ’दुर्गा’ और ’मंगलू’ नामक चित्रकारों के निजी मकान थे।
चम्बा के चित्रों के विषय प्रायः कृष्णलीला, प्रेमसागर, रामायण, महाभारत, दुर्गापाठ रहे हैं। अन्य पहाड़ी चित्रों के समान यहां भी रीतिकालीन विषयों से लेकर रंगमहल की दीवारों पर प्रेम की ऐसी कहानी लिख दी गई।
चम्बा शैली के चित्रों में बारीक और कोमल रेखाओं का प्रयोग है। चम्बा शैली के चित्रों में बसोहली की तलना में रंग अधिक संगत और शीतल हैं। चम्बा के चित्रों में स्त्री-पुरुष का सौंदर्य अनुपम है। मानवाकृतियां लम्बी और हृष्ट-पुष्ट बनाई गई हैं। इसी कारण चम्बा शैली की आकृतियां अन्य शैली की आकृतियों से पृथक् दिखाई देती है।
प्रश्न: चित्रकला की गढ़वाल शैली पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: पहाड़ी चित्रकला अपने विकास में जिन तीन मुख्य शाखाओं में वितरित हो पनपी, उनमें ’गढ़वाल’ के नाम से एक शाखा अभिहित हई। गढवाल के चित्रकार ’माणकू’ और ’चैत्तूशाह’ इन दोनों चित्रकारों के बनाये चित्र आज भी टिहरी के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
चित्रकार ’माणकू’ द्वारा बनाये चित्रों में ’कृष्ण-राधा’ शीर्षक है। उसने ’बिहारी-सतसई’ और ’गीत-गोविन्द’ के सुन्दर दृष्टान्त चित्र उतारे थे। चित्रकार ’चैत्तूशाह’ ने ’कृष्ण लीला संबंधी’ एवं श्रृंगार विषयक चित्रों का निर्माण किया।
गढ़वाल शैली के आरम्भ का सम्पूर्ण श्रेय गढ़वाल के प्रसिद्ध चित्रकार, साहित्यकार और इतिहासकार ’मोलाराम’ को दिन जाता है।
’आँख मिचैनी’ रेखाचित्र ’श्रीनगर गढ़वाल’ में सुरक्षित है। दूसरा रेखाचित्र अहमदाबाद के सुप्रसिद्ध कलाप्रेमी विद्वान ’कस्तूरभाई-लालभई’ के संग्रह में है। अन्य प्रसिद्ध चित्रों के शीर्षक हैं- ’वासकसज्जा नायिक’, ’अभिसारिका नायिका’, ’उत्कष्ठिता नायिका’, ’उत्कानायिका’, ’मोरप्रिया’, ’महादेव-पार्वती’, ’राधा कृष्ण’, ’राधा-मिलन’, ’मस्तानी’ इत्यादि।
प्रश्न: जम्मू शैली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: जम्मू गुलेर राज्य से सौ मील दूर उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित है। ’इंडियन पेंटिंग इन दी पंजाब हिल्स’ नामक पुस्तक में ’डब्ल्यू.जी. आर्चर’ ने 4 चित्र प्रकाशित किये हैं। ये चित्र राजा ध्रुरुवदेव के चैथे पुत्र ’राजा बलवन्तदेव’ से संबंधित हैं। गुलेर के समान इस शैली में सन् 1750 ई. में अनेक रोमानी और श्रृांगारिक विषयों के चित्रण का भी प्रचलन हुआ, जिस मुख्य रूप से राधाकृष्ण, विरहणी मृग, स्त्री गाना-बजाना सुनते हुये आदि।
प्रश्न: कश्मीर शैली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: 16वीं शताब्दी के प्रसिद्ध तिब्बती इतिहासकार ’लामा तारानाथ’ ने लिखा है कि ’हंसराज’ (हंसुराज) नामक कलाकार ने कश्मीर में मूर्तिकला और चित्रकला के क्षेत्र में सर्वथा नये युग का सूत्रपात किया था। कश्मीर शैली में बने अनेक स्फुट चित्र 16वीं व 17वीं शताब्दी के हैं, जिनके विषय रामायण, कृष्ण-लीला, दशावतार से संबद्ध हैं। अन्य चित्रों में ’केशवदास’ की ’रसिकप्रिया’ है। अन्य चित्र श्रृंखला ’रागमाला’ की है, जिसमें 18 चित्र हैं और वे ऑक्सफोर्ड की बोडलियन लाइब्रेरी में संगृहीत हैं।
