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हिन्दी साहित्य का इतिहास (history of hindi literature in hindi) , हिंदी साहित्य के प्रमुख कवी और रचना

(history of hindi literature in hindi) हिन्दी साहित्य का इतिहास क्या है ? हिंदी साहित्य के प्रमुख कवी और रचना कौनसी है ?

हिन्दी साहित्य का इतिहास
हिन्दी साहित्य के पहले इतिहास लेखक गार्सा-द-तासी हैं। उन्होंने फ्रेंच भाषा में पुस्तक लिखी, उसका नाम है-इस्त्वार द ला लितरेत्यूर ऐंदुई ऐंदुस्तानी (1839)।
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य इतिहास ग्रन्थ हैं-
1. शिवसिंह सरोज (1883 ई.) शिवसिंह सेंगर
2. मिश्र बन्धु विनोद (1913 ई.) मिश्र बन्धु
3. हिन्दी साहित्य का इतिहास
(1929 ई.) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
4. हिन्दी साहित्य की भूमिका आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
5. हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक
इतिहास (1938 ई.) डॉ. रामकुमार वर्मा
6. हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक
इतिहास (1965 ई.) डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त
7. हिन्दी साहित्य का सम्पादक-नागरी
बृहत् इतिहास प्रचारिणी सभा, काशी
(इसके 16 खण्ड हैं, छठवें
खण्ड ‘रीतिकाल‘ का सम्पादन डॉ. नगेन्द्र ने किया है।)
काल विभाजन
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का काल विभाजन-
1. वीरगाथा काल (सम्वत् 1050-1375 वि.)
2. भक्तिकाल (सम्वत् 1375-1700 वि.)
3. रीतिकाल (सम्वत् 1700-1900 वि.)
4. गद्यकाल (सम्वत् 1900-1984 वि.)
5. उक्त काल विभाजन को संशोधित कर इस प्रकार सुविधाजनक बनाया गया है-
1. आदिकाल (1000 ई.-1350 ई.)
2. भक्तिकाल (1350 ई-1650 ई.)
3. रीतिकाल (1650 ई-1850 ई.)
4. आधुनिक काल (1850 ई.-अब तक)
नामकरण-
ऽ आदिकाल वीरगाथा काल, प्रारम्भिक काल, आरम्भिक काल,
चारण काल, सिद्ध सामन्त युग, बीजवपन काल
ऽ भक्तिकाल पूर्व मध्यकाल
ऽ रीतिकाल उत्तर मध्यकाल, श्रृंगार काल, अलंकृत काल,
कलाकाल
ऽ आधुनिक काल गद्यकाल, वर्तमान काल।

शुक्लजी का काल विभाजन इस सिद्धान्त पर टिका है-जनता की चित्तवृति तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर बनती है। शुक्ल जी ने कालों के नामकरण में दो बातों पर बल दिया है।
1. प्रवृत्ति की प्रधानता, 2. ग्रंथों की प्रसिद्धि।
9.1 आदिकाल (1000-1350 ई.)
आदिकाल की प्रवृत्तियाँ
1. ऐतिहासिकता का अभाव, 2. कल्पना की प्रचुरता,
3. युद्ध वर्णन में सजीवता, 4. अप्रामाणिक रचनाएँ,
5. वीर एवं श्रृंगार रस की प्रधानता, 6. आश्रयदाताओं की प्रशंसा,
7. संकुचित राष्ट्रीयता, 8. छन्दों की विविधता,
9. डिंगल-पिंगल भाषा का प्रयोग ।
आदिकाल की प्रमुख रचनाएँ
ऽ प्रथम कवि – राहुल सांकृत्यायन के अनुसार, सरहपा (7वीं शती) हिन्दी के पहले कवि हैं। राहुल सांकृ त्यायन ने भले ही सरहपा को हिन्दी का पहला कवि माना हो पर उनका कोई स्वतंत्र ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता। उनके फुटकल दोहे ही अब तक मिले हैं।
ऽ प्रथम रचना – डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, देवसेन कृत श्रावकाचार (933 ई.) हिन्दी की पहली रचना है। इसी कारण डॉ. नगेन्द्र ने देवसेन की रचना श्रावकाचार को हिन्दी की प्रथम रचना स्वीकार किया है।
लेखक काल रचनाएँ
1. वीसल देव रासो (1212 ई.) नरपति नाल्ह
2. पृथ्वीराज रासो (1343 ई.) चंदबरदाई हिन्दी का पहला
महाकाव्य
3. परमाल रासो (आल्हखण्ड) जगनिक
4. हम्मीर रासो (1357 ई.) शार्ङ्गधर
5. खुमान रासो (1729 ई.) दलपति विजय
6. विजयपाल रासो (16वीं सदी) नल्ल सिंह

