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इंटरनेट के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव क्या है , internet positive and negative effects in hindi
internet positive and negative effects in hindi इंटरनेट के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव क्या है ?
इंटरनेट एवं इसका संस्कृति पर प्रभाव
वर्तमान में नवीन वैज्ञानिक आविष्कार के रूप में ‘इंटरनेट’ जनसम्पर्क का महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो रहा है। मार्च 1989 में सर्न के वैज्ञानिक ‘टिम बर्नर्स ली’ द्वारा सूचनाओं के गंतव्य के रूप में ‘वल्र्ड वाइड वेब’ के आविष्कार के बाद इंटरनेट का तेजी से विकास तथा विस्तार हुआ है। इस खोज के बाद सूचनाओं के तीव्रतम आदान-प्रदान तथा संपूर्ण डाटा को एक वेब में एकत्रित करने में मदद मिली। आज यह एक ऐसा संचार माध्यम बन गया है, जो पूरी दुनिया तक अपनी पहुंच रखता है। इंटरनेट से जुड़ते ही जनसम्पर्क की एक असीमित दुनिया सामने आती है। जनसंपर्क के लिए चाहे कोई भी क्षेत्र क्यों न हो केवल एक वेबसाइट के जरिए पूरी दुनिया तक अपनी पहुंच स्थापित की जा सकती है। यह एक ऐसा जनसंपर्क उपकरण है जिससे सेवा, सूचना, संप्रेषण, जागकारी जुड़ाव, संकलन, दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति, फीडबैक, आंकड़े, संवाद, ई.मेल, तथा लक्ष्य प्राप्ति जैसे पक्ष संचालित किए जा सकते हैं।
सोशल मीडिया संस्कृति
संचार माध्यमों के विकास, प्रसार और बढ़ती भूमिकाओं को स्वीकार और अंगीकार करने के बावजूद सात वर्ष पूर्व तक किसी ने कल्पना नहीं की थी कि सोशल मीडिया का अंतर्जाल हमारी सोच, समझ, दृष्टिकोण, विचार और राजनीति को इस कदर प्रभावित करेगा। सोशल मीडिया नेटवर्क ने सभी यूजर्स को अभिव्यक्ति का सशक्त उपकरण दे दिया है। इसकी विशेषता पारस्परिकता है, इसमें स्वतंत्रता अंतर्निहित है। सोशल मीडिया सामाजिक नेटवर्किंÛ वेब साइटों जैसे फेसबुक, टिवट्र, लिंकर, यू-ट्यूब, लिंक्डाइन, पिंटेरेस्ट, माइस्पेस, साउंडक्लाउड और ऐसे ही अन्य साइटों पर इस्तेमाल कर्ताओं को विचार-विमर्श, सृजन, सहयोग करने तथा टेक्सट, इमेज, आॅडियो और वीडियो रूपों में जागकारी में हिस्सेदारी करने और उसे परिष्कृत करने की योग्यता और सुविधा प्रदान करता है।
सोशल मीडिया की परिभाषा में कहा गया है कि ‘यह इंटरनेट आधारित अनुप्रयोगों का एक ऐसा समूह है जो प्रयोक्ता-जनित सामाग्री के सृजन और आदान-प्रदान की अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकी से ऐसे क्रियाशील मंचों का निर्माण करता है जिनके माध्यम से व्यक्ति और समुदाय प्रयोक्ता-जनित सामाग्री का संप्रेषण एवं सह-सृजन कर सकते हैं, उस पर विचार-विमर्श कर सकते हैं और उसका परिष्कार कर सकते हैं। यह संगठनों, समुदायों और व्यक्तियों के बीच संचार में महत्वपूर्ण और व्यापक परिवर्तनों को अंजाम देता है।
शिक्षा के संदर्भ में सोशल मीडिया के प्रभाव की गहराई मापने के लिए हमें शिक्षा के उद्देश्यों पर दृष्टिपात् करना होगा और यह विचार करना होगा कि क्या सोशल मीडिया इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है या कि एक बाधा साबित होता है। शिक्षा में सोशल मीडिया को सम्मिलित करने से विद्यार्थी को बाहरी रूप से प्रेरित होने से आगे बढ़कर अंतरंग रूप से प्रेरित होने में मदद मिल सकती है।
