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मनुष्य किसे कहते है | मनुष्य की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए लिखिए किसने बनाया था human being in hindi
human beings in hindi meaning and definition मनुष्य किसे कहते है | मनुष्य की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए लिखिए किसने बनाया था ?
क) मनुष्य
मनुष्य को लेकर खासी अवधारणा यहूदियों की अवधारणा से मिलती-जुलती है। खासी यह मानते हैं कि ईश्वर ने उन्हें बनाया है, जिसका अर्थ यह भी है कि उसने उन्हें इस दुनिया में रहने के लिए संपूर्ण मानव बनाकर भेजा है।
खासी यह सोचता है कि मानव ईश्वर की विशेष कृति है। वह अन्य जीवों से अतुलनीय ढंग से श्रेष्ठ है।
नैतिक एवं आध्यात्मिक रूप से विकसित होने की क्षमता उसकी खासी विशेषता है और यही ईश्वर का उसे दिया गया बहुमूल्य उपहार है अर्थात उनमें दैवीय तत्व का होना। ईश्वर द्वारा मनुष्य को दी गई एक अन्य देन जैसा कि खासी विश्वास करते हैं, का रिजियू का सिगिज्यू का विशेष उपहार है, जो कि मनुष्य की स्वयं अपनी परिस्थिति को समझने की तार्किक समझ प्राप्त कर लेने की क्षमता है। खासी विश्वास करते हैं कि यह दुनिया अंधेरे की शक्तियों से भरी हुई है और इन शक्तियों का एकमात्र कार्य किसी मनुष्य को ईश्वर द्वारा उसे प्रदान किए गए स्थान से उखाड़ फेंकना है। मनुष्य इन शक्तियों का मुकाबला स्वयं ही नहीं कर सकता । उसकी शक्ति उसके भीतर विद्यमान ईश्वर में निहित है और इसलिए ईश्वर को सदैव उन्हें जदय में प्रतिष्ठित रहना चाहिए।
एक जनजातीय धर्मशास्त्र का लिखा जाना (Writing a Tribal Theology)
जैसा कि पहले बताया गया है कि खासी लोगों ने जनजातीय धर्मशास्त्र को लिखे जाने की आवश्यकता खासतौर से उनके स्वदेशी विश्वास तथा सांस्कृतिक स्वरूपों के समक्ष प्रस्तुत ईसाई चुनौती का सामना करने के लिए महसूस की। अधिकांश विद्वान जिन्होंने खासी धर्मशास्त्र की रचना की, वे पहले ईसाई थे। इस स्थिति में यह असंभव नहीं है कि उनके द्वारा जो कुछ लिखा गया, उसका ईसाई धर्मशास्त्र पर गहरा असर पड़ेगा। आइये, हम उन मूल अवधारणाओं के कुछ उदाहरणों पर गौर करें जो कि किसी परंपरा के धर्मशास्त्र का निर्माण करते हैं। ऐसा करते हुए हमारे पास मौरी (1981) का संदर्भ लेने से बेहतर और कुछ भी नहीं हो सकता जिनके द्वारा की गई खासी संस्कृति एवं धर्म के सिद्धांतों की विवेचना को विश्वसनीय माना जाता है। उन्होंने मनुष्य, ईश्वर तथा धर्म के बारे में खासी अवधारणा – को निम्नलिखित ढंग से परिभाषित किया है:
बदलता विश्व दृष्टिकोण (Changing World View)
