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प्रेरण भट्टी क्या है ? , induction furnace meaning in hindi , विद्युत चुम्बकीय अवमंदन , विद्युत शक्ति मीटर

विद्युत शक्ति मीटर , प्रेरण भट्टी क्या है ? , induction furnace meaning in hindi , विद्युत चुम्बकीय अवमंदन :-

भंवर धारायें : जब किसी धातु के टुकड़े से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस धातु में सहवृंत धाराएँ उत्पन्न हो जाती है , इन धाराओं की आकृति जल में उत्पन्न भंवर जैसी होती है। चूँकि इन्हें सबसे पहले फोको ने खोजा था अत: इन्हें फोको धाराएँ भी कहते है।

PQRS एक धातु का टुकड़ा है जो चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित है , यदि इस टुकड़े को V वेग से चुम्बकीय क्षेत्र के बाहर खींचते है तो धातु के टुकड़े से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में कमी होती है और यदि धातु के टुकड़े को चुम्बकीय क्षेत्र में अन्दर की ओर ले जाया जाए तो धातु के टुकड़े से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्धि होती है अत: दोनों ही स्थिति में धातु के टुकड़े में भंवर धाराएँ उत्पन्न हो जाती है।

यदि किसी धातु के टुकड़े को दो शक्तिशाली चुम्बकीय ध्रुवों के मध्य दोलन कराया जाए तो धातु के टुकड़े से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है। माध्य स्थिति में धातु के टुकड़े से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स अधिकतम तथा अधिकतम विस्थापन की स्थिति में गुजरने वाला फ्लक्स न्यूनतम होगा अत: फ्लक्स परिवर्तन के कारण धातु के टुकड़े में भँवर धाराएँ उत्पन्न हो जाएगी। यदि धातु के टुकड़े खाँचेदार बना दिया जाए तो भंवर धाराओ की तीव्रता कम हो जाएगी।

लेन्ज के नियमानुसार भंवर धाराओं की दिशा इस प्रकार होती है कि वह उस कारण का विरोध करती है जिस कारण इनकी उत्पत्ति हुई है।

भंवर धाराओ के उपयोग :

रेलगाडियों के चुम्बकीय ब्रेक में : विद्युत चलित रेलगाडियों में पटरियों के ऊपर प्रबल विद्युत चुम्बक स्थित होते है। जब इन विद्युत चुम्बकों में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो विद्युत चुम्बकीय फ्लक्स सक्रीय हो जाती है तथा पटरियों में भंवर धाराएँ उत्पन्न हो जाती है। ये भंवर धाराएँ रेलगाड़ी की गति का विरोध करती है अत: रेलगाडी रुक जाती है। चूँकि यहाँ पर कोई यांत्रिक संयोजन नहीं है अत: ब्रेक लगाने पर यात्री को झटके नहीं लगते।

विद्युत चुम्बकीय अवमंदन : धारामापी की कुण्डली के भीतर एक अचुम्बकीय पदार्थ की क्रोड़ रखी रहती है। यह कुंडली  दो  शक्तिशाली चुम्बकीय ध्रुवों के मध्य घूर्णन करती है। कुंडली के घूर्णन करने पर क्रोड भी घूमता है। अत: क्रोड़ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है अत: क्रोड़ में भंवर धाराएँ उत्पन्न होती है जो कुंडली के घुमने का विरोध करती है अत: कुण्डली जल्दी ही रुक जाती है।

प्रेरण भट्टी : जिस धातु को पिघलाना होता है उसे प्रेरण भट्टी में रख दिया जाता है , प्रेरण भट्टी में एक कुण्डली होती है। जिस धातु को पिघलाना होता है उसे कुण्डली के भीतर रख दिया जाता है तथा कुण्डली में उच्च आवृति की प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित की जाती है , प्रत्यावर्ती धारा का मान व दिशा लगातार बदलता रहता है अत: कुण्डली में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र भी लगातार परिवर्तित होगा अत: कुण्डली के भीतर रखे पदार्थ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है अत: धातु के टुकड़े में प्रबल भंवर धाराएँ उत्पन्न हो जाती है जिससे धातु का टुकड़ा गर्म होकर पिघल जाता है।

