JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

एलोरा की गुफा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर की प्रमुख विशेषताएं लिखिए kailash temple at ellora in hindi

kailash temple at ellora in hindi  एलोरा की गुफा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर की प्रमुख विशेषताएं लिखिए ? 

राष्ट्रकूटवंशी शासक उत्साही निर्माता थे ? कथन के संदर्भ में राष्ट्रकूटकालीन वास्तुकला के विभिन्न स्थलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: राष्ट्रकूटवंशी नरेश उत्साही निर्माता थे। चूंकि इस वंश के अधिकांश शासक शैवमतानुयायी थे, अतः उनके काल में शैव मंदिर एवं मूर्तियों का ही निर्माण प्रधान रूप से हुआ। ऐलोरा, एलिफैण्टा, जागेश्वरी, मण्डपेश्वर जैसे स्थान कलाकृतियों के निर्माण के प्रसिद्ध केन्द्र बन गये। ऐलोरा तथा एलिफैण्टा तो अपने वास्तु एवं तक्षण के लिये जगत् प्रसिद्ध हो गये हैं।
एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर – महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद में स्थित एलोरा नामक पहाड़ी पर अठारह ब्राह्मण (शैव) मंदिर एवं चार जैन गुहा मंदिरों का निर्माण करवाया गया। राष्ट्रकूट कला पर चालुक्य एवं पल्लव कला शैलियों का प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है। एलोरा के मंदिरों में कैलाश मंदिर अपनी आश्चर्यजनक शैली के लिये विश्व-प्रसिद्ध है। इसका निर्माण कृष्ण प्रथम ने अत्यधिक धन व्यय करके करवाया था। यह प्राचीन भारतीय वास्तु एवं तक्षण कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। यह सम्पूर्ण मंदिर एक ही पाषाण को काटकर बनाया गया है। सर्वप्रथम एक विशाल शिलाक्षत्र का कठोर श्रम द्वारा उत्कीर्ण कर उसके चारों ओर का फालतू हिस्सा निकाल दिया गया तथा बीच का भाग जहां मंदिर बनना था, छोड़ दिया गया। इस मध्यवर्ती भाग में ही मंदिर बनाया गया। निर्माण कार्य ऊपर से नीचे की ओर किया गया तथा स्थापत्य कार्य के साथ-साथ मूर्तिकारी एवं अलंकरण भी किया जाता रहा। इस प्रकार स्तूपी से जगती (आधार) तक निर्माण की सम्पूर्ण योजना बनाकर उसे क्रियान्वित किया गया।
म्ंादिर का विशाल प्रांगण 276 फुट लम्बा तथा 154 फट चैडा है। इसमें विशाल स्तम्भ लगे हैं तथा छत मूर्तिकारी से भरा हुई है। मंदिर में प्रवेश द्वार, विमान तथा मण्डप बनाये गये हैं। इसकी चैकी 25 ऊँची है। चैकी हाथी तथा सिह पक्तिमा से इस प्रकार बनायी गयी है कि ऐसा प्रतीत होता है कि इन्हीं के ऊपर देव विमान और मण्डप टिके हुए हैं। मण्डप का सपाट छत सोलह स्तम्भों पर आधारित है जो चार-चार के समन में बनाये गये हैं। विमान दतल्ला है। मण्डप तथा विमान को जोड़ते हुए अर्धमण्डप अथवा अन्तराल बनाया गया है। विमान का चारतल्ला शिखर 95′ ऊँचा है तथा इसके तान आर प्रदशिणापथ हैं। इसमें पाँच बड़े देव प्रकोष्ठ बनाये गये हैं। शिखर पर स्तपिका बनाई गई हैं। मण्डप के सामने एक विशाल नन्दीमण्डप तथा उसके दोनों पाश्वों में दो ध्वजस्तम्भ बनाये गये हैं जो मंदिर को