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औद्योगिक नीति संकल्प 1948 क्या है | Industrial Policy Resolution 1948 in hindi
Industrial Policy Resolution 1948 in hindi औद्योगिक नीति संकल्प 1948 क्या है ?
औद्योगिक नीति संकल्पए, 1948
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने दो महत्त्वपूर्ण औद्योगिक नीति संकल्पों की घोषणा की थी – एक 1948 में और दूसरी 1956 में। वर्ष 1948 का औद्योगिक नीति संकल्प पूरे आठ वर्षों तक लागू रहा और इसने देश में औद्योगिक विकास की प्रकृति तथा स्वरूप को निर्धारित किया। बाद में तत्कालीन परिस्थितियों के दृष्टिगत, सरकार ने अपनी दूसरी औद्योगिक नीति संकल्प की घोषणा 1956 में की जिसने औद्योगिक नीति संकल्प 1948 का स्थान ले लिया।
उद्देश्य
इस औद्योगिक नीति संकल्प के मुख्य उद्देश्य थे:
क) ऐसी सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना जिसमें सभी व्यक्तियों के लिए न्याय और अवसरों की समानता सुनिश्चित की जा सके;
ख) देश की गुप्त और उपलब्ध संसाधनों के दोहन के माध्यम से जनता के जीवन स्तर को तेजी से उठाने के लिए बढ़ावा देना;
ग) बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं करने के लिए उत्पादन में तीव्रता लाना; और
घ) रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराना।
तीव्र औद्योगिकरण के माध्यम से देश की सम्पदा में वृद्धि करने और इस प्रकार राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने पर जोर दिया गया था।
विशेषताएँ
इस संकल्प की उल्लेखनीय विशेषताएँ निम्नवत् थीं:
क) इस संकल्प में भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के महत्त्व को स्वीकार किया गया। इसमें उत्तरोत्तर राज्य को सक्रिय भूमिका प्रदान की गई और परिणामस्वरूप इस संकल्प में द्विआयामी रणनीति अपनाई गई:
प) जिन क्षेत्रों में सरकारी क्षेत्र कार्य संचालन कर रहा था, उनमें और उत्पादन के नए क्षेत्रों में, इस क्षेत्र का विस्तार; और
पप) निजी क्षेत्र के अस्तित्त्व और विस्तार की अनुमति प्रदान करना यद्यपि कि ऐसा समुचित दिशा निर्देश और विनियमन के अतर्गत हो।
इस संकल्प ने उद्योगों को चार श्रेणियों में विभाजित कर दिया और इस प्रकार इस संबंध में सारी अटकलों तथा आशंकाओं को समाप्त कर दिया। ये श्रेणियाँ निम्नवत् थीं:
प) उद्योग जहाँ राज्य का एकाधिकार था: इस श्रेणी में कार्यकलाप के तीन क्षेत्र विनिर्दिष्ट थे- आयुध और गोलाबारूद, परमाणु ऊर्जा और रेल यातायात । पप) मिश्रित क्षेत्र रू इस श्रेणी में निम्नलिखित छः उद्योग विनिर्दिष्ट किए गए थे- कोयला, लौह तथा इस्पात, विमान विनिर्माण, जहाज निर्माण, टेलीफोन विनिर्माण, तार और बेतार (वायरलेस) उपकरण (रेडियो सेटों को छोड़ कर) तथा खनिज तेल। तथापि, इस क्षेत्र में विद्यमान निजी उपक्रमों को दस वर्षों तक कार्य करते रहने की अनुमति दी गई थी जिसके बाद सरकार स्थिति की समीक्षा करेगी और क्षतिपूर्ति के भुगतान के पश्चात् किसी भी उपक्रम का अधिग्रहण कर लेगी। पपप) सरकारी नियंत्रण का क्षेत्र: इस श्रेणी में राष्ट्रीय महत्त्व के 18 उद्योग सम्मिलित किए गए थे। सरकार ने इन उद्योगों के विकास का उत्तरदायित्व अपने ऊपर नहीं लिया किंतु उन्हें इतने महत्त्व का समझा कि उनका विनियमन और निदेशन आवश्यक था। इसमें सम्मिलित कुछ उद्योग थे: ओटोमोबाइल, भारी रसायन, भारी मशीनें, मशीन टूल्स, उर्वरक, विद्युत इंजीनियरिंग, चीनी, कागज, सीमेण्ट, सूती और ऊनी वस्त्र। पअ) निजी उद्यमों के क्षेत्र: अन्य सभी उद्योग (उपर्युक्त तीन श्रेणियों में सम्मिलित नहीं किए गए) निजी क्षेत्र के लिए खुले छोड़ दिए गए थे। तथापि, राज्य इस क्षेत्र में भी किसी उद्योग का उसकी प्रगति असंतोषप्रद रहने पर अधिग्रहण कर सकता था।
ख) इस संकल्प ने देश की स्थानीय संसाधनों के पूरे-पूरे उपयोग, रोजगार के सृजन और उपभोक्ता वस्तुओं में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लघु-क्षेत्र के उद्योगों की प्रमुख भूमिका पर बल दिया। इस प्रकार, राज्य को उनके विस्तार के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना था।
ग) इस संकल्प ने न सिर्फ सौहार्दपूर्ण और अच्छे श्रमिक-प्रबन्धन संबंध के महत्त्व को स्वीकार किया अपितु औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि के समानुपाति श्रम के हिस्से में भी वृद्धि पर बल दिया। इसने कामगार वर्गों के लिए उचित मजदूरी तथा अच्छी कार्य दशा सुनिश्चित करने के लिए श्रम विधानों की आवश्यकता भी महसूस की।
घ) विकासशील अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी की भूमिका और तीव्र औद्योगिकरण की नीतियों पर भी इस संकल्प ने पूरा-पूरा ध्यान दिया था।
आलोचनात्मक मूल्यांकन
इस नीति संकल्प के पीछे बुनियादी विचार औद्योगिक संगठन के पूँजीवादी स्वरूप को नियंत्रित करना और एक नया संस्थागत ढाँचा जिसे मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा गया, को शुरू करना था। यह इस दृष्टि से स्वागत योग्य विशेषता थी कि देश के औद्योगिकरण के कार्य को पूरी तरह से निजी क्षेत्र पर छोड़ देने की अपेक्षा सरकार को भी इसमें सक्रिय भूमिका अदा करने की अनुमति दी गई थी। जहाँ अन्य नीतियों के संबंध में सरकारी नीति की थोड़ी बहुत आलोचना हुई या कोई आलोचना नहीं हुई, यह महसूस किया गया कि उस श्रेणी जिसमें विद्यमान उद्योगों को निजी क्षेत्र में दस वर्षों तक कार्य करते रहने की अनुमति दी गई थी और जो अपने कार्यनिष्पादन की समीक्षा के पश्चात् सरकार द्वारा अधिग्रहित किए जा सकते थे के संबंध में राष्ट्रीयकरण का खतरा मौजूद था।
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