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Categories: electronicsExperiment

ऊष्मा इंजन की दक्षता का सूत्र क्या है heat engine efficiency formula in hindi in terms temperature

heat engine efficiency formula in hindi in terms temperature ऊष्मा इंजन की दक्षता का सूत्र क्या है ?

ऊष्मा इंजन, ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम तथा ऊष्मागतिक ताप पैमाना

(Heat Engines, Second Law of Thermodynamics and Thermodynamic Scale of Temperature)

उत्क्रमणीय तथा अनुत्क्रमणीय प्रक्रम (Reversible and Irreversible Processes) ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम किसी प्रक्रम में निकाय को दी गई ऊष्मा △Q, निकाय द्वारा किये गये कार्य △W तथा निकाय की आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि dU में सम्बन्ध स्थापित करता है।

अतः

ΔΩ =  dU + △W

इस ऊर्जा संरक्षण नियम से ऊष्मा व यांत्रिक कार्य की तुल्यता स्थापित होती है परन्तु प्रक्रम की दिशा निर्धारित नहीं होती। साथ ही, यदि dU = 0 हो तो △Q =△W होगा अर्थात् इस नियमानुसार ऊष्मा इंजन द्वारा ऊष्मा का पूर्ण रूप में यांत्रिक कार्य में परिवर्तन (100% दक्षता) संभव है। वास्तविकता में किसी भी इंजन की दक्षता 100% नहीं हो सकती और यह तथ्य सिद्धान्त द्वारा भी सिद्ध किया जा सकता है।

सिद्धान्ततः प्रकृति में कार्यरत विभिन्न प्रक्रमों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(i) उत्क्रमणीय (ii) अनुत्क्रमणीय

(i) उत्क्रमणीय प्रक्रम (Reversible process) :

मान लीजिये एक अनंत सूक्ष्मतः परिवर्तन से कोई ऊष्मागतिक निकाय अवस्था A से अवस्था B प्राप्त करता है। इस प्रक्रम में निकाय △Q ऊष्मा प्राप्त करता है व निकाय द्वारा किया गया कार्य △W है, अत: आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन है।

dU = UB – UA = △Q-△W

आंतरिक ऊर्जा अवस्था का फलन होती है व इसे अवस्था परिभाषित करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता

अब यदि अवस्था B को प्रारम्भिक अवस्था मान कर उपरोक्त प्रक्रम विपरीत क्रम में सम्पन्न हो, अर्थात् निकाय पर △W कार्य किया जाय व निकाय से △Q ऊष्मा निष्कासित हो तो घर्षण, विकिरण आदि से ऊर्जा की कोई हानि न होने की अवस्था में अंतिम अवस्था A प्राप्त होने पर आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन होगा

U’A – UB = – △Q – (-△W)

= – △Q + △W

= – (UB -UA)

= UA -UB

जिससे

U’A = UA

या अन्य रूप में विपरीत क्रम में प्रक्रम के पुनः प्रारंभिक अवस्था A से प्राप्त हो जायेगी । ऐसा प्रक्रम उत्क्रमणीय प्रक्रम कहलायेगा। अतः यदि किसी प्रक्रम में बाह्य अवस्थाओं के परिवर्तनों को प्रत्यक्ष (direct) प्रक्रम के सापेक्ष विपरीत क्रम व विपरीत दिशा में लगाने पर प्रत्येक स्तर पर वही अवस्था प्राप्त होती है जैसी कि प्रत्यक्ष प्रक्रम में प्राप्त हुई थी तो वह प्रक्रम उत्क्रमणीय कहलाता है।

उदाहरणार्थ, माना नियत ताप व दाब पर एक आदर्श गैस पूर्णतः सुचालक खोखले सिलिंडर में स्थित है तथा सिलिंडर में एक घर्षण रहित पिस्टन लगा है। अब पिस्टन को धीरे-धीरे ऊपर की ओर खिसका कर गैस को प्रसारित करें तो प्रसार से इसके ताप में कमी होती है परन्तु आदर्श गैस परिवेश के साथ पूर्णत: सुचालक दीवारों के द्वारा ऊष्मीय सम्पर्क में होने के कारण ऊष्मा ग्रहण करती है और ताप को नियत बनाये रखती है।

