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indian ocean rim association for regional cooperation in hindi हिंद महासागर तटीय रिम कूटनीति
हिंद महासागर तटीय रिम कूटनीति indian ocean rim association for regional cooperation in hindi ?
क्षेत्रीय सहयोग के लिए हिन्द महासागर के किनारे वाले देशों का संघ
(दि इंडियन ओशन रिम असोसियेशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन)
हिन्द महासागर क्षेत्र के तटवर्ती राज्य होने के नाते ऑस्ट्रेलिया, भारत और दक्षिण अफ्रीका के महत्त्वपूर्ण आर्थिक हित हैं। नवम्बर 1993 में आर. एफ. बोधा की भारत यात्रा के दौरान दक्षिण अफ्रीका और भारत ने हिन्द महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग के लिए पहल की। ऑस्ट्रेलिया जिसको कि उत्तर-पूर्वी प्रशान्त महासागर देशों से स्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था, सागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को स्थापित करने और तटवर्ती राज्यों के साथ सम्पर्क कायम करने का इच्छुक था। 1994 के आरंभ में ऑस्ट्रेलिया ने हिन्द महासागर क्षेत्र में एक क्षेत्रीय व्यापारिक खंड बनाने के भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रयासों में सहयोग प्रदान किया। यह ऑस्ट्रेलिया की श्पश्चिम देखोश् कार्यनीति के अंतर्गत था। ऑस्ट्रेलिया पोर्ट लुई, मारीशस में स्थापित 7 देशों के एक केन्द्रीय समूह में भी एक सक्रिय भूमिका निभाने लगा। उसने 12-13 जून 1995 को पर्थ, पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में 23 देशों के गैर-सरकारी प्रतिनिधियों की एक कांफ्रेंस का आयोजन किया। यह कांफ्रेंस, जोकि ‘इंटरनेशनल फोरम ऑन द इंडियन ओशिन रीजन‘ (प्थ्प्व्त्) कहलाई, की वजह से दो महत्वपूर्ण इकाइयों का जन्म हुआ। वस्तुतः (क) इंडियन ओशिन रिम कंसलटेटिव बिजनेस नेटवर्क (प्व्त्ब्ठछ) और (ख) इंडियन ओशिन रिसर्च नेटवर्क (प्व्त्छ)
इस नवीन क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग समूह – आई ओ आर – ए.आर.सी. (प्व्त्-।त्ब्) का अधिकृत प्रारंभ मॉरिशस में 5-7 मार्च 1997 को आयोजित किया गया। इसके विषय में आपने विगत इकाई में पढ़ा है।
इंडियन ओशिन रिम कंसलटेटिव बिजनेस नेटवर्क (प्व्त्ब्ठछ) और इंडियन ओशिन रिसर्च नेटवर्क (प्व्त्छ) की दो सभायें नई दिल्ली (11-13 दिसम्बर, 1995) और डर्बन, दक्षिण अफ्रीका (10-11 मार्च, 1997) में आयोजित की गई। डर्बन सभा में भाग लेने वालों ने 1998 के अंतिम माह में इंडोनेशिया में फिर से मिलने पर सहमति प्रकट की।
आर्थिक संबंध
1990 के दशक के प्रारम्भ से भारत और ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक संबंधों ने, विशेष रूप से व्यापार और निवेश के क्षेत्र में, एक नाटकीय वृद्धि दिखलायी है। भारतीय अर्थव्यवस्था के धीरे-धीरे रूपातंरण और उदारीकरण ने द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों को काफी हद तक बढ़ावा दिया है। एक विकासशील देश का दर्जा होने के बावजूद, वस्तुओं और सेवाओं के बाजार के रूप में भारत में काफी संभावनाएं हैं। 1994 में खरीददारी शक्ति सापेक्षता के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आंकी गयी थी। यह तथ्य ऑस्ट्रेलिया के लिए काफी व्यापारिक महत्त्व रखता है।
1991 में भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार लगभग 200 प्रतिशत बढ़ा है और 1997 – 98 तक 1.8 अरब अमेरिकी डॉलर (2 अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर) तक पहुँच गया था।
भारत के ऑस्ट्रेलिया को निर्यात में हैं सूती टैक्सटाइल और कपड़े, इंजीनियरिंग वस्तुएं, रसायन और सम्बन्धित वस्तुएं, बागवानी और कृषि वस्तुएं और चमड़े के उत्पाद। भारत ऑस्ट्रेलिया से थोक में कोयला, ऊन और गैर-लोहा उपकरण, कागज और सूखे फलों का आयात करता है।
तालिका : भारत का ऑस्ट्रेलिया से व्यापार
1996-97
1997-98
भारत के निर्यात
रुपये 13,680 करोड़
(390.86 लाख अमेरिकी डॉलर) रुपये 15,817 करोड़
(395.43 लाख अमेरिकी डॉलर)
भारत के आयात
रुपये 46,761 करोड़
(1,336.03 लाख अमेरिकी डॉलर) रुपये 55,611 करोड
(1390.28 लाख अमेरिकी डॉलर)
1 अमेरिकी डॉलर =
रुपये 35 की दर से
1 अमेरिकी डॉलर =
रुपये 40 की दर से
बोध प्रश्न 4
नोट : क) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।
1) भारत – ऑस्ट्रेलिया एक नये परिप्रेक्ष्य की ओर से आप क्या समझते हैं?
