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इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय कहाँ है के बारे में जानकारी , indira gandhi national art centre in hindi

जानेंगे इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय कहाँ है के बारे में जानकारी , indira gandhi national art centre in hindi ?

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्रः कला और मानवीयता के क्षेत्र में भारत में इस केंद्र की स्थापना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 19 नवम्बर, 1985 को एक पूर्णतः स्वायत्त न्यास के रूप में स्थापित इस केंद्र का लक्ष्य सभी कलाओं का स्वतंत्र रूप से, परस्पर निर्भरता की दृष्टि से व प्रकृति, सामाजिक संरचना व ब्रह्मांड से अंर्तसंबंधों की दृष्टि से अध्ययन व अनुभव करना है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के तहत् अध्ययन के विभिन्न क्षेत्र आते हैं जैसे रचनात्मक और आलोचनात्मक साहित्य, लिखित और मौखिकः दृश्य कला जिसमें वास्तुशिल्प, मूर्तिकला, पेंटिग और ग्राफिक्स, फिल्म, संगीत की प्रदर्शन कला, विस्तृत रूप में नृत्य और थिएटर तथा इसके अतिरिक्त कलात्मक आयाम वाले महोत्सव, मेले आदि। केंद्र का उद्देश्य, कला संबंधी क्षेत्रों में भारत और विश्व समुदायों के बीच अध्ययन और संवाद कायम करना है। इसके अधिदेश में शैक्षिक, अपने प्रकाशनों में अनुसंधान कार्य, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार, सम्मेलन, प्रदर्शनियां और भाषण शृंखलाएं शामिल हैं। स्कूल और अन्य शैक्षिक संस्थाएं इसके फोकस में हैं। अपने अनुसंधान से यह विकास में सांस्कृतिक योगदान को बढ़ाने का कार्य करता है। इन 25 वर्षों के दौरान, आईजीएनसी, ने विश्व भर की अपने जैसी संस्थाओं के साथ सहयोग बढ़ाकर अपनी शैक्षिक गतिविधियों को मजबूत किया है। केंद्र ने विश्व के नामी विद्वानों को भागीदार बनाते हुए कई अंतरराष्ट्रीय सेमिनार और प्रदर्शनियां आयोजित की हैं।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालयः इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय सहस्रों वर्षों में विकसित बहुमूल्य सांस्कृतिक प्रतिमानों की वैकल्पिक वैद्यता को समायोजित करने हेतु भारत में एक अंतक्र्रियात्मक संग्रहालय आंदोलन का प्रणेता है। यह संस्थान राष्ट्रीय एकता हेतु कार्यरत है तथा विलुप्तप्राय परन्तु बहुमूल्य सांस्कृतिक परम्पराओं के संरक्षण और पुगर्जीवीकरण हेतु शोध और प्रशिक्षण के माध्यम से अन्य संस्थानों से संबंध बनाने हेतु तथा जैविक उद्विकास और विभिन्नता और एकता को प्रदर्शनियों के माध्यम से दर्शाने हेतु कार्यरत है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय अपनी प्रदर्शनियों और साल्वेज गतिविधियों के माध्यम से हजारों वर्षों से पोषित देशज ज्ञान तथा मूल्यों, भारत की पारंपरिक जीवन शैली की सुन्दरता को प्रदर्शित करता और पारिस्थितिकी, पर्यावरण, स्थानीय मूल्यों, प्रथाओं इत्यादि के अभूतपूर्व विनाश के प्रति सचेत करता है। संग्रहालय की शैक्षणिक प्रक्रिया में एक बदलाव आया है और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय इस प्रक्रिया में स्वयं हेतु एक भूमिका सुनिश्चित करता है।
1- उदाहरण के लिये संग्रहालय अधिकारियों के अधिकारिक प्रवक्ता/जनता को अनौपचारिक शिक्षा के òोत के रूप में क्यूरेटर के स्थान पर प्रजातांत्रिक प्रक्रिया को अपनाते हुए समुदायों को ज्ञान का महत्वपूर्ण òोत मानता है तथा उन्हें संग्रहालय अधिकारियों के साथ शामिल कर क्यूरेटर इसके संचालनकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। सार रूप में हमारे संग्रहालय की गतिविधियां इस तर्क की विनम्र पुष्टि करती हैं।
2- इस प्रक्रिया के निष्कर्ष के रूप में यह तर्क भी दिया जा सकता है कि संस्कृति कोई काल्पनिक और अपरिवर्तनशील तत्व नहीं बल्कि प्रक्रिया के साथ-साथ बदलाव की खोज की संवाहक भी है। यह संस्कृति की अवधारणा को स्थायी विकास के सहायक रूप में आगे बढ़ाती है ये कड़ियां आधारभूत अथवा वैकल्पिक विकास को सुनिश्चित करती हैं।
3- समकालीन शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य एक सम्मिलित समाज का निर्माण करना है। इस प्रक्रिया में संग्रहालय की भूमिका अपने प्रदर्शन को भिन्न क्षमतावान लोगों की पहुंच तक सुगम बनाना ही नहीं बल्कि उनके लिये विशेष कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन करने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
4- हाल ही में संग्रहालय शिक्षा का मुख्य पक्ष पर्यावरण शिक्षा से जुड़ गया है। ग्रीन हाउस प्रभाव, जैव-विविधता के संरक्षण की पारंपरिक तकनीकें, जल प्रबंधन तथा अन्य संरक्षण तकनीकें आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें हम इन समुदायों से सीख सकते हैं और संग्रहालय का एक मंच की तरह उपयोग करते हुये इन्हें प्रचारित कर सकते हैं।
राष्ट्रीय संस्कृति निधिः भारत की सांस्कृतिक विरासत के अनेक रूप हैं। जिन्हें सजीव संस्कृतियों के रूप में जीवित रखने, इनका विकास और संवर्धन करने की आवश्यकता है। इन सांस्कृतिक विरासतों को बचाए रखने में सामाजिक-आर्थिक तथा पर्यावरणीय परिवर्तनों की गति तथा नई.नई प्रौद्योगिकियों की शुरूआत जैसे कारण गहन बाधाएं पैदा कर रहे हैं। समुदायों में इन बाधाओं की बढ़ती जागरूकता से न केवल उनकी भाषाओं, परम्पराओं तथा संस्कृति के परिरक्षण और नवीकरण की अपितु उनकी सांस्कृतिक पहचान तथा सृजनात्मकता को सुदृढ़ करने के बारे में इन समुदायों से मांग उठने लगी है।

