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संधि ट्रांजिस्टर की परिभाषा क्या है ? संधि ट्रांजिस्टर के प्रकार , NPN , PNP संधि ट्रांजिस्टर junction transistor in hindi
ट्रांजिस्टर का पूरा नाम “transfer the signal across the resistance” है।
ट्रांजिस्टर की खोज अमेरिका की बैल टेलीफोन प्रयोगशाला के तीन वैज्ञानिक “बारडीन” , ब्राटेन व शाक्ले ने की।
ट्रांजिस्टर मुख्यतः तीन प्रकार के होते है –
1. संधि ट्रांजिस्टर (JT)
2. क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर (FET)
3. धातु ऑक्साइड अर्द्धचालक क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर (MOSFET)
1. संधि ट्रांजिस्टर (JT) : संधि ट्रांजिस्टर मुख्यतः अपद्र्व्यी अर्द्धचालक का एकल क्रिस्टल होता है जिस पर तीन भिन्न भिन्न चालकता के क्षेत्र विद्यमान रहते है मध्य क्षेत्र का आकार शेष दोनों आकारों की तुलना में पतला होने के साथ साथ इसकी अर्द्ध चालक प्रकृति भी शेष दोनों क्षेत्रो से विपरीत होती है।
संरचना के आधार पर संधि ट्रांजिस्टर मुख्यतः दो प्रकार के होते है –
(i) PNP संधि ट्रांजिस्टर : PNP संधि ट्रांजिस्टर में दो P प्रकार के क्षेत्रो के मध्य N प्रकार का क्षेत्र सैंडविच होता है।
(ii) NPN संधि ट्रांजिस्टर : NPN संधि ट्रांजिस्टरमें दो N प्रकार के क्षेत्रों के मध्य P प्रकार का क्षेत्र सैंडविच होता है।
PNP या NPN संधि ट्रांजिस्टर में आधार क्षेत्र (base) सदैव उत्सर्जक क्षेत्र (emitter) व संग्राहक (collector) क्षेत्र के मध्य ही स्थित रहता है।
PNP या NPN संधि ट्रांजिस्टर में उत्सर्जक क्षेत्र या संग्राहक क्षेत्र एक ही अर्द्धचालक प्रकृति के होते है।
परन्तु आधार क्षेत्र इनसे विपरीत प्रकृति का होता है।
PNP या NPN संधि ट्रांजिस्टर में उपस्थित उत्सर्जक क्षेत्र में डोपिंग सबसे अधिक होती है , संग्राहक में डोपिंग मध्यम होती है और आधार में डोपिंग सबसे कम होती है।
PNP या NPN संधि ट्रांजिस्टर में आकार की दृष्टि से संग्राहक सबसे बड़ा , उत्सर्जक मध्यम व आधार सबसे छोटा होता है।
PNP या NPN संधि ट्रांजिस्टर में दो संधियाँ क्रम ‘उत्सर्जक-आधार संधि’ तथा ‘आधार-संग्राहक’ संधि विद्यमान रहती है।
PNP या NPN संधि ट्रांजिस्टर को प्रवर्धन या दोलित्र के रूप में काम में लेने के लिए इसे सक्रीय क्षेत्र अवस्था में रखा जाता है जिसके लिए उत्सर्जक-आधार संधि को अग्र अभिनती तथा आधार-संग्राहक संधि को पश्च अभिनिती में रखते है।
दो PN संधि डायोडो को आपस में मिलाकर ट्रांजिस्टर का निर्माण नहीं किया जा सकता क्योंकि ट्रांजिस्टर केवल एकल क्रिस्टल अर्द्धचालक युक्ति है।
ट्रांजिस्टर की अभिनिती के आधार पर ट्रांजिस्टर की मुख्यतः चार अवस्थाएँ होती है –
(a) उत्सर्जक आधार सन्धि को अग्र अभिनिति तथा आधार-संग्राहक संधि को पश्च अभिनिती में रखकर ट्रांजिस्टर को सक्रीय क्षेत्र की अवस्था में रखा जाता है।