2) भारत-ऑस्ट्रेलियन आर्थिक संबंध पर चर्चा कीजिए।
बोध प्रश्न 4 उत्तर
1) नये परिप्रेक्ष्यों में भारत में 1996 में ऑस्ट्रेलिया को समझने और संबंधों को बेहतर बनाने की शुरूआत की गई। इसमें द्विपक्षीय मामलों जैसे खनन, दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक, कृषि खाद्यान्न संसाधन जैसे क्षेत्रों में सहयोग और भागीदारी समझौते कायम किए गए। (अधिक विवरण के लिए अनुभाग 22.4.1 देखें)
2) भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से 1990 के दशकों में दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश की सम्भावनाएँ प्रबल हुई हैं। (अधिक विवरण के लिए अनुभाग 22.4.2 देखें)
पोखरण-प्प् और भारत-ऑस्ट्रेलियन संबंध
भारत के परमाणु परीक्षणों के प्रति ऑस्ट्रेलिया की प्रतिक्रिया
भारत के परमाणु परीक्षणों के प्रति ऑस्ट्रेलिया की प्रतिक्रिया को ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों में सामान्यतः एक श्अति प्रतिक्रियाश् माना गया। 12 मई 1998 को ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री ऐलैक्जैडर डाऊनर ने कहा कि सरकार (ऑस्ट्रेलियन) परीक्षणों को अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार की सीमाओं के परे मानती है। (ऑस्ट्रेलियन) सरकार ने अपने राजदूत को नई दिल्ली से विचार-विमर्श के लिए वापस बुलाया, अपने सैनिक सहयोग को हटाया और गैर-मानवीय सहायताओं को समाप्त कर दिया। इसकी तुलना में रूस और उसके यूरोपीयन मित्र, फ्रांस और यू.के., अपनी आलोचना में नर्म थे। मुख्यतः उन्होंने भारत से सी.टी.बी.टी. पर हस्ताक्षर करने को कहा। जुलाई में ए. आर. एफ. (।त्थ्) की सभा में आसियान भर्त्सना करने से रूक गया, यद्यपि जापान, ऑस्ट्रेलिया और चीन ने निरंतर दबाव बनाये रखा। इन तीनों देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ यह माँग की थी कि पाकिस्तान के साथ भारत को बिना किसी शर्त के सी.टी. बी.टी पर हस्ताक्षर कर देना चाहिये और अपने परमाणु शस्त्र कार्यक्रम को समाप्त कर देना चाहिए, क्योंकि इससे परमाणु शस्त्रों की होड़ का खतरा है। जवाबी कार्यवाही में भारत ने भी कुछ कदम उठाये, जैसे कि अपने रक्षा अटैची को वापस बुलाना, ऑस्ट्रेलियन नौसेना के यानों को भारतीय बंदरगाहों में आने की अनुमति नहीं देना, सैनिक हवाई जहाजों को भारतीय हवाई सीमा के ऊपर से उड़ान भरने की अनुमति नहीं देना इत्यादि।
बदलती हुई कूटनीतिक वास्तविकताएं
