JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति 1970 क्या है | वर्ष 1970 की औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति industrial licensing policy 1970 in hindi

industrial licensing policy 1970 in hindi औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति 1970 क्या है | वर्ष 1970 की औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति किसे कहते है परिभाषा बताइए ?

औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति: 1970 और उसके पश्चात्
उपरोक्त औद्योगिक नीतियों के कार्यकरण में अनेक त्रुटियाँ थीं। सबसे पहले, वे नियोजन की प्राथमिकताओं के अनुरूप कार्य करने में असफल रहीं और बड़े घरानों के पक्ष में प्रभावी रूप से कार्य किया। इतना ही नहीं प्रादेशिक विषमता घटने की अपेक्षा बढ़ ही गई। इसके अतिरिक्त, दत्त समिति (जिसे औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति जाँच समिति के रूप में भी जाना जाता है) ने पाया कि औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति ने औद्योगिक नीति संकल्प की भावना के प्रतिकूल कार्य किया था। उदाहरण के लिए, न सिर्फ निजी क्षेत्र में विद्यमान तेल शोधक कारखानों को अपना प्रचालन जारी रखने की अनुमति दी गई अपितु, उन्हें नए तेल शोधन संयंत्रों की स्थापना के लिए नए सिरे से लाइसेन्स भी जारी किए गए।

आलोचनाओं के दृष्टिगत, दत्त समिति ने लाइसेन्सिंग प्रणाली में सुधार के लिए अनेक उपाय सुझाए। समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने फरवरी, 1970 में नई औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति की घोषणा की। इसके बाद 1973 में औद्योगिक नीति संकल्प, 1956 में संशोधन किया गया।

 वर्ष 1970 की औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति
दत्त समिति की अधिकांश सिफारिशों को स्वीकार करते हुए, सरकार ने फरवरी, 1970 में नई औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति की घोषणा की। इस नीति की मुख्य विशेषताएँ थीं:

प) एक मुख्य क्षेत्र (ब्वतम ैमबजवत) जिसमें रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने वाले अथवा अन्यथा राष्ट्रीय महत्त्व के बुनियादी उद्योग सम्मिलित थे, की परिभाषा की गई। इसमें निम्नलिखित 9 क्षेत्रों में विभाजित उद्योग सम्मिलित थे: (क) कृषि आदान, (ख) लौह तथा इस्पात, (ग) अलौह धातु, (घ) पेट्रोलियम, (ङ) कूकिंग कोल, (च) भारी उद्योग मशीनें (विनिर्दिष्ट), (छ) जहाज निर्माण और निकर्षण पोत (समुद्र या नदी से कीचड़ निकालने वाला) का निर्माण, (ज) अखबारी कागज, (झ) इलैक्ट्रॉनिक्स (चयनित घटक)। इन उद्योगों में से जो 1956 के संकल्प में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित कर दिए गए थे, इसके लिए आरक्षित रहेंगे जबकि अन्य सभी में बड़े औद्योगिक घरानों तथा विदेशी कंपनियों को भाग लेने की अनुमति दी जाएगी।

पप) वर्ष 1970 की नीति ने एक अन्य क्षेत्र की परिभाषा की जिसे भारी निवेश क्षेत्र (भ्मंअल प्दअमेजउमदज ैमबजवत) कहा गया। इसमें 5 करोड़ रु. से अधिक निवेश वाले उद्योग सम्मिलित थे। वर्ष 1956 के संकल्प में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों को छोड़ कर इस क्षेत्र में सभी अन्य उद्योग निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए जाएँगे। यह बड़े घरानों और विदेशी गई थी, के लिए बहुत बड़ी रियायत थी। इस रियायत ने अनेक विलासिता उद्योगों में बड़े घरानों को प्रवेश करने का अवसर दिया।

पपप) मध्य क्षेत्र में 1 करोड़ रु. से 5 करोड़ रु. तक के बीच निवेश वाले उद्योगों को सम्मिलित किया गया था। इन उद्योगों के लिए लाइसेन्सिंग नीति को अत्यधिक उदार बनाया जाएगा तथा लाइसेन्सिंग प्रक्रियाओं को सरलीकृत किया गया।े

