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विभवमापी द्वारा प्राथमिक सेल का आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात करना internal resistance of primary cell by potentiometer in hindi
internal resistance of primary cell by potentiometer in hindi ?
प्रयोग संख्या
Experiment No.
उद्देश्य (Object):
विभवमापी द्वारा प्राथमिक सेल का आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात करना।
उपकरण (Apparatus):
विभवमापी, धारामापी, सीसा संचायक सेल, प्राथमिक सेल (लेक्लांशी सेल), प्रतिरोध बॉक्स, कुंजी तथा संयोजक तार आदि।
परिपथ चित्र (Circuit Diagram):
सिद्धान्त (Theory):
चूंकि सेल का आन्तरिक प्रतिरोध r = (E – V)/V×R …(1)
जहां E = सेल का वि.वा. बल तथा V = प्रतिरोध R में सेल से धारा प्रवाहित करने पर सेल की टर्मिनल वोल्टता।
यदि सेल के खुले परिपथ (कुंजी K2, की डॉट हटी हो) में सेल के विद्युत वाहक बल E के लिए संतुलन लम्बाई l1 तथा विभव प्रवणता x है, तो
E = xl1 …(2)
तथा यदि प्रतिरोध बॉक्स में प्रयुक्त प्रतिरोध R के लिए सेल के बन्द परिपथ में होने पर (कुंजी K2 की डॉट लगी हो) संतुलन लम्बाई l2 है तो ..
V = xl2
समीकरण (1), (2) व (3) से .
सेल का आन्तरिक प्रतिरोध r = (l1- l2/ l2) R
प्रयोग विधि (Method):
(1) प्रदर्शित चित्र के अनुसार सर्वप्रथम विभवमापी का प्राथमिक परिपथ सभी उपकरणों को संयोजक तारों द्वारा के धनात्मक ध्रुव को विभवमापी के सिरे । एवं ऋणात्मक धु्रव को धारा-नियंत्रक Rh. कंुजी K1 एवं सिरे B से जोड़ते हैं। स्पष्टतः A का विभव B से अधिक होगा।
(2) प्राथमिक सेल K, जिसका आंतरिक प्रतिरोध ज्ञात करना है, के दोनों धुवों के बीच कुंजी K2 द्वारा एक प्रतिरोध बॉक्स (R.B.) लगा देते हैं। यह द्वितीयक परिपथ (Secondary Circuit) है। टेबल पर दोनों परिपथों को अलग-अलग व्यवस्थित करते हैं।
(3) प्राथमिक सेल (लैक्लांशी) C के धनात्मक ध्रुव को विभवमापी के तार के सिरे A से जोड़ते हैं। इसके ऋणात्मक ध्रुव को धारामापी G के एक सिरे से जोड़ते हैं। धारामापी के दूसरे सिरे को विसर्पी कुंजी J से जोड़ते हैं। प्राथमिक एवं द्वितीयक परिपथों को पूर्ण रूप से अलग-अलग रखते हैं। धारामापी को आँख के सामने रखते हैं। धारामापी के समान्तर में एक शंट लगा देते हैं जिससे इसकी कुंडली जले या टूट नहीं जाये।
(4) कुंजी K2 को खुली एवं K1 में डॉट लगाकर परीक्षण कर लेते हैं कि संयोजन सही है या नहीं? इसके लिए विसर्पी कुंजी J को विभवमापी तार के सिरे A के पास (पहले तार पर) दबाकर धारामापी में विक्षेप की दिशा नोट करते हैं। तत्पश्चात् J को तार के अन्तिम सिरे B (आखिरी तार) पर ले जाकर दबाते हैं एवं पुनः धारामापी में विक्षेप देखते हैं। यदि यह विक्षेप पूर्व विक्षेप के विपरीत दिशा में हो, तो संयोजन सही है। यदि विक्षेप विपरीत दिशा में नहीं है तो स्पष्ट है कि संयोजन त्रुटिपूर्ण है अथवा A एवं B के सिरों के मध्य का विभवान्तर सेल C के वि. वा. बल से कम है। AB के मध्य विभवान्तर बढ़ाने के लिए धारा-नियंत्रक Rh का प्रतिरोध कम करते हैं जब तक कि विक्षेप विपरीत दिशा में नहीं आ जाये। प्रतिरोध कम करने के लिए धारा-नियंत्रक Rh के गट्टे को नीचे वाले उस टर्मिनल की तरफ खिसकाते हैं जो परिपथ में जुड़ा हुआ हो। यदि Rh को शून्य करने एवं संयोजन सही होने पर भी विक्षेप ठीक दिशा में नहीं आए तो ऐसी स्थिति में बैटरी B1 को बदल देते हैं।