संघर्ष और प्रतिस्पर्धात्मक हितों के संसार में जिस कूटनीतिक संरचना के अंतर्गत राष्ट्र व्यवहार करते हैं, वह निरन्तर बदलती रहती है। एशिया में शीत युद्ध की समाप्ति और आर्थिक वृद्धि ने बदलते हुए कूटनीतिक संतुलन में अपना योगदान दिया है। ऑस्ट्रेलिया के दृष्टिकोण में इससे क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण शक्तियों में कूटनीतिक स्पर्द्धा की संभावना बढ़ गयी हैं। 70 और 80 के दशकों में ऑस्ट्रेलिया की प्रमुख कूटनीतिक दिलचस्पी दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण पश्चिम प्रशान्त के क्षेत्रों में थी। दक्षिण एशिया ऑस्ट्रेलिया के कूटनीतिक समीकरणों में कभी भी उतना प्रबल नहीं रहा। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारत और पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों के बाद ऑस्ट्रेलिया के सुरक्षा दृष्टिकोणों में दक्षिण एशिया को और अधिक स्पष्ट किया। परीक्षण के कुछ समय बाद ही ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय ने चेतावनी दी थी कि दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान) की शत्रुता और परमाणु सुरक्षा प्रतिमानों के अभाव अब तक विश्व में परमाणु युद्ध होने का सबसे बड़ा खतरा थे।
ऑस्ट्रेलिया – भारत संबंध : संभावना और सिंहावलोकन
इस संदर्भ में कुछ तार्किक प्रश्न पूछना लाभदायक रहेगा। जैसे कि, क्या ऑस्ट्रेलिया भारतपाकिस्तान चीन समस्या को पूरी तरह से समझता है, या दूसरे शब्दों में, क्या वह भारत के सुरक्षा हितों और खतरों के आयामों के प्रति संवेदनशील है? ऐसा नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया पाकिस्तान और चीन के संदर्भ में भारत की कूटनीतिक विवशताओं से सर्वथा अनभिज्ञ होद्य जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है, कश्मीर विवाद में विरोधी के रूप में उसका इतिहास रहा है और भारत और पाकिस्तान (यू. एन. एम. ओ. जी. आई. पी.) में 1948 से 1985 तक हर वर्ष वह संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक समूह के एक भाग के रूप में हर वर्ष छह सैनिक कार्मिकों को भेजता रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच संयुक्त राष्ट्र संघ के मध्यस्थ के रूप में ऑस्ट्रेलिया के हाई कोर्ट के न्यायाधीश सर ऑवैन डिक्सन को नियुक्त किया गया। सितम्बर 19, 1950 को सुरक्षा परिषद को पेश की गई अपनी रिपोर्ट में सर ऑवैन डिक्सन ने यह सुझाव दिया कि चूंकि मध्यस्थ द्वारा किए गए सभी प्रयास विफल हो गये, सम्बन्धित पक्षों को स्वयं एक हल निकालने के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए। 1954 में सीऐटो बिल पर ऑस्ट्रेलिया में वाद-विवाद के दौरान भी कश्मीर प्रश्न उठा था। मुख्य प्रश्न यह था कि कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्ध की स्थिति में क्या ऑस्ट्रेलिया पाकिस्तान के पक्ष में एक और कॉमनवैल्थ सदस्य के खिलाफ पहल करेगा। यद्यपि तत्कालीन ऑस्ट्रेलियन विदेशमंत्री, आर.