JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

लोहा इस्पात उद्योग किसे कहते हैं | भारत में लोहा इस्पात उद्योग की परिभाषा क्या है iron and steel industry in hindi

iron and steel industry in hindi लोहा इस्पात उद्योग किसे कहते हैं | भारत में लोहा इस्पात उद्योग की परिभाषा क्या है ? 

लौह और इस्पात उद्योग
लौह और इस्पात उद्योग ने देश के समग्र औद्योगिक विकास को स्थायित्व प्रदान करने के लिए स्तम्भ का काम किया है क्योंकि यह उद्योगों के लिए अपरिहार्य बुनियादी आदान उपलब्ध कराता है। इस उद्योग से व्यापक पश्चानुबंध और अग्रानुबंध स्थापित होता है जो और अधिक औद्योगिकरण का मार्ग प्रशस्त करता है। भारत में इस उद्योग के विकास की अपार संभावनाएँ हैं। इस देश में इस उद्योग की नींव उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में डाली गई थी। किंतु इसकी प्रगति अपेक्षाकृत धीमी रही। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत का इस्पात उत्पादन नगण्य था। हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में, लौह और इस्पात उद्योग को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।

 पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान विकास
भारत में योजना के आरम्भ के समय तीन मुख्य इकाइयाँ, इस्पात का उत्पादन कर रही थीं। ये थीं: जमशेदपुर में टाटा आयरन एण्ड स्टील वक्र्स, आसनसोल में इंडियन आयरन एण्ड स्टील कंपनी और कर्नाटक में भद्रावती में मैसूर आयरन एण्ड स्टील वक्र्स इन तीनों इकाइयों की प्रतिवर्ष 1.7 मिलियन टन ढलुआ लोहा और 1 मिलियन टन इस्पात इन्गॉट उत्पादन करने की क्षमता थी। दूसरी, और उसके बाद की पंचवर्षीय योजनाओं में देश में लौह और इस्पात उद्योग के विस्तार के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम तैयार किए गए। इस आयोग का अर्थव्यवस्था के सार्वजनिक क्षेत्र में जबर्दस्त विकास हुआ।

नई औद्योगिक नीति, 1991 ने वस्तुतः इस्पात उद्योग को लाइसेन्स से मुक्त कर दिया तथा निजी क्षेत्र को सिर्फ विदेशी मुद्रा प्रतिबद्धताओं के अध्यधीन परियोजनाएँ स्थापित करने की अनुमति दे दी गई। इतना ही नहीं, धातुकर्म उद्योगों के अंतर्गत मदों की छः श्रेणियों में न सिर्फ विदेशी निवेशकों को भागीदारी की अनुमति प्रदान की गई अपितु इक्विटी भागीदारी की सीमा भी बढ़ा कर 51 प्रतिशत तक कर दी गईं इसके साथ ही इस्पात के मूल्यों और वितरण पर से सभी प्रकार के नियंत्रण 16 जनवरी, 1992 से समाप्त कर दिए गए।

नियंत्रण प्रणाली के समाप्त होने के बाद की अवधि में लायड्स, निप्पन डेनरो, कल्याणी, मुकुन्द, रौनक समूह, ऊषा समूह, जिन्दल, लॉर्सन एण्ड टूब्रो और एम एम टी सी जैसे बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों का इस क्षेत्र में पदार्पण हुआ और यह सभी बृहत् समेकित संयंत्रों की स्थापना कर रहे हैं।

निर्धारित क्षमता
इस समय देश में नौ समेकित इस्पात संयंत्र हैं- सात सार्वजनिक क्षेत्र में और दो निजी क्षेत्र में। सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात संयंत्र भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (सेल) के स्वामित्व में हैं। सेल केन्द्रीय विपणन संगठन के रूप में भी कार्य करता है। इन इस्पात संयंत्रों की कुल निर्धारित क्षमता 17.73 मिलियन टन है।

समेकित इस्पात संयंत्रों के अतिरिक्त, इस समय 18 अनुषंगी लघु-इस्पात संयंत्र (मिनी स्टील प्लांट) भी हैं जिनकी कुल क्षमता लगभग 10.44 मिलियन टन है। इन इस्पात संयंत्रों में इस्पात स्कैप पिघलाया जाता है तथा उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात के उत्पादन के लिए इनका परिशोधन किया जाता है।

उत्पादन और उपभोग

इस्पात उद्योग को समग्र औद्योगिक विकास का मापक माना जाता है। भारत में ‘‘तैयार इस्पात‘‘ का उत्पादन विभिन्न चरणों में बढ़ा है।

पहले चरण में, जो साठ के दशक के आरम्भ में समाप्त हुआ, कुल उत्पादन प्रतिवर्ष लगभग 2.5 मिलियन टन था। अस्सी के दशक के मध्य से उत्पादन बढ़ना शुरू हुआ जो 1983-84 में 6.14 मिलियन टन से बढ़कर 1989-90 में 13.00 मिलियन टन हो गया और पुनः 2000-01 में 31.32 मिलियन टन तक पहुँच गया।

भारत विश्व में इस्पात के दसवें सबसे बड़े उत्पादक के रूप में उभरा है जो फ्रांस, यू.के. और कनाडा से कहीं आगे है तथा यूक्रेन के ठीक बाद इसका स्थान है।