पअ) एक करोड़ रु. से कम निवेश वाले उद्योगों को लाइसेन्स रहित क्षेत्र (न्दसपबमदबमक ैमबजवत) में रखा गया क्योंकि उनकी स्थापना के लिए लाइसेन्स की आवश्यकता नहीं होगी।

अ) वर्ष 1970 की लाइसेन्सिंग नीति ने दत्त समिति द्वारा सिफारिश की गई संयुक्त क्षेत्र की अवधारणा को, सिद्धान्त रूप में, स्वीकार कर लिया। यह नियम निर्धारित किया गया कि ऋण स्वीकृत करते समय अथवा डिबेंचरों में अभिदान करते समय सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों को विनिर्दिष्ट समयावधि में उन्हें इक्विटी में परिवर्तित करने का विकल्प होगा। इस प्रयोजन के लिए कछ विशिष्ट दिशा निर्देश निर्धारित किए गए थे। परिवर्तनीयता खंड पर एक बार सहमति हो जाने के बाद, उपक्रम द्वारा कंपनी बोर्ड में ऋणदाता संस्था के प्रतिनिधियों को नियुक्त करना अपेक्षित था।

वर्ष 1973 का नीति वक्तव्य : 1956 की औद्योगिक नीति संकल्प में संशोधन
अगला महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति वक्तव्य 12 फरवरी, 1973 को आया। इस नीति वक्तव्य में, जिस मुख्य परिवर्तन की घोषणा की गई वह ‘‘बड़े घरानों‘‘ की नई परिभाषा को अंगीकार करना था। वर्ष 1970 की नीति में, बड़े औद्योगिक घरानों की परिभाषा उन घरानों के रूप में की गई थी जिनकी परिसम्पत्तियाँ 35 करोड़ रु. से अधिक थीं। वर्ष 1973 की लाइसेन्सिंग नीति ने एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार (एम आर टी पी) अधिनियम में प्रयोग की गई परिभाषा को स्वीकार किया जिसके अनुसार बड़ा औद्योगिक घराना वह था जिसके पास 20 करोड़ रु. से अधिक की परिसम्पत्तियाँ थीं। वर्ष 1970 की दो सिफारिशों को नई नीति में ठीक वैसे ही रखा गया- एक लाइसेन्सिंग से छूट देने और दूसरा संयुक्त क्षेत्र से संबंधित था।

इसी समय, 1956 के सकल्प में कतिपय महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए। वर्ष 1973 की नई नीति वक्तव्य में, सरकार ने ‘‘संयुक्त क्षेत्र‘‘ स्थापित करने की दत्त समिति के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। संयुक्त क्षेत्र की कल्पना एक ऐसे क्षेत्र के रूप में की गई जिसमें सार्वजनिक उद्यम और निजी उद्यम दोनों संयुक्त रूप से उत्पादन कार्यकलाप को संगठित करते हैं। इसके विचार में, संयुक्त क्षेत्र में ऐसी इकाइयाँ सम्मिलित होंगी जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों निवेश होगा और जहाँ राज्य निर्देशन तथा नियंत्रण में सक्रिय रूप से भाग लेता है। समिति ने महसूस किया कि जहाँ राज्य निजी क्षेत्र को इसके कार्यकलापों के विस्तार के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है, इसे न सिर्फ परियोजना के पूरा होने के बाद मिलने वाले लाभों में हिस्सा बटाना चाहिए अपितु इसे प्रबन्धन में भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त करना चाहिए। समिति के अनुसार, यह आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को कम करने में सहायता करेगा। तथापि, संयुक्त क्षेत्र की पूरी अवधारणा अस्पष्ट थी और औद्योगिक नीति वक्तव्य में इस अवधारणा को सम्मिलित कराने से यह और भी अस्पष्ट तथा निष्प्रभावी रह गई। तथापि, संयुक्त क्षेत्र इकाइयों की परिभाषा, वर्णन और संगठन के संबंध में कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया था।