पी. कैसे ने गैर-हस्तक्षेपवाद का समर्थन किया, तथापि उन्होंने पाकिस्तान को सन्धि (सीऐटो) से उपजी किसी भी गलतफहमी के प्रति आश्वस्त किया। जैसा कि समझा जा सकता है, इससे भारत में आक्रोश फैला और संबंधों में तनाव फिर पैदा हो गया जोकि लेबर सरकार के दौरान लगभग दूर हो गये थे। चीन के संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया इस तथ्य को मानता है कि चीन क्षेत्र में एक और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहता है। दिसम्बर 1997 की ऑस्ट्रेलियन कूटनीतिक समीक्षा में कहा गया कि ष्हम चीन को ऑस्ट्रेलिया के लिए एक खतरे के रूप में नहीं देखते हैं।श् बल्कि, समीक्षा में कहा गया कि ‘‘आर्थिक रूप से शक्तिशाली चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका से उसके संबंध एशिया, प्रशान्त में स्थायित्व के लिए मूलभूत हैं।‘‘
अपने एशियाई पड़ोसियों को स्वीकार कर लेने के बावजूद भी यह प्रश्न सामने आता है कि अपनी विदेश नीति और सुरक्षा योजना में ऑस्ट्रेलिया किस हद तक स्वतंत्र है? क्या वह संयुक्त राज्य अमेरिका की परमाणु छत्रछाया में रहते हुए परमाणु शस्त्रों रहित विश्व का आह्वान करता रहेगा या फिर भारत को भी इस छत्रछाया के तहत लाने के लिए कहेगा? भारत के रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नान्डिस ने परमाणु परीक्षणों के लिए दीएगो गार्सिया को एक कारण बताया था।
क्या ऑस्ट्रेलिया एक हिन्द महासागर शांति क्षेत्र (र्प्व्व्च्) को स्वीकृत करेगा जिसके लिए शायद संयुक्त राज्य अमेरिका को द्वीप (दीएगो गार्सिया) से सैनिक सुविधाएं हटानी पड़ें? यदि संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए आने जाने के अधिकार भी हासिल कर लिए गए, तो भी जैसा कि ऑस्ट्रेलिया के भूतपूर्व विदेशमंत्री गैरेंथ ईवांस ने कहा, एक परमाणु शस्त्रों रहित क्षेत्र कायम करने की समस्या के मात्र आने जाने के अधिकार के अलावा और आयाम होंगे।
ऑस्ट्रेलिया-भारत संबंधों में तथाकथित झटकों के लिए रूक रूक कर (अंग्रेजी के) श्कौमाश् और श्हिकपश् शब्दों का प्रयोग किया जाता रहा है। एक समान लक्षणों, जैसे कि कॉमनवैल्थ की सदस्यता, संघीय सरकार से लेकर क्रिकेट खेल के आयोजन तक होने के बावजूद उनके संबंधों में हमेशा दूरी बनी रही है। ऑस्ट्रेलिया के मुख्य निर्यात पूर्वी एशिया को जाते हैं। भारत के मुख्य व्यापारी साथी संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीयन समुदाय (ई सी) देश हैं। 1997-98 में ऑस्ट्रेलिया को भारत का कुल निर्यात 395 लाख अमरीकी डालर था, जबकि आयात 1990 अमरीकी डॉलर था। विदेशी मामलों, सुरक्षा और व्यापार की संयुक्त समिति ने ऑस्ट्रेलिया के व्यापार संबंधों पर 29 जून 1998 को रिपोर्ट पेश की, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के व्यापार और पूँजी निवेश के लिए भारत की महत्ता का जिक्र है। फिर क्या भारत का परमाणु देश का दर्जा ऑस्ट्रेलिया के भारत के साथ व्यापार पर प्रभाव छोड़ेगा?
