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मानव विकास सूचकांक क्या है ? what is Human Development Index in hindi किसे कहते हैं

what is Human Development Index in hindi किसे कहते हैं मानव विकास सूचकांक क्या है ?

विकास मापन (Measuring Development)
यद्यपि अर्थशास्त्री वृद्धि और विकास के मध्य अंतरों को स्पष्ट करने में समर्थ थे (महबूब-उल-हक, एक प्रसिद्ध पाकिस्तानी अर्थशास्त्री ने यह 1970 दशक के प्रारंभ में ही कर लिया था), इसमें कुछ और समय लग, जब विकास मापन की सही विधि को विकसित किया जा सका। यह एक स्थापित तथ्य है कि प्रगति का लक्ष्य मात्र ‘आय में वृद्धि’ से कहीं अधिक है। अंतर्राष्ट्रीय गिकाय, जैसे-संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ और डब्ल्यू.बी. विश्व के अल्पविकसित क्षेत्रों के विकास के बारे में अधिक चिंतित थे। परन्तु इस दिशा में कोई भी प्रयास तभी संभव था जब किसी अर्थव्यवस्था के विकासात्मक स्तर को मापने के लिए साधन और उपाय हों और ऐसे कारक हों, जिगहें विकास के लक्षण माना जा सके। विकास को मापने के लिए किसी सूत्र/उपाय को मूलतः दो प्रकार की कठिगइयों का सामना करना पड़ रहा थाः
;i) पहले स्तर पर यह परिभाषित करना कठिन था कि विकास के घटक क्या हैं? विकास दर्शाने वाले कारक अनेक हो सकते हैं, जैसे-आय/खपत स्तर, खपत की गुणवत्ता, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण, सुरक्षित पेयजल, साक्षरता और शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, शांतिपूर्ण समुदाय जीवनए सामाजिक सम्मान की उपलब्धता, मगैरंजन, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण इत्यादि। यह वस्तुतः काफी कठिन कार्य है कि विकास के इन कारकों पर विशेषज्ञों में सहमति प्राप्त की जा सके।
;ii) दूसरे स्तर पर एक अवधरणा को मात्रात्मक रूप में लेना अत्यधिक कठिन है, क्योंकि विकास में मात्रात्मक और गुणात्मक पहलू होते हैं, गुणात्मक पहलुओं, जैसे-सौंदर्य, स्वाद, इत्यादि; की तुलना करना आसान है, परन्तु इन्हें मापने के लिए हमारे पास कोई मापन स्केल नहीं है।
मानव विकास सूचकांक
(Human Development Index)
अर्थव्यवस्थाओं के बीच विकास की तुलनात्मक गणना को लेकर दुविधा तब हल हुई जब युगइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यू.एन.डी.पी.) ने 1990 में अपनी पहली मानव विकास रिपोर्ट (ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट) यानि एच.डी.आर. प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में मानव विकास सूचकांक (एच.डी.आई.) था जो विकास के स्तर को मापने और परिभाषित करने का पह प्रयास था। इस ‘सूचकांक’ को अग्रणी विद्वानों, विकास के काम से जुड़ेलोगों और यू.एन.डी.पी. के ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट आॅफिस के सदस्यों ने तैयार की थी। मानव विकास सूचकांक विकसित करने वाले ऐसे पहले दल का नेतृत्व महबूब-उल-हक और इंगे कौल ने किया था। इस सूचकांक में शब्द ‘मानव विकास’ असल में ‘विकास’ का ही एक उप-सिद्धांत रूप है।
मानव विकास रिपोर्ट तीन संकेतकों-स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर-को मिकर विकास को मापती है। इन तीनों संकेतकों को समग्र रूप से मानव विकास सूचकांक यानी एच.डी.आई. में बदल दिया जाता है। एच.डी.आई. में एक सांख्यिकी आंकड़े की रचना असल में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिससे ‘सामाजिक’ और ‘आर्थिक’ विकास की समझ के लिए एक संदर्भ बिंदु मिल सका। एच.डी.आई. हर पैमाने के लिए न्यूनतम और अधिकतम सीमा तय करता है जिसे ‘गेलपोस्ट’ कहा जाता है और उसके बाद दिखाया जाता है कि इस गेलपोस्ट के संबंध में हर देश कहां ठहरता है। इसकी वैल्यू 0 और 1 के बीच बताई जाती है (यानी सूचकांक एक के स्तर पर तैयार किया जाता है)। समग्र सूचकांक के विकास के लिए जिन तीन संकेतकों का इस्तेमाल होता है वे निम्नलिखित हैंः
