human skeletal system in hindi मानव कंकाल तंत्र किसे कहते है ? मनुष्य के कंकाल तंत्र की संरचना चित्र skeleton के अंग कौन कौन से है , कंकाल का कार्य क्या होता है ?
गमन एवं संचालन
गमन : ऐसी गति जिसमे प्राणी का सम्पूर्ण शरीर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है अर्थात स्थान परिवर्तन होता है , गमन कहा जाता है |
गति के प्रकार –
- अमीबीय गति (Amoebaid movement) : यह गति कूटपादों द्वारा होती है जो अस्थायी प्रवर्ध होते है , कुपादों का निर्माण कोशिका द्रव्य के प्रवाह के कारण आकृति में परिवर्तन होने से होता है | अमीबा के बाह्य द्रव में एक्टिन व मायोसीन प्रोटीन के बने सूक्ष्म तन्तु होते है , एक्टिन तंतुओ से निर्मित प्लैज्मा व जैल मायोसीन की उपस्थिति में संकुचित होता है |
- पक्ष्माभी गति (ciliary movement) : पक्ष्माभो से होने वाली गति को पक्ष्माभी गति कहते है , पक्ष्माभ मुख्यतः प्रोटोजोआ के सदस्यों में मुख्यतः पैरामिशियम में पाये जाते है | पक्ष्माभ संकुचनशील सूक्ष्म नलिकाओ द्वारा बनते है , ये गति के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते है , मैरामिशियम में ये पक्ष्माभ आगे पीछे दोलन गति करते है जिससे प्राणी आगे की ओर गति करता है | युग्लिना ट्रिपेनोसोमा आदि में कक्षाभ द्वारा तरंगित गति होती है |
- पेशीय गति (muscular movement) : पेशीय के संकुचन से होने वाली गति को पेशीय गति कहते है , इस प्रकार की गति स्पंजो के अलावा सभी बहुकोशिकीय जीवों में होती है , मनुष्य में गमन पेशियों को संकुचनशीलता के कारण होता है | चलन में प्रयुक्त होने वाली पेशियाँ अस्थियो से संलग्न होती है , पेशियाँ संकुचन के कारण उपांगो की अस्थियो में गति उत्पन्न होती है , अस्थियों व पेशियों की समन्वित गति के फलस्वरूप गमन संभव होता है |
मनुष्य में कंकाल तंत्र (human skeletal system)
मानव शरीर का ढांचा हड्डियों का बना होता है , ढांचा बनाने वाले अंगो को सामूहिक रूप से कंकाल तन्त्र कहते है | कंकाल तंत्र दो प्रकार का होता है –
- बाह्य कंकाल : बाह्य कंकाल की उत्पत्ति भ्रूणीय एक्टोडर्म या मिसोडर्म से होती है जैसे त्वचा , बाल , शल्क , फर्न आदि बाह्य कंकाल बनाते है |
- अन्त: कंकाल : शरीर के अन्दर पाये जाने वाले इस कंकाल की उत्पत्ति भ्रूणीय मीसोडर्म से होती है , यह शरीर का मुख्य ढांचा बनाता है , यह मांशपेशियों से ढका होता है , यह दो भागों से बना होता है –
- अस्थि (bone) : यह ठोस कठोर मजबूत संयोजी उत्तक है , जो तन्तुओ व मेट्रिक्स से बना होता है , मैट्रिक्स में Ca व Mg के लवण पाये जाते है , इनके कारण अस्थियाँ कठोर होती है , प्रत्येक अस्थि के चारो ओर तंतुमय संयोजी उत्तक से निर्मित दोहरा आवरण पाया जाता है , इस आवरण के द्वारा लीगामेन्टस , टेंडन्स व दूसरी पेशियाँ जुडी रहती है |
मोटी व लम्बी अस्थियों में एक खोखली गुहा पायी जाती है जिसे मज्जागुहा कहते है , मज्जागुहा में एक तरल पदार्थ भरा होता है जिसे अस्थिमज्जा कहते है | अस्थिमज्जा मध्य पीली तथा शिरो पर लाल होती है | लाल अस्थि मज्जा RBC का निर्माण करती है जबकि पीली अस्थिमज्जा WBC का निर्माण करती है |
अस्थि के प्रकार
- कलाजात अस्थि : यह त्वचा के नीचे संयोजी उत्तक की झिल्लियो से निर्मित होती है , इसे मेम्ब्रेन अस्थि भी कहते है , खोपड़ी की सभी चपटी अस्थियाँ कलाजात अस्थियां होती है |
- उपास्थि जात अस्थि : कशेरुकी दण्ड , हाथ व पैरो की अस्थियाँ उपास्थिजात अस्थियाँ होती है |