अब ऑस्ट्रेलिया की प्रमुख प्राथमिकताएं कई क्षेत्रों में भारत से भिन्न नहीं हैं। दोनों ही एक परमाणु शस्त्र रहित विश्व के इच्छुक हैं और भारत परमाणु अप्रसार सन्धि पर हस्ताक्षर करने की ओर अग्रसर है और एफ. एम. सी. टी. पर विचार-विमर्श के लिए तैयार है। परमाणु परीक्षणों के संचालन और रोक लागू करने के लिए एक सार्थक भूगर्भीय संचालन संरचना की दिशा में दोनों देश सहयोग कर सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया भारत को प्रोत्साहित करने के लिए बढ़ावा दे सकता है, ताकि भारत पाकिस्तान और चीन के साथ अपनी समस्या सुलझा सके। आसियान, आई ओ आर – ए आर सी
जैसे बहुपक्षीय फोरम हैं, कॉमनवैल्थ के अलावा, जहाँ ऑस्ट्रेलिया और भारत समान हितों वाले विषयों पर विचार विमर्श कर सकते हैं। सुरक्षा परिषद् सीट के संदर्भ में भारत का खराब प्रदर्शन दिखाता है कि उसे मित्रों की आवश्यकता है। सार्क के साथ संवादीय संबंध हेतु वह ऑस्ट्रेलिया के लिए गारंटी दे सकता है। आखिर में, जैसा कि विदेशी मामलों, सुरक्षा और व्यापार की संयुक्त सिनेट समिति ने सुझाव दिया, दो महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जोकि भारत में ऑस्ट्रेलिया के हितों को बढ़ावा दे सकते हैं, वे हैं भारत में रेडियो ऑस्ट्रेलिया ब्रॉडकास्ट का पुनःप्रसारण और मिश्रित कर्ज अथवा नर्म ऋण सुविधा के अभाव के लिए हल खोजना, अगर परीक्षणों का कोई औचित्य रहा है, तो वह यह कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया-भारत संबंधों को एक सार्थक पुनःपरीक्षण का अवसर दिया है। मई 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किए, तब ऑस्ट्रेलिया ने खासे कड़े रूप में प्रतिक्रिया की। 11 मई को प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड ने भारत के कदम को ष्एक अनुचित कदम बताया। 14 मई को विदेशी मामलों के मंत्री ऐलैक्जैडर डाऊनर ने परीक्षणों को ष्अतिनिंदनीय कार्यवाईश् बताया। साथ ही साथ सभी द्विपक्षीय राजनीतिक और सैनिक सम्पर्कों और मानवीय सहायता को निषेध कर दिया। भारत ने इस भाषा और रूख को राजनयिक दृष्टि से अनुचित माना। भारत में तात्कालिक प्रतिक्रिया थी, भारत के सुरक्षा हितों के बारे में निर्णय लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया कौन है? भारत में ऑस्ट्रेलिया के एक ऐसे देश होने की छाप पड़ी जोकि संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रसन्न करने के लिए अति उत्सुक थाय जिसके साथ भारत के हमेशा कूटनीतिक और परिप्रेक्ष्यीय मतभेद थे। यह ध्यान में रखते हुए कि ऐसी प्रतिक्रियाएं एक ऐसे देश से आयी जोकि संयुक्त राज्य अमेरिका के परमाणु संरक्षण के अधीन था और जिसने कि अपनी धरती पर एक दूसरे देश के लिए परमाणु परीक्षण किया था, ये प्रतिक्रियाएं मुखौटी थीं। इन प्रतिक्रियाओं का सबसे खराब पक्ष यह था कि उनसे भारत में ऑस्ट्रेलिया और ऑस्ट्रेलिया में भारत के सभी पुराने और नकारात्मक प्रतिबिम्बों को प्रोत्साहन मिलाकृप्रतिबिम्ब जिनको मिटाने के लिए लंबा समय लगा था और जोकि कुछ हद तक मिट चुके थे। मई 28, 1998 को प्रत्युत्तर में भारत ने सभी द्विपक्षीय सैनिक सहयोग को निलंबित करते हुए ऑस्ट्रेलियन नौसेना के जहाजों को भारतीय बंदरगाहों और समुद्र सीमा में आने से मना कर दिया और ऑस्ट्रेलिया सैनिक हवाईजहाजों की भारतीय वायु सीमा के ऊपर से उड़ानों को रद्द कर दिया।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है, उसके राजनीतिक प्रभुत्व वाले वर्ग ने वह राजनयिकी कुशलता नहीं दिखलायी जिसकी परमाणु परीक्षण के तुरन्त बाद के दौर में आवश्यकता थी, विशेष रूप से अपने इरादों को सामने लाने में जोकि उसने बाद की अवस्था में ही किया।
