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जैन पर्व क्या है | जैन त्यौहार किसे कहते है नाम लिस्ट बताइए कब है तारीख दिन jain festival in hindi

jain festival in hindi paryushan  digambar जैन पर्व क्या है | जैन त्यौहार किसे कहते है नाम लिस्ट बताइए कब है तारीख दिन ?

जैन जीवन शैली (The Jain Ways of Life)
तुलनात्मक रूप से देखें तो जैनियों का समुदाय अत्यंत छोटा है। लेकिन संख्या कम होने के बावजूद अपने जीवन में शुद्धता और समृद्धि के कारण वे प्रभावशाली हैं। इनमें से अधिकांश महाजन और व्यापारी हैं। वैसे हिन्दुओं में प्रचलित समाज के चार वर्षों वाले विभाजन से जैन समुदाय सहमत हैं। चूंकि उनमें से अधिकांश महाजन, व्यापारी और उत्पादकर्ता हैं इसलिए उन्हें वैष्णव वर्ण में माना जाता है। उत्तर भारत में जैनों तथा वैश्यों में (रोटी और बेटी) का रिश्ता है। वे अपने को अलग धर्म का भी नहीं मानते। जैन जीवन शैली विशिष्ट है लेकिन उसकी अनेक विशेषताएं हिन्दुओं से मिलती हैं।

उनका पारिवारिक जीवन भी पारंपरिक संयुक्त हिन्दू परिवार के समान है। उनके यहाँ एकल-विवाह पद्धति का पालन कठोरता से होता है। फिर भी उनकी विधिवत परिभाषित आचार संहिता है जो उन्हें विशिष्ट बनाती है।

जैन लोग अपने प्रति जागरूक होते हैं जो अपने शरीर और मन पर से कभी नियंत्रण नहीं खोते। बचपन से बच्चे को विचारहीनता, लापरवाही और उत्तेजना को नियंत्रित करना सिखाया जाता है क्योंकि ये मानव जीवन के लिए बड़े हानिकारक होते हैं। इस तरह बच्चों को शिक्षा दी जाती है कि वे सामाजिक रूप से जागरूक, सावधान, क्षमाशील और विनम्र बने। इसलिए जैन समुदाय के जन-साधारण भी प्रकृति से शांत, आत्म-नियंत्रित, शालीन और अल्प-भाषी होते हैं।

जैन तपस्वियों की जीवन-शैली और अधिक कठोर होती है। हिन्दू तपस्वियों की तरह ही उपवास करना जैन तपस्वियों के जीवन का अंग है। श्वेताम्बर शाखा में स्त्री और पुरुष दोनों तपस्वी होते हैं। उन्हें भिक्षावृत्ति तथा संपत्ति त्याग के कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। लेकिन वे शरीर का त्याग नहीं कर सकते। उन्हें भिक्षा में इतना ही खाद्य पदार्थ लेना चाहिए जिससे शरीर को जीवित रख सके क्योंकि मानव शरीर में रहकर ही कोई मोक्ष प्राप्त कर सकता है। उन्हें अपने गुरू के उपदेशों को सर्वाधिक महत्व देना पड़ता है। अतः वे कभी गुरू का त्याग नहीं करते क्योंकि उसके उपदेशों के बिना मोक्ष की ओर होने वाली प्रगति असंभव है। इसलिए तपस्वियों का चिंतन-संसार इन्हीं चारों बिंदुओं की सीमा में आबद्ध रहता है अर्थात शरीर, गुरू, अनुशासन और अध्ययन का दायरा।

साध्वी स्त्रियों को भी आचरण के उन्हीं की भांति कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। साध्वी का दायित्व होता है कि वे जैन परिवारों की स्त्रियों, पत्नियों और बेटियों को उचित धार्मिक शिक्षा दे। उनके यहाँ स्त्रियों की शिक्षा पर बहुत जोर दिया जाता है। यह विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि दिगम्बर संप्रदाय में स्त्री-तपस्वी, जिसे साध्वी कहा जाता है, नहीं होती।

जब तपस्वी को यह अनुभव हो जाता है कि उसका शरीर इस लायक नहीं रहा कि वह मोक्ष की साधना में उपयोगी हो तो वह स्वेच्छा से अन्न-जल त्याग कर धीमे-धीमे मृत्यु की ओर शरीर को बढ़ा देता है और उसकी मृत्यु हो जाती है (बेसेंट, 1968ः99-100)

 जैन पर्व (The Jain Festivals)
जैनियों के बड़े पर्व जैन तीर्थंकरों के जीवन की पवित्र घटनाओं से जुड़े हैं जैसे उनका मां के गर्भ में आना अर्थात गर्भ-धारण (च्यवन), जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान एवं जिन की मृत्यु तथा मोक्ष की ओर महाप्रयाग।

पज्जुसन (इसे प्रियुसना भी कहा जाता है) जैनियों का सबसे लोकप्रिय त्योहार है। इसे भद्रपत (अगस्त-सितम्बर) के महीने क्षमा, सेवा तथा भक्ति के जरिये शुद्धिकरण के उद्देश्य से मनाया जाता है। इस त्योहार के अंतिम दिन भिखारियों में भिक्षा बांटी जाती है तथा महावीर की मूर्ति के साथ शोभा-यात्रा निकाली जाती है । इस त्योहार के दरम्यान विद्वेष को हटाने के लिए वर्ष भर की गलतियों की स्वीकारोक्ति की जाती है।

