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आदेशात्मक नियोजन की परिभाषा क्या है | Imperative Planning in hindi | आदेशात्मक नियोजन किसे कहते हैं

आदेशात्मक नियोजन किसे कहते हैं आदेशात्मक नियोजन की परिभाषा क्या है | Imperative Planning in hindi ?

आदेशात्मक नियोजन
(Imperative Planning)
वह नियोजन प्रक्रिया जो राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था ;समाजवादी या साम्यवादीद्ध के अनुसार होती हैं उन्हें आदेशात्मक नियोजन कहा जाता है। ऐसे नियोजन को निर्देशात्मक या लक्ष्य (Target) आधारित नियोजन कहते हैं। ऐसे नियोजन के दो प्रकार होते हैं। समाजवादी प्रणाली में सभी आर्थिक फैसले सरकार के हाथ में केंद्रीकृत होते हैं, जिसमें संसाधनों पर सामूहिक स्वामित्व होता है (श्रम के सिवाद्ध। साम्यवादी प्रणाली में ;जो चीन पहले था) में सभी संसाधनों पर सरकार का कब्जा होता है और वही प्रयोग करती है (श्रम समेत; इसलिए साम्यवादी चीन ऐसी प्रणाली का असली उदाहरण था। सोवियत संघ में भी थोड़ा बहुत ‘बाजार’ मौजूद था-हालांकि 1928 में स्टालिन ने खेती के सामूहीकरण को लागू कर दिया था लेकिन सिर्फ 94 फीसदी किसान ही इस प्रक्रिया में शामिल किए जा सके थे। ऐसी योजना की मूल विशेषताएं निम्न हैंः
;i) नियोजन में विकास और वृद्धि के संख्यावाचक ;मात्रात्मकद्ध लक्ष्य तय कर दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए जैसे कि पांच लाख टन स्टील, दो लाख टन सीमेंट, 10,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग, 5,000 प्राथमिक स्कूल, आदि आने वाले 5 या 6 साल में तैयार कर दिए जाएंगे।
;ii) चूंकि सरकार का सभी संसाधनों पर स्वामित्व होता है इसलिए ऊपर उल्लिखित योजनागत लक्ष्यों को हासिल करना बहुत संभव होता है।
;iii) बाजार, मूल्य प्रणाली की इसमें करीब-करीब कोई भूमिका नहीं होती क्योंकि सभी आर्थिक निर्णय केंद्रीकृत ढंग से राज्य सरकार द्वारा लिए जाते हैं।
;iv) अर्थव्यवस्था मंे निजी भागीदारी नहीं होती, सिर्फ सरकार ही अर्थव्यवस्था में भूमिका निभाती है।
आदेशात्मक अर्थव्यवस्था में इस तरह का नियोजन होता है। इसीलिए इस तरह की अर्थव्यवस्थाओं को केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्थाओं के रूप में भी जाना जाता है- सोवियत संघ, पोलैंड, हंगरी, आॅस्ट्रिया, रोमानिया आदि और अंततः चीन। दरअसल सोवियत खेमे के बहुत से महान अर्थशास्त्रियों के ब्रिटेन और अमेरिका प्रवास के बाद आदेशात्मक अर्थव्यवस्थाओं में नियोजन की प्रवृत्ति और प्रयोजन को लेकर बहस शुरू हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ऐसे अर्थशास्त्रियों में से बहुत से अपने मूल देश की सेवा करने वापस लौट गए और किसी हद तक वहां क्रांति को झेला। उनकी सामयिक और सुस्पष्ट आर्थिक सोच ने ही युद्ध के बाद की दुनिया में मिश्रित अर्थव्यवस्था का आधार तैयार किया। इनमें से एक पोलैंड के मशहूर अर्थशास्त्री आॅस्कर लैंग थे, जो वापस जाकर पोलिश स्टेट इकोनाॅमिक काउंसिल (भारत में प्लानिंग कमीशन की तर्ज पर) चेयरमैन बने। उन्होंने 50 के दशक में ‘समाजवादी बाजार’ ;उंतामज ेवबपंसपेउद्ध का सुझाव दिया और इसकी रचना की। उनके समाजवादी बाजार के विचार को न सिर्फ पोलैंड बल्कि उस समय की अन्य राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्थाओं ने खारिज कर दिया था।
इस तरह का नियोजन अपने शीर्ष में पहुंचा चीन में सांस्कृतिक क्रांति (1966.69) के बाद, जिससे 1949 के बाद सोवियत-तर्ज की केंद्रीय नियोजन प्रणाली अपनाने वाले देश में आर्थिक मंदी आ गई। डेंग शिया ओपिंग (1977.79) के समय चीन ने आर्थिक शक्तियों को बड़े पैमाने पर विकेंद्रीकृत कर दिया और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए 1985 में ‘दरवाजे खोलने की नीति’ की घोषणा की। चीन की दरवाजे खोलने की नीति साम्यवादी राजनीतिक ढांचे के तहत समाजवादी बाजार की दिशा में बढ़ाया गया कदम थी (लोकतंत्र के लिए लोकप्रिय छात्र आंदोलन को 1989 में थियानमन चैक पर निर्दयतापूर्वक दबा दिया था)। इसी तरह राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था के नाकाम अनुभव से बचने के लिए सोवियत संघ ने मिखाइल गोर्वाचेव के नेतृत्व में 1985 में राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू की, जिसे प्रेसत्रोरिका (नवीनीकरण) और ग्लासनोस्त (खुलापन) कहा गया। अन्य पूर्वी यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं ने भी 1989 के बाद इसी तरह के आर्थिक सुधारों का अनुसरण किया। इस तरह 80 के दशक के अंत तक सभी राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्थाएं बाजार आधारित अर्थव्यवस्था
की दिशा में बढ़ चुकी थीं। उसके बाद से किसी भी देश ने आदेशात्मक नियोजन को नहीं अपनाया।

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