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अंतर राज्य परिषद क्या है | अंतरराज्यीय परिषद की स्थापना कौन करता है गठन inter state council in hindi
inter state council in hindi अंतर राज्य परिषद क्या है | अंतरराज्यीय परिषद की स्थापना कौन करता है गठन किसके द्वारा किया जाता है अध्यक्ष कौन होता है ?
अन्तर-राज्य कौंसिल
उपरोक्त विवेचना से यह निष्कर्ष निकलता है कि सरकार के दो स्तरों पर मतभेद तथा तनाव उत्पन्न होने की संभावनाओं संघीय व्यवस्था में अंतर्निहित हैं। इन दोनों के मध्य सहयोग सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक उपायों सहित अन्य बहुत-सी प्रणालियाँ हो सकती हैं। इस प्रकार की प्रणालियाँ भारतीय संविधान द्वारा धारा 263 के अंतर्गत एक अंतर-राज्य परिषद् की व्यवस्था के माध्यम से उपलब्ध करायी गई है। केन्द्रीय सरकार ने कई वर्षों तक इस प्रकार की परिषदों का गठन नहीं किया। प्रशासनिक सुधार आयोग ने 1969 में जमा की गई। अपनी रपट में अंतर-राज्य परिषद् के गठन की सरकार ने इस चेतावनी की कोई परवाह नहीं की।
सरकारिया आयोग के सम्मुख बहुत से राज्यों ने इस प्रकार की परिषद् की नियुक्ति ने करने की महत्त्वपूर्ण शिकायत की। सरकारिया आयोग ने अपनी रपट में सिफारिश की कि धारा 263 के खण्ड (ब) तथा (स) में उल्लेखित कर्तव्यों से लैस अंतर-राज्य परिषद का गठन किया जाना चाहिए। आयोग का मानना था कि धारा 263 के अंतर्गत परिषद् के गठन तथा विशेष प्रश्नों को हल करने हेतु परिषद् को दिए जाने वाले अधिकार देने के राष्ट्रपति के बार-बार आदेश लेने की प्रक्रिया से आवश्यक रूप से बचा जाना चाहिए। फिर भी केन्द्रीय सरकार ने सामान्यतः सरकारिया आयोग की सिफारिशों के प्रति निरुत्साह ही प्रदर्शित किया है। इसलिए इस प्रकार की परिषद् के गठन के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।
1989 के चुनाव से पूर्व गठित राष्ट्रीय मोर्चे ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में वायदा किया था कि वह सभी मुख्यमंत्रियों की सलाह से केन्द्र-राज्य संबंधों के विषय में व्यापक रूप से विचार-विमर्श किया जाएगा। इस वायदे को पूरा करने की दिशा में राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार ने 25 मई, 1990 को अंतर-राज्य परिषद् के गठन हेतु राष्ट्रपति की अधिसूचना जारी की। प्रधानमंत्री, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं प्रशासक और केन्द्रीय सरकार के कैबनेट स्तर के छः मंत्री इस परिषद् के सदस्य बनाए गए। प्रधानमंत्री इस परिषद् के अध्यक्ष बने और उनकी अनुपस्थिति में उनके द्वारा नामजद किया गया। मंत्रीमण्डल का सदस्य अध्यक्ष का पद संभालेगा। परिषद् ने इसके सम्मुख रखे जाने वाले मुद्दों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत तैयार किए। इसकी एक वर्ष में तीन बार बैठक हुई। इसकी बैठकें ‘‘इन कमेरा‘‘ में हुई। इसने आम सहमति से निर्णय किए जो अन्तिम एवं बाध्यकारी थे। परिषद् ने अपनी प्रभावकारी कार्यशीलता के लिए कुछ केन्द्रीय मंत्रियों एवं मुख्यमंत्रियों की एक उप-समिति का गठन किया।
यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अन्तर-राज्य परिषद् का गठन केन्द्र-राज्य रिश्तों में सहयोग की ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम था। लेकिन यह एक वास्तविकता है कि भारत अभी तक भी एक उच्च स्तरीय केन्द्रीकृत राज्य व्यवस्था बना हुआ है। राज्यपाल की नियुक्ति और राष्ट्रपति शासन को लागू करने से लेकर केन्द्रीय सूची या समवर्ती सूची सहित ऐसे बहुत से विषय हैं जिनके कारण यह मूलतः एक केन्द्रीकृत ढाँचा है। जैसा कि पहले भी उद्धृत किया गया है कि क्षेत्रीय दलों के महत्त्वपूर्ण हो जाने तथा उनके द्वारा केन्द्र में संविद सरकार बनवाने एवं जारी रखने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो जाने के कारण और क्षेत्रीय आंदोलनों की बढ़ोतरी होने से केन्द्र द्वारा राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप करने तथा स्वयं को थोपने की उसकी प्रवृत्ति में कुछ कमी आयी है। केन्द्र-राज्यों के रिश्तों को और अधिक सौहार्दपूर्ण बनाए रखने के लिए बहुत से दलों तथा राज्यों द्वारा संविधान में आवश्यक संशोधन की माँग लगातार की जाती रही है। बहुत से समुदायों, समूहों तथा क्षेत्रों की अभिलाषाओं को पूरा करने, जनता को केन्द्र, बिन्दु बनाकर विकास करना और राष्ट्रीय हितों के लिए संघीय भावना को स्वीकार करना तथा आवश्यक परम्पराओं को बनाए रखना कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है।
बोध प्रश्न 4
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से करें।
1) राज्य अपने लिए स्वायत्तता की माँग क्यों करते हैं?