तब से भारत-ऑस्ट्रेलियन संबंधों में एक ठहराव की स्थिति है। यह महत्त्वपूर्ण है कि दृष्टिकोणों में दूरियों को कम किया जाए, ताकि नजदीकी आर्थिक संबंधों से उपजे पारस्परिक लाभों का फायदा मिले। मतभेदों को कम करने की तीव्र आवश्यकता है। वर्तमान राजनीतिक संचालन दो एक साथ क्रियाशील ढांचों में एक अतिरिक्त तत्त्व की आवश्यकता को इंगित करता हैः (क) समान हितों वाले क्षेत्रों पर बल देना और (ख) मतभेदों को ज्यादा उजागर न करना।
सन् 2000 में भारत-ऑस्ट्रेलियाई सामान्य संबंधों की पुनः शुरूआत
पोखरण-प्प्, मई 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण के पश्चात् दोनों देशों के बीच के संबंधों में कड़वाहट पैदा हो गई, लेकिन 1999 के अन्त में जाकर ऑस्ट्रेलिया को यह समझ आ गया कि वह भारत पर किसी भी प्रकार का दबाव डालकर उससे परमाणु हथियारों के निर्माण को समाप्त नहीं कर सकता है। भारत की मजबूत लोकतान्त्रिक परम्परा और विशाल अर्थव्यवस्था में ऑस्ट्रेलिया को नरम रूख अपनाने पर मजबूर कर दिया है। अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा के तुरन्त बाद ऑस्ट्रेलिया के विदेशमन्त्री ऐलैक्जेन्डर डाउनर ने मार्च 2000 में भारत का चार दिन का दौरा किया।
इस महत्त्वपूर्ण यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी और विदेश मन्त्री जसवन्त सिंह से हुई। इससे पहले भी दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के पदाधिकारियों ने नई दिल्ली में फरवरी, 2000 में कुछ सामान्य बातों पर बातचीत की, जोकि श्री डाऊनर के अनुसार – ‘‘हमारे सामान्य हित और मूल्यों‘‘ पर आधारित थी। दोनों देश संसदीय लोकतंत्र की बहाली, क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े ए. आर. एफ. (ए. एस. ई. ए. एन. क्षेत्रीय फोरम) जैसे निकायों और कॉमनवैल्थ की समान सदस्यता के प्रति वचनबद्ध हैं। दोनों देश क्षेत्रीय सहयोग पर आधारित आई. ओ. आर. – ए. आर. सी. (इंडियन ओशन रिम असोसिएशन) जैसे उभरते हुए क्षेत्रीय संघों की सदस्यता प्राप्त कर चुके हैं। ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री के अनुसार दोनों देश के सामान्य हितों से जुड़े मुद्दों में दक्षिण-पूर्वी एशिया, विश्व व्यापार संगठन और पर्यावरण को शामिल किया गया है।
ऑस्ट्रेलिया, भारत से आतंकवाद दूर करने में सहयोग प्रदान कर रहा है। डाऊनर द्वारा, मार्च 2000 में अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन द्वारा भारत यात्रा के दौरान कश्मीर में 35 सिक्खों की निर्मम हत्या की भर्त्सना की गई। डाऊनर ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया, इस प्रकार के आतंकवाद के विरूद्ध कड़ा रूख अपनाता है।
श्री जसवंत सिंह और श्री डाऊनर, मई 1998 में पोखरण-प्प्, परीक्षण के पश्चात आई कड़वाहट को दूर करने के लिए सिद्धान्तः, पुनःरक्षा संबंधी बातचीत करने को तैयार हुए। जैसा कि ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री द्वारा स्वयं कहा गया, यह एक अच्छी शुरूआत थी और ऑस्ट्रेलिया द्वारा क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में भारत के बढ़ते हुए महत्त्व की सराहना की गई और ऑस्ट्रेलिया द्वारा कूटनीति के महत्त्व में जुड़े मुद्दों पर भारत के साथ लंबी-चौड़ी बातचीत को विकसित करने के महत्त्व पर भी जोर दिया गया। इस प्रकार दोनों देश कूटनीति संबंधों को सुधारने के लिए एक-दूसरे के प्रति वचनबद्ध हुए।
समान लक्षण
ऑस्ट्रेलिया और भारत के मध्य समान लक्षणों के तीन महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जिनका मैत्री को बढ़ावा देने के लिए अधिक इस्तेमाल जरूरी है। ये हैं मूल्यपरख, संरचनात्मक और आर्थिक। दोनों देशों के बीच लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया, धर्मनिरपेक्ष राजनीति और राजनीतिक व्यवस्था में विश्वास महत्त्वपूर्ण सम्पर्क हैं। बहु-संस्कृतिवाद एक और समान अंश है, दोनों देशों में अनेक जातीय समूहों की जनसंख्या है। पॉलीन हैंसेन के उद्भव ने ऑस्ट्रेलिया की बहुसांस्कृतिक वाले देश की छवि के लिए खतरा पैदा किया, पर उसके पतन ने वहाँ की बहुसंस्कृति आत्मा के स्थायित्व की क्षमता को उजागर किया है। संरचनात्मक समानताएं शक्ति विकेन्द्रीकरण के दो महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ढूंढी जा सकती है।