- उपास्थि (cortilage) : यह अर्द्ध ठोस , पारदर्शक एवं ग्लाइको प्रोटीन से बने मैट्रिक्स का बना होता है , इसके मैट्रिक्स में इलास्टिन तन्तु व कोलेजन तन्तु भी पाये जाते है | उपास्थि बाह्य कर्ण , नाक की नोक व संधियों के मध्य स्थित होती है , मनुष्य के कंकाल में कुल 206 अस्थियाँ होती है | कंकाल तंत्र दो भागों का बना होता है |
A . अक्षीय कंकाल (axial skeleton) : शरीर के मुख्य अक्ष बनाने वाले कंकाल को अक्षीय कंकाल कहते है , इसमें मनुष्य की खोपड़ी , कशेरुकी खण्ड व वक्ष की अस्थियां आती है , अक्षीय कंकाल में कुल 80 अस्थियाँ होती है | ये 29 अस्थियाँ होती है जो सवीनो द्वारा परस्पर जुडी रहती है –
- कपालीय अस्थियां : ये कुल 8 अस्थियां होती है , जो परस्पर दृढ़ता से जुड़कर अस्थिल कोष्ठ बनाती है , जिसमे मस्तिष्क सुरक्षित रहता है |
- आननी अस्थियाँ : इनकी संख्या 14 होती है , ये नासिका दृढतालु उपरी व निचली जबड़े व खोपड़ी का अग्र भाग बनाती है |
- कंठीका अस्थि : यह मुखगुहा के फर्श पर पायी जाने वाली एकल अस्थि है |
- मध्य कर्ण की अस्थियाँ : ये 6 अस्थियां होती है , प्रत्येक कर्ण में तीन अस्थियाँ पायी जाती है –
मैलियस
इन्कस
स्टेपिज
- कशेरुकी दण्ड (vertebral column) : यह अक्षीय कंकाल का दूसरा प्रमुख भाग है , कशेरुकी दण्ड में 33 कशेरुकीयें पायी जाती है , ऊपर की ओर खोपड़ी से व नीचे की ओर श्रेणी मेखला से जुडी होती है | ऊपर की प्रथम कशेरुकी की एक्सिस तथा दूसरी कशेरुकी का एटलस कहते है , इन दोनों में त्रिविमीय गति संभव है , सबसे अन्तिम कशेरुकी पुच्छ कशेरुकी कहलाती है |
B . अनुबंधी कंकाल (appendicular skeleton) : मनुष्य की अंश मेखला , श्रेणी मेखला , अग्र व पच्छ पाद की अस्थियाँ मिलकर अनुबंधी कंकाल का निर्माण करती है , मनुष्य के अनुबन्धी कंकाल में 126 अस्थियां होती है |
मानव कंकाल तंत्र
मानव कंकाल तंत्र मनुष्य के कंकाल में कुल 206 अस्थियां होती हैं। मानव शरीर की सबसे लंबी एवं शक्तिशाली अस्थि फीमर है जो जांघ में पायी जाती है। कंकाल तंत्र को दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैः
प्ण् अक्षीय कंकालः इसके अन्तर्गत खोपड़ी, कशेरुक दण्ड तथा छाती की अस्थियां आती हैं।
प्प्ण् अनुबंधी कंकालः इसके अन्तर्गत मेखलाएं तथा हाथ-पैरों की अस्थियां आती हैं।
* खोपड़ीः खोपड़ी की मुख्य अस्थियां निम्न हैंः
- फ्रॉण्टल 2. पेराइटल
- ऑक्सिपिटल 4. टेम्पोरल
- मेलर 6. मैक्सिला
- डेण्टरी 8. नेजल
कशेरुक दण्डः मनुष्य का कशेरुक दण्ड 33 कशेरुकों से मिलकर बना होता है। मनुष्य की पृष्ठ सतह पर मध्य में सिर से लेकर कमर तक एक लम्बी, मोटी एवं छड़ के समान अस्थि पायी जाती है, जिसे कशेरुक दण्ड कहते हैं।
कशेरुक दण्ड का विकास नोटोकॉर्ड से होता है।
* स्टर्नमः पसलियों को आपस में जोड़ने वाली अस्थि स्टर्नम कहलाती है। यह वक्ष के बीचोबीच स्थित होती है।
* पसलियांः मनुष्य में 12 जोड़ी पसलियां पायी जाती हैं।
* मनुष्य के हाथ की अस्थियों में ह्यूमरस, रेडियस अलना, कार्पलस, मेटाकार्पल्स तथा फैलेन्जस होती हैं।
* मनुष्य की रेडियस अलना जुड़ी न होकर एक-दूसरे से स्वतंत्र होती है।
* मनुष्य के पैर में फीमर, टिबियो फिबुला, टॉर्सल्स तथा मेटा टॉर्सल्स अस्थियां होती हैं। इनमें टिबियोफिबुला मुक्त रहती हैं।
* फीमर तथा टिबियोफिबुला के सन्धि स्थान पर एक गोल अस्थि होती है, जिसे घुटने की अस्थि या पटेला कहते हैं।
* टॉर्सल्स में से एक बड़ी होती है जो ऐड़ी बनाती है। तलवे की अस्थियां मेटाटॉर्सल्स कहलाती है।
* अंगूठे में केवल दो तथा अन्य अंगुलियों में तीन-तीन अंगुलास्थियां होती हैं।