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हाइड्रोलिक ब्रेक या द्रव चलित ब्रेक , हाइड्रोलिक ब्रेक का कार्य सिद्धांत किस नियम पर आधारित है , Hydraulic brake in hindi
Hydraulic brake in hindi , हाइड्रोलिक ब्रेक या द्रव चलित ब्रेक , हाइड्रोलिक ब्रेक का कार्य सिद्धांत किस नियम पर आधारित है :-
खुली नली मैनोमीटर या दाबान्तरमापी : खुली नली मैनोमीटर या दाबान्तरमापी का उपयोग वायुमंडलीय दाबांतर का मान ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
खुली नली मैनोमीटर में U आकार की एक नली लेते है , जिसमे द्रव भरा होता है।
दाबान्तर मापी का एक सिरा वायुमंडल में खुला छोड़ दिया जाता है। दुसरे सिरे से उस निकाय को जोड़ दिया जाता है , जिस दाब ज्ञात किया जाता है।
प्रारंभ में बिंदु आप A व B का मान समान रहता है जो कि गेज दाब के बराबर होता है।
निकाय जोड़ने के बाद मैनोमीटर द्रव स्तम्भ h ऊंचाई ऊपर चढ़ जाता है।
अत: वायुमण्डलीय दाब –
Pa = F/A
Pa = mgh/Ah
Pa = mgh/Ah
Pa = mgh/V
Pa = dgh (नीचे की ओर)
A और B बिंदु का दाब समान है = p ऊपर की ओर
p = pa + dgh
P – Pa = dgh
द्रव चलित मशीन या उस्थापक : द्रव चलित मशीन या अस्थापन पास्कल के नियम पर आधारित होता है।
द्रव चलित मशीन में पिस्टन P1 व P2 लगे होते है।
जिनका क्षेत्र A1 व A2 होता है जबकि पिस्टन P1 पर F1 बल लगाया जाता है तो पिस्टन पर दाब लगता है जिसके कारण पिस्टन P2 पर द्रव द्वारा F2 बल लगाया जाता है और मशीन ऊपर आ जाती है।
A1 क्षेत्रफल वाले पिस्टन पर लगने वाला दाब P1 = F1/A1
A2 क्षेत्रफल वाले पिस्टन पर लगने वाला दाब P2 = F2/A2
पास्कल के नियम से –
P1 = P2
F1/A1 = F2/A2
F2 = F1/A1A2
यदि A1 < A2
तो F2 > F1
द्रव चलित ब्रेक या हाइड्रोलिक ब्रेक : द्रव चलित ब्रेक या हाइड्रोलिक ब्रेक का उपयोग मोटर गाडियों पर ब्रेक लगाने पर किया जाता है।
हाइड्रोलिक ब्रेक में एक ब्रेक सिलेण्डर होता है जिसमे ब्रेक तेल भरा रहता है। ब्रेक सिलेंडर पर लगे हुए पिस्टन को लिवर की सहायता से ब्रेक पैडल से जोड़ दिया जाता है।
ब्रेक सिलेंडर से नली जुडी हुई रहती है , यह नली दो पिस्टन P1 व P2 वाले एक पात्र से जुडी रहती है। पिस्टन P1 से ब्रेक सूज S1 जबकि पिस्टन P2 से ब्रेक सूज S2 जुड़ा रहता है।
जब ब्रेक पैडल को दबाया जाता है तो पिस्टन की सहायता से ब्रेक तेल के ऊपर दाब उत्पन्न होता है। उत्पन्न होने वाले इस दाब के कारण पिस्टन P1 व P2 आगे की ओर फ़ैल जाते है। जिसके कारण ब्रेक सुज S1 व S2 टायर के सम्पर्क में आ जाते है।
इस प्रकार द्रव चलित ब्रेक या हाइड्रोलिक ब्रेक के द्वारा मोटर गाडियों पर ब्रेक लगाया जाता है।
धारा रेखीय प्रवाह : किसी द्रव का होने वाला ऐसा प्रवाह जिससे प्रत्येक कण का पथ वही होता है जो कि उसके पहले कण का था , धारा रेखीय प्रवाह कहलाता है।
अर्थात धारा रेखीय प्रवाह में प्रत्येक द्रव का कण उसी पथ का अनुसरण करता है जो कि उसके पहले वाले कण ने किया है।
धारा रेखीय प्रवाह के किसी बिंदु पर खिंची गयी स्पर्श रेखा वेग की दिशा को बताती है।
क्रांतिक वेग (Vc) : प्रवाहित हो रहे द्रव के कणों का वह अधिकतम वेग जिस पर द्रव का प्रवाह धारा रेखीय होता है , क्रांतिक वेग कहलाता है।
क्रांतिक वेग से अधिक वेग पर द्रव का प्रवाह धारा रेखीय नहीं होता है।
विक्षुब्ध प्रवाह : जब प्रवाहित हो रहे द्रव के कणों का वेग क्रांतिक वेग से अधिक हो जाता है तो इस स्थिति में द्रव का धारा रेखीय नहीं होता है , इसे विक्षुब्ध प्रवाह कहते है। जैसे आँधी और तूफ़ान
आदर्श द्रव : ऐसा द्रव जिसकी संपीड्यता का मान शून्य होता है तथा उसके कणों के मध्य लगने वाले श्यान बल व घर्षण बल का मान शून्य होता है , उसे द्रव को आदर्श द्रव कहलाता है।
शैथिल्य समीकरण : शैथिल्य समीकरण के अनुसार जब किसी असमान अनुप्रस्थ काट वाली नली में से होकर द्रव प्रवाहित होता है तो द्रव प्रवाह की दर नियत रहती है।
द्रव प्रवाह की दर = AV = नियत
A1V1 = A2V2
A1 > A2
V1 < V2
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