एच.डी.आई. के घटक शिक्षा को अब (एच.डी.आर. 2010 से) दो अन्य संकेतकों से मापा जाता हैः
;पद्ध पढ़ाई के सों का औसत (25 साल की उम्र के वयस्कों के लिए)ः ये यूगैसको इंस्टीट्यूट फाॅर स्टैटिस्टिक्स डेटाबेस में उपलब्ध जनगणना और सर्वेक्षणों से हासिल स्कूली शिक्षा के आंकड़ों और बारो एंड ली (2010) पद्धति पर आधारित है।
;पपद्ध पढ़ाई के संभावित साल (स्कूल जागे की उम्र में बच्चों के लिए)ः ये अनुमान पढ़ाई के हर स्तर पर उम्र के आधार पर नाम लिखाने और हर स्तर पर स्कूल जागे की आधिकारिक उम्र पर आधारित है। स्कूल में पढ़ाई के अनुमानित साल की अधिकतम सीमा 18 वर्ष है।
इन संकेतकों को न्यूनतम वैल्यू शून्य और 1980 से 2012 के बीच देशों में स्कूें में पढ़ाई के औसत साल की वास्तव में पाई गई अधिकतम वैल्यू से सामान्य बनाया जाता है। साल 2010 में अमेरिका में इसके 13-3 साल होने का आकलगी किया गया था। शैक्षिक सूचकांक दो सूचियों का ज्यामितीय औसत है।
स्वास्थ्य मानव विकास सूचकांक के जन्म घटक की जीवन प्रत्याशा द्वारा मापा जाता है और इसकी गणना न्यूनतम 20 साल और अधिकतम 83-57 साल के आधार पर की जातीहै। यह 1980 से 2012 के बीच की समय श्रेणियों में विभिन्न देशों में मापी गई संकेतकों की अधिकतम वैल्यू है। इसलिए किसी देश के लिए दीर्घायु घटक जहां जन्म जीवन प्रत्याशा 55 साल है वहां 0-551 होगी।
जीवन स्तर घटक को जी.एन.आई. (ग्राॅस नेशनल इगकम/उत्पाद) प्रति व्यक्ति अमेरिकी डाॅलर में क्रय शक्ति समता (च्च्च्$) से मापा जाता है न कि पूर्व की प्रति व्यक्ति जीडीपी से। 2012 में कतर के लिए, न्यूनतम आय के लिए गेलपोस्ट 100 अमेरिकी डाॅलर को लिया गया और अधिकतम के लिए 87,478 अमेरिकी डाॅलर। मानव विकास सूचकांक जीएनआई के बढ़ने के साथ आय के कम होते महत्व को परिलक्षित करने के लिए आय के लघुगणक का इस्तेमाल करता है।
एच.डी.आई. के तीनों पक्षों की सूचियों के अंकों को फिर ज्यामितिय औसत के जरिये समग्र सूचकांक में बद जाता है। एच.डी.आई. विभिन्न देशों के अंदर और उगके बीच अनुभवों के निर्देशात्मक तुलना का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
यू.एन.डी.पी. ऊपर बता, गए तीन मागकों के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं को एक की स्केल (यानी 0-000-1-000) के बीच उगके प्रदर्शन के आधार पर स्थान देता है। इन उपलब्धियों के आधार पर देशों को मुख्य तौर पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है जिसके लिए सूचकांक में प्वाइंट्स की श्रेणियां बनी होती हैः
;i) उच्च मानव विकास वाले देशः सूचकांक में 0-800 से 1-000 अंक
;ii) मध्यम मानव विकास वाले देशः सूचकांक में 0-500 से 0-799 अंक
;iii) निम्न मानव विकास वाले देशः सूचकांक में 0-000 से 0-499 अंक
मानव विकास रिपोर्ट, 2016 पर अध्याय 20 में चर्चा की गई है। इसके साथ ही दुनिया में भारत की सापेक्ष स्थिति पर भी चर्चा की गई है।
बहस जारी (The Debate Continues)
यू.एन.डी.पी. की टीम ने यद्यपि इस बात पर सहमति बना ली है कि विकास के घटक क्या होंगे लेकिन दुनिया भर में शिक्षाविद् और विशेषज्ञ इस पर बहस कर रहे हैं। 1995 तक दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाओं ने यू.एन.डी.पी.