वर्ष में दो बार उपवास रखकर ओली नामक पर्व मनाया जाता है। यह वर्ष में दो बार चैत्र (मार्च-अप्रैल) तथा आश्विन (सितम्बर-अक्तूबर) में नौ-नौ दिनों तक मनाया जाता है। दिवाली के दिन जैन लोग दीप जलाकर महावीर के निर्वाण प्राप्त करने के शुभ अवसर को याद करते हैं। दिवाली के पांच दिनों बाद जन्म पंचमी को मंदिरों में जाकर धर्मग्रंथों की पूजा विशेष रूप से की जाती है।

चैत्र मास की पूर्णिमा को जैन लोग महावीर जयंती मनाते हैं।

ध्यान देने योग्य बात है कि जैन हिन्दुओं की तरह ही होली, मकर सक्रांति, नवरात्रि (सभी उत्तर भारतीय त्योहार) तथा पोंगल, कार्तिक, युगादी आदि (दक्षिण भारतीय त्योहार) मनाते हैं।

जैन मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं और यह पूजा उनके लिए आवश्यक भी है। वे न केवल महावीर की मूर्ति की पूजा करते हैं बल्कि अन्य पुण्यात्माओं, श्रमणों और धर्मग्रंथों की पूजा भी विभिन्न अवसरों पर करते हैं। मूर्ति पूजा, मंत्र पाठ, मूर्ति और मठों का अभिषेक भी जैन धार्मिक अनुष्ठानों के अंग हैं। इन सभी से जैन धर्म पर हिन्दू धर्म के प्रभाव का पता चलता है। ध्यान देने योग्य बात है कि केवल श्वेताम्बर शाखा के अनुयायी ही मंदिर स्थित मूर्तियों को वस्त्र और गहनों से सजाते हैं । दिगम्बर शाखा मूर्ति पूजा से अधिक मन की शुद्धि पर ध्यान देती है।

 जैन और हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान (Jain and Hindu Religious Practices)
जैन तथा हिन्दू धर्म की आस्थाओं, अनुष्ठानों और धार्मिक परंपराओं में निश्चित रूप से महत्वपूर्ण समानताएं हैं । जैन दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म वही है जो हिन्दू धार्मिक सिद्धांतों में कर्म और पुनर्जन्म है। हिन्दू भी अहिंसा के सिद्धांत से काफी प्रभावित रहे हैं। महात्मा गांधी ने भारत के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में महावीर के अहिंसा सिद्धांत का प्रयोग किया।

हिन्दू धर्म के वैष्णवों के बीच भोजन से संबंधित निषेध भारतीय समाज पर जैन धर्म के प्रभाव का ही परिणाम है। साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि जैन धर्म ने हिन्दू रीति-रिवाजों के विभिन्न तत्वों को अपनाया। जैन धार्मिक अनुष्ठान हिन्दुओं के 16 संस्कारों पर आधारित हैं। (और अधिक जानकारी के लिए आप हिन्दू धर्म की इकाई 19 का बॉक्स 1 देख सकते हैं)

जैन धर्म पर हिन्दुओं की जाति व्यवस्था का भी प्रभाव है। मध्य युग में जैनों की बीच की जातियाँ बन गई, जबकि जैन जाति व्यवस्था को नहीं मानते । जाति संबंधी उपनाम कभी हिन्दुओं से मिलते जुलते हैं कभी वे मूल निवास स्थान से जुड़े होते हैं अथवा वे सीधे जैन धर्म से संबंधित होते हैं। वैसे हिन्दू जाति व्यवस्था वाला श्रेष्ठता का क्रम जैन धर्म की जातियों में दिखता है जबकि सामाजिक अंतर प्रक्रिया जैन धर्म में स्पष्टतः निर्धारित नहीं हैं। कुछ जातियां श्वेतांबर और दिगम्बर दोनों शाखाओं में हैं तो कुछ सिर्फ एक ही शाखा में हैं। (इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिया, 1985ः280) इस संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि भारत में अधिकांश जैनी व्यापारी समुदाय के हैं। अतः व्यापक तौर पर माना जाता है कि वे वैश्य जाति से मिलते जुलते हैं। वास्तव में हिन्दू वैश्यों तथा जैनियों के बीच सामाजिक आदान-प्रदान भी अधिक होता है।

कार्यकलाप 1
यदि संभव हो तो अपने क्षेत्र में बसे जैन धर्म के अनुयायियों के त्योहारों के बारे में जानकारी एकत्र करें। अपने अवलोकन के आधार पर ष्मेरे क्षेत्र के जैन त्योहारष् विषय पर दो पृष्ठ का एक नोट लिखें। यदि संभव हो तो अपने केन्द्र के अन्य छात्रों से इस संदर्भ में विचारों का आदान प्रदान करें।

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