एक है सरकार का संघीय ढांचा जिसके तहत दोनों राज्य क्षेत्रीय शक्ति के बंटवारे के संदर्भ में एक जैसे प्रारूप का अनुसरण करते हैं। दूसरी संरचनात्मक समानता दोनों देशों के सरकार के संसदीय रूप के पालन से पैदा होती है।
साथ ही दोनों विस्तृत भौगोलिक स्थान काफी संसाधनों और संभावनाओं के साथ को समाहित करते है।
बेहतर संबंधों के लिए आर्थिक परमावश्यकताएं
बेहतर संबंधों के लिए आर्थिक जरूरतमंदी दोनो तरफ है। जहाँ तक ऑस्ट्रेलिया का प्रश्न है, भारत उन गिनी चुनी अर्थव्यवस्थाओं में से है जहाँ व्यापार और बाजार की संभावनाएं हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया संकट में है और जापान आर्थिक पतन की ओर है। यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका खुद नये बाजार की खोज कर रहे हैं और इसलिए, ऑस्ट्रेलियन ऊन और अन्य वस्तुओं में शायद ही कोई दिलचस्पी हो। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया और भारत के मध्य व्यापार का संतुलन काफी हद तक ऑस्ट्रलिया के पक्ष में है। जहाँ ऑस्ट्रेलिया के भारत को निर्यात 1-4 अरब अमेरिकी डॉलर के हैं, भारत के निर्यात मात्र 395 लाख अमेरिकी डॉलर के हैं। भारत के दृष्टिकोण से मुख्य दिलचस्पी तकनीकी के स्थानांतरण में होगी। पर यह भारत अन्य स्थान से भी प्राप्त कर सकता है। इसलिये, एक समान हितों का सृजन समय की पुकार है। ‘ऑस्ट्रेलियन फाइनैंशियल रिव्यू में जिम कैनन के अनुसार ऑस्ट्रेलिया को भारत के साथ एक नवीन और सार्थक संबंध बनाने का अवसर नहीं खोना चाहिए। इसके लिए, एक दूसरे की वास्तविकताओं को समझने और मानने की सख्त जरूरत है, मुख्यतः क्षेत्रीय, राजनैतिक, कूटनीतिक और आर्थिक।
अधिक प्रभावी राजनीतिक संचालन की आवश्यकता
भेदों के संचालन के लिए यह आवश्यक है कि इनको हल्की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से सुलझाया जाये। सकारात्मक राजनयिकी को सक्रिय करने की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय और बहुपक्षीय फोरमों में उन गतिविधियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है, जिनसे कि एक दूसरे के हितों को नुकसान न पहुँचे। यह तथ्य खास तौर से निम्न संदर्भ में उल्लेखित किया जा रहा है : आसियन संगोष्ठी में ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारत के खिलाफ दबावी हथकंडे, 1998 में डरबन में आयोजित गुट-निरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका के मसले पर यही रवैया और भारत के परमाणु विस्फोटों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का जोरदार समर्थन।
एक समान रुचियाँ
दोनों देशों के सामान्य दृष्टिकोण, जैसे नशीले पदार्थों से लेकर, हिन्द महासागर में लघु अस्त्रों के व्यापार समुद्री संसाधन और समुद्री मार्गों की सुरक्षा तक के मामले। इन सबके संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया और भारत एक सहयोगात्मक ढांचे के तहत कार्य कर सकते हैं।
दोनों देश रासायनिक और जैविक अस्त्रों, विश्व व्यापार संगठन, दक्षिण एशिया क्षेत्र और आसियन क्षेत्रीय फोरम के संदर्भ में समान लक्षणों को उजागर कर सकते हैं। इसके साथ ही लिखित और ऑडियो-वीडियो मीडिया में छवि को सकारात्मक तरीके से उजागर करने की नितांत आवश्यकता है।
बोध प्रश्न 5
नोट : क) अपने उपरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
(ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।
1) भारत ऑस्ट्रेलियन संबंधों पर पोखरण-प्प् का क्या प्रभाव पड़ा?