इस प्रकार का प्रक्रम समतापी प्रक्रम (isothermal process) कहलाता है । अब यदि विपरीत प्रक्रम में गैस के दाब में समान वृद्धि धीरे-धीरे करें तो गैस समान ऊष्मा ( जितनी ऊष्मा सीधे प्रक्रम में ग्रहण की थी) निष्कासित कर अपनी पूर्वावस्था को प्राप्त कर लेती है। अत: इस प्रकार का समतापी प्रक्रम उत्क्रमणीय प्रक्रम होगा।

इसी प्रकार यदि बेलन तथा पिस्टन पूर्णत: कुचालक पदार्थ के बने हों और पिस्टन को धीरे-धीरे से ऊपर की ओर खिसकाकर गैस को प्रसारित होने दें तो उसके दाब एवं ताप दोनों में कमी होती है। इस प्रकार के प्रक्रम को रूद्धोष्म (adiabatic) प्रक्रम कहते हैं। इस प्रक्रम में अवस्था परिवर्तन के दौरान निकाय की ऊष्मा नियत रहती है। अब यदि गैस पर उतना ही कार्य (जितना कार्य सीधे प्रक्रम में किया था) कराकर संपीड़ित करें तो गैस अपनी प्रारम्भिक अवस्था पुनः प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार अत्यन्त धीमी गति से किया गया रूद्धोष्म प्रक्रम भी उत्क्रमणीय होता है । कि (i) प्रक्रम में अवस्था परिवर्तन अत्यन्त धीमी अतः किसी प्रक्रम के उत्क्रमणीय होने के लिए आवश्यक शर्तें गति से होने चाहिए, (ii) निकाय के द्रव्य का दाब व ताप परिवेश के दाब व ताप से अधिक भिन्न नहीं होने चाहिए तथा (iii) घर्षण, श्यानता, प्रतिरोध, विकिरण, अप्रत्यास्थता, चालन व संवाहन आदि ऊष्मा क्षय के स्रोत नहीं होने चाहिए।

(ii) अनुत्क्रमणीय प्रक्रम (Irreversible process)

यदि किसी प्रक्रम में अवस्था परिवर्तन के दौरान उपरोक्त उत्क्रमणीयता की शर्तों का पालन नहीं होता है अर्थात् प्रक्रम में घर्षण, श्यानता, विकिरण, संचालन व संवाहन आदि से ऊष्मा का क्षय होता हो तो वह प्रक्रम अनुत्क्रमणीय कहलाता है। दूसरे शब्दों में अनुत्क्रमणीय प्रक्रम वे प्रक्रम होते हैं जिसमें बाह्य अवस्थाओं के परिवर्तनों को विपरीत क्रम तथा विपरीत दिशा में लगाने पर निकाय उन्हीं अवस्थाओं से होकर नहीं गुजरता है जिन अवस्थाओं से वह प्रत्यक्ष प्रक्रम में होकर गुजरा था।

अनुत्क्रमणीय प्रक्रम में उदाहरण

(1) घर्षण द्वारा उत्पन्न ऊष्मा ।

(2) संचालन, संवाहन तथा विकिरण द्वारा ऊष्मा का संचरण ।

(3) जूल प्रभाव (विद्युत का ऊष्मीय प्रभाव ) ।

(4) रासायनिक अभिक्रियाएँ।

स्पष्ट है कि गतिशील पिंड की ऊर्जा में घर्षण के कारण हानि ऊष्मा के रूप में रूपांतरित हो जाती है, विपरी प्रक्रम में यह ऊष्मा गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त नहीं हो सकती। इसी प्रकार एक गर्म पिंड से चालन द्वारा दूसरे पिंड को दी गई ऊष्मा विपरीत प्रक्रम में पहले पिंड को स्थानान्तरित नहीं की जा सकती, इत्यादि । संक्षेप में अनुत्क्रमणीय प्रक्रमों का विपरीत दिशा में प्रत्यक्ष प्रक्रम की भांति संचालन संभव नहीं होता ।

उत्क्रमणीय प्रक्रम एक आदर्श संकल्पना है। सब वास्तविक प्रक्रम अनुत्क्रमणीय होते हैं परन्तु उन्हें सूक्ष्मतः उत्क्रमणीय प्रक्रमों में विभाजित किया जा सकता है।

ऊष्मा इंजन (Heat Engine)