खासियों का बदलता विश्व दृष्टिकोण, जैसा कि उनके धर्मशास्त्र में प्रतिबिंबित हआ, है, बदलते परिवेश के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। जैसा कि सरस्वती (191) ने इंगित किया है, ष्आधुनिक समाजों से भिन्न, सभी परंपरागत समाजों की एक मूल विशेषता यह है कि उनके ज्ञान तथा अस्तित्व के बीच कोई फासला नहीं है। जब कोई जनजातीय समाज अपनी इस खास विशेषता को खो देता है, तो उसकी शुद्धता तथा विशिष्टता हमेशा के लिए खो जाती है। किन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि जनजातीय दुनिया स्थिर अथवा बंद है। उसमें हमेशा नये तत्वो को सक्रिय तौर पर शामिल किया जाता रहा है और पुरानों को सृदृढ़ बनाया जाता रहा है, जिसका प्रमाण मिथ्कों तथा आम विश्वासों की व्याख्या में मिल सकता है। हालांकि नये विचारों की स्वीकारोक्ति केवल मूल सत्ता मीमांसक श्रेणियों के भीतर ही संभव है। कठिनाइयां तब पैदा होती हैं, जब ब्रह्मण्ड विज्ञानों के बीच विवाद उत्पन्न हो जाये। जन्म से एक ईसाई खासी पुग (1976), जिन्होंने अमेरिका में कृषि विज्ञान में प्रशिक्षण लिया और जाने माने सामाजिक विज्ञान के व्यक्ति है, उनका निम्नलिखित वक्तव्य जो कि उन्होंने अपनी जीवन में लिखा है, प्रासंगिक हैः
‘‘एक धार्मिक व्यक्ति के रूप में, मैं ईश्वर में विश्वास रखता हूँ और एक मनुष्य के नाते, मेरा ईश्वर भी मानवीय चरित्र वाला है (आदमी अथवा औरतों के रूप, व्यक्तित्व अथवा गुणों वाले ईश्वर की अवधारणा) जहाँ अपने अंतरंग हृदय के बीचों बीच, मैं यह विश्वास नहीं करता हूँ कि ऐसा ही हो सकता है । यसु ने स्वयं भी कहा है- “ईश्वर एक भावना है। किन्तु एक खासी आदिवासी होने के नाते, जो कि खासी भूमि पर रहता है, मेरे विज्ञान एवं ईसाई धर्मशास्त्र के बावजूद, मैं उस ईश्वर की प्रार्थना करता हूं जो कि मुझे उस वातावरण के अनुरूप प्रतिष्ठित करता है, जिसमें मैं रहता हूं ।
जब मेरी मृत्यु हो तो मेरी इच्छा है कि मेरा दाह-संस्कार किया जाए क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरा शरीर संतों के निकट रखा जाए, न ही मेरी इच्छा यह है कि मेरे अवशेष अनावश्यक रूप से जमीन में पड़े रहें जिस पर पहले से ही बढ़ती आबादी का बोझ पड़ रहा है।
पर-सांस्कृतिक तुलना (Cross & CulturalComparison)
जिन दो मामलों पर हमने अलग-अलग चर्चा की है, उन्हें समझने के लिए अब उनकी तुलना की जानी चाहिए अन्यथा अतुलनीय संस्कृतियों तथा जनजातीय धर्म को रेखांकित करने वाली बृहत् परिघटना को समझ पाना कठिन होगा। आइये हम अपनी खोजों को एक सारणी के रूप में प्रस्तुत करें।
बिरहोर खासी
1) शिकारी, संग्राहक 1) चलते-फिरते खेतिहर
2) पितृवंशीय 2) मातृवंशीय
3) आधुनिक शिक्षा व व्यवसाय से अपेक्षाकृत अछूते 3) आधुनिक शिक्षा एवं
व्यवसाय से संलग्न
4) गैर-धार्मिक एवं पवित्र एक ही व्यक्ति में निहित 4) गैर-धार्मिक एवं पवित्र एक ही व्यक्ति में निहित
5) प्रेतों के लिए पुजारी का चयन 5) लोगों के इकट्ठा होने का देवत्व विरोध करता है
6) प्रेतों की विविधता, जिनके भिन्न-भिन्न कार्य 6) विभिन्न कार्यों को प्रतिबिंबित करते विविध नामों वाला ईश्वर
एवं शक्तियां हैं
7) विश्व प्रेतों से भरा हुआ है 7) ईश्वर सर्वव्यापी है
8) सर्वोच्च प्रेत ने विश्व की रचना की है 8) ईश्वर विश्व का रचयिता है
9) निष्क्रिय एवं सक्रिय प्रेतों के बीच भेद 9) ईश्वर तथा शैतान के बीच भेद