द्वारा प्रतिपादित मानव विकास के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया था। मूल रूप से विश्व बैंक ने 1990 के दशक से ही सदस्य देशों में विकासपरक प्रयासों की गुणवत्ता को बढ़ाने और उसके अनुरूप सस्ते विकासपरक कोष आवंटित करने के लिए यू.एन.डी.पी. द्वारा तैयार मानव विकास रिपोर्ट का इस्तेमाल शुरू कर दिया था। स्वाभाविक रूप से सदस्य देशों ने अपनी नीतियों में आय, शिक्षा और जीवन प्रत्याशा जैसे मागकों पर जोर देना शुरू कर दिया और इस तरह से मानव विकास सूचकांक के विचार को बाध्यकारी या फिर स्वैच्छिक रूप से दुनिया भर में स्वीकार्यता मिल गई।
काफी सों तक विशेषज्ञ और विद्वान विकास को परिभाषित करने के अपने-अपने प्रारूप लेकर आते रहे। वे विकास को परिभाषित करने वाले कारकों पर असमान रूप से वजन देते रहे। इसके साथ ही उन्होंगे कई मागकों में पूरी तरह से अलग मागकों का चयन किया जो उगके अनुसार विकास को ज्यादा स्पष्ट तरीके से परिभाषित करते थे, क्योंकि गुणवत्ता मुल्यों को तय करने और नियामक परिकल्पना का माम है इसलिए इस प्रस्तुति की भी गुंजाइश थी। इनमें से अधिकतर प्रयास वैकल्पिक विकास सूचकांक के लिए सही नुस्खे नहीं थे, लेकिन वे वास्तव में बौद्धिक व्यंग्यों के जरिये मानव विकास सूचकांक के अपूर्ण होने को दर्शाने की कोशिश कर रहे थे। ऐसा ही एक प्रयास 1999 में लंदन स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स के अर्थशास्त्रियों और विद्वानों ने किया, जिगहोंगे अपने अध्ययन में बांग्देश को दुनिया में सर्वाधिक विकसित राष्ट्र तथा अमेरिका, नाॅर्वे, स्वीडन आदि देशों को सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर दिखाया।
वास्तव में ऐसे सूचकांक के जरिये ये काफी हद तक संभव है। उदाहरण के लिए हम कह सकते हैं कि मानसिक शांति विकास और मानव जीवन की बेहतरी के लिए बेहद जरूरी तत्व है जो काफी हद तक इस तथ्य पर निर्भर करता है कि हर दिन हम कितना सो पाते हैं। घरों में चोरी या लूटपाट की आशंका पर निर्भर करता है कि हम कितने निश्चिंत होकर सो सकते हैं…जो दूसरे शब्दों में इस बात पर निर्भर करता है कि इगके न होने को लेकर हम कितने आश्वस्त हैं। इसका मतलब हम अच्छी नींद के बारे में जागने की कोशिश घरों में चोरी और लूटपाट की घटनाओं के आंकड़ों से करते हैं। छोटी-मोटी चोरियों के बारे में आम तौर पर फलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जाती ऐसे में सर्वेक्षण करने वाले ऐसे मामले में मान लीजिए देश में एक साल में तों की बिक्री के आंकड़ों से इसे जागने की कोशिश करते हैं। ऐसे में उस देशों मेंलोगों को सबसे ज्यादा बेफ्रिक सोने वा माना जाग चाहिए जहांलोगों के पास चोरी होने या लूटपाट होने का जोखिम जैसी कोई बात न हो, यानी सबसे बेहतर मानसिक शांति हो। इसलिए वो सबसे विकसित देश होग।
