JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Uncategorized

अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है | अंतर्राष्ट्रीय करण किसे कहते है , परिभाषा internationalization in hindi meaning

(internationalization in hindi meaning) अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है | अंतर्राष्ट्रीय करण किसे कहते है , परिभाषा ?

अंतर्राष्ट्रीयकरण की अभिप्रेरणा
सामान्यतः अंतर्राष्ट्रीयकरण के अभिप्रेरकों के राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक, ये चार कारक होते हैं। विशिष्ट स्थितियों के आधार पर इनके महत्त्व एवं अंतर्संबंधों में परिवर्तन होता रहता है। इन कारक समूहों के कुछ प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं –

राजनीतिक कारक
ऽ विश्व शान्ति के प्रति समझ का पोषण।
ऽ भावी निर्णय-कर्ताओंध्मत-निर्धारकों को प्रभावित करना।
ऽ विदेशों में किसी देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि का निर्माण।
आर्थिक कारक
ऽ विदेशी छात्रों से होने वाली आय।
ऽ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से धन-प्राप्ति की सुनिश्चितता।
ऽ आर्थिक स्पर्धा का निर्माण।
ऽ छात्रों को व्यवसाय के विश्व-बाजार के उपयुक्त बनाना।
शैक्षिक प्रेरक तत्त्व
ऽ संस्था एवं क्षमता का निर्माण।
ऽ विशेषीकृत क्षेत्रों में, शोधकर्ताओं को अपने समकक्षों के समान अग्रसर होने के योग्य बनाना।
ऽ राष्ट्रीयता का भेदभाव किए बिना सभी को उच्चतम स्तर के अध्यापन, शोध या अन्य सेवाओं तक पहुँचने के अवसर प्रदान करना।
ऽ अंतर्राष्ट्रीय अनुभव या अंतर्राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों की समझ वाले शिक्षकों द्वारा पढ़ाए जा रहे विदेशी छात्रों के माध्यम से अन्य पद्धतियों द्वारा (उनके) अपने देश के छात्रों से संपर्क स्थापित कराने का प्रयत्न करना।
ऽ अंतर्राष्ट्रीय मानकों का प्रयोग करते हुए छात्रावासों के स्तर का निर्माण।
सांस्कृतिक तर्क एवं प्रेरक
ऽ संस्था के सांस्कृतिक कार्यों की पूर्तिय अधिकतर विश्वविद्यालय अपने आपको अंतर्राष्ट्रीय मानते हैं।
ऽ छात्र, शिक्षक आदि के व्यक्तित्त्व का विकास।
ऽ अन्य देशों में ज्ञानं और अपनी संस्कृतिय विशेषकर अपनी भाषा, का पोषण।

अंतर्राष्ट्रीयकरण के कुछ अनुभव
अंतर्राष्ट्रीयकरण की नीतियाँ वृहत्तर भौगोलिक विस्तार तथा अधिक व्यापक कार्यनीतियों की प्राप्ति हेतु मार्ग-दर्शिकाएँ भी हैं। सामान्यतः अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये राष्ट्रीय नीतियाँ अभी तक मुख्य रूप से छात्रों की गतिशीलता के परंपरागत साधनों पर आधारित हैं। किन्तु कुछ देशों में वैयक्तिक स्तर से संस्थागत स्तर की ओर होता हुआ परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देता है। राष्ट्रीय नीतियों में व्यापक क्षेत्र की गतिविधियाँ अधिक से अधिक शामिल की जा रही हैं जिनमें पाठ्यक्रम, संस्थागत संगठन एवं प्रबंधन तथा उच्च शिक्षा व्यवस्था की संरचना जैसे विषयों पर दृढ़ता पूर्वक ध्यान केन्द्रित किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीयकरण की नीतियों का विकास, संस्थागत तथा बाजार-सम्बन्धित तत्त्वों के बढ़े हुए प्रभाव के द्वारा नियंत्रित हो रहा है। विकेन्द्रीकरण तथा संस्थाओं की स्वायत्तता में वृद्धि की प्रवृत्ति सामान्यतः देखी जा रही है। कुछ मामलों में वित्तीय सहायता, संस्था के बजट में शामिल कर दी जाती है या एकमुश्त रकम के रूप में दे दी जाती है। ऑस्ट्रेलिया के विषय में यह सर्वथा सत्य है।

