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निजीकरण क्यों जरूरी होता है ? निजीकरण के फायदे है ? importance of privatisation in hindi

importance of privatisation in hindi need uses निजीकरण क्यों जरूरी होता है ? निजीकरण के फायदे है ? लाभ क्या है ?

निजीकरण क्यों ?
कई देशों में, समय बीतने के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का कार्यनिष्पादन कुल मिलाकर संतोषजनक नहीं रह गया। उन्हें घाटा हुआ, अथवा उन्होंने उतना लाभ अर्जित नहीं किया जितना कि उन्हें दी गई सुविधाओं, जैसे पर्याप्त पूँजी का सुलभ होना, विभिन्न राजसहायता (सब्सिडी) और घरेलू तथा बाह्य प्रतिस्पर्धियों से संरक्षण, के मद्देनजर अर्जित करना चाहिए था। सरकारों ने इन समस्याओं के समाधान के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र के इन उपक्रमों का निजीकरण करने पर विचार करना शुरू कर दिया।

आगे, हम यह सुनिश्चित करने के लिए निजीकरण के संभावित प्रभावों की जांच करेंगे कि क्या इससे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में परिवर्तन आ सकता है।

राजकोषीय प्रभाव
जब सार्वजनिक क्षेत्र का एक उपक्रम निजी क्षेत्र को बेचा जाता है तो सरकार को इसकी बिक्री से आय होती है। पुनः , यदि सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम घाटे में चल रहा था तथा उसे सब्सिडी दी जा रही थी, तो इन सब्सिडियों का सिलसिला समाप्त होता है और सरकार पर से बोझ घटता है। इस प्रकार राजस्व सृजन के साथ-साथ आवर्ती खर्चों में भी कमी होती है।

किंतु क्या सरकार को वास्तव में लाभ होता है ? एक अत्यन्त ही साधारण मामले में, एक खरीदार उतना ही मूल्य चुकाना चाहेगा जितना कि उसे भविष्य में सार्वजनिक क्षेत्र से कमाने की आशा होगी। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा भविष्य में और अधिक लाभ अर्जित करते रहने की आशा की जाती है। एक खरीदार जो भुगतान करेगा वह प्रतिलाभों के कुल जोड़ (इस तथ्य को दिखलाने के लिए गुंजाइश रखते हुए कि भविष्य की तुलना में आज रूपए की कीमत अधिक है) के बराबर होगा। सरकार को भी उतना ही राजस्व प्राप्त होता यदि उसने सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम नहीं बेचा होता। इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि निजीकरण का सरकार के वित्त पर कोई वास्तविक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

किंतु दो कारण हैं जिनसे निजीकरण अभी भी स्थिति में परिवर्तन कर सकता हैं। पहला, निजी क्षेत्र के फर्म की सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की तुलना में अधिक कुशल होने की आशा की जाती है। इसलिए बट्टागत प्रतिलाभों का जोड़ सरकारी स्वामित्व के अन्तर्गत होने वाले प्रतिलाभों की अपेक्षा अधिक होगा। दूसरा, सरकार जब निजीकरण करती है तो इसे तत्काल निधियाँ प्राप्त होती हैं। इस चल-निधि (नकदी) की कई कारणों से आवश्यकता हो सकती है क्योंकि उदाहरण के लिए सरकार शिक्षा अथवा आधारभूत संरचना पर खर्च करने की योजना बना सकती है।

यहाँ यह रोचक है कि सैद्धान्तिक रूप से घाटा उठा रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का मूल्य नकारात्मक हो सकता है। यह कल्पनातीत नहीं है। सरकारों ने कभी-कभी घाटा उठा रही प्रतिष्ठानों को खरीदने के लिए खरीदारों को प्रलोभित करने हेतु इतनी अधिक रियायत दी है कि मूल्य वास्तव में नकारात्मक हो जाता है।

दक्षता लाभ
निजीकरण के प्रतिपादकों ने तर्क दिया है कि इसका आर्थिक दक्षता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। दो तरह के दक्षता लाभ संभव हो सकते हैं: विनियोजन दक्षता में लाभ और उत्पादक दक्षता में लाभ।