गरिमा प्रदान करते हैं। इसकी शला मामल्लपुरम् के रथों की शैली से अनप्रेरित द्रविड प्रकार की है। मंदिर के समीप ही पाषाण काटकर एक लम्बी पक्ति म हाथियों की मूर्तियां बनाई गई है। मंदिर की वीथियों में भी अनेक देवी-देवताओं की मतियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं। इनम गोवर्धन धारण किये कृष्ण, भगवान विष्णु, शिव के विविध रूपों. महिषासर का वध करती हुई दुर्गा, कैलाश पर्वत उठाये हुए रावण, रावण द्वारा सीता हरण तथा जटायु के साथ युद्ध आदि दृश्यों का अंकन अत्यन्त कुशलतापूर्वक किया गया है।
समग्र रूप से यह एक अत्युत्कृष्ट रचना है। पाषाण काटकर बनाये गये मंदिरों में इस मंदिर का स्थान अद्वितीय है। कर्कराज के बड़ौड़ा लेख में इसे अद्भुत सन्निवेश कहा गया है। बताया गया है कि इसे देखकर देवलोक के देवतागण अचम्भित हो गये तथा इसकी शोभा को मानव निर्माण से परे बताया। कलाविद पर्सी ब्राउन इसकी तुलना मिस्री वास्तु तथा यूनानी पोसीडान मंदिर से करते हुए इसे प्राकृत शैलवास्तु का विश्व में सबसे विलक्षण नमूना मानते हैं।
एलोरा का अन्य शिल्प – एलोरा के मध्य मन्दिरों में रावण की खाई, देववाडा, दशावतार, लम्बेश्वर, रामेश्वर, नीलकण्ठ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। श्रावण की खाईश् का बाहरी बरामदा चार स्तम्भों पर आधारित है। इसके पीछे बारह स्तम्भों पर टिका हुआ मण्डप है। गर्भगृह के चारों ओर प्रदशिणापथ है जिसकी उत्तरी तथा दक्षिणी दीवारों पर अनेक पौराणिक आख्यानों एवं देवी-देवताओं की मूर्तियों का चित्रण है। नृत्य करते हुए शिव तथा कैलाश पर्वत उठाते हुए रावण के दृश्य सुन्दर हैं। दशावतार मंदिर का निर्माण आठवीं शती में दंतिदुर्ग के काल में हुआ। यह दुतल्ला है तथा इसके द्वार पर नदिमण्डप बना है। अधिष्ठान में चैदह स्तम्भ लगे हैं इसकी मूर्ति सम्पदा विपुल है। इसमें भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथा मूर्तियों में अंकित हैं। तक्षण एवं स्थापत्य दोनों ही दृष्टि से यह मंदिर भी अत्युत्कृष्ट है। कुछ रचनायें अत्युत्कृष्ट हैं। उत्तरी दीवार पर शिवलीला तथा दक्षिणी दीवार पर विष्णु का विविध रूपों में अंकन है। द्वार पर दो द्वारपालों की मूर्तियाँ हैं। विष्णु द्वारा नृसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किये जाने का दृश्यांकन अत्यन्त सुन्दर है।
रामेश्वरम् गुहामंदिर गुहाशैली के मंदिर निर्माण के प्रारम्भ का द्योतक है। गुफा के सम्मुख प्रांगण में एक ऊँचे चबूतरे पर नन्दीपीठ बना है। मण्डप के पीछे प्रदक्षिणापथ सहित गर्भगृह है तथा द्वार पर द्वारपालों की मूर्तियाँ हैं। स्तम्भ भव्य एवं सुन्दर हैं। इन पर गणों की मूर्तियाँ बनाई गयी हैं। आठवीं शती के अन्त में श्सीता की नहानीश् गुफा की रचना की गयी। इसमें तीन ओर प्रांगण है। मुख्य प्रांगण में दोनों ओर दो देव प्रकोष्ठ बनाये गये हैं। इसमें सात स्तम्भों की पंक्तियां हैं। स्तम्भ गोलाकार हैं तथा इनके सिरे गुम्बदाकार बनाये गये हैं। गुफा द्वार पर दो विशाल सिंह बने हैं। प्रदशिणापथ में बनी मूर्तियाँ काफी मनोहर हैं। शिव ताण्डव का दृश्यांकन सर्वोत्तम है।
