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अन्तरराष्ट्रीय संरक्षणवाद क्या है | International protectionism in hindi meaning trade definition
International protectionism in hindi meaning trade definition अन्तरराष्ट्रीय संरक्षणवाद क्या है ?
अन्तरराष्ट्रीय संरक्षणवाद का सामना करने के उपाय
भारत को बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय संरक्षणवाद का सामना करना ही होगा। संरक्षणवाद दो रूपों में हैः
(प) उद्योग – विशेष संरक्षणवाद (पप) उत्पाद-विशेष संरक्षणवाद ।
प) उद्योग- विशेष संरक्षणवाद से मुकाबला करने की रणनीति का एक भाग बहुपक्षीय निकायों को सुदृढ़ बनाना होगा जो सभी व्यापारों के लिए समान मापदंड निर्धारित करता है। दूसरा उपाय यह हो सकता है कि स्थानीय उद्योग में विदेशी पूँजी का हिस्सा बढ़ाया जाए, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि इस पूँजी के हितों के वास्ते उन्हें अपने देश में संरक्षणवादी प्रवृत्तियो के विरुद्ध कार्य करना होगा।
पप) उत्पाद- विशेष संरक्षणवाद का मुकाबला विकसित विश्व के बाजारों में अपने उत्पाद के प्रति निष्ठा पैदा करके की जा सकती है। इसके लिए वृहद् परिमाण में निर्यात करने की अपेक्षा ब्राण्ड वाले वस्तुओं का निर्यात करना होगा।
पपप) एक प्रभावशाली अन्तरराष्ट्रीय गठबंधन विकसित करने के लिए अल्प प्रयास किए गए हैं। फलतः भारत के पास एक ऐसा मंच नहीं है जिससे वह हैसियत के साथ दृढ़तापूर्वक बातचीत कर सके । भारत दक्षिण-दक्षिण सहयोग के प्रति निष्ठावान रहा है हालाँकि इस सहयोग का प्रभावक्षीण हो गया है क्योंकि अन्य विकासशील देश क्षेत्रीय गुटों में प्रवेश का प्रयास कर रहे हैं । आर्थिक गठबंधन के प्रति अधिक यथार्थवादी रवैया यह होगा कि उन देशों की ओर रूख किया जाए जिनके पास न सिर्फ भारत को देने के लिए कुछ है अपितु वे भी किन्हीं कारणों से भारत के साथ गठबंधन करना चाहते हैं।
संक्षेप में, विश्व अर्थव्यवस्था के साथ सफलतापूर्वक एकीकरण के लिए अपने देश में परस्पर पूरक नीतियाँ और संस्थाएँ होनी चाहिए। नीति निर्माताओं को उदारीकरण की बाह्य रणनीति को अधिक सबल बनाने के लिए इस तरह की आतंरिक रणनीति बनानी चाहिए जो राज्य को भौतिक और मानव पूँजी के निर्माण तथा सामाजिक द्वंद्व को कम करने की भारी जिम्मेदारी सौंपती है।
बोध प्रश्न 3
़1) उन उपायों के बारे में बताइये जिनसे प्रतिस्पर्धात्मकता प्राप्त करने के लिए अनुकूल वातावरण
उत्पन्न हो सके।
2) आपके विचार में एक फर्म को प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता हासिल करने के लिए क्या उपाय करना चाहिए, सुझाव दें।
3) बढ़ते हुए अन्तरराष्ट्रीय संरक्षणवाद का सामना करने के उपाय सुझाइए।
सारांश
भारत उद्योग की अन्तरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता के क्षेत्र में विश्व के अन्य देशों से काफी पीछे है। हाल ही में किए गए व्यापक नीतिगत परिवर्तनों के बावजूद भी यदि भारत अपनी स्थिति में और सुधार चाहता है तो इसे बहुत कुछ करना होगा। यह सिर्फ उपयुक्त मूल्य निर्धारित करने का प्रश्न नहीं है अर्थात सिर्फ उन्हीं नीतियों को नहीं बदलना है जो घटक आदानों के सापेक्षिक मूल्यों और निवेश तथा निर्यात के लिए प्रोत्साहन को प्रभावित करते हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि आयातित प्रौद्योगिकी के दक्ष आत्मसातीकरण और प्रभावी अन्तर-फर्म सहलग्नता का पोषण करके इसके प्रसार को बढ़ावा देने, मानव पूँजी के सृजन और विकास को उत्प्रेरित करने, राष्ट्रीय मानक का प्रतिमान विकसित करने, द्रुत और पारदर्शी न्यायिक प्रणाली सुनिश्चित करने और उच्च गुणवत्ता तथा समय पर सूचना प्रदान करने के लिए संस्थाओं का उपयुक्त समूह होना चाहिए।
शब्दावली
प्रतिस्पर्धात्मक बाजार ः एक बाजार जिसमें बड़ी संख्या में छोटे खरीदार और विक्रेता स्वतंत्र रूप से व्यापार करते हैं और कोई एक व्यापारी मूल्य को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं कर सकता है।