2) ऑस्ट्रेलिया और भारत के मध्य अंतः क्रिया के सामान्य क्षेत्रों पर विचार-विमर्श कीजिए।
बोध प्रश्न 5 उत्तर
1) मई 1998 में भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण के बाद ऑस्ट्रेलिया ने कड़ा रूख अपनाते हुए अपने राजदूत को सलाह के लिए वापस बुला लिया तथा भारत को दी जाने वाली सभी सैन्य एवं गैर-मानवीय सहायताओं को समाप्त कर दिया। (अधिक विवरण के लिए अनुभाग 22.5.1 देखें)
2) दोनों देशों के बीच कुछ समस्याओं के प्रति समान विचारधाराएं हैं जैसे नशीले पदार्थों का गैर-कानूनी व्यापार, समुद्री तटों और संपदाओं की रक्षा तथा डब्लू. टी. ओ. एवं रासायनिक और जैव हथियारों पर रोक। (अधिक विवरण के लिए अनुभाग 22.6.3 देखें)
सारांश
इस इकाई में आपने ऑस्ट्रेलिया और भारत के द्विपक्षीय संबंध के बारे में पढ़ा है। आपको स्पष्ट हो गया होगा कि आज के समय के मुख्य विषयों पर दोनों देशों के मध्य मूलभूत मतभेद हैं। यह मतभेद कूटनीतिक विषयों के संदर्भ में अधिक रेखांकित हैं, विशेष रूप से परमाणु शस्त्रों और गैर-विस्तृतवाद ढांचे के संबंध में, साथ ही प्रस्तावित परमाणु अप्रसार सन्धि के संदर्भ में। फिर भी, ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें दोनों देश सहयोग कर सकते हैं और बल्कि कर रहे हैं। यह सहयोग नयी सहस्त्राब्दि में एक सार्थक रिश्ता कायम करने में मदद कर सकता है। यह उम्मीद की जाती है कि इस इकाई के अध्ययन से आपको भारत-ऑस्ट्रेलियन संबंधों की एक बेहतर समझ प्राप्त हुई होगी।
कुछ उपयोगी पुस्तके
रोजी सायलो, ‘‘ऑस्ट्रेलिया-भारत संबंध पोखरण-प्प् के बाद ऐजूकेशन डाईलॉग, (आई. ई. आई., ऑस्ट्रेलियन हाई कमीशन, नई दिल्ली) वॉल्यूम 3, अंक 1, जनवरी 1999।
सथरलैण्ड, जे. श्श्ऑस्ट्रेलिया-भारत संबंध रू करेन्ट स्टेट्स एंड प्रास्पेक्टसष्, स्ट्रैटेजिक ऐनैलिसस, वॉल्यूम 12, अंक 2, मई 1989, पृष्ठ 191-204।
विक्स, पी. सी, ‘‘ऑस्ट्रेलियाई विदेशी नीतियों की समस्याएँ‘‘ ऑस्ट्रेलियन जनरल आफ पॉलिटिक्स एण्ड हिस्ट्री, वॉल्यूम 34, अंक 3, 1988, पृष्ठ 301-07।
गरी, एम., ‘‘नीदर थ्रेट नॉर प्रामिज : एन ऑस्ट्रेलियन वीयु आफ ऑस्ट्रेलियन-इंडियन रिलेशनस् 1947‘‘, जरनल आफ साउथ एशियन स्टडीज, वॉल्यूम 13, अंक 1, 1990, पृष्ठ 85-102।
जसजीत सिंह तथा स्वर्ण सिंह ‘‘रक्षा खर्चों के बदलते रूख‘‘, एशियन स्ट्रेटेजिक रिव्यू, 1996-97, (आई. डी. एस. ए. नई दिल्ली) पृष्ठ 23-88।
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