यद्यपि राष्ट्रीय नीतियाँ अधिक संस्थोन्मुख, व्यापक तथा सुसंगत रूप से योजनाबद्ध हो सकती हैं किन्तु अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये वित्त-पोषण प्रायः अब भी व्यक्ति-उन्मुखी एवं बिखरा हुआ है। अंतर्राष्ट्रीयकरण के मूल्यांकन तथा गुणवत्ता की सुनिश्चितता की दिशा में अब भी पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छात्रों, शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं के बढ़ते हुए आवागमन तथा अनेक अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों एवं तंत्रों की स्थापना के साथ-साथ, उच्च शिक्षा के संबंध में, राष्ट्रीय नीतियों का परिणाम, नियमों और कानूनों में परिवर्तन के रूप में हुआ है। इस संबंध में कुछ उदाहरण है विदेशी पहचान पत्रों की मान्यता, अन्य भाषाओं में अध्यापन की संभावना, शैक्षिक उपाधियों के लिये देश की पद्धति, शुल्क संबंधी नीतियाँ या छात्रों को मिलने वाले अनुदान में हस्तातरण शामिल है। यह कहा जा सकता है कि इन परिवर्तनों ने संस्थागत स्वायत्तता तथा अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों के विकास की स्वतन्त्रता में वृद्धि की है। लगता है कि छोटे देशों में तंत्र स्तरीय इन परिवर्तनों के प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक तीव्र रूप में दिखाई देते हैं। संस्था-स्तरीय प्रभावों में, अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये अवसंरचना (पदतिंेजतनबजनतम) का संगठन शामिल होता है जिसके अंतर्गत नए पदों की व्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीयकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के कार्यक्रमों के लिये कार्यनीतियों के विकास तथा शिक्षा के माध्यम के रूप में विदेशी भाषाओं के प्रयोग की बढ़ती हुई प्रवृत्ति आदि को गिनाया जा सकता है।

बहुत से देशों की नीतियाँ अनेक अंतर्राष्ट्रीय बाध्यताओं से प्रभावित होती हैं। इनके साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार संबंधी बाध्यताएँ भी अपनी भूमिका निभाती हैं। इस कारक का प्रभाव उन देशों में विशेष रूप से दिखाई देता है जो उच्च शिक्षा तंत्र के अंतर्राष्ट्रीयकरण से प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ की आशा रखते हैं। अंतर्राष्ट्रीयकरण द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव डालने वाली तीसरी क्रिया विधि यह है कि अनेक देश, अन्य देशों में, उच्च शिक्षा के विकास का सावधानीपूर्वक अध्ययन करते हैं और उच्च शिक्षा के लिये नई राष्ट्रीय नीतियों की पद्धति का विकास करने के लिये प्रायः इन अध्ययन या प्रत्यक्ष खोजों का निवेश किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीयकरण की नीतियों के प्रतिपादन एवं उच्च शिक्षा संबंधी नीतियों की संभावित दिशाओं के निर्धारण में अंतर्राष्ट्रीय बाजार की शक्तियाँ एवं बढ़ती हुई संस्थागत स्वायत्तता की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो गई है। इन निष्कर्षों से अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में उच्च शिक्षा के समन्वयन के नए नमूने के विकास की संगति बैठती है।

बोध प्रश्न 2
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तर से अपने उत्तर मिलाइए।
1) अंतराष्ट्रीयकरण के शैक्षिक प्रेरकों का उल्लेख कीजिए।
2) राष्ट्रीय नीतियाँ उच्च शिक्षा के नियमन एवं उससे संबंधित कानून को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?

बोध प्रश्न 2 उत्तर
1) शोधकर्ताओं को, समकक्षों के साथ उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्रों में अग्रसर होने में समर्थ बनानाय राष्ट्रीयता से निरपेक्ष रहकर शिक्षण, शोध या उच्चतम स्तर की सेवा प्रदान करनाय विदेशी छात्रों के माध्यम से स्वदेश के छात्रों का अन्य पद्धतियों के साथ संपर्क कराना तथा स्वदेशी शिक्षा पद्धति की गुणवत्ता के स्तर में सुधार। (अधिक विवरण के लिए भाग 27.3 देखें)

2) छात्रों, शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं की संवर्दि्धत गतिशीलता तथा बड़ी संख्या में अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों एवं तंत्रों की स्थापना के परिणाम स्वरूप उच्च शिक्षा संबंधी विधानों एवं विनियमों में परिवर्तन किए गए हैं। (अधिक विवरण के लिए उपभाग 27.3.1 देखें)