वैश्विक विरासत में भारत
विश्व की सांस्कृतिक व प्राकृतिक धरोहरों के अंतरराष्ट्रीय संरक्षण हेतु यूनेस्को द्वारा गठित वैश्विक विरासत समिति ने भारत के 23 सांस्कृतिक स्मारकों व 5 प्राकृतिक स्थानों के संरक्षण की सिफारिश की है। ये सांस्कृतिक स्मारक हैं अजंता-एलोरा की गुफायें, आगरे का किला, ताजमहल, कोणार्क का सूर्य मंदिर, गोआ के चर्च और कान्वैंट, खजुराहो के स्मारक, महाबलीपुरम, हम्पी, फतेहपुर सीकरी व पट्टाडकाल के स्मारक, एलिफेंटा की गुफायें, तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर, सांची के बौद्ध स्मारक, हुमायूं का मकबरा, दिल्ली( महोबोधि मंदिर परिसर, बोध गया; दिल्ली में कुतुब मीनार; लाल किला, दिल्ली; चंपानेर-पावगढ़ पुरातात्विक पार्क, गुजरात; भीम बैठका की गुफाएं, मध्य प्रदेश; छत्रपति शिवाजी स्टेडियम, मुंबई; जंतर मंतर, जयपुर; चोल मंदिर; तमिलनाडु; माउंटेन रेलवे आॅफ इण्डिया। ये प्राकृतिक स्थल हैं कांजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, मानस अभयार.य, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान व नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान।

हमारी विरासत के परिरक्षण तथा संवर्धन हेतु संबंधित समुदाय की बढ़ती चिन्ता तथा इसके संवर्धन में समुदायों को भाग लेने और योगदान करने के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ऐसा संगठन तैयार करने की आवश्यकता महसूस की गई जो इस प्रयास में सहयोग हेतु संस्थाओं तथा व्यक्तियों को सहायता और समर्थन दें।
रामकृष्ण मिशन संस्कृति संस्थान, कोलकाताः इस संस्थान की स्ािापना का विचार श्री रामकृष्ण (1836-1886) की पहली जन्मशती के अवसर पर उनका स्थाई स्मारक बनाने के रूप में 1936 में व्यक्त किया गया था। श्री रामकृष्ण द्वारा प्रतिपादित वेदांत के संदेश के प्रसार के लिए स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन के शाखा केंद्र के रूप में 29 जनवरी, 1938 को इसकी विधिवत स्थापना की गई। श्री रामकृष्ण के मूल उपदेशों में (प) सभी धर्मों को समान आदर देना; (पप) मनुष्य की दैवीय क्षमताओं को प्रतिपादित करना और उभारना; तथा (पपप) मानव सेवा को ईश्वर की पूजा मानना अर्थात् मानवता को नया धर्म मानना शामिल हैं। मानव मात्र की एकता के आदर्श के प्रति समर्पित इस संस्थान ने लोगों को विश्व की संस्कृतियों के समृद्ध मूल्यों से अवगत कराने तथा उन्हें यह समझाने के लिए सालों-साल अथक् प्रयास किए हैं कि परस्पर एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझना, मानना और स्वीकार करना अत्यंत आवश्यक है यही वह दृष्टिकोण है जो वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय समझएवं सहमति विकसित करने और देश में राष्ट्रीय एकता की भावना को बल प्रदान करने में सर्वथा अनुकूल है। इस प्रकार, कुल मिलाकर, संस्थान का मुख्य संदेश है आपस में एक-दूसरे के दृष्टिकोण तथा विचारों का सम्मान करना तथा स्वयं की समृद्धि के लिए उन्हें एकजुट करना।
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशनः राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) 2003 में शुरू किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य विशाल पांडुलिपि खजागे में मौजूद भारत की ज्ञान विरासत का उद्धार करना है। देश भर में स्थापित विभिन्न केंद्रों के जरिये मिशन कार्य करता है। इनमें 46 पांडुलिपि संशोधन केंद्र, 33 परिरक्षण केंद्र, 42 पांडुलिपि भागीदार केंद्र तथा 300 पांडुलिपि परिरक्षण भागीदार केंद्र हैं। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की प्रमुख गतिविधियां हैंः सर्वे के माध्यम से पांडुलिपियों का प्रलेखन, निरोधक एवं आरोग्यकर परिरक्षण, परिरक्षण, पांडुलिपि पंजीकरण तथा पुरालिपि शास्त्र पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों तथा कार्यशालाओं का आयोजन, डिजिटाइजेशन के जरिए प्रलेखन, पांडुलिपियों को संरक्षित तथा सूचना प्रचार के लिए जन जागरूकता पैदा करने के लिए अनुसंधान, प्रकाशन तथा लोक संपर्क कार्यक्रम।

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