ऐलोरा की कुछ गुफायें जैन मत से भी संबंधित हैं। इनमें इन्द्रसभा तथा जगन्नाथ सभा उल्लेखनीय हैं। पहली दुतल्ला है जो एक विशाल प्रांगण में बनी है। इसमें एकाश्मक हाथी, ध्वजस्तम्भ तथा लघु स्तम्भ हैं। इन्द्र-इन्द्राणी की सुन्दर प्रतिमाओं के साथ-साथ इस गुहा मंदिर में जैन तीर्थंकरों – शांतिनाथ, पार्श्वनाथ आदि की प्रतिमायें बनाई गयी हैं। गुफाओं के स्तम्भ आधार. मध्य तथा ऊपरी भाग क्रमशः चतुष्कोण, अष्टकोण तथा गोल बनाये गये हैं। सबसे ऊपर आमलक बना है। जगन्नाथ सभा का वास्तु विन्यास भी इन्द्रसभा से मिलता-जुलता है। एलीफैण्टा रू चालक्य स्थापत्य के नमूने एलीफैण्टा तथा जागेश्वरी से भी मिलते हैं। एलीफैण्डा में चालक्यों के सामन्त शिलाहार शासन करते थे। नवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहां सुन्दर गुहायें उत्कीर्ण की गयी। मुख्य गुफा में एक विशाल मण्डप है जिसके चतुर्दिक प्रदक्षिणाथ है। वर्गाकार गर्भगृह में विशाल शिवलिंग स्थापित है। चबूतरे से गर्भगृह में जाने के लिये सीढ़ियाँ बनाई गयी हैं। गर्भगृह के चारों ओर निर्मित देव प्रकोष्ठों में शिव के विविध रूपों की मूर्तियाँ बनी हैं। इनमें सर्वाधिक सुन्दर महेश मूर्ति भारतीय कला की मूल्य थाती है।
राष्ट्रकूट काल में मूर्ति अथवा तक्षण कला
राष्ट्रकूट काल में वास्तु के साथ-साथ मूर्ति अथवा तक्षण कला की भी उन्नति हुई। गुप्त तथा चालुक्य शैली से प्रेरणा लेकर कलाकारों ने सुन्दर-सुन्दर मूर्तियाँ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। ऐलोरा से शिव की तीनों शक्तियों – उत्पत्ति, स्थिति तथा विनाश से संबंधित मूर्तियाँ मिलती हैं। इनका सौन्दर्य एवं गढ़न उच्चकोटि का है। पार्वती की मूर्तियाँ भी काफी कलात्मक हैं। कैलाश मंदिर में रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाने तथा शिव का अनुग्रह करके उसे मुक्त करने संबंधी मूर्ति काफी मनोहर है। रामेश्वर, दशावतार तथा कैलाश मंदिरों में नटराज शिव की मूर्तियाँ मिलती हैं। वाराह तथा नृसंह रूपी मर्तियाँ काफी सन्दर एवं कलात्मक हैं। इसके अतिरिक्त कमलासना लक्ष्मी, महिषमर्दिनी, दुर्गा, सप्तमातृकाओं आदि की मूर्तियाँ भी भव्य एवं सुन्दर हैं। दशावतार गुफा में बनी मकरारूढ़ गंगा की मूर्ति उत्कृष्ट है।
एलिफैण्टा की मूर्तियाँ मूर्तिशिल्प के चरमोत्कर्ष को सूचित करती हैं। यहां की गफा में शिव, ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, इन्द्र या गणेश, स्कन्द आदि की मूर्तियाँ बनाई गयी हैं। शिव के विविध रूपों एवं लीलाओं से संबंधित मूर्तियाँ काफी अच्छी उत्तरी द्वार के सामने जगप्रसिद्ध त्रिमूर्ति है जो समस्त राष्ट्रकूट कला की सर्वोत्तम रचना है। पहले ऐसा समझा गया था । यह ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की संयुक्त प्रतिमा है जिनकी गणना त्रिदेव में की जाती है। किन्तु जे.एन. बनर्जी ने ” अवधारणा का खण्डन करते हुए मूर्ति का तादात्म्य शिव के तीन रूपों शान्त, उग्र तथा शक्ति से करते हुए इसे महेश मूति की संज्ञा दी है। यह 17 फीट 10 इंच ऊंची है। इसका केवल आवक्ष तक का भाग दिखाया गया है। बीच का मख शिव के शान्त, दायीं ओर का मुख रौद्र तथा बायीं ओर का मख (जो नारी मुख है) शक्ति रूप का प्रतीक है। कलाकार को विविध विरोधी शक्तियों को कला में मूर्तरूप देने में आशातीत सफलता मिली है। एस.के. सरस्वती इसे सबसे विशिष मूर्ति मानते हैं।
