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Infinitesimal Quasi-Static Process in hindi , अनंत सूक्ष्म स्थैतिक – कल्प प्रक्रम क्या है , सिद्ध कीजिये सूत्र
जानिये Infinitesimal Quasi-Static Process in hindi , अनंत सूक्ष्म स्थैतिक – कल्प प्रक्रम क्या है , सिद्ध कीजिये सूत्र ?
साम्यावस्था प्रतिबन्ध (Equilibrium Conditions)
किन्हीं दो स्वेच्छ निकायों A व A’ पर विचार कीजिए जिनका लाक्षणिक बाह्य प्राचल आयतन है। इनकी ऊर्जा एवं आयतन के मान क्रमश: E व E’ तथा Vव V’ हैं।
यदि इन दोनों निकायों से मिलकर बना निकाय विलगित है तो ऊर्जा संरक्षण के नियम से
E + E’ = E* = = नियतांक …………..(1)
चूंकि संयुक्त निकाय का कुल आयतन नियत है।
V + V’ = V* = नियतांक माना निकाय A में जब आयतन परास V तथा V + δV के मध्य है तब ऊर्जा परास E तथा E + δE में अधिगम्य स्तरों की संख्या Ω(E, V) है तथा दूसरे निकाय A’ में जब आयतन परास V’ तथा V’ + δV’ के मध्य है ऊर्जा परास में अधिगम्य स्तरों की संख्या Ω’ (E’, V’) है। प्रायिकता के सिद्धान्त से तो संयुक्त विलगित निकाय A* की कुल अभिगम्य स्तरों की संख्या होगी
जब दोनों निकाय परस्पर अन्योन्य क्रिया करते हैं तो दोनों निकाय साम्यावस्था की ओर अग्रसर होते हैं जब तक कि संयुक्त निकाय की एन्ट्रॉपी अथवा अभिगम्य स्तरों की संख्या अधिकतम न हो जाये। अतः सन्तुलन अवस्था में
निकाय A तथा A’ के बीच अन्योन्य क्रिया द्वारा हुए अल्प परिवर्तनों dE तथा dV के लिए s* के अधिकतम होने के लिए प्रतिबन्ध होगा ।
लेकिन In Ω बाह्य प्राचल V तथा ऊर्जा E का फलन होता है इसलिए आशिक अवकलन करने पर,
समीकरण (12) ऊर्जा E तथा आयतन V के प्रत्येक अनन्त सूक्ष्म परिवर्तन के लिए सन्तुष्ट होता है। चूंकि चर (variable) स्वैच्छिक रूप से परिवर्तित होते हैं इसलिए यह समीकरण ( 12 ) तभी सन्तुष्ट होगा जब dE तथा dV के गुणक (multiplier) अलग-अलग शून्य के बराबर होंगे। अतः
अतः स्पष्ट है कि जब दो निकाय परस्पर अन्योन्य क्रिया करते हैं तो साम्यावस्था तभी प्राप्त होती है जब β = β’ अथवा T = T’ एवं p = p’ जो जाये अर्थात् सन्तुलन अवस्था की स्थिति पर दोनों निकायों के ताप एवं माध्य दाब बराबर होते हैं। ये प्रतिबन्ध साम्यावस्था के प्रतिबन्ध कहलाते हैं। वास्तव में उपरोक्त प्रतिबन्ध साम्यावस्था में कुल एन्ट्रॉपी S* के अधिकतम होने की आवश्यकता का ही प्रत्यक्ष परिणाम है।
अनंत सूक्ष्म स्थैतिक – कल्प प्रक्रम (Infinitesimal Quasi-Static Process)
जब कोई ऊष्मागतिक निकाय किसी दूसरे निकाय से अन्योन्य क्रिया कर एक साम्यावस्था से अनंत सूक्ष्मतः भिन्न दूसरी साम्यावस्था में आ जाता है तो ऐसे प्रक्रम को अनंत सूक्ष्म स्थैतिक कल्प प्रक्रम (infinitesimal quasi-static process) कहते हैं। इस प्रक्रम में सामान्यतः निकाय में ऊष्मा का अवशोषण होता है तथा वह कार्य भी कर सकता है। हम जानते हैं कि किसी निकाय A के अभिगम्य स्तरों की संख्या Ω उसकी ऊर्जा Ē तथा बाह्य प्राचल xα (जहाँ α = 1, 2, ….n) पर निर्भर करती है अर्थात् Ω ऊर्जा E तथा xα का फलन होता है।