वास्तव में मानव विकास सूचकांक को विशेषज्ञों के समूह द्वारा विकसित विकास को मापने का एक ऐसा संभव आधार माना जा सकता है जिसे लेकर अधिकतर जागकारों के बीच सहमति है। लेकिन जिन तय पैमानों पर सूचकांक देशों के विकास का आकलगी करता है वो वास्तव में कई दूसरे अहम कारकों को छोड़ देता है जो किसी अर्थव्यवस्था के विकास और जीवन स्तर को प्रभावित करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे दूसरे कारक जो हमारे जीवन के स्तर को प्रभावित करते हैं निम्नलिखित हो सकते हैंः
;i) अर्थव्यवस्था के सांस्कृतिक पहलू,
;ii) पर्यावरण की शुद्धता और सौंदर्यबोध को लेकर नजरिया;
;iii) अर्थव्यवस्था के नियम और प्रशासन से संबंधित पहलू
;iv) खुशहाली और प्रतिष्ठा को लेकरलोगों के विचार, और;
;v) मानव जीवन को लेकर नैतिक परिदृश्य।
विकास का आत्मविश्लेषण (Introspecting Development)
विकास के असली अर्थ को लेकर भ्रम तब शुरू हुआ जब विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अस्तित्व में आएं विशेषज्ञ विकासशील देशों में विकास प्रक्रिया का अध्ययन कर रहे थे, वो विकसित देशों के प्रदर्शन की रिपोर्टों का भी सर्वेक्षण कर रहे थे। एच.डी.आई. में जब पहले 20 स्थान पाने के बाद पश्चिमी दुनिया को विकसित देश घोषित कर दिया गया तब सामाजिक वैज्ञागिकों ने इन अर्थव्यवस्थाओं में जीवन की दशा का मूल्यांकन शुरू किया। ऐसे अधिकतर अध्ययनों में पाया गया कि पश्चिमी देशों में जीवन में सब कुछ था, सिवाय खुशी के। अपराध, भ्रष्टाचार, लूटपाट, फिरौती, मादक पदार्थों की तस्करी, वैश्यावृत्ति, बत्कार, नरसंहार, नैतिक पतनए यौन विकृति आदि; सभी प्रकार के तथाकथिक विकार विकसित देशों में बढ़ रहे थे। इसका मतलब था कि विकास उन्हें खुशी, मानसिक शांति, खुशहाली और अच्छे हात में रहने का अनुभवदेने में किेल रहा। विद्वानों ने दुनियाभर में विकास के लिए किए गए प्रयासों पर ही प्रश्न उठाने शुरू कर दिए। उनमें से अधिकतर ने विकास को फिर से परिभाषित करने पर बल दिया जो मनुष्य को खुशियां दे सके।
विकसित दुनिया में विकास के कारण खुशी क्यों नहीं आई? इस सवाल का जवाब किसी एक तथ्य में नहीं छिपा है बल्कि ये मानव जीवन के कई पहलुओं को छूता है। पह जब कभी भी अर्थशास्त्री प्रगति की बात करते हैं तो उगका आशय मानव जीवन की संपूर्ण खुशी से होता है।
सामाजिक वैज्ञागिक हांकि ‘खुशी’ के पर्यायवाची के तौर पर प्रगति, वृद्धि, विकास, संपन्नता और कल्याण का इस्तेमाल कर रहे हैं। खुशी एक नियामक धारणा के साथ ही एक मगेदशा है। इसलिए इसके विचार में एक अर्थव्यवस्था से दूसरी अर्थव्यस्था में अंतर आ सकता है।
दूसरा, जिस अवधि में विकास को परिभाषित किया गया, ये माना जाता है कि कुछ निर्धारित भौतिक संसाधनों की आपूर्ति से इंसानी जिंदगी को बेहतर बनाया जा सकता है। इन संसाधनों को इस तरह से निर्दिष्ट किया गया-बेहतर आय का स्तर, पोषण का उचित स्तर, स्वास्थ्य सुविधाएं, साक्षरता और शिक्षा आदि।