बोध प्रश्न 3
1) वर्ष 1970 की औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति में किन क्षेत्रों की परिभाषा की गई थी ?
(एक वाक्य में उत्तर दीजिए )
2) वर्ष 1956 की औद्योगिक नीति संकल्प में कौन-कौन से संशोधन किए गए?
3) सही उत्तर पर ( ) निशान लगाइए:
क) वर्ष 1970 की नीति में बड़े औद्योगिक घरानों की परिभाषा उन घरानों के रूप में की गई जिनकी परिसम्पत्ति इससे अधिक थी।
प) 35 करोड़ रु.
पप) 20 करोड़ रु.
पपप) 50 करोड़ रु.
ख) मध्य क्षेत्र में निवेश करने वाले उद्योग सम्मिलित थे।
प) 1-5 करोड़ रु. के बीच
पप) 5 करोड़ रु. से कम
पपप) 2-6 करोड़ रु. के बीच

 अस्सी के दशक में उदारीकृत औद्योगिक नीतियाँ
सरकार द्वारा 23 जुलाई, 1980 को घोषित औद्योगिक नीति वक्तव्य में 1956 के औद्योगिक नीति संकल्प को दुहराया गया। इसके उद्देश्य की परिभाषा अधिष्ठापित क्षमता के अनुकूलतम उपयोग और उद्योगों के विस्तार के माध्यम से औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि को साध्य बनाने के रूप में की गई थी। इसमें उचित मूल्य पर वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ाकर, बड़ी संख्या में रोजगार पैदा करना एवं प्रति व्यक्ति उच्च आय प्राप्त करके आम जन को लाभ पहुँचाने की दृष्टि से देश के तीव्र और संतुलित औद्योगिकरण पर बल दिया। नई नीति वक्तव्य द्वारा जो प्रमुख कृत्य निर्धारित किए गए वे थे मुख्य औद्योगिक आदानों जैसे ऊर्जा, परिवहन और कोयले की कमी की समस्या का समाधान करना। वक्तव्य में इस बात पर बल दिया गया कि औद्योगिकरण का लाभ जनसंख्या के सभी वर्गों तक पहुँचना चाहिए। इस उद्देश्य के लिए इसने कृषि-आधारित उद्योगों के साथ अधिमानी व्यवहार के विस्तार, लघु, मध्यम और बृहत् उद्यमों के समन्वित विकास के माध्यम से आर्थिक संघ का संवर्धन, पिछड़े, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उद्योगों का प्रसार और उच्च मूल्यों तथा खराब गुणवत्ता वाली वस्तुओं से उपभोक्ताओं के संरक्षण की सिफारिश की। अनुकूलतम अन्तर-क्षेत्र संबंधों को बढ़ावा देने पर भी बल दिया गया।

वस्तुतः उदारीकरण की प्रक्रिया अस्सी के दशक के बीच में शुरू हो गई थी और नब्बे के दशक में इसका अभिर्भाव एकाएक नहीं हो गया था। लाइसेन्सिंग से छूट सीमा, विद्यमान क्षमता को पुनः समर्थन इत्यादि जैसे अनेक कदम उठाए गए। निम्नलिखत कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय किए गए।

प) एम आर टी पी और ‘‘फेरा‘‘ कंपनियों को छूट
औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने और निर्यात को बढ़ावा देने के नाम पर एम आर टी पी अधिनियम और फेरा (विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम) के अन्तर्गत आने वाली कंपनियों को अनेक रियायतें दी गईं। सरकार ने उद्योगों के 33 विस्तृत समूहों की सूची को विनिर्दिष्ट किया जिसमें एम आर टी पी और फेरा कंपनियाँ को क्षमता स्थापित करने की अनुमति दी गई बशर्ते कि संबंधित मद लघु क्षेत्र अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित नहीं हो । एम आर टी पी और फेरा कंपनियों को कई अन्य रियायतें जैसे क्षमता आधिक्य को नियमित करना, क्षमता को पुनः स्वीकृति देना और पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने के लिए सुविधाएँ प्रदान की गईं।