(b) ट्रांजिस्टर की उत्सर्जक-आधार संधि व आधार-संग्राहक संधि दोनों को ही अग्र अभिनीति में रखते है तो ट्रांजिस्टर संतृप्त क्षेत्र की अवस्था में होता है।
(c) संधि ट्रांजिस्टर की उत्सर्जक-आधार संधि व आधार-संग्राहक संधि दोनों को पश्च अभिनिती में रखने पर ट्रांजिस्टर अंतक क्षेत्र की अवस्था में आ जाता है।
(d) संधि ट्रांजिस्टर की उत्सर्जक-आधार संधि को पश्च अभिनीती व आधार-संग्राहक संधि को अग्र अभिनिती में रखने पर ट्रांजिस्टर प्रतिलोपित अवस्था में आ जाता है।
ट्रांजिस्टर में धारा का प्रचलन (क्रियाविधि)
NPN ट्रांजिस्टर में धारा का प्रचलन (क्रियाविधि)
NPN ट्रांजिस्टर ने उत्सर्जक आधार संधि अग्र अभिनिती में होने के कारण उत्सर्जक आधार संधि पर अवक्षेय परत की चौड़ाई व विभव प्राचीर का मान कम होता है परन्तु आधार-संग्राहक संधि पश्च अभिनिती में होने के कारण आधार-संग्राहक संधि पर अवक्षय परत की चौड़ाई व प्राचीर विभव का मान अधिक होता है।
NPN ट्रांजिस्टर में जब उत्सर्जक-आधार संधि को जब बैटरी VEE द्वारा अग्र अभिनिती देते है तो उत्सर्जक में उपस्थित बहुसंख्यक आवेश वाहक मुक्त इलेक्ट्रॉन बैटरी के ऋण टर्मिनल से प्रतिकर्षित होकर उत्सर्जक से आधार की ओर गति करते हुए संग्राहक में पहुँचते है। उसी क्षण उत्सर्जक में सहसंयोजक बंध टूटने के कारण नए इलेक्ट्रोन-होल युग्म उत्पन्न हो जाते है। उत्पन्न नए होल बैट्री के ऋण टर्मिनल से आने वाले मुक्त इलेक्ट्रोन के कारण निरस्त हो जाते है। जिसके कारण परिपथ में उत्सर्जक धारा IE प्रवाहित होती है।
जब उत्सर्जक से बहुसंख्यक आवेश वाहक मुक्त इलेक्ट्रॉन संग्राहक की ओर गति करते हुए आधार को पार करते है तो आधार में उपस्थित बहुसंख्यक आवेश वाहक होल उत्सर्जक से आने वाले इलेक्ट्रोन के साथ युग्म कर लेते है , उसी क्षण आधार में सहसंयोजक बंध टूटने के कारण नए इलेक्ट्रॉन होल युग्म उत्पन्न होते है। आधार में उत्पन्न इलेक्ट्रॉन बैट्री VEE के धन टर्मिनल से आकर्षित होकर इस टर्मिनल पर लौट आते है जिसके कारण परिपथ में IB धारा प्रवाहित होती है। आधार में बहुसंख्यक आवेश वाहक होलो की संख्या बहुत कम होने के कारण इलेक्ट्रॉन व होलो का युग्मन बहुत कम होता है। [लगभग 2%]
जब उत्सर्जक के बहुसंख्यक आवेश वाहक मुक्त इलेक्ट्रान संग्राहक में पहुँचते है , उसी क्षण संग्राहक में उपस्थित मुक्त इलेक्ट्रॉन आकर्षण के कारण बैटरी VCC के धन टर्मिनल पर पहुँच जाते है जिसके कारण परिपथ में संग्राहक धारा IC प्रवाहित होने लगती है।
यह सभी प्रक्रियाएं एक साथ संपन्न होती है। इस प्रकार NPN ट्रांजिस्टर में धारा का चालन होता है।
NPN ट्रांजिस्टर में इसके विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉन के कारण धारा प्रवाहित होती है अर्थात NPN ट्रांजिस्टर के बाह्य परिपथ व क्रिस्टल दोनों में ही मुक्त इलेक्ट्रॉन के कारण धारा प्रवाहित रहती है।
NPN ट्रांजिस्टर में उत्सर्जक धारा का मान सबसे अधिक व आधार धारा का मान सबसे कम होता है।
अर्थात IE > IC >> IB
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