खुशी विकास से कहीं ज्यादा व्यापक चीज है। वो तथाकथित ‘विकास’ जिसे हासिल करने के लिए दुनिया पिछले कई दशकों से कड़ी मेहनत कर रही है वो इंसानों को भौतिक खुशी देने में सक्षम है। खुशी का एक गैर- भौतिक पहलू भी है। इसका आशय है कि जब तक दुनिया अपने विकास के परिदृश्य (यानी भौतिक खुशी) को और फष्ट करने में लगी रहेगी तब तक उसे खुशी का गैर-भौतिक हिस्सा हासिल नहीं हो सकता। हमारे जीवन का गैर-भौतिक हिस्सा, मूल्यों, धर्म, आध्यात्म और सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ा है, जैसे-विकास या मानव विकास को भौतिक संदर्भों में परिभाषित किया गया है, ये हमें भौतिक खुशी ही प्रदान कर सकता है जो विकसित दुनिया में देखी जा सकती है। विकास की आंशिक परिभाषा के कारण विकसित राष्ट्र विकास हासिल कर पाए। यानी खुशी, लेकिन सिर्फ भौतिक खुशी और खुशी के गैर-भौतिक हिस्से के लिए हमें स्वाभाविक रूप से विकास अपने ‘विचार’ को आज नहीं तो कल नए सिरे से परिभाषित करना होग।
किसी तरह एक छोटा राष्ट्र विकास को अपने तरीके से परिभाषित कर पाया जिसमें जिंदगी के भौतिक और गैर-भौतिक दोनों पहलू मौजूद थे और उसने इसे ग्राॅस नेशनल हैप्पीगैस (जी.एन.एच.) कहा, ये राष्ट्र था-भूटान।
ग्राॅस नेशनल हैप्पीगैसः भूटान हिमालय की गेद में बसा एक छोटा-सा और आर्थिक तौर पर नगण्य राष्ट्र है। उसने 1970 के दशक की शुरुआत में विकास को मापने की एक नई धारणा पेश की-ग्राॅस नेशनल हैप्पीगैस (जी.एन.एच.)। यू.एन.डी.पी. द्वारा प्रतिपादित मानव विकास के विचार को खारिज किए बगैर ये राष्ट्र जी.एन.एच. द्वारा तय लक्ष्यों का पीछा करता रहा। भूटान 1972 से जी.एन.एच. का पालगी कर रहा है, जिसमें खुशी/विकास को हासिल करने के निम्नलिखित पैमाने हैंः
;i) उच्च वास्तविक प्रति व्यक्ति आय
;ii) सुशासन
;iii) पर्यावरण संरक्षण
;पअद्ध संस्कृति संवर्धन (मूल्यों को समाहित करना और आध्यात्म को भी शामिल करना, जिसके बगैर प्रगति वरदान की जगह श्राप बगकर रह जाएगी)।
वास्तविक प्रति व्यक्ति आय के स्तर पर जी.एन.एच. और एच.डी.आई. एक जैसे हैं। हांकि ‘सुशासन’ के मुद्दे पर एच.डी.आई. कुछनहीं कहता, आज इसे दुनिया भर में प्रमोट किया जा रहा है खास तौर पर तबसे जबसे 1995 में विश्व बैंक इस पर अपनी रिपोर्ट लेकर आया और सदस्य राष्ट्रों में इसे गू कराया। पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर एच.डी.आई. हांकि प्रत्यक्ष तौर पर कुछ नहीं कहता लेकिन विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र संघ पहले ही सतत विकास की तात्कालिकता को स्वीकार कर चुके हैं। 1990 के दशक की शुरुआत में इस विषय पर अलग से संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन भी हो चुका है।