2) केन्द्र-राज्य संबंधों में सुधार के लिए किए गए कुछ उपाय बताएँ ।
3) सरकारिया आयोग की नियुक्ति क्यों की गई और इसकी क्या महत्त्वपूर्ण सिफारिशें थीं?
4) अन्तर-राज्य परिषद् की क्या भूमिका एवं उपयोगिता है?
बोध प्रश्न 4 उत्तर
1) उप-भाग 16.7.1 को देखें।
2) अ) अंतर-राज्य परिषद् की स्थापना
ब) संविधान में आवश्यक संशोधन करना
स) राज्यपालों की नियुक्तियाँ, धारा 356 के इस्तेमाल तथा भेदभाव, शक्तियों के प्रयोग के संदर्भ में स्वस्थ परम्पराओं को विकसित करना
द) शक्तियों का विकेन्द्रीकरण ।
3) अ) सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों की पृ ठभूमि में केन्द्र-राज्यों के रिश्तों पर पुनर्विचार करने हेतु सरकारिया आयोग का गठन किया गया।
ब) बहुत से क्षेत्रों में सुधार के लिए आयोग ने 265 सिफारिशों की इसके लिए उप-भाग 16.7.3 को देखें।
4) अ) केन्द्र और राज्यों के बीच मतभेद तथा सहयोग के बहुत से मामलों पर विचार-विमर्श के लिए संविधान की धारा 263 अंतर-राज्य परिषद् के गठन की व्यवस्था की गई।
ब) बहुत से मामलों पर विचार-विमर्श करने और राज्य तथा केन्द्र के बीच सहमति प्राप्त करने के लिए परिषद् एक उपयोगी मंच है,
स) विवादों को हल तथा सहयोग को प्राप्त करने के लिए यह एक सतत् प्रक्रिया को उपलब्ध कराता है।
सारांश
इस इकाई में आपने भारत में संघवाद की कार्य पद्धति का अध्ययन किया है। जबकि संविधान निर्माताओं ने आशा की थी कि सहयोगात्मक संघीय ढाँचे का विकास होगा, लेकिन केन्द्र सरकार ने प्रारंभ से ही संघवाद को एक शक्तिशाली केन्द्र के रूप में लिया। इससे भी अधिक केन्द्र को जो आपातकालीन स्थिति के लिए शक्तियाँ प्रदान की गई थीं उनका संकुचित उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया। जब 1960 के दशक के मध्य में केन्द्र तथा अधिकतर राज्यों में सत्ता पर एक दल का एकाधिकार समाप्त हो गया तब केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप तथा सत्ता के उपयोग एवं दुरुपयोग पर प्रश्न उठाए जाने लगे। इससे केन्द्र-राज्य संबंधों में खिंचाव एवं तनाव बढ़ने लगा, क्षेत्रीय आंदोलनों का उद्गम हुआ और विकेन्द्रीकरण तथा स्वायत्तता की माँग की जाने लगी। कई प्रकार के सुझाव दिए गए और प्रशासनिक सुधार आयोग ने कार्य पद्धति में सुधार के साथ-साथ संविधान में परिवर्तन का सुझाव दिया। परन्तु केन्द्र सरकार ने इन सुझावों की ओर कोई विशेष ध्यान न दिया और केन्द्रीकरण की प्रक्रिया जारी रही। परिणामस्वरूप तनाव बना रहा। 1980 के दशक में स्थिति गंभीर प्रतीत होने लगी। फिर 1983 में केन्द्रीय सरकार ने केन्द्र-राज्य संबंधों पर नए ढंग से पुनर्विचार करने एवं आवश्यक सिफारिशें करने के लिए न्यायाधीश आर.एस. सरकारिया आयोग का गठन किया। सरकारिया आयोग ने राज्यपाल की नियुक्ति, धारा 356 के अंतर्गत आपात व्यवस्थाओं के प्रयोग, वित्तीय संसाधनों के वितरण तथा संविधान की धारा 263 द्वारा अंतर-राज्य परिषद् की स्थापना सहित जैसे अन्य दूसरे उपायों के विषय में महत्त्वपूर्ण सिफारिशें कीं। सरकारिया आयोग द्वारा की गई अधिकतर सिफारिशों को लागू ही नहीं किया गया। फिर भी केन्द्रीय सरकार ने 1990 में अंतर-राज्य परिषद् का गठन किया। यह अभी भी कार्यरत है और संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। क्षेत्रीय दलों के महत्त्व प्राप्त करने तथा इनके द्वारा केन्द्र में संविद सरकार में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करने के कारण केन्द्र द्वारा राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप करने तथा अपनी इच्छा को उन पर थोपने की प्रवृत्ति में कमी आयी है। केन्द्र-राज्यों के बीच सहयोग के लिए संवैधानिक परिवर्तन एवं स्वस्थ परम्पराओं को विकसित करने की आवश्यकता को फिर भी महसूस किया जा रहा है।
शब्दावली
कॉरपोरेशन कर ः कम्पनियों की आमदनी पर कर लगाना ।
वित्त आयोग ः केन्द्र एवं राज्यों के बीच राजस्व वितरण हेतु मापदण्ड निर्धारित करने के लिए राष्ट्रपति प्रत्येक पाँच वर्ष में या इससे पूर्व एक वैधानिक आयोग की नियुक्ति करता
विखण्डन की प्रवृत्तियाँ ः बिखराव या अलगाव की प्रवृत्तियाँ
कुछ उपयोगी पुस्तकें
अब्दुल रहीम पी. विजपुर (सम्पादक), डाइमेन्शन ऑब फेडरल नेशन बिल्डिंग, नई दिल्ली. 1998
ए. एस. नारंग, इण्डियन गवरमेण्ट एण्ड पॉलीटिक्स, नई दिल्ली, गीतांजली, 2000
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