(5) यह स्थापित होने के पश्चात् कि संयोजन सही है, सेल C के वि.वा. बल E के लिए विभवमापी के तार पर संतुलित लम्बाई ज्ञात करते हैं। इसके लिए विसी कुंजी J को AB तार पर जब तक बाईं ओर से दाहिनी ओर खिसकाते हैं जब तक कि इसको दबाने पर धारामापी G में विक्षेप शून्य नहीं हो जाए विसी कुंजी को दबाकर तार पर नहीं खिसकाना चाहिए। जहाँ तक संभव हो, संतुलन बिन्दु अंतिम तार पर प्राप्त करते हैं। इसके लिए धारा-नियंत्रक के प्रतिरोध का समायोजन करना होता की सही स्थिति ज्ञात करने के लिए जब धारामापी में विक्षेप कम हो जाये तो शंट को हटा देना चाहिए। अब संतुलन की लम्बाई ज्ञात करो। यह लम्बाई है। उदाहरण के लिए यदि संतुलन की स्थिति अंतिम अर्थात् 10वें तार पर ऐसे बिन्दु पर है जिसकी मीटर पैमाने पर स्थिति 54 सेमी है, जो पाठ्याँक होगा 900़़(100-54) = (946) सेमी = 9.46 मीटर। यदि संतुलन का यही बिन्दु विभवमापी के 9वें तार पर होता तो पाठ्याँक होता 800़़ 54 = 854 सेमी = 8.54 मीटर। इसको हम निम्न नियम में व्यक्त कर सकते हैं –
यदि सतुलन बिन्दु की स्थिति n वें तार पर प्राप्त होती है, एवं n विषम संख्या (1,3, 5, 7, 9,..) हो, तो पाठ्यांक होगा- [(n- 1) × 100, ़़ बिन्दु की उस तार पर स्थिति का पाठ्यांक ।
यदि बिन्दु n वें तार पर हो एवं द सम संख्या (2.4.6. 8….) हो, तो पाठयांक होगा – [(n- 1) × 100, ़ बिन्दु की स्थिति)।
अर्थात् उपयुक्त स्थिति में पाठ्यांक अंकित करने के लिए बिन्द की लम्बाई ऊर्ध्वाधर से अंकित करना है जिधर से तार आ रहा है अर्थात् । बिन्दु से।
सेल बन्द परिपथ में होने पर l2 ज्ञात करना
(6) धारा-नियत्रक Rh में प्रतिरोध को अपरिवर्तित रखकर कंुजी K2 में डॉट लगाते हैं एवं प्रतिरोध बॉक्स में 2 ओम की डाट निकालते हैं। इससे सेल बन्द परिपथ में आ जायेगा। सेल के दोनों ध्रुवों के मध्य कम हुए विभवान्तर V को विभवमापी के तार पर सन्तलित करते हैं। सही संतुलन की स्थिति ज्ञात करने के पूर्व धारामापी से शंट हटा लेते हैं। संतुलन की लम्बाई ज्ञात करते हैं यही l2 है।
(7) प्रतिरोध बॉक्स (R.B.) में से प्रत्येक बार लगभग 2 ओम से प्रतिरोध में वृद्धि कर उपर्युक्त विधि से प्रत्येक प्रतिरोध पर सम्बन्धित संतुलन की लम्बाई l2, ज्ञात करते हैं। इस प्रकार लगभग 5-6 पाठ्यांक लेते हैं। यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि l1 एवं l2, के पाठ्यांक के लिए धारा-नियंत्रक का प्रतिरोध अपरिवर्तित रहे। l1 का मान स्थिर रहेगा जबकि l2 का मान प्रतिरोध बॉक्स में से प्रतिरोध बढ़ाने पर बढ़ेगा।
(8) l1, l2 एवं ज्ञात होने पर अलग-अलग प्रेक्षणों के लिए आंतरिक प्रतिरोध की गणना करते हैं।
(9) पाठयांक के प्रत्येक क्रम के लिये 1 के पाठयांक को दोहराना आवश्यक नहीं है।
(10) लेक्लांशी सेल को जब काम में नहीं ले रहे हैं, तो उसमें से जिंक की छड़ को बाहर निकाल कर रख देना चाहिए।
प्रेक्षण (Observations)ः सारणी
क्रम
संख्या तार की संतुलित लम्बाई जब सेल खुले परिपथ में है,
l1 (सेमी.)
तार की संतुलित लम्बाई जब सेल बन्द परिपथ में है,
l2 (सेमी.) में
प्रतिरोध बाॅक्स
(R.B.) में प्रतिरोध
R (ओम) सेल का आन्तरिक प्रतिरोध
r = (l1- l2/ l2)R (ओम)
1.
2.
3.
4.
5.
गणना (Calculations): .
प्रथम प्रेक्षण के लिए माना
l1 = …… cm l2 = …… cm R=….. ohm
अतः r = ; l1 . l1 / l2 ) R =….. ohm
इसी प्रकार सभी प्रेक्षणों के लिए त का मान ज्ञात करते हैं।
नोट- प्रत्येक पे्रक्षण से प्राप्त त के मान का माध्य नहीं निकालना चाहिये क्योंकि यह सेल में प्रवाहित धारा पर निर्भर करता है।
परिणाम (त्मेनसज)- दिये गये प्राथमिक सेल का आन्तरिक प्रतिरोध …. ओम से … ओम तक परिवर्तित होता है।
सावधानियाँ (Precautions)-
(1) प्रेक्षण न लेने की स्थिति में पमिक सेल से जस्ते की छड को बाहर निकाल देनी चाहिए।
(2) प्रतिरोध बॉक्स में से प्रतिरोध त् के मान को अधिक नहीं निकालना चाहिए। प्रतिरोध त् का मान प्राथमिक सेल के आन्तरिक
प्रतिरोध की परास का होना चाहिए।
(3) विभवमापी तार के धनात्मक
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