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जट जटिन लोक नृत्य कहाँ का मुख्य नृत्य है ? jat jatin dance which state in hindi जट-जटिन किस राज्य का लोक नृत्य है

जट-जटिन किस राज्य का लोक नृत्य है जट जटिन लोक नृत्य कहाँ का मुख्य नृत्य है ? jat jatin dance which state in hindi  ?

जाट-जटिन
जाट-जटिन बिहार के उत्तरी भागों और विशेषतः मिथिलांचल में लोकप्रिय है। यह नृत्य विधा एक विवाहित दंपत्ति के बीच के कोमल प्रेम तथा मीठी नोक-झोंक को अनोखे ढंग से प्रस्तुत करती है।

झूमर
झूमर झारखंड तथा उड़ीसा के जनजातीय लोगों द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला एक लोकप्रिय फसल-कटाई नृत्य है। इसके दो रूपांतर हैं – जनानी झूमर जिसे महिलाएं प्रस्तुत करती हैं तथा मर्दाना झूमर जिसे पुरुष प्रस्तुत करते हैं। यह बहुत से मेलों तथा त्योहारों का मुख्य आकर्षण होता है।

डंडा-जात्रा
डंडा नाटा या डंडा-जात्रा भारत की प्राचीनतम लोक कलाओं में से एक है। मुख्यतः उड़ीसा में प्रसिद्ध यह नृत्य, नृत्य, नाटक तथा संगीत का अनोखा मिश्रण है। यद्यपि इसमें मुख्यतरू शिव की कथाएँ प्रस्तुत की जाती हैं, इसका केन्द्रीय भाव सामाजिक समरसता तथा भाईचारा ही होता है।

बिहु
बिहू असम का एक प्रसिद्ध नृत्य है, जिसे पुरुषों तथा नारियों दोनों के समूह द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। धूम-धाम तथा उल्लास को व्यक्त करने के लिए नर्तक परम्परागत रंगीन पोशाकों में सजते हैं। इस नृत्य के सफल प्रदर्शन में समूह निर्माण, तीव्र हस्त-चालन तथा फुर्तीले कदमों की भूमिका होती है।

थांग टा
थांग टा मणिपुर की युद्ध-कला संबंधी एक विशिष्ट नृत्य विधा है। ‘थांग‘ का अर्थ होता है-तलवार, तथा ‘टा‘ का का अर्थ होता है- भाला यह नृत्य प्रस्तुति कौशल, रचनात्मकता तथा स्फर्ति का अनोखा प्रदर्शन होती है, जिसमें प्रस्तुतकर्ता एक छद्म युद्ध श्रृंखला – कूद कर आक्रमण करना तथा बचाव करना – का अभिनय करते हैं।

रांगमा /बांस नृत्य
रांगमा नागाओं का युद्ध नृत्य है। रंगीन पोशाकों. आभषणों तथा शिरस्त्राणों से सुसज्जित नर्तक, छद्म युद्ध विन्यासों तथा परम्पराओं का अभिनय प्रदर्शन करते हैं।

सिंघी छाम
सिंघी छाम सिक्किम का एक लोकप्रिय मुखौटा नृत्य है। नर्तक रोएंदार वस्त्रों से सुसज्जित होते हैं जो बर्फ का प्रतीक होता है तथा खांग-चेन घेंग पा (कंचनजंगा की चोटी) को श्रद्धांजलि देते हैं।

कुम्मी
कुम्मी तमिलनाडु तथा केरल क्षेत्र का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है। यह नृत्य एक वर्तुल विन्यास में खड़ी महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य प्रस्तुति की एक अनोखी विशेषता यह है कि इसमें किसी प्रकार का संगीत नहीं होता है। लयबद्ध तालियों द्वारा ताल को उत्पन्न किया जाता है। इस नृत्य को, सामान्यतः, पोंगल या अन्य धार्मिक गतिविधियों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है। कोलटम तथा पिन्नल कोलट्टम इस नृत्य विधा के निकटस्थ रूपांतर हैं।