ऐलोरा की चित्रकला
वास्तु तथा तक्षण के साथ-साथ ऐलोरा चित्रकला का भी महत्वपर्ण केन्द्र था। अपनी चित्रकारी के कारण कैलाश मंदिर को श्रंगमहलश् भी कहा जाता है। दुर्भाग्यवश यहां के अधिकतर चित्र मिट गये हैं। अथवा धूमिल पड़ गये हैं।
ऐलोरा के चित्र जैन तथा ब्राह्मण धर्मों से संबंधित हैं जिन्हें सातवीं से ग्यारहवीं शती के बीच तैयार किया किया गया था। कैलाश मंदिर में की गयी चित्रकारियाँ उत्तम कोटि की हैं। मण्डप की छत पर नटराज शिव का चित्र है जिसमें उनकी दस भुजायें दिखाई गयी हैं। देवमण्डल देवियों के साथ शिव को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रदर्शित किया गया है। इन्द्र सभा में पार्श्वनाथ तथा अन्य तीर्थकरों के चित्र बनाये गये हैं। इनके मुखमण्डल की शांत भावना दर्शनीय है। गरुड़ पर आसीन विष्णु के दोनों ओर लक्ष्मी तथा भूदेवी का अंकन है। चित्रों के माध्यम से शिव की विविध लीलाओं को दिखाया गया है। चित्रों में चटक रंगों की प्रमुखता है तथा रेखाओं का उभार प्रभावपूर्ण है। बारीक नक्काशी के उदाहरण मिलते हैं। स्तम्भ पर बने वृक्षों एवं लताओं के चित्र अनुपम हैं। विद्याधरों की उड़ती पंक्ति तथा विद्याधर दम्पत्ति के चित्र मनोहर हैं। ऐलोरा मंदिरों की दीवारों पर जो चित्र मिलते हैं. उनसे सूचित होता है कि मंदिरों के निर्माण के बाद उन्हें सुन्दर चित्रों से अलंकृत किया जाता था। चित्रकला पर अजन्ता का प्रभाव है किन्तु शैली भिन्न प्रकार की है। राष्ट्रकूट चित्रकला में अजन्ता चित्रकला जैसे भाव तथा सौन्दर्य नहीं मिलते। चित्रों के नष्ट हो जाने तथा धूमिल पड़ जाने के कारण ऐलोरा चित्रकला का सही मूल्यांकन संभव नहीं है।
इस प्रकार राष्ट्रकूट राजाओं के संरक्षण में कला एवं स्थापत्य के विविध अंगों का पूर्ण एवं सम्यक् विकास हुआ। राष्ट्रकूट स्थापित एवं शिल्पियों ने अपनी पूर्वकालीन एवं समकालीन अनेक कला शैलियों को ग्रहण कर अपनी अनुभूति तथा कौशल को उसने सम्मिलित करके वास्तु एवं तक्षण को नया आयाम दिया। उनकी कृतियों में गुप्त युग की अपेक्षा अधिक विशालता, अलंकरण, तथा चमत्कार दृष्टिगोचर होता है। अनेक कला समीक्षक तो राष्ट्रकूट वास्तु एवं स्थापत्य को ही भारतीय कला का स्वर्णित अध्याय निरूपित करते हैं।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

1 month ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

1 month ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

1 month ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

1 month ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now