शिक्षा में सोशल मीडिया के लाभ उसके दुर्गुणों से अधिक हैं। अतः सोशल मीडिया को शिक्षा के साधनों में शामिल किए जागे की आवश्यकता है। हां,इसे शिक्षा के लिए रामबाण नहीं माना जा सकता और शिक्षा में सोशल मीडिया के इस्तेमाल के हानिप्रद पहलुओं के प्रति सचेत रहना होगा। परंतु सोशल मीडिया में वार्तालाप, सहयोग, सामंजस्य, वैश्विक पहुंच, अपेक्षा पर खरा उतरने और कम लागत की शिक्षा की जो संभावना,ं निहित हैं वे भारत के सर्व शिक्षा अभियान को सफल बनाने में वरदान सिद्ध हो सकता है। हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि सोशल नेटवर्किंग, समूचे विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय आॅनलाइन (इंटरनेट) गतिविधि बनकर उभरी है। इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि राजनीतिक जीवन में सोशल मीडिया की प्रासंगिकता पर अब कोई संदेह नहीं रह गया है। सामाजिक और राजनीतिक कार्यों के लिए फेसबुक, टिवट्र और सोशल मीडिया के अन्य मंचों का उपयोग अब आम होता जा रहा है।
मुख्यधारा की संस्थागत राजनीतिक प्रक्रिया की श्रेणीबद्ध और नौकरशाही की प्रवृत्तियों से मुक्त संवाद, बहस और मुद्दा आधारित चर्चाओं के नवीन अवसर पैदा करने में सोशल मीडिया की संभावनाओं को प्रायः सराहा गया है। विद्वानों एवं जनआंदोलनकारियों ने राजनीतिक सक्रियता के आचरण (कार्यान्वयन) के संपूर्ण बदलाव में सोशल मीडिया की दोहरी संभावनाओं की ओर इशारा किया है। प्रथम सोशल मीडिया सामूहिक कार्रवाई से जुड़े खर्च में कमी लाने में मदद करता है। दूसरे, जैसाकि ताइपेई, हांगकांग और सिंगापुर के पर्यावरण संबंधी नागरिक (सामाजिक) संगठनों के हालिया अध्ययन से पता चला है, कि सोशल मीडिया प्रकाश की गति से कार्यान्वयन का असर प्रदान करता है, जो सक्रियता के क्षेत्र में संघ संबंधी विचार-विमर्श में धीमी गति से पारम्परिक कार्यान्वयन की तुलना में त्वरित अनुक्रियाओं और लचीली परिवर्तनशील गठबंधनों पर जोर देता है।
आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों के लिए लोगों का समर्थन जुटाने के अतिरिक्त सोशल मीडिया जन चेतना जगाने का काम भी बखूबी करता है। फिलीपींस के एक उदाहरण से इस तथ्य को भली-भांति समझा जा सकता है। वहां लिखान नामक एक जमीनी जन संगठन एक दशक से भी अधिक समय से प्रजनक स्वास्थ्य कानून के लिए संघर्ष कर रहा था। संगठन ने 2010 में एक आॅनलाइन पत्रिका स्थापित की। इस प्रक्रिया ने उस वग्र को जिन्हें यौन और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य सेवाओं की सर्वाधिक आवश्यकता थी, अपने जीवन के साझे अनुभवों से एक सुविचारित समीक्षा तैयार करने में बेहद मदद की। इससे उन्हें अपने राजनीतिक मूल्य को पहचानने में भी मदद मिली। इस प्रकार के अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनमें फेसबुक, डिजिटल वीडियोज और यू-ट्यूब के उपयोग से सामूहिक चेतना जगाने में सफलता मिली।
संस्कृति पर इंटरनेट के प्रभाव
