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हाथ को हाथ न सूझना मुहावरे का अर्थ या हाथ को हाथ न सूझना का वाक्य प्रयोग hath ko hath na sujna meaning in hindi
hath ko hath na sujna meaning in hindi हाथ को हाथ न सूझना मुहावरे का अर्थ या हाथ को हाथ न सूझना का वाक्य प्रयोग क्या है ?
मुहावरेः अर्थ तथा वाक्य में प्रयोग
341. मुँह में पानी भर आना (जी ललचाना)- रसगुल्लों को थाल देखकर नीरज के मुँह में पानी आ गया।
342. हाथ को हाथ न सूझना (घना अँधेरा होना)- बारिश का मौसम, ऊपर से बिजली गुल। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा।
343. सिर खाना (तंग करना)- क्यों इतनी देर से मेरा सिर खा रहे हो? अब जरा चुप भी रहो।
344. सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना (कार्य प्रारंभ करते ही विघ्न पड़ना)- उसने नया व्यापार आरंभ किया था कि सरकार ने अपनी नीति बदल ली। उस बेचारे पर सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए।
345. सिर पर खून सवार होना (जान लेने के लिए उतारु होना)- उसको अपना दोस्त बनाने की बात कहते हो, उसके सिर पर तो खून सवार है इसलिए उससे बचकर रहना ही अच्छा है।
346. तिल का ताड़ बनाना (छोटी बात को बढ़ाकर बड़ी बनाना)- अरे। तुमने तो जरा सी बात को लेकर तिल का ताड़ बना दिया।
347. सिर उठाना (बगावत करना)- औरंगजेब के राज में जिसने सिर उठाया, कुचल दिया गया।
348. सुर अलापना (रट लगाना)- मैंने तुम्हारी बात सुन ली फिर तुम क्यों सुर अलाप रहे हो।
349. सोलह आने मिथ्या (बिल्कुल झूठ)- मैंने कभी भी किसी से कर्ज लिया है, यह बात सोलह आने मिथ्या है।
350. हरा ही हरा सूझना (सुख ही सुख का आभास होना)- बच्चे से अनजान होकर खेल रहे हैं, उन्हें तो बस हरा ही हरा सूझता है।
351. नीचा दिखाना (घमंड तोड़ना)- चीनियों को अपनी शक्ति पर अभिमान था, पर 1962 में नेफा ने उन्हें ऐसा नीचा दिखाया कि वे जीवन भर याद रखेगें।
352. हाथ न आना (पकड़ में न आना)- मैंने बहुत कोशिक की परंतु चिड़िया का बच्चा मेरे हाथ न आया।
353. हवा पलटना (समय बदल जाना)- पहले भारत परतंत्र था अतः भारतीय निर्धन थेय परंतु अब वह बात नहीं रही है हवा पलट गई है।
354. बगुला भगत (कपटी और पाखंडी व्यक्ति)- तुमने गुरमुख से अपनी बात कहकर बड़ी गलती की है, मैं तो पहले से जानता था कि वह तो बगुला भगत है।
355. हवाई किले बनाना (बड़ी-बड़ी कामनाएं करना)- ओम प्रकाश हर समय हवाई किले बनाता रहता है, परिश्रम बिल्कुल नहीं करता।
356. रोड़ा अटकाना (बाधा डालना)- अपने काम से काम रखो, दूसरों के कामों में रोड़ा अटकाने की क्या आवश्यकता है।
357. लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते (सहानुभूति न रखना)- सब मिलकर बिल्ली को परेशान करते रहे और हँसते रहे, सच है, लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।
358. सिर नीचा रखना (बेइज्जती करना)- तुमने आज भरी सभा में मेरा सिर नीचा करके अच्छा नहीं किया।
359. हाथ फैलाना (माँगना)- आज एक अंधे भिखारी ने मेरे आगे हाथ फैलाया था तो मैंने उसे द्रवित होकर उसे दस रूपये दे दिए।
360. दाल-भूत में मूसलचंद (व्यर्थ में दखल देने वाले)- जब तुम्हारा इस झगड़े से कोई लेना-देना नहीं है, तब तुम क्यों व्यर्थ में दाल-भात में मूसलचंद बने हुए हो?
361. दो दिन का मेहमान ( मृत्यु का निकट होना)- इसकी उखड़ती हुई साँसे बता रही है कि अब यह व्यक्ति दो दिन का मेहमान है।
362. सनसनी फैल जाना (भय या आश्चर्य के कारण स्तब्ध हो जाना)- आतंकवादी एक घर में घुस गए है, यह सुनकर सब ओर सनसनी फैल गई है।
363. सिर पर आकाश उठा लेना (बहुत शोर करना)- जैसे ही अध्यापिका कक्षा से बाहर गई, बच्चों ने सिर पर आकाश उठा लिया।
364. मुँह पर कालिख लगाना (कलंक लगाना)- बेटे को शराब पीता देखकर पिता ने कहा, ‘‘तुम्हें तो शर्म नहीं आती, तुमने तो मेरे मुँह पर कालिख लगा द’’।
365. होश उड़ जाना (घबरा जाना)- कल रात में रास्ते में पड़ी रस्सी का साँप समझ बैठा, बस मेरे तो होश ही उड़ गए।
366. मारा-मारा फिरना (इधर-उधर भटकना)- जब से वह यहाँ से नौकरी छोड़कर गया है तब से ही मारा-मारा फिर रहा है।
367. हाथ पर हाथ रखकर बैठना (खाली बैठना)- कुछ काम करो, इस तरह हाथ पर हाथ रखकर बैठने से भूखों मरने की स्थिति आ जाएगी।
368. हवा का रुख पहचानना (परिस्थिति को समझना)- हवा का रुख पहचानकर काम करने वाला कभी दुख नहीं उठाता।
369. मुँह की खाना (बुरी तरह हारना)- मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज के साथ युद्ध में सत्रह बार मुँह की खानी पड़ी थी।
370. हवा से बातें करना (बहुत तेज दौड़ना)- महाराणा प्रताप ने ज्यों ही लगाम लगाई, चेतक हवा से बातें करने लगा।
371. मुँह ताकना (निर्भर करना)- पैसा जोड़कर रखो नहीं तो बुढापे में दूसरों का मुँह ताकना पड़ेगा।
372. हक्का -बक्का रह जाना (हैरान रह जाना)- अपने ऊपर चोरी का आरोप सुनकर मैं हक्का-बक्का रह गया।
373. दाल न गलना (वश न चलना)- तुम यहाँ से चलते नजर आओ। अब तुम्हारी यहाँ दाल नहीं गलेगी।
374. लोट-पोट हो जाना (आनंद-विभोर हो जाना)- शैतान उत्सव की बातें सुन-सुनकर हम लोट-पोट हो जाते हैं।
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