इसका मतलब जी.एन.एच. और एच.डी.आई. में मूल अंतर वास्तव में विकास के हमारे (यू.एन.डी.पी. के) विचार में मूल्यों और आध्यात्मिक पहलू को आत्मसात् करने के स्तर का है।
एक निष्पक्ष विश्लेषण साफ तौर पर ये बताता है कि भौतिक उपलब्धियां हमें खुशी देने में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं क्योंकि इसके आधार में मूल्यों की कमी होती है। जहां तक मूल्यों की बात है तो ये धार्मिक और आध्यात्मिक जड़ों में होते हैं। लेकिन नई दुनिया जीवन की वैज्ञागिक और धर्मनिरपेक्ष विवेचना से निर्दिष्ट होती है और दुनिया हमेशा ही मानव जीवन में आध्यात्मिक कारकों को पहचानने को लेकर संदेहास्पद रही है। बजाए इसके कि धर्मनिरपेक्षता का पश्चिमी विचार भगवान जैसी किसी चीज के अस्तित्व को खारिज करने से परिभाषित होता है और आध्यात्म की पारंपरिक परिकल्पना को भी अज्ञानता और रूढ़िवादिता की दलील देकर खारिज करता है। इसे स्वीकार करने में किसी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए कि विकास के नाम पर अंततः पश्चिमी विचारधारा आधुनिक दुनिया और जीवन के तौर-तरीकों पर अपनी धाक रखती है। विकास का ये विचार, जिसे दुनिया का अधिकांश हिस्सा मानता है। शत प्रतिशत सांसारिक है और आज कोई भी ये देख सकता है कि अंत में इस दुनिया के पास अपने लिए किस तरह की खुशी रहेगी।
यू.एन.डी.पी. के एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री द्वारा जी.एन.एच. पर आधारित भूटान के विकास के अनुभवों के अध्ययन से ‘समग्र खुशी’ के विचार को बल मि है और यही विकास का परिणाम भी होना चाहिए। इस अध्ययन के मुताबिक 1984 से 98 का दौर इस दृष्टि से देखने योग्य था क्योंकि इस दौरान जीवन प्रत्याशा में शानदार 19 साल की बढ़ोतरी हुई, स्कूल में नाम लिखाने वों की संख्या 72 प्रतिशत तक पहुंचगई और साक्षरता महज 17 प्रतिशत से बढ़कर 47-5 प्रतिशत तक पहुंच गई।
अमेरिका में विश्व ट्रेड टाॅवर पर आतंकी हमले के बाद पूरी दुनिया में एक मनोवैज्ञागिक काया पलट हुआ और विकास को लेकर इस दुनिया से उस दुनिया तकलोगों का आधार हिल गया। जो दुनिया एक तरह वैश्वीकरण की प्रक्रिया में थी वो इस आत्मावेकन में लगी गई कि क्या बहुसांस्कृतिक सह-अस्तित्व संभव है? 2004 की मानव विकास रिपोर्ट का शीर्षक था-कल्चरल लिबर्टी इन टुडेज़ डाइवर्स विश्व। हम इस तरह से इस पूरी चर्चा को समेट सकते हैं कि मानव जाति इस समय आत्मावेकन और परिवर्तन के एक बेहद गंभीर दौर से गुजर रही है जहां दुनिया में प्रभावशाली मत ये है कि विकास की अवधारणा को नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को शामिल करते हुए नए सिरे से परिभाषित किया जाए। लेकिन अब तक विकास के प्रतिपादकों को ये मानने में संकोच है कि जीवन के एक गैर-भौतिक हिस्सा भी होता है और विकास को खुशी के साथ जोड़ने के लिए इसे अनुभव किए जागे की आवश्यकता है।

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