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ऊष्मीय स्रोत , कार्यकारी या क्रियाकारी पदार्थ , सिंक क्या है ? heat source and heat sink in thermodynamics in hindi

heat source and heat sink in thermodynamics in hindi , ऊष्मीय स्रोत , कार्यकारी या क्रियाकारी पदार्थ , सिंक क्या है ? :-

ऊष्मीय इंजनऊष्मीय इंजन एक ऐसी युक्ति है जिसकी सहायता से ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल दिया जाता है।

ऊष्मीय इंजन के निम्न तीन भाग होते है –

  1. ऊष्मीय स्रोत (heat source)
  2. कार्यकारी या क्रियाकारी पदार्थ
  3. सिंक (heat sink)
  4. उष्मीय स्रोत (heat source) : ऊष्मा स्रोत उष्मीय इंजन का वह भाग होता है जिसका ताप उच्च होता है। ऊष्मीय स्रोत का ताप t1केल्विन होता है तथा उष्मीय इंजन ऊष्मा स्रोत से ऊष्मा ग्रहण या अवशोषित करता है।
  5. कार्यकारी या क्रियाकारी पदार्थ: वह पदार्थ जिस पर ऊष्मीय इंजन कार्य करता है , कार्यकारी या क्रियाकारी पदार्थ कहलाता है।
  6. सिंक (heat sink) : सिंक का ताप ऊष्मा स्रोत की तुलना में कम होता है अर्थात ये निम्न ताप पर होता है तथा इसका ताप t2केल्विन रखा जाता है।

Q1 = W + Q2

W = Q1 – Q2    समीकरण-1

ऊष्मीय इंजन की दक्षता (n) : ऊष्मीय इंजन के द्वारा किया गया उपयोगी कार्य और उष्मीय इंजन के द्वारा ऊष्मा स्रोत से ग्रहण की गयी ऊष्मा Qका अनुपात उष्मीय इंजन की दक्षता कहलाती है।

n = उपयोगी कार्य में परिवर्तित की गयी ऊष्मा/ऊष्मीय इंजन को दी गयी ऊष्मा

n = W/Q1  समीकरण-2

समीकरण-1 का मान समीकरण-2 में रखने पर –

n = (Q1 – Q2)/Q1

n = Q1/Q1   – Q2/Q1

n = 1  – Q2/Q1

ऊष्मीय इंजन की प्रतिशत दक्षता –

n = [1  – Q2/Q1] 100

उत्क्रमणीय व अनुत्क्रमणीय प्रक्रम :

उत्क्रमणीय प्रक्रम : वे प्रक्रम जो विभिन्न मध्यवृति अवस्थाओ से गुजरते हुए अपनी प्रारंभिक अवस्था में पहुँच जाते है , उत्क्रमणीय प्रक्रम कहलाते है।

उत्क्रमणीय प्रक्रम के लिए आवश्यक शर्ते –

(i) प्रक्रम बहुत धीमी गति से होना चाहिए।

(ii) प्रक्रम के दौरान घर्षण श्यानता विद्युत प्रतिरोध आदि के कारण ऊर्जा हानि नहीं होनी चाहिए।

(iii) संवहन , चालन एवं विकिरण के कारण ऊष्मा की हानि होती है।

उदाहरण :

  • स्प्रिंग को धीरे धीरे खींचना
  • धीमा रुदोष्म प्रसार

अनुत्क्रमणीय प्रक्रम : वे प्रक्रम जो केवल एक ही दिशा में संपन्न होती है , अनुत्क्रमणीय प्रक्रम कहलाते है।

उदाहरण :

  • ऊष्मा इंजन , ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल देता है।
  • गैसों का विसरण

प्रकृति में होने वाले अधिकांश प्रक्रम अनुत्क्रमणीय प्रक्रम होते है।

आन्तरिक ऊर्जा : जब किसी निकाय को ऊष्मा दी जाती है तो ऊष्मा को एक भाग निकाय के द्वारा परिवेश के विरुद्ध कार्य करने में रूपांतरित हो जाता है जबकि शेष ऊर्जा निकाय की आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि करती है।

निकाय की आन्तरिक ऊर्जा दो प्रकार की होती है –

  1. स्थितिज आंतरिक ऊर्जा (Up)
  2. गतिज आंतरिक ऊर्जा (Uk)

निकाय की कुल आन्तरिक ऊर्जा का मान निम्न होता है –

dU = Up + Uk

  1. स्थितिज आंतरिक ऊर्जा (Up): निकाय के अणुओं के मध्य लगने वाला आण्विक बल स्थित आंतरिक ऊर्जा में व्यक्त करता है।
  2. गतिज आंतरिक ऊर्जा (Uk): निकाय के अणु लगातार अनियमित रूप से यादृच्छित गति करते है। गैस के अणुओं को ऐसी गति को ब्राउनियन गति कहा जाता है। ब्राउनियन गति के कारण गैस के अणुओं के पास जो ऊर्जा होती है , उसे गतिज आन्तरिक ऊर्जा कहते है।

आदर्श गैस के अणुओं के मध्य लगने वाले आणविक बल का मान शून्य होने के कारण स्थितिज आंतरिक ऊर्जा का मान शून्य होता है अर्थात आदर्श गैस के अणुओं के पास आंतरिक ऊर्जा केवल गतिज आन्तरिक ऊर्जा के रूप में पायी जाती है।

आंतरिक ऊर्जा का निरक्षेप मान ज्ञात करना संभव नहीं है इसलिए आन्तरिक ऊर्जा को आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन (dU) के रूप में लिखा जाता है।

आंतरिक ऊर्जा का मान प्रक्रम की प्रारंभिक अवस्था व प्रक्रम की अंतिम अवस्था पर निर्भर करता है , पथ पर निर्भर नहीं करता है –

रुद्धोष्म प्रक्रम में किया गया कार्य ज्ञात करना –

ऊष्मागतिकी प्रक्रम में किया गया कार्य –

 W = v1v2 pdV  समीकरण-1

रुद्धोष्म प्रक्रम का अवस्था समीकरण –

PVr = K (नियत)

P = K/V समीकरण-2

समीकरण-2 का मान समीकरण-1 में रखने पर –

W = v1v2 (K/Vr)dV

W = K v1v2 (1/Vr)dV

W = K v1v2 V-rdV

W = K [V-r+1/-r+1]v1v2

W = K [V1-r/1-r]v1v2

W = K/1-r [V1-r]v1v2

W = K/1-r [V21-r – V11-r]

W = 1/1-r [K V21-r – K V11-r]

रुद्धोष्म अवस्था समीकरण से –

P1V1r = k

P2V2r = k

W = 1/1-r [P2V2r V21-r – P1V1r V11-r]

W = 1/1-r [P2V2 – P1V1]

गैस समीकरण से (1 मोल के लिए n = 1 )

PV = nRT

P1V1 = RT1

P2V2 = RT2

W = 1/1-r[RT2 – RT1]

W = R/1-r[T2 – T1]

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