भारत में इस्पात उत्पादन का अधिकांश हिस्सा (लगभग 90 प्रतिशत) नरम इस्पात है जैसे स्ट्रक्चरल्स, रेल (पटरियाँ), शीट्स, प्लेट्स, बार और रॉड इत्यादि। मिश्र धातु और विशेष इस्पात का कुल उत्पादन में अत्यन्त ही कम अनुपात है।

भारत में इस्पात की प्रतिव्यक्ति खपत लगभग 23 कि. ग्रा. है जो विकसित देशों जैसे अमरीका, जर्मनी, कोरिया और जापान (लगभग 600 कि.ग्रा.) की तुलना में काफी कम (5 प्रतिशत से भी कम) है और 200 कि.ग्रा. के विश्व औसत का मात्र लगभग 11.5 प्रतिशत है।

तथापि, इस्पात के कम उत्पादन और खपत को इस तथ्य की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए कि भारत विकसित पश्चिम और विकासशील सुदूर पूर्व के देशों में अपने प्रतिस्पर्धियों की अपेक्षा लाभप्रद स्थिति में है। लौह अयस्क भण्डार के मामले में भारत का विश्व में चैथा स्थान है। इसके लौह अयस्क भण्डार के 103 बिलियन टन होने का अनुमान लगाया गया है और इसमें लौह की मात्रा 60 प्रतिशत है। यहाँ पाए जाने वाले अधिकांश लौह अयस्क अच्छी किस्म के हैं जिससे अधिक लौह प्राप्त होता है और साथ ही यह कम कीमत पर उपलब्ध भी है अर्थात् ‘‘सेल‘‘ को लगभग 20 डॉलर प्रति टन की दर पर लौह अयस्क मिलता है जबकि यह लागत अमरीका में 61 डॉलर, जर्मनी में 79 डॉलर और यूके में 70 डॉलर प्रति टन है। यहाँ कुशल श्रम सस्ता और सुलभ भी है। भारत में कुशल श्रमिक के लिए प्रति घंटा लागत 1 डॉलर बैठता है जबकि अमरीका में यह 20 डॉलर से भी अधिक पड़ता है। भारत में मजदूरी लागत कुल लागत का 10 प्रतिशत बैठता है जबकि यूरोप और अमरीका में यह 20-30 प्रतिशत तक बैठता है। भारत में जहाँ श्रमिकों की कम उत्पादकता इन सभी लाभों को निष्प्रभावी कर देती है, को अपनी लाभप्रद स्थिति का सदुपयोग करना सीखना होगा।

 उद्योग की वर्तमान समस्याएँ
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात उद्योग अकुशल आयोजना, अत्यधिक नियंत्रण और उपयुक्त समन्वय की कमी का शिकार रहे हैं जिसके कारण निर्माण कार्य में विलंब हुआ और परिणामी लागत में वृद्धि हुई। हमें दो मिलियन टन क्षमता के इस्पात संयंत्र का निर्माण कार्य पूरा करने में लगभग 8 वर्षों का समय लगता है जबकि जापान में चार मिलियन टन क्षमता के संयंत्र का निर्माण तीन वर्षों में ही पूरा कर लिया जाता है।

इसलिए हम इस्पात उद्योग के ठोस विकास के लिए निम्नलिखित सुझाव दे सकते हैं:

एक, इस्पात निर्माण के मुख्य कार्यकलाप पर ध्यान केन्द्रित किया जाए और गौण कार्यकलापों को संबंधित विशेषज्ञ संगठनों पर छोड़ दिया जाए।

दो, अर्धनिर्मित उत्पादों के उत्पादन में भारी कटौती की जाए।

तीन, अनुकूलतम धारणीय संरचनात्मक स्तर तक पहुँचने के लिए क्षमता विस्तार हेतु निवेश किया जाए।

चार, प्रौद्योगिकी का चयन ऐसा हो कि प्रत्यक्ष नियोजन की आवश्यकता कम पड़े जिससे प्रचालन संबंधी मितव्ययिता सुनिश्चित की जा सके (इसके लिए कार्मिकों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नवीनतम प्रौद्योगिकियों की जानकारी होनी चाहिए) और मजदूरी संरचना को उत्पादन दक्षता के साथ सम्बद्ध करना चाहिए।

पाँच, संयंत्र के स्वचालन के अलावा सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित कार्यालय स्वचालन, ताकि कम से कम कर्मचारियों द्वारा अधिक उत्पादकता के साथ कार्य निष्पादित कर लिया जाए।

छः, लौह और इस्पात सामग्रियों का निर्यात एजेण्टों के माध्यम से करने की बजाए विशेषीकृत डिविजन अथवा अनुषंगी (सब्सिडियरी) के माध्यम से सीधे किया जाए।

सात, नीतियों को बनाने में ग्राहकोन्मुखी दृष्टिकोण अपनाया जाए।

बोध प्रश्न 2
1) भारत में लौह और इस्पात उद्योग के विकास में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका की जाँच कीजिए।
2) भारत लौह और इस्पात के उत्पादन में अन्य कई देशों की तुलना में अनेक दृष्टि से लाभ की स्थिति में है, वर्णन कीजिए।
3) भारत में इस समय इस्पात उद्योग द्वारा सामना की जा रही कुछ मुख्य समस्याओं का वर्णन संक्षेप में कीजिए।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

2 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now