टिप्पणी
1. विजयपाल रासो, हम्मीर रासो अपभ्रंश में लिखे गए हैं।
2. अधिकांश रासो काव्यों में कल्पना की प्रधानता, ऐतिहासिकता का अभाव होने से वे अप्रामाणिक रचनाएँ हैं।
3. चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो हिन्दी का पहला महाकाव्य माना जाता है किन्तु वह भी अप्रामाणिक रचना मानी गयी है। मूल पृथ्वीराज रासो (बृहत रासो) में 69 सर्ग और लगभग 2500 पृष्ठ हैं। इसमें समय-समय पर यह वर्णन होता रहा है जिसके कारण इसे विकासशील महाकाव्य माना जाता है।
आदिकालीन अपभ्रंश साहित्य
ऽ संदेश रासक (12वीं शती) अब्दुर्रहमान
ऽ पउम चरिउ (8वीं शती) स्वयम्भू (द्वारा रचित रामकाव्य)
स्वयम्भू अपभ्रंश के बाल्मीकि
कहे जाते हैं।
ऽ रिट्ठणेमिचरिउ (8वीं शती) स्वयम्भू (द्वारा रचित रामकाव्य)
ऽ महापुराण (10वीं शती) पुष्पदन्त। पुष्पदंत ने महाभारत
की रचना महापुराण के नाम से अपभ्रंश में की है अतः उन्हें अपभ्रंश का व्यास कहा जाता है।
ऽ भविसयत्तकहा (10वीं शती) धनपाल
ऽ उपदेश रसायनरास (12वीं शती) जिनिदत्त सूरि
ऽ पाहुड़ दोहा (11वीं शती) रामसिंह
ऽ प्राकृत पैंगलम – संकलित रचनाएँ
ऽ ढोला मारू रा दूहा (11वीं शती) कुशल लाभ

आदिकालीन गद्य
ऽ वर्ण रत्नाकर – ज्योतिरीश्वर ठाकुर
ऽ राउलवेल – रोडाकृयह शिलांकित कृति है।
ऽ डिंगल भाषा = अपभ्रंश $ राजस्थानी,
ऽ पिंगल भाषा = अपभ्रंश $ ब्रजभाषा

आदिकाल में अमीरखुसरो ने मनोरंजक साहित्य (पहेलियाँ, कहानियाँ, दोसखुन) आदि खड़ी बोली हिन्दी में लिखे । वे फारसी के बहुत बड़े विद्वान थे खालिकवारी नामक शब्दकोश की रचना उन्होंने ही की। खड़ी बोली हिन्दी के वे पहले कवि माने जाते हैं।
विद्यापति मैथिली भाषा में पदावली की रचना करने वाले श्रृंगारी कवि हैं यद्यपि कुछ लोग उन्हें भक्त कवि भी मानते हैं।
आदिकाल में जैन साहित्य, नाथ साहित्य, सिद्ध साहित्य भी मिलता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल में इसे धार्मिक साहित्य (विशेषकर जैन साहित्य) मानकर साहित्य क्षेत्र से बहिष्कृत कर दिया, परन्तु आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे साहित्य की कोटि में रखा है। जैन साहित्य में रास काव्य अधिक लिखे गए, यथा-
बुद्धिरास – मुनि शालिभद्र
चंदन वाला रास – आसगु कवि
स्थूलिभद्र रास – जिनि धर्मसूरि
रेवंतगिरि रास – विजय सेन सूरि
नेमिनाथ रास – सुमति मुनि
कच्छुली रास – प्रज्ञा तिलक
पंच पाण्डव रास – मुनि शालिभद्र
भरतेश्वर बाहुबली रास – मुनि शालिभद्र
उपदेश रसायन रास – जिनिदत्त सूरि
गौतम स्वामी रास – उदयवंत

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