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कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण किस राजा ने करवाया था ? kandariya mahadeva temple built by in hindi
kandariya mahadeva temple built by in hindi कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण किस राजा ने करवाया था ?
उत्तर : खजुराहो का कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण चंदेल वंश के राजा विद्याधर द्वारा करवाया गया था , इसका निर्माण लगभग 1025-1050 ई में माना जाता है |
वास्तुकला की नागर शैली
पांचवीं शताब्दी के पश्चात् भारत के उत्तरी भाग में मन्दिर वास्तुकला की एक भिन्न शैली विकसित हुई जिसे नागर शैली के रूप में जाना जाता है। नागर शैली के अंतर्गत भी देश के पश्चिमी, मध्य और पूर्वी भागों में विभिन्न उप-शैलियों का उद्भव हुआ। नागर शैली की कुछ विशेषताएँ हैं:
ऽ मन्दिरों में सामान्य रूप से मन्दिर निर्माण करने की पंचायतन शैली का अनुपालन किया गया, इसके अंतर्गत मुख्य मन्दिर के सापेक्ष क्रूस आकार के भू-विन्यास पर गौण देव मंदिरों की स्थापना की जाती थी।
ऽ मुख्य देव मन्दिर के सामने सभाकक्ष या मण्डप स्थित होते थे।
ऽ गर्भ गृह के बाहर, नदी देवियों, गंगा और यमुना, की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता था। मन्दिर परिसर में जल का कोई टैंक या जलाशय नहीं होता था।
ऽ मन्दिरों को सामान्य रूप से भूमि से ऊंचे बनाए गए मंच (वेदी) पर निर्मित किया जाता था।
ऽ द्वार मंडपों के निर्माण में स्तम्भों का प्रयोग किया जाता था।
ऽ शिखर सामान्य रूप से तीन प्रकार के होते थेः
लतिन या रेखा-प्रासादः वे आधार पर वर्गाकार होते थे और शीर्ष पर स्थित बिन्दु की ओर दीवारेे अन्दर की ओर वक्रित हो जाती थीं।
फमसानाः इस प्रकार के शिखर का आधार अधिक चैड़ा होता था और लतिन की अपेक्षा उनकी ऊँचाई कम होती थी। वे शीर्ष बिन्दु
की ओर सीधी रेखा में ढलान निर्मित करते थे।
वल्लभीः इनका आधार आयताकार होता था और छतें गुंबदाकार प्रकोष्ठ का निर्माण करती थीं। इन्हें अर्द्धगोलाकार छतें भी कहा
जाता था।
ऽ शिखर का ऊर्ध्वाधर शीर्ष एक क्षैतिज नालीयुक्त चक्र के रूप में समाप्त होता था, जिसे आमलक कहा जाता था। इसके ऊपर एक गोलाकार आकृति को स्थापित किया जाता था, जिसे कलश कहा जाता है।
ऽ मंदिर के अंदर, दीवार को तीन क्षैतिज भागों में विभाजित किया गया था, जिन्हें रथ कहा जाता था। ऐसे मंदिर त्रिरथ मंदिर के रूप में जाने जाते थे। बाद में पंचरथ, सप्तरथ और यहाँ तक की नवरथ मंदिर भी बनाये जाने लगे। मंदिर के इन विभिन्न भागों में कथात्मक मूर्तियां (narrative sculptures) बनायी जाती थीं।
ऽ गर्भ गृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ होता था जो ढंका हुआ होता था।
ऽ मंदिर परिसर चारदीवारी से घिरा नहीं होता था और प्रवेश द्वार भी नहीं होता था।
नागर शैली के अंतर्गत उभरीं तीन उप-शैलियाँः
1. ओडिशा शैली
कलिंग साम्राज्य के विभिन्न भागों में मंदिर वास्तुकला की एक अलग शैली विकसित हुई। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्न हैंः
ऽ बाहरी दीवारों पर बड़ी मात्रा में बारीक नक्काशी की जाती थी लेकिन भीतरी दीवारों को बिना नक्काशी के ही रखा जाता था।
ऽ ड्योढ़ी (Porch) में खम्भों का उपयोग नहीं किया जाता था। इसके बजाय छत को लोहे के गार्डरों से सहारा दिया जाता था।
ऽ शिखर को रेखा-देउल कहा जाता था। वे लगभगए एक क्षैतिज छत जैसे होते थे जो शीर्ष पर एकदम से अन्दर की तरफ मुड़ते थे।
ऽ ओडिशा शैली में मंडप को जगमोहन नाम से जाना जाता था।
ऽ मुख्य मंदिर वर्गाकार होता था।
ऽ ओडिशा शैली के मंदिर द्रविड़ शैली के मंदिरों के समान ही परकोटे से घिरे होते थे।
उदाहरणः कोणार्क का सूर्य मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, आदि
2. खजुराहो शैली
मध्य भारत में चंदेल शासकों ने मंदिर निर्माण की एक अलग शैली विकसित की, जिसे खजुराहो शैली या चंदेल शैली नाम से जाना गया। यहाँ के मंदिरों की निम्न विशेषताएं हैंः
ऽ इन मंदिरों में बाहरी और भीतरी, दोनों दीवारों पर बड़ी मात्रा में बारीक नक्काशी की गयी है।
ऽ इन नक्काशियों की मूर्तियां आम तौर पर कामुक शैली की हैं और वात्स्यायन की रचना – कामसूत्र से प्रेरित हैं।
ऽ ये मंदिर बलुआ पत्थर से बने हुए हैं।
ऽ इन मंदिरों में तीन कक्ष होते थे – गर्भगृह, मंडप और अर्द्ध-मंडप।
ऽ कुछ मंदिरों में गर्भ गृह तक जाने के लिए गलियारा होता था, जिसे “अन्तराल‘‘ कहा जाता था।
ऽ आम तौर पर मंदिर पूर्वमुखी या उत्तरमुखी हैं।
ऽ मंदिर निर्माण में पंचायतन शैली का पालन किया गया था। सहायक मंदिरों में भी रेखा-प्रसाद शिखर होते थे, जिससे मंदिर समूह एक पर्वत श्रृंखला समान प्रतीत होते थे।
ऽ इन मंदिरों को अपेक्षाकृत ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया था।
उदाहरणः खजुराहो का कंदरिया महादेव मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, आदि।
3. सोलंकी शैली
गुजरात और राजस्थान सहित भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में सोलंकी शासकों के संरक्षण में यह शैली विकसित हुई। इस शैली की निम्न विशेषताएं हैंः
ऽ मंदिर की दीवारें नक्काशी रहित थीं।
ऽ गर्भ गृह अन्दर और बाहर दोनों तरफ से मंडप से जुड़ा होता था।
ऽ बरामदें में सजावटी धनुषाकार द्वार होते थे, जिन्हें तोरण कहा जाता था।
ऽ इन मंदिरों की एक अनूठी विशेषता है कि मंदिर परिसर में एक बावड़ी है जिसे सूर्य-कुंड कहा जाता था।
ऽ बावड़ी की सीढ़ियों पर छोट-छोटे मंदिर है। इन मंदिरों में लकड़ी की नक्काशी की गई है।
ऽ ये मंदिर विभिन्न पत्थरों के बने हुए हैं, जैसे-बलुआ पत्थर, काला बेसाल्ट और नरम संगमरमर।
ऽ अधिकांश मंदिर पूर्व-मुखी हैं। मंदिरों को इस तरह बनाया गया है कि विषुवों के दौरान सूरज की किरणें सीधे मुख्य मंदिर पर पड़ती हैं।
उदाहरणः मोढेरा का सूर्य मंदिर
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