विद्युत शक्ति मीटर : अनुरूप प्रकार के विद्युत मीटरों में एक धातु की चकती भंवर धाराओ के कारण ही घूर्णन करती है। जब कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित की जाती है तो इन प्रत्यावर्ती धाराओं से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र चकती में भंवर धाराएँ उत्पन्न करता है।

अन्योन्य प्रेरकत्व

एक कुण्डली में धारा परिवर्तन के कारण उसके समीप रखी दूसरी कुंडली के सिरों के बीच प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होने की घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते है।

P और S दो कुण्डलियाँ है जो एक दुसरे के समीप स्थित है। P कुंडली के साथ एक बैटरी धारा नियंत्रक व कुंजी जुडी है जबकि S कुंडली के साथ एक धारामापी जुड़ा है। अब यदि प्राथमिक कुंडली में प्रवाहित धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है तो द्वितीयक कुंडली से जुड़े धारामापी में विक्षेप उत्पन्न हो जाता है और यदि प्राथमिक कुण्डली में प्रवाहित धारा के मान को स्थिर रखा जाए तो द्वितीयक कुण्डली से जुड़े धारामापी में कोई विक्षेप नहीं आता है।

व्याख्या : जब प्राथमिक कुण्डली में धारा प्रवाहित की जाती है तो इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है तथा चुम्बकीय बल रेखाएँ निकलती है। कुल चुम्बकीय बल रेखाएं द्वितीयक कुंडली से होकर गुजरती है जो चुम्बकीय बल रेखाएं द्वितीय कुंडली से होकर गुजरती है उन्हें चुम्बकीय फ्लक्स कहते है।

यदि प्राथमिक कुंडली में प्रवाहित धारा का मान बढ़ा दिया जाए तो प्राथमिक कुंडली में चुम्बकीय क्षेत्र बढ़ जायेगा अत: प्राथमिक कुंडली से निकलने वाली चुम्बकीय बल रेखाओ की संख्या बढ़ जाएगी अत: द्वितीय कुंडली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्धि होगी। इसी प्रकार यदि प्राथमिक कुण्डली में प्रवाहित धारा के मान में कमी कर दी जाए तो द्वितीयक कुंडली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में कमी होगी , दोनों ही स्थितियो में द्वितीय कुंडली के सिरों के बीच प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जायेगा एवं प्रेरित धारा बहती है , यदि प्राथमिक कुंडली में प्रवाहित धारा को स्थिर रखा जाए तो द्वितीय कुंडली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में कोई परिवर्तन नहीं होगा अत: द्वितीय कुंडली के सिरों के बीच कोई विद्युत वाहक बल उत्पन्न नहीं होता है।

अन्योन्य प्रेरकत्व : द्वितीय कुंडली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स (Θ2) प्राथमिक कुंडली में प्रवाहित धारा i1 के समानुपाती होता है।

Θ2 ∝ i1

Θ2 = mi समीकरण-1

m = अन्योन्य प्रेरक गुणांक या अन्योन्य प्रेरकत्व

m = Θ2/ iसमीकरण-2

द्वितीय कुंडली से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स Θ2 तथा प्राथमिक कुण्डली में प्रवाहित धारा i1 के अनुपात को अन्योन्य प्रेरकत्व कहते है।

अन्योन्य प्रेरकत्व का मात्रक = वेबर/एम्पियर

फैराडे के नियमानुसार द्वितीयक कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल –

e2 = dΘ2/dt

Θ2 का मान समीकरण-1 से रखने पर

 e2 = d(mi1)/dt

e2 = m di1/dt

m = e2/(di1/dt)

द्वितीयक कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल (e2) तथा प्राथमिक कुंडली में धारा परिवर्तन की दर (di1/dt) के अनुपात को अन्योन्य प्रेरक गुणांक कहते है।

अन्योन्य प्रेरक गुणांक का मात्रक = वोल्ट

= एम्पियर/सेकंड

= वोल्ट x सेकंड/एम्पियर

= हेनरी

अन्योन्य प्रेरक गुणांक (M) की विमा = ML2T-2A-2

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