27.7 सारांश
इस इकाई में आपने संसार के अन्य भागों की भाँति ही ऑस्ट्रेलिया में भी शिक्षा में होने वाले परिवर्तनों के विषय में पढ़ा है। वहाँ दो बड़े परिवर्तन हुए है और भविष्य में और परिवर्तन भी हो सकते हैं। एक तो, अन्तर्राष्ट्रीयकरण के कारण वहाँ की शिक्षा पद्धति राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर आई है। अन्य देशों के साथ बड़े पैमाने पर छात्रों और शिक्षकों का विनिमय हो रहा है। इतना ही नहीं अनेक विदेशों में शिक्षण केन्द्रों की स्थापना भी की गई है जो व्यापारिक निकायों या बहुराष्ट्रीय (निगमों) की भाँति उच्च शिक्षा देने वाली स्वतंत्र अधिकारों से युक्त ऑस्ट्रेलियायी संस्थाओं के रूप में अनेक विकासशील देशों, विशेषकर एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के देशों में कार्य कर रही हैं। विद्यालय स्तरीय शिक्षा के स्थान पर उच्च शिक्षा में अन्तर्राष्ट्रीयकरण अधिक प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ता है।

दूसरे, शिक्षा की विषयवस्तु तथा उसके उद्देश्यों में भारी क्रान्ति आ रही है। केवल मनोक्षितिज के विस्तार के लिये, उदार मूल्यों पर आधारित शिक्षा अब अतीत की वस्तु हो गई है। द्वितीय विश्व युद्ध के युग में, व्यापक शिक्षा की धारणा ने बड़ी संख्या में युवाजन को विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेकर उपाधियाँ प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहन दिया था जो आज के रोजगार-बाजार युग में निरर्थक हो चुकी हैं। एक वस्तु के रूप में शिक्षा एक बार फिर अभिजत (विशिष्ट वर्ग) का उद्देश्य बनती जा रही है। शिक्षा का व्यवसायीकरण बढ़ गया है। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ निगमित निकाय शिक्षा के क्षेत्र में अधिक से अधिक धन का निवेश करने लगे हैं और शिक्षा को मनचाही दिशा में मोड़ने लगे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई क्रान्ति ने शिक्षा की विषय वस्तु को और भी परिवर्तित कर दिया है क्योंकि शिक्षा एवं रोजगार के अवसरों के क्षेत्रों में बाजार की शक्तियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं।

27.8 कुछ उपयोगी पुस्तकें
बैक, केन, डेरोथी डेविस इत्यादि, इन्टरनेशनलाइजेशन एंड हायर एड्युकेशन रू गोल्स एंड स्ट्रैटेजीज, ऑस्ट्रेलिया गवर्नमैंट पब्लिशिंग सर्विस, कैनबरा, 1992।
बीजली, होन के., इन्टरनैशनल एज्युकेशन इन ऑस्ट्रेलिया थू द 1990, आस्ट्रेलिया गवर्नमेंट पब्लिशिंग सर्विस, कैनबरा, 1992।
कर, क्लार्क, हायर एज्युकेशन कैननोट एस्केप हिस्टरी, इशूज फौर द ट्वेन्टी फर्स्ट सेनचरी, स्टेट यूनीवर्सिटी ऑफ न्यू योर्क प्रेस, 1994।
डौएश, कार्ल डब्लू, ‘नैशनलिस्टिक रेस्पोनसेज टू स्टडी अब्रौड, आर्टिकल रिप्रिन्टेड इन द इन्टरनैशनल स्पेकटेटर एन ए एफ एस ए, वॉशिंगटन, डी.सी., वाल्यूम 6. नम्बर 3, स्प्रिंग 1997।
नाइट, जेन एंड हान्स ड विट, इन्टरनैशनलाइजेशन ऑफ हायर एड्युकेशन इन एशिया पेसिफिक कंट्रीज, इ ए आई इ, एमस्टरडैम, 1997।
नैशनल बोर्ड ऑफ एमप्लोयमेंट,एडयुकेशन एंड ट्रेनिंग, अचीविंग क्वॉलिटी, रिपोर्ट ऑफ द हायर एड्युकेशन काउंसिल, ऑस्ट्रेलिया गवर्नमेंट पब्लिशिंग सर्विस, कैनबरा, 1992।
नीव, गाय, ‘द यूरोपियन डायमेंशन इन हायर एज्युकेशन, एन हिस्टोरिकल एनैलिसिस, बैकग्राउंड कॉनफेरेंस डॉक्यूमेंट, एन्सशीड, अप्रैल 7-9, 1997।
विट, द हान्स, स्ट्रैटेजिज फॉर इंटरनैशनलइजेशन ऑफ हायर एड्युकेशन, ए कम्पैरेटिव स्टडी
ऑफ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोप एंड द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, इ ए आई इ, एमस्टरडैम, 19951

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

3 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

3 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

3 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now