10) प्रेतों में लिंग भेद 10) ईश्वर के पारंपरिक लिंग भेद को अमान्य किया गया
11) पवित्र उपवन 11) पवित्र उपवन
12) आनुष्ठानिक स्थल मनुष्य द्वारा निर्मित 12) आनुष्ठानिक स्थल मनुष्य द्वारा निर्मित संरचनाओं के नियंत्रण में नहीं
संरचनाओं के नियंत्रण में नहीं है
13) प्राकृतिक परिघटना तथा जीवन की घटनाओं के 13) प्राकृतिक परिघटना तथा जीवन की घटनाओं के कारणों का पता लगाया जाता है
कारणों का पता लगाया जाता है
14) दैवीय स्तुति: चावल तथा मुर्गी को बलि 14) दैवीय स्तुति: चावल तथा मुर्गी को बलि
15) निषेध 15) निषेध
16) प्रेत-शक्तियों पर मनुष्य द्वारा नियंत्रण, 16) मनुष्य ईश्वर के पुरस्कार तथा दण्ड का भागी है
दूर इससे बचाव तथा इन्हें हटाया जा सकता है
17) वंश (बसंद) तथा पूर्वजों के प्रेत की पूजा 17) वंश (बसंद) तथा पूर्वजों के प्रेत की पूजा
18) एक मनुष्य की दो आत्माएं होती हैं 18) मनुष्य की केवल एक आत्मा होती है
19) दाह संस्कार 19) दाह संस्कार
20) व्याख्यारहित कर्मकाण्ड की महत्ता 20) धर्मशास्त्रीय व्याख्या की महत्ता
बोध प्रश्न 4
प) मनुष्य की खासी अवधारणा का लगभग दस पंक्तियों में, अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
पप) वे कौन-कौन से तीन तरीके है, जिनमें खासियों के अनुसार ईश्वर स्वयं को मनु समक्ष प्रकट कर सकता है? लगभग पाँच पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पपप) कम से कम दो ऐसी विशेषताओं की व्याख्या कीजिए जिनमें खासी, बिरहोरों से भिन्नता रखते हैं। लगभग आठ पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 4
प) खासी विश्वास के अनुसार, ईश्वर ने मनुष्य को इस संसार में रहने के लिए बनाया है। वे मानते हैं कि मनुष्य जाति ईश्वर से संबंध एक विशेष जीव है और अपने आप में इस पृथ्वी पर रहने वाले अन्य जीवों से काफी अधिक श्रेष्ठ है। मनुष्यों में नैतिक एवं आध्यात्मिक जीवों के रूप में विकास करने की क्षमता मौजूद है। मनुष्यों की यह क्षमता मानवमात्र को ईश्वर द्वारा दिया गया वरदान है जिसकी वजह से उनमें देवता का अंश शामिल हो जाता है। इस देन के अलावा, वे यह विश्वस करते हैं कि ईश्वर ने उन्हें का रू गू की अनोखी सौगात भी दी हुई हैं जिसका अर्थ यह है कि वे अपनी परिस्थितियों को तार्किक ढंग से समझ सकते हैं।
पप) जिन तीन तरीकों से ईश्वर स्वयं को मनुष्यों के सामने प्रकट कर सकता है, वे हैंः
1) अपनी शक्ति के जरिये
2) अपनी धर्मपरायणता के जरिये
3) अपने वचनों के जरिये
पपप) क) बिरहोर प्रेतों की विविधता में विश्वास करते हैं, जिनके अलग-अलग कार्य तथा शक्तियां होती हैं, जबकि खासी विभिन्न नामों वाले ईश्वर में विश्वास रखते हैं, जिनमें से प्रत्येक अलग-अलग कार्यों को प्रतिबिंबित करता है।
ख) बिरोहों का विश्वास है कि विश्व प्रेतों से भरा हुआ है जबकि खासी लोगों का मानना है कि ईश्वर विश्व का रचयिता भी है और वह सर्वव्यापक भी है।
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