पप) लाइसेन्स समाप्त करना
उत्पादन को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से सरकार ने उद्योगों के 28 व्यापक श्रेणियों और 82 थोक औषधियों तथा उनके निरूपण (निर्माण विधियों) के लिए लाइसेन्स को समाप्त कर दिया। अब इन उद्योगों के लिए सिर्फ औद्योगिक अनुमोदन हेतु सचिवालय में पंजीकरण अपेक्षित था, उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम के अंतर्गत किसी लाइसेन्स की आवश्यकता नहीं थी। यह सिर्फ इस शर्त के अध्यधीन था कि संबंधित उपक्रम एम आर टी पी अधिनियम अथवा फेरा के क्षेत्राधिकार में नहीं आता था, कि विनिर्मित वस्तु लघु क्षेत्र के लिए आरक्षित नहीं था और कि संबंधित उपक्रम विनिर्दिष्ट शहरी क्षेत्र के अंदर अवस्थित नहीं था। वर्ष 1989-90 के दौरान कुछ और उद्योगों के लिए लाइसेन्स समाप्त कर दिया गया।

पपप) प्रचालन का न्यूनतम आर्थिक पैमाना
औद्योगिक लाइसेन्सिंग के क्षेत्र में जिस अन्य महत्त्वपूर्ण अवधारणा को लागू किया गया वह प्रचालन का न्यूनतम आर्थिक पैमाना था। यह 1986 में शुरू किया गया। इस विचार का उद्देश्य उपक्रमों के विद्यमान अधिष्ठापित क्षमता के विस्तार द्वारा प्रचालन के न्यूनतम आर्थिक पैमाना तक बड़े पैमाने की मितव्ययिता प्राप्त करने को प्रोत्साहित करना था। इस उद्देश्य को सामने रखते हुए 1989 तक 108 उद्योगों के लिए न्यूनतम आर्थिक क्षमता विनिर्दिष्ट किए गए थे। विद्यमान अधिष्ठापित क्षमताओं का इस न्यूनतम आर्थिक क्षमता तक विस्तार प्रोत्साहित किया गया। वर्ष 1989-90 के दौरान कुछ और उद्योगों के लिए न्यूनतम आर्थिक क्षमता विनिर्दिष्ट किया गया था।

पअ) निर्यात उत्पादन के लिए प्रोत्साहन
सरकार ने निर्यात के विस्तार को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर अपनी औद्योगिक नीति तथा निर्यात-आयात नीति में विभिन्न रियायतों की घोषणा की। एम आर टी पी और फेरा कंपनियों को भी, यदि उनके उत्पाद मुख्य रूप से निर्यातोन्मुखी थे तो, अनुमति दी गई। इसके अतिरिक्त, सरकार ने कुछ उद्योगों की पहचान की जो निर्यात की दृष्टि से विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण थे। इन उद्योगों को प्राधिकृत क्षमता से 25 प्रतिशत अधिक उत्पादन करने की सामान्य अनुमत्य सीमा के अतिरिक्त एक योजना अविधि में 25 प्रतिशत की सीमा तक प्रतिवर्ष स्वतः 5 प्रतिशत वृद्धि की अनुमति दी गई।

अ) लघु उद्योग इकाइयों और अनुषंगी इकाइयों के लिए निवेश सीमा में वृद्धि
जुलाई 1980 के वक्तव्य ने लघु उद्योगों के लिए 20 करोड़ रु. और अनुषंगी इकाइयों के लिए 25 लाख रु. की निवेश सीमा निर्धारित की थी। अप्रैल 1991 में सरकार द्वारा जारी अधिसूचना से उन दोनों की निवेश सीमा बढ़ा दी गई। अत्यन्त लघु उद्योगों के लिए निवेश की सीमा 5 लाख से बढ़ा कर 25 लाख कर दी गई। लघु उद्योग के लिए निवेश सीमा घटा कर 1999 में 1 करोड़ रु. कर दिया गया।

बोध प्रश्न 4
1) वर्ष 1980 के दशक में लाइसेन्सिंग नीति के उदारीकरण के संबंध में कौन से दो कदम उठाए गए थे?
2) वर्ष 1980 के दशक में औद्योगिक नीति में निर्यात संवर्धन के लिए क्या प्रोत्साहन दिए गए थे ?

 बोध प्रश्नों के उत्तर अथवा संकेत

बोध प्रश्न 3
1) उपभाग 8.5.1 पढ़ें।
2) उपभाग 8.5.2 पढ़ें।
3) (क) प (ख) प

बोध प्रश्न 4
1) लाइसेन्स प्रदान करने के लिए छूट सीमा बढ़ाना, उद्योगों की 28 श्रेणियों और 82 औषधियों के लिए लाइसेन्स समाप्त करना।
2) भाग 8.5 पढ़ें।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now