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही कम्प्यूटर का चलन इतना बढ़ गया कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह सांस्कृतिक हो या सामाजिक हो या आर्थिक, व्यक्ति मानो कम्प्यूटर का गुलाम मात्र बनकर रह गया। कम्प्यूटर का चलन जैसे-जैसे बढ़ता गया सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार के क्षेत्र में विकास की बाढ़-सी आ गई। कम्प्यूटर ने शिक्षा, मनोरंजन एवं सूचना के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय, कार्य किए हैं। कम्प्यूटर की भण्डारण क्षमता ने दस्तावेजों से भरे सैकड़ों कमरों को 1-2 इंच के पेन ड्राइव एवं हार्ड डिस्क में आसानी से सुरक्षित रख सकने तक समेट दिया है। कम्प्यूटर और टेलिफोन के साझे प्रयोग से इंटरनेट का चलन हुआ, जिससे सम्प्रेषित सूचनाओं की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ गई। साथ ही भौगोलिक दूरियां कम हो गईं। प्रत्येक कार्य कम्प्यूटर पर निर्भर हो गया, चाहे खरीदारी हो, टिकट बुक कराना हो, पैसा जमा करना हो वगैरह-वगैरह।
जिस प्रकार कम्प्यूटर मानव सभ्यता के लिए उपयोगी साबित हुआ उसी के समानांतर मानव संस्कृति के लिए अभिशाप भी सिद्ध हो रहा है। कम्प्यूटर ने सामाजिक संरचना में व्यापक फेरबदल किया है। स्कूलों के द्वारा अत्याधुनिक कम्प्यूटर सुविधा देने की होड़ लगी है। आजकल बच्चे पाॅर्न साइट्स चोरी-छुपे देखते हैं, जिससे उम्र से पूर्व ही बच्चे बड़े हो रहे हैं, जिससे समाज में अपराध बढ़ रहे हैं। सामाजिकता समाप्त होती जा रही है। आज सोशल साइट्स पर चेटिंग कर विवाह तक हो रहे हैं, जो आम बात हो गई है। कम्प्यूटर प्रयोग से समाज में व्यक्तिगत संचार कम हो रहा है। घरों में भी परस्पर संचार कम होने से रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। महान मनोवैज्ञानिक जेनिफर आर. फेरीस का मानना है कि कम्प्यूटर, इंटरनेट का आदी होना वास्तव में एक मनोरोग के लक्षण हैं। इसे इंटरनेट एडिक्शन डिसआर्डर भी कहते हैं।
वर्जीनिया मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं के अन्वेषण के अनुसार, वाई.फाई, लेपटाॅप व इंटरनेट सर्फिंÛ करने वालों के शरीर में शुक्राणुओं की गति मंद पड़ जाती है जिससे नपुंसकता का खतरा बढ़ जाता है। कम्प्यूटर पर अश्लील एवं पाॅर्न साइट्स देखने से मस्तिष्क के आर्बिटो फ्रंटल काॅर्टेक्स में डोपामाइन नामक रसायन बढ़ जाता है। इस रसायन के प्रभाव से बच्चे उम्र से पूर्व वयस्क होते जा रहे हैं, जिससे समाज की पारिवारिक संरचना परिवर्तित होती जा रही है।
कम्प्यूटर का उपयोग एक शस्त्र के रूप में किया जा रहा है। साइबर आतंकवाद या अपराध किसी सामाजिक, धार्मिक, सैद्धांतिक, राजनीतिक या अन्य उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कम्प्यूटर या कम्प्यूटर तंत्र को बाधित करना या ऐसा करने की जागबूझकर कोशिश करना है। जब इंटरनेट का विकास हुआ था, तब इंटरनेट के संस्थापकों को कदाचित यह भी पता रहा होगा कि इंटरनेट सर्वव्यापी क्रांति लाएगा। इंटरनेट के अनुचित उपयोग के बारे में तब कल्पना ही नहीं की गई थी। यही कारण है कि इंटरनेट के आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए शुरू में ही कोई प्रभावी तकनीकी एवं अधिनियम नहीं बना, गए। लोगों के साथ इंटरनेट के इस पक्ष का दुरुपयोग करने में लिप्त रहकर साइबरस्पेस में आपराधिक गतिविधियों को स्थिर करने के लिए प्रयासरत् रहै, साइबर क्राइम का क्षेत्र प्रतिदिन नवीन स्वरूपों के साथ उदीयमान हो रहा है।