विनियोजन दक्षता : अर्थव्यवस्था के संसाधनों का समुचित विनियोजन उस मूल्य पर निर्भर है जो संसाधनों के सापेक्षिक दुर्लभता को ठीक-ठीक प्रदर्शित करता है। एक संसाधान जो अधिक दुर्लभ है का मूल्य भी अधिक होना चाहिए और यह इसके अल्प उपयोग को प्रोत्साहित करेगा। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में मूल्य कभी-कभी दुर्लभता को समुचित रूप से परिलक्षित नहीं करता है। उदाहरण के लिए, यदि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा उपयोग किए जा रहे आदान के लिए सब्सिडी देती है तो ऐसा हो सकता है कि उस उपक्रम में उस आदान का आवश्यकता से अधिक प्रयोग किया जाए। अथवा, यदि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का एकाधिकार है, तो यह अपना अलग मूल्य निर्धारित कर सकता है। इस प्रकार, मिट्टी का तेल अत्यन्त ही कम मूल्य पर बेचा जा सकता है जो डीजल में मिट्टी के तेल की मिलावट को (अर्थात् मिट्टी के तेल का अधिक प्रयोग) प्रोत्साहित करेगा।

यह स्पष्ट है कि प्रतिस्पर्धी बाजारों में कार्यशील सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के लिए मूल्य दुर्लभताओं को अधिक अच्छी तरह से प्रकट करेंगे और इसलिए विनियोजन अकुशलता कम होगी। तब निजीकरण से लाभ भी कम ही होगा। दूसरी ओर, सार्वजनिक क्षेत्र के एकाधिकार को निजी क्षेत्र के एकाधिकार में बदल देने मात्र से ही विनियोजन दक्षता में वृद्धि नहीं हो जाएगी। हम विनियोजन दक्षता में अत्यधिक वृद्धि प्राप्त करने की आशा तभी कर सकते हैं जब सार्वजनिक क्षेत्र के एकाधिकार का निजीकरण करने के साथ-साथ बाजार अन्य प्रतिस्पर्धियों के लिए भी खोल दिया जाए।

उत्पादक दक्षता: उत्पादक दक्षता उत्पादन प्रक्रिया में आदानों के इष्टतम उपयोग से संबंधित है। यह तर्क दिया गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विभिन्न कारणों से निजी फर्मों की अपेक्षा अधिक आंतरिक अकुशलता होगी। सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबन्धकों को अनेक और निरन्तर परिवर्तनशील लक्ष्यों का पीछा करना होता है। सार्वजनिक क्षेत्र पर अधिक से अधिक लाभ कमाने की इच्छा रखने वाले शेयर धारकों के नियंत्रण के बजाए नौकरशाहों का नियंत्रण रहता है जो कम से कम ‘‘जोखिम उठाने‘‘ का प्रयास करते हैं। मान लीजिए कि उत्पादक दक्षता के लिए एक ऐसे आदान की आवश्यकता है जो प्रतिस्पर्धी बाजार में उपलब्ध नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में प्रबन्धक को लगभग प्रत्येक चीज प्रतिस्पर्धी संविदा भाव पर खरीदनी पड़ती है और इसलिए वह उस विशेष आदान का उपयोग सिर्फ इसलिए नहीं कर सकता है कि बाजार में सिर्फ एक ही विक्रेता है।

वितरणीय प्रभाव
निजीकरण के आलोचक यह दलील देते हैं कि इससे समाज के निर्बल वर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सबसे पहले, नए मालिक कामबंदी कर सकते हैं। अथवा फर्म को निजीकरण के बाद दिवालिया घोषित किया जा सकता है और नौकरियों की सुरक्षा के लिए सरकार नहीं होगी। दूसरे, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा गरीबों को जो वस्तुएँ और सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं, उनकी कमी हो सकती है। उदाहरण के लिए, निजीकरण के पश्चात् एयरलाइन अलाभप्रद मार्गों पर अपनी सेवा बंद करने का फैसला कर सकती है।

इसके विपरीत यह तर्क दिया जाता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निर्धन और सुविधाहीन वर्गों तक लाभ पहुँचाने का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है। उदाहरण के लिए, भारत में यह बार-बार दिखलाया गया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली निर्धनतम लोगों तक आवश्यक वस्तुएँ पहुँचाने में कामयाब नहीं रही है और इससेे धनी वर्गों को अधिक लाभ पहुँचा है।

बोध प्रश्न 2
1) आर्थिक क्षेत्र में राज्य द्वारा अपनी भूमिका बढ़ाने के कुछ मुख्य कारण क्या थे?
2) समाज को निजीकरण से कैसे लाभ हो सकता है, स्पष्ट कीजिए।
3) निजीकरण के वितरणीय प्रभाव क्या हो सकते हैं?

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