प्रश्न: सिक्ख चित्रशैली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: 18वीं शताब्दी में पंजाब तथा कुछ पहाड़ी राज्यों में कांगड़ा शैली की जो समरूपता थी, उसे ’सिक्ख शैली’ के नाम से पुकारा गया। भारतीय लघु चित्रकला में सिक्ख कलम का महत्व अन्यतम है। ’महाराजा रणजीतसिंह’ इस शैली के मुख्य संरक्षक रहे और उन्होंने ही इस शैली की एक स्वतंत्र चित्र शैली के रूप में स्थापना की। इस समय कलाकारों ने महाराजा रणजीत सिंह, सिक्ख सरदारों एवं अन्य सम्माननीय लोगों, जिनमें ’गुरुनानक’, सिक्खों के ’दस धर्मगुरुओं’ एवं दसवें गुरु ’गोविन्दसिंह’ के चित्रों को बहुतायत से चित्रित किया। इस समय कलाकार ’निक्का’, उनका पुत्र ’नैनसुख’, ’गोकुल’, ’छाजू’, ’हरखु’ और ’दामोदर’ आदि कार्यरत थे। सिक्ख लघु चित्र शैली (पड़ोसी राज्यों) अमृतसर, लाहौर, ऊना, आनन्दपुर, कपूरथला, पटियाला इत्यादि में भी पल्लवित एवं विकसित हुई।
प्रश्न: ओडिसा की ’लघु चित्रकला शैली’ पर प्रकार डालिए।
उत्तर: ओडिशा में लघु चित्रकला के प्रारम्भिक जीवित उदाहरणों का सत्रहवीं शताब्दी ईसवी से संबंध प्रतीत होता है। इस समय की चित्रकलाओं के कुछ अच्छे उदाहरण हैं- आशुतोष संग्रहालय में एक राजदरबार का दृश्य और गीत गोविन्द की पाण्डुलिपि के सचित्र उदाहरण के चार पत्रक और राष्ट्रीय संग्रहालय में रामायण की ताड़-पत्ते पर एक सचित्र पाण्डुलिपि और राष्ट्रीय संग्रहालय में गीत गोविन्द की कागज पर एक पाण्डुलिपि, ओडिशी चित्रकला के अठारहवीं शताब्दी के उदाहरण हैं। ओडिशा में ताड़ के पत्ते का प्रयोग उन्नीसवीं शताब्दी तक होता रहा था। बहिरेखा के आरेखण को ताड़ के पत्ते पर एक सुई से चित्रित किया गया और फिर चित्र पर काठ कोयला या स्याही को रगड़ कर चित्र को उभारा गया। अभिकल्पों को भरने के लिए कुछ रंगों का प्रयोग किया गया था तथापि कागज पर चित्रकला करने की यह तकनीक भिन्न थी पर चित्रकला के अन्य विद्यालयों द्वारा प्रयुक्त तकनीक के समान थी। प्रारम्भिक पाण्डुलिपियां आरेखण में स्वच्छता को दर्शाती हैं। बाद में अठारहवीं शताब्दी में यह रेखा मोटी और कच्ची हो जाती है लेकिन शैली सामान्य रूप से अति सजावटी तथा अलंकारी हो जाती है।
राष्ट्रीय संग्रहालय के संग्रह में लगभग 1800 ईसवी की गीत गोविन्द की एक श्रृंखला में एक सचित्र उदाहरण राधा और कृष्ण को चित्रित करता है। वे एक लाल पृष्ठभूमि में एक कमजोर वृक्ष की इकहरी शाखाओं के नीचे आमने-सामने खड़े हैं। शैली अति अलंकृत है और सुदृढ़ आरेखण, वृक्ष का रूढ़ अंकन, आकृतियों का भारी अलंकरण और खूबसूरत चमकीली रंग योजनाओं का प्रयोग करना इसकी विशेषताएं हैं। संस्कृत लेख सबसे ऊपर है।
प्रश्न: लघु चित्रकला की पहाड़ी शैली
उत्तर: पहाड़ी क्षेत्र में वर्तमान हिमाचल प्रदेश, पंजाब के कुछ निकटवर्ती क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर राज्य में जम्मू क्षेत्र और उन प्रदेश में गढ़वाल शामिल हैं। इस समूचे क्षेत्र को छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित किया गया था तथा राजपूत राजकुमारों का इन पर शासन था जो प्रायः कल्याणकारी कार्यों में व्यस्त रहते थे। सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के लगभग मध्य तक ये राज्य महान कलात्मक क्रियाकलापों के केन्द्र थे।
प्रश्न: पहाड़ी चित्रकला की क्षेत्रीय शैली के रूप में ’बसौली चित्रकला’ का वर्णन कीजिए।