साइबर अपराध पारम्परिक प्रकृति के होते हैं, जैसे चोरी, धोखाधड़ी, जालसाजी, मानहानि तथा शरारत। लेकिन अब इसके क्षेत्र का व्यापक विस्तार हो चुका है साइबर आतंकवाद, बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, ब्लैकमेलिंग, अश्लील सामाग्री का वितरण, किसी के खाते का वित्तीय फर्जीवाड़ा करना, किसी की सूचनाओं को चुराकर उसके खिलाफ रणनीति बनाना, असामाजिक तथा उन्माद फैलाने वाली सामाग्री का प्रसारण करना। इस प्रकार राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आम नागरिकों को प्रताड़ित करने एवं वित्तीय धोखाधड़ी करने के लिए साइबर क्राइम किया जा रहा है।
इंटरनेट के आने के बाद जिन परिवर्तनों ने पत्रकारिता को सर्वाधिक प्रभावित किया है उसमें सोशल मीडिया का नाम लिया जा सकता है। गूगल जैसे सर्च इंजनों ने जहां डिजिटल पत्रकारिता को नए आयाम दिए वहीं टिवट्र और फेसबुक जैसे माध्यमों ने पत्रकारिता के स्वरूप को तेजी से बदलना शुरू किया है। हालांकि सोशल मीडिया ने जितना फायदा पत्रकारिता को पहुंचाया है उतनी ही चुनौतियां भी खड़ी की हैं। वर्चुअल दुनिया की सत्यता को लेकर सवाल हमेशा खड़े होते रहे हैं।
मीडिया और समाज का रिश्ता बेहद गहरा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में समाज के प्रति मीडिया की जवाबदेही भी अधिक है। सोशल मीडिया के रूप में आॅनलाइन समाज ने पूरे विश्व में पांव पसारे हैं। समृद्ध लोकतांत्रिक मूल्यों एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए जागा जागे वाला हमारा देश भी इस नवोदित सोशल मीडिया के प्रभाव में है। हम मीडिया के इस नए चेहरे की उपादेयता से इंकार नहीं कर सकते, क्योंकि इसने ग्लोबल विलेज की अवधारणा को साकार करते हुए वैश्विक स्तर पर जहां ज्ञान और जागकारी के भंडार को समृद्ध बनाया है, वहीं गजदीकियां भी बढ़ाई हैं।
वस्तुतः इंटरनेट ने दुनिया बदल दी है। मीडिया जगत, समाज एवं संस्कृति इससे अछूती नहीं रही है। प्रौद्योगिकी ने पूरे मीडिया का चेहरा ही बदल कर रख दिया। आॅनलाइन पत्रकारिता के इस युग में सूचना,ं पंख लगाकर उड़ रही हैं। मीडिया के परम्परागत तौर-तरीकों के बरक्स इंटरनेट, कम्प्यूटर, लैपटाॅप, चिप, मेमोरी कार्ड, डाटा कार्ड, मदरबोर्ड और कार्ड रीडर ने पत्रकारिता समाज, संस्कृति एवं सूचना के क्षेत्र में एक नई दुनिया रच डाली है, जिसने सचमुच सूचना क्रांति को सार्थकता प्रदान की है।
मीडिया ने समाज को सही दिशा और गति प्रदान की है और वर्तमान में भी कर रहा है। परंतु भविष्य में इसमें कुछ सुधार की अपेक्षा है क्योंकि मीडिया का कार्य न केवल सूचना एवं मनोरंजन करना है अपितु लोगों को प्रत्येक क्षेत्र में जागरूक करते हुए स्वच्छ एवं नैतिक जनमत तैयार करना भी है। लोग क्या चाहते हैं यह जरूरी तो है परंतु उसका समाज पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना उससे भी ज्यादा जरूरी है। हमें इसी खोए हुए लक्ष्य को प्राप्त करने की आवश्यकता है।
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