माना कि साम्यावस्था में निकाय A की माध्य ऊर्जा Ē तथा माध्य बाह्य प्राचल Xα है। यह निकाय किसी अन्य निकाय से अन्योन्य क्रिया कर अनंत सूक्ष्म अवस्था परिवर्तन करता है और साम्यावस्था में आ जाता है। इस नवीन संतुलन स्थिति पर निकाय की माध्य ऊर्जा E + dĒ तथा बाह्य प्राचल Xα + dXα हैं। समीकरण का आशिक अवकलन करने पर,
जो बाह्य प्राचल के परिवर्तन के कारण निकाय की ऊर्जा वृद्धि को व्यक्त करता है अतः यह अनंत सूक्ष्म स्थैतिक कल्प प्रक्रम में निकाय A पर किये गये कार्य के बराबर होगा ।
समीकरण ( 4 ) को समीकरण (3) में रखने पर,
यह समीकरण (7) सभी अनंत सूक्ष्म स्थैतिक कल्प प्रक्रमों के लिए सदैव वैध रहता है चाहे कार्य किया जाय या नहीं |
(i) यदि δQ = 0 हो या dE = δW तो_ds = 0 अर्थात् किसी अनंत सूक्ष्म प्रक्रम में माध्य ऊर्जा में वृद्धि उस पर किये गये कार्य के बराबर हो तो उसकी एन्ट्रॉपी में परिवर्तन नहीं होता है। (ii) यदि निकाय का बाह्य प्राचल आयतन V हो तो निकाय पर किया गया कार्य
δw = – pav …………..(9)
समीकरण (8) व (9) को (5) में रखने पर
T ds = δQ = dĒ + pdv …………(10)
यह ऊष्मागतिकी के प्रथम एवं द्वितीय नियम का संयुक्त समीकरण है। (iii) समीकरण (8) द्वारा किन्हीं दो स्थूल निकायों के एन्ट्रॉपी के अन्तर को ज्ञात किया जा सकता है। माना संतुलन स्थिति में एक निकाय की एन्ट्रॉपी Sa है। यह अनेक ऊष्मा भण्डारों (heat reservoir) से ऊष्मा लेकर अन्तिम संतुलन अवस्था b पर पहुंचती है जहाँ निकाय की एन्ट्रॉपी Sg है। ऊष्मा भण्डारों के ताप क्रमश: T1, T2, T3 हैं। माना यह निकाय प्रथम ऊष्मा भण्डार से अल्पांश ऊष्मा δQ1 लेता है और फिर सन्तुलन स्थिति में आ जाता है। अत: यह प्रक्रम स्थैतिक कल्प होगा। इसलिए इस प्रक्रम में निकाय की एन्ट्रॉपी में परिवर्तन
फिर दूसरे ऊष्मा भण्डार से अल्पांश ऊष्मा δQ2 लेता है और साम्यावस्था में आ जाता है। अब एन्ट्रॉपी में परिवर्तन
इसी प्रकार निकाय सभी ऊष्मा भण्डारों से अल्प मात्रा में ऊष्मा क्रमवार लेता है और क्रमवार ऊष्मा लेने के पश्चात् साम्यावस्था में आता है। अतः अवस्था परिवर्तनों में एन्ट्रॉपी में परिवर्तन होंगे-
इसको व्यापीकृत करने के लिए यदि ऊष्मा भण्डारों की संख्या अनंत कर दें तो उस स्थिति में सभी प्रक्रम अनंत सूक्ष्म स्थैतिक कल्प प्रक्रम होंगे और यह परिमित योग समाकलन बन जायेगा। अर्थात्
इस समीकरण से स्पष्ट है कि एन्ट्रॉपी परिवर्तन ( Sb – Sa) का मान स्थूल निकाय की केवल प्रारम्भिक एवं अन्तिम अवस्थाओं पर निर्भर करता है न कि स्थैतिक कल्प प्रक्रमों की मध्यवर्ती अवस्थाओं पर ।
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