ऊष्मा इंजन एक ऐसी युक्ति है जो ऊष्मा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करती है। इस युक्ति में ऊष्मा को कार्य में परिवर्तित करने के लिए ऊष्मा का स्रोत (source) होना चाहिए जिससे ऊष्मा को लिया जा सके। इस ऊष्मा से यान्त्रिक मशीन को गति देते हैं या कार्य करवाते हैं जिससे ऊष्मा की मात्रा में कमी होती है। शेष ऊष्मा जो उपयोगी कार्य में परिवर्तित नहीं हो सकती है उसे ऊष्मा सिंक (sink) में निष्कासित कर इंजन को अपनी पूर्वावस्था में ले आते हैं। इस प्रकार ऊष्मा इंजन में अनिवार्य रूप से तीन भाग होते हैं-

(i) ऊष्मा स्रोत (Heat source )

यह एक ऊष्मा भंडार (heat reservoir) होता है जिसका ताप उच्च रखा जाता है और इसकी ऊष्मा धारिता (heat capacity) अनन्त होती है ताकि इससे ऊष्मा लेने पर भी ताप नियत बना रहे।

(ii) यान्त्रिक व्यवस्था एवं कार्यकारी पदार्थ

(Mechanical arrangement and working substance)

ऊष्मा को कार्य में परिवर्तित करने के लिए यान्त्रिक व्यवस्था के रूप में साधारणत: पिस्टन युक्त खोखला सिलिंडर लेते हैं। इसमें कार्यकारी पदार्थ रखा जाता है तो ऊष्मा ग्रहण कर पिस्टन को गति प्रदान करता है। सिलिंडर की दीवारें कुचालक व उसकी तली ( अधस्तल) सुचालक होती है। कार्यकारी पदार्थ के रूप में सिद्धान्तः आदर्श गैस तथा व्यावहारिक रूप में वायु या भाप प्रयुक्त होती है।

(iii) ऊष्मा सिंक (Heat sink )

यह भी एक ऊष्मा भंडार होता है जिसका ताप ऊष्मा स्रोत के ताप के अपेक्षाकृत बहुत कम रखा जाता है। इसकी ऊष्माधारिता भी अनन्त होती है ताकि इसमें अनुपयोगी ऊष्मा को निष्कासित करने पर भी ताप नियत बना रहे।

सांकेतिक रूप से ऊष्मा इंजन के सिद्धान्त को चित्र (2.1 – 1) द्वारा दर्शाया जा सकता है। इसमें कार्यकारी पदार्थ उच्च ताप T1 K पर ऊष्मा स्रोत से ऊष्मा Q1 लेता है। यान्त्रिक व्यवस्था द्वारा इसका कुछ भाग उपयोगी कार्य W में परिवर्तित हो जाता है और शेष ऊष्मा Q2 ऊष्मा सिंक में निम्न ताप T2K पर निष्कासित कर, कार्यकारी पदार्थ अपनी पूर्वावस्था में आ जाता है। परिवर्तनों की यह श्रृंखला (chain) एक चक्र ( cycle) कहलाती है। प्रक्रम का भिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए प्रारम्भिक अवस्था में पुनः आ जाना चक्रीय प्रक्रम (cycle process) कहलाता है।

ऊष्मा इंजन की दक्षता (Efficiency of heat engine) किसी इंजन में यान्त्रिक व्यवस्था द्वारा किया गया उपयोगी कार्य तथा इस कार्य को करने में स्रोत से ग्रहण की गई ऊष्मा अर्थात् निविष्ट ऊष्मा का अनुपात इन्जन की दक्षता कहलाती है।

या

इन्जन की दक्षता = उपयोगी कार्य / ग्रहण की गई ऊष्मा

n = W/Q1 ……………(1)

माना एक चक्रीय प्रक्रम में कार्यकारी पदार्थ ऊष्मीय स्रोत से T1 K ताप पर Q1 ऊष्मा ग्रहण करता है और W उपयोगी कार्य करके शेष ऊष्मा Q2 को ऊष्मा सिंक में T2K ताप पर निष्कासित कर देता है। यदि ऊष्मा का क्षय किसी अन्य विधि द्वारा न हो तो चक्रीय प्रक्रम के अन्त में कार्यकारी पदार्थ अपनी पूर्वावस्था में आ जायेगा अर्थात् कार्यकारी पदार्थ की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन शून्य होगा । अतः ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से,

 

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