प्रतिस्पर्धात्मकता ः एक फर्म अथवा उद्योग की क्षमता कि वह अपने प्रतिद्वंदियों के उसी प्रकार के उत्पादों के बीच उपभोक्ताओं में अपने उत्पाद के लिए पसंद पैदा कर सके।
बाजार का हिस्सा ः बाजार में कुल बिक्री का अनुपात जो एक या अधिक फर्मो के हिस्से में हो।
मूल्य नियंत्रण ः सरकार के सांविधिक आदेश द्वारा मूल्य निर्धारण से संबंधित है।
प्रक्रिया ः आदानों का विशेष संयोजन, जिसकी मात्रा में परिवर्तन अधिक उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
तकनीकी प्रगति ः वह प्रक्रिया जिसके द्वारा श्रम और पूँजी के आदानों की मात्रा में परिवर्तन किए बिना अधिक उत्पादन किया जा सकता है।
कुछ उपयोगी पुस्तकें एवं संदर्भ
दिलीप मुखर्जी (संपा.); (1997). इण्डियन इण्डस्ट्री, पॉलिसीज एण्ड पोर्मेन्स, ऑक्सफोर्ड, कलकत्ता, अध्याय 5, भारत सरकार, आर्थिक सर्वेक्षण, नई दिल्ली, वार्षिक।
आई.जे. अहलूवालिया; (1991). प्राडक्टिविटी एण्ड ग्रोथ इन इंडियन मैन्यूफैक्चरिंग, ऑक्सफोर्ड, नई दिल्ली।
आई.सी. ढींगरा; (2001). द इंडियन इकनॉमी, एन्वायरेन्टमेंट एण्ड पॉलिसी, सुल्तान, नई दिल्ली।
जगदीश भगवती; (1993). इंडिया इन ट्रांजिशन: फ्रीइंग द इकनॉमी, क्लेअरडान प्रेस, ऑक्सफोर्ड।
पी.एस. पालाण्डे; (2000). कोपिंग विद लिबरलाइजेशन, रिस्पॉन्स, नई दिल्ली। अध्याय 2-6.
वल्र्ड इकनोमिक फोरमः द वल्र्ड कम्पीटिटिवनेस रिर्पोट, वल्र्ड इकनॉमिक फोरम, जेनेवा।
उद्देश्य
अर्थव्यवस्था में खुलापन आने के साथ, भारतीय उद्योग को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। भूमंडलीकरण का अर्थ बाजार की शक्तियों का स्वतंत्र रूप से कार्य करना है। भारतीय उद्योगों को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए स्वयं को भूमंडलीकरण के अनुरूप ढालना होगा तथा अन्तरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप:
ऽ प्रतिस्पर्धात्मकता का अर्थ और महत्त्व समझ सकेंगे;
ऽ उद्योग की अन्तरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता के माप की पहचान कर सकेंगे;
ऽ अन्तरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उद्योग के प्रतिस्पर्धात्मकता के स्तर की जाँच कर सकेंगे;
ऽ भारतीय उद्योग की कमजोर प्रतिस्पर्धात्मकता का कारण जान सकेंगे;
ऽ यह मूल्यांकन कर सकेंगे कि भारतीय उद्योग की वर्तमान स्थिति के लिए समष्टि वातावरण कहाँ तक उत्तरदायी है; और
ऽ उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को सुदृढ़ बनाने के लिए एक कार्य योजना बना सकेंगे।
प्रस्तावना
अर्थव्यवस्था में खुलापन आने के साथ एवं भुगतान संतुलन की दृष्टि से तथा बाजार के सृजन और विस्तार के साधन के रूप में निर्यात पर क्रमशः बढ़ते हुए जोर से औद्योगिक इकाइयों की ‘‘प्रतिस्पर्धात्मकता‘‘ केन्द्रीय महत्त्व का विषय हो गया है। प्रतिस्पर्धात्मकता का तात्पर्य एक उत्पादक द्वारा अपने प्रतिस्पर्धी उत्पादकों की उपस्थिति में अपने उत्पादों के लिए उपभोक्ताओं में पसंद पैदा करने का सामथ्र्य है। प्रतिस्पर्धात्मकता कई निमित्तों का कृत्य है जिसमें से निःसंदेह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण निमित्त वह मूल्य है जिस पर उत्पाद की बिक्री की पेशकश की जाती है। एक प्रतिस्पर्धी बाजार में जहाँ एक ही प्रकार के अनेक उत्पादों की पेशकश विभिन्न उत्पादकों द्वारा की जाती है, स्वयं मूल्य का निर्धारण उत्पादन लागत के आधार पर होता है । उत्पादन लागत उत्पादकता और आदानों के उपयोग में दक्षता को प्रदर्शित करता है। इसके अतिरिक्त, प्रतिस्पर्धात्मकता खरीदारों को पेश की गई ऋण सुविधाओं, अल्प सूचना पर विदेशी खरीदारों की माँग पूरी करने की क्षमता, गुणवत्ता के प्रति कटिबद्धता तथा ब्राण्ड की पहचान इत्यादि जैसे अन्य अनेक कारकों के समूह से भी प्रभावित होता है। हमारी रुचि इस संदर्भ में ही भारतीय उद्योग की अन्तरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता का अध्ययन करने में है।
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