मईल अट्टम
मईल अट्टम केरल तथा तमिलनाडु का एक लोक नृत्य है, जिसमे युवतियां रंगीन केश सज्जा, चोंच तथा पंख लगा कर मयूर के वेश में सजती हैं। इसे मयूर नृत्य के रूप में जाना जाता है। इसी प्रकार के अन्य नृत्यों में कालाई अट्टम, (वृषभ नृत्य), कराडी अट्टम (भालू नृत्य), आली अट्टम (राक्षस नृत्य) तथा पम्पू अट्टम (सर्प नृत्य) हैं।

बुर्राकथा
बुर्राकथा या जंगम कथा आन्ध्र प्रदेश की एक प्रकार की नृत्य कथा है जिसमे एक एकल प्रस्तुतकर्ता पुराणों से कहानियां सुनाता है।

बुट्टा बोम्मालू
बुट्टा बोम्मालू का शाब्दिक अर्थ टोकरी वाले खिलौने होता है तथा यह आन्ध्र पश्चिम के पश्चिम गोदावरी जिले की प्रसिद्ध नृत्य विधा है। नर्तक विभिन्न चरित्रों के मुखौटे पहनते हैं जिनकी आकृतियाँ खिलौनों से मेल खाती हैं तथा नजाकत भरी चालों तथा शब्द रहित संगीत के बल पर मनोरंजन करते हैं।

कइकोट्टीकली
कइकोट्टीकली केरल का एक लोकप्रिय मंदिर नृत्य है। इसे ओणम के समय अच्छी फसल की खुशी मनाने के लिए पुरुषों तथा स्त्रियों दोनों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। ऐरुकाली तथा तट्टामकाली इस नृत्य की मिलती-जुलती विधाऐं है।

पदयानी
पदयानी दक्षिणी केरल के मंदिरों में प्रस्तुत किया जाने वाला एक युद्ध कला संबंधी नृत्य है। पद्यानी का शाब्दिक अर्थ होता है- पैदल सेना की पंक्तियाँ तथा यह अत्यंत समृद्ध एवं रंगा-रंग नृत्य है। नर्तक कोलम नाम के विशाल मुखौटे पहनते हैं तथा दैवी या अर्द्ध दैवी कथाओं की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। कुछ लोकप्रिय चरित्रों में भैरवी, कलन (मृत्यु देवता), यक्षी तथा पक्षी, इत्यादि होते हैं।

कोल्काली-परिचकाली
यह दक्षिणी केरल तथा लक्षद्वीप के इलाकों में एक लोकप्रिय युद्ध कला नृत्य है। कोल का अर्थ होता है- छड़ी तथा परिचा का अर्थ होता है ढाल। नर्तक लकड़ी के बने छद्म शस्त्रों का प्रयोग करते हैं तथा युद्ध शृंखलाओं का अभिनय करते हैं। प्रदर्शन धीमी गति से आरम्भ होता है, किन्तु धीरे-धीरे गति बढ़ती जाती है और अंत उन्मादपूर्ण होता है।

भूत आराधने
भूत आराधने या शैतान की पूजा कर्नाटक की एक लोकप्रिय नृत्य विधा है। प्रदर्शन से पूर्व, शैतानों की प्रतीक प्रतिमाओं को एक आधार पर रख दिया जाता है तथा नर्तक उन्मत्त हो कर नृत्य करता है जैसे उस पर किसी आत्मा ने कब्जा जमा रखा हो।

पटा कुनीथा
यह मैसूर क्षेत्र की लोकप्रिय नृत्य विधा है। यह मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा पटा नाम से प्रसिद्ध रंगीन रिबनों से सुसज्जित होकर, लम्बे बांस के खम्भों का प्रयोग कर प्रस्तुत किया जाने वाला एक धार्मिक नृत्य है। रंगों का बाहुल्य इसे दर्शनीय तमाशा बना देता है तथा यह सभी धर्मों के लोगों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। पूजा कुनीथा इस नृत्य विधा का एक रूपातर है जो बंगलरु तथा मंड्या जिलों के आस-पास के क्षेत्रों में लोकप्रिय है।

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