उत्तर: पहाड़ी क्षेत्र में चित्रकला का प्रारम्भिक केन्द्र बसौली था जहां राजा कृपाल पाल के संरक्षणाधीन एक कलाकार जिसे देवीदास नाम दिया गया था, 1694 ईसवी सन् में रसमंजरी चित्रों के रूप में लघु चित्रकला का निष्पादन किया था। चित्रकला की बसौली शैली की विशेषता प्रभावशाली तथा सुस्पष्ट रेखा और प्रभावशाली चमकीले वर्ण हैं। बसौली शैली विभिन्न पड़ोसी राज्यों तक फैली और अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक जारी रही। 1730 ईसवी में कलाकार मनकू द्वारा चित्रित की गई गीतगोविन्द की एक श्रृंखला का एक सचित्र उदाहरण बसौली शैली के आगे के विकास को दर्शाता है। यह चित्रकला राष्ट्रीय संग्रहालय के संग्रह में उपलब्ध है और एक नदी के किनारे पर एक उपवन में कृष्ण को गोपियों के साथ चित्रित करती है। मुखाकृति शैली में एक परिवर्तन आया है जो कुछ भारी हो गया है। साथ ही वृक्षों के रूपों में भी परिवर्तन आया है जिसमें कुछ-कुछ प्राकृतिक विशेषता को अपना लिया है। ऐसा मुगल चित्रकला के प्रभाव के कारण हो सकता है। बसौली शैली के प्रभावशाली तथा विषम वर्गों के प्रयोग, एकवर्णीय पृष्ठभूमि, बड़ी-बड़ी आंखें, मोटा व ठोस आरेखण, आभूषणों में हीरों को दिखाने के लिए बाहर निकले हुए पंखों के प्रयोग, तंग आकाश और लाल किनारा जैसी सामान्य विशेषताएं इस लघु चित्रकला में भी देखी जा सकती हैं।
प्रश्न: पहाड़ी चित्रकला की क्षेत्रीय शैली के रूप में ’गुलेर चित्रकला’ का वर्णन कीजिए।
उत्तर: बसौली शैली के अन्तिम चरण के पश्चात चित्रकलाओं के जम्मू समूह का उद्भव हुआ जिसमें मूल रूप से गुलेर से संबंध रखने वाले और जसरोटा में बस जाने वाले एक कलाकार नैनसुख द्वारा जसरोटा (जम्मू के निकट एक छोटा स्थान) के राजा बलवन्त सिंह की प्रतिकृतियां शामिल हैं। ये चित्र नई प्राकृतिक तथा कोमल शैली में हैं जो बसौली कला की प्रारम्भिक परम्पराओं में एक परिवर्तन का द्योतक है। प्रयुक्त वर्ण कोमल तथा शीतल हैं। ऐसा प्रतीत होता कि यह शैली मोहम्मद शाह के समय की मुगल चित्रकला की प्राकृतिक शैली से प्रभावित हुई है।
गुलेर में लगभग 1750 ईसवी में जसरोट के बलवन्त सिंह की प्रतिकृति से घनिष्ठ संबंध रखने वाली एक शैली में गुलेर के राजा गोवर्धन चन्द की अनेक प्रतिकृतियों का निष्पादन किया गया था। इन्हें कोमलता से बनाया गया है और ये चमकीली तथा भड़कीली रंगपट्टी से युक्त है।
पहाड़ी क्षेत्र में सृजित लघु चित्रकलाओं का सर्वोत्तम समूह भागवत की सुप्रसिद्ध श्रृंखला, गीत गोविन्द, बिहारी सतसई, बारहमासा और 1760-70 ईसवी में चित्रित की गई रंगमाला का प्रतिनिधित्व करती हैं। चित्रकला की इन श्रृंखलाओं के उद्गम का ठीक-ठीक स्थान ज्ञात नहीं है। इन्हें या तो गुलेर या कांगड़ा में या फिर किसी अन्य निकटवर्ती स्थान पर चित्रित किया गया होगा। भागवत और अन्य श्रृंखलाओं सहित गुलेर प्रतिकृतियों को शैली के आधार पर गुलेर शैली नाम के एक सामान्य शीर्षक के अन्तर्गत समूहबद्ध किया गया है। इन चित्रकलाओं की शैली प्रकृतिवादी, सुकोमल और गीतात्मक है। इन चित्रकलाओं में महिला आकृति विशेष रूप से सुकोमल है जिसमें सुप्रतिरूपित चेहरे, छोटी और उल्टी नाक है और बालों को सूक्ष्मरूप से बांधा गया है। इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि इन चित्रकलाओं को उस्ताद-कलाकार नैनसुख ने स्वयं या फिर उसके कुशल सहयोगी ने निष्पादित किया होगा।
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