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hartog committee 1929 in hindi , हार्टोग समिति 1929 क्या है , की सिफारिशें क्या थी ? विवेचना कीजिए।
जाने hartog committee 1929 in hindi , हार्टोग समिति 1929 क्या है , की सिफारिशें क्या थी ? विवेचना कीजिए।
प्रश्न : हार्टोग समिति की सिफारिशें क्या थी? विवेचना कीजिए।
उत्तररू सर फिलिप हार्टोग की अध्यक्षता में 1929 मे गठित आयोग का संबंध शिक्षा के विकास से संबंधित था। इसमें प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय महत्व पर बल दिया। इसने शीघ्र प्रसार अथवा अनिवार्यता की निन्दा की। सुधार और एकीकरण की नीति की सिफारिश की गयी। माध्यमिक शिक्षा के विषय में यह कहा गया कि इसमें मैट्रिक परीक्षा पर ही बल है। बहुत से अनुचित विद्यार्थी इसको विश्वविद्यालय शिक्षा का मार्ग समझते है। इसने सिफारिश की कि ग्रामीण प्रवृति के विद्यार्थियों को वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल स्तर पर ही रोका जाये। उन्हें व्यावसायिक और औद्योगिक शिक्षा दी जाये। यह सुझाव दिया गया कि विश्वविद्यालयी शिक्षा को सुधारने का पूर्ण प्रयत्न किया जाये और विश्वविद्यालय अपने कर्तव्य तक ही अपने आपको सीमित रखें और जो विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के योग्य हैं उन्हें अच्छी और उच्च शिक्षा दी जाये।
प्रश्न : ब्रिटिश कालीन भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा बीमा एवं बैंकिंग पर किस प्रकार नियंत्रण स्थापित किया गया ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : इस व्यवस्था का निर्माण 4 प्रकार की संस्थाओं के माध्यम से किया गया -. .
1. इम्पिरियल बैंक ऑफ इण्डिया, (1921) यह वाणिज्यिक या केन्द्रीय बैंक के रूप में था।
2. रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, (1935) निजी स्वामित्व में होते हुए भी मुद्रा निगमन, विनियमन एवं सरकारी बैंक के रूप में।
3. एक्सचेंज बैंक ऑफ इण्डिया, निजी स्वामित्व में होते हुए भी मुद्रा निगमन, विनियमन एवं सरकारी बैंक के रूप में।
4. इण्डियन ज्वाइंट स्टॉक बैंक, यह भारत में पंजीकृत बैंक। भारतीय लोगों द्वारा पूंजीनिवेश केवल इसी के माध्यम से हो सकता था।
भारतीय पूंजी पर नियंत्रण तथा. औद्योगिक विकास पर प्रभुत्व जमाए रखने के लिए मैनेजिंग एजेंसी सिस्टम को अपनाया गया, इस प्रणाली के जरिए कुछ मैनेजिंग एजेंसी कंपनियां विभिन्न उद्योगों को बढावा देती, उस पर नियंत्रण रखती व उनके लिए कुछ पूंजी एकत्रित करती है।
प्रश्न : भारत में रेलवे के क्रमिक विकास के बारे में बताइए।
उत्तर : भाप से चलने वाली रेलगाड़ी का पहला प्रस्ताव 1834 में आया तथा तय हुआ की निजी कंपनियां भारत में रेल गाड़ियां बिछाएंगी और चलाएंगी। भारत सरकार ने इन कंपनियों को जमानत के तौर पर 5 प्रतिशत लाभ की गारंटी दी। इन कंपनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी एवं जनरल इंडिया पेनीनसुलार रेलवे (GIP) मुख्य थी। 1853 में मुम्बई से थाणे रेल लाईन पहली बार भारतीयों के लिए खोल दी गई। 1869 तक जमानत प्राप्त कंपनियां 4000 मील से अधिक लाईन बिछा चुकी थी। यह प्रणाली काफी खर्चीली एवं धीमी साबित हुई। 1869 में भारत सरकार ने सरकारी उद्यम के रूप में नई रेल लाईन बिछाने का फैसला किया। 1880 के बाद भारत सरकार एवं प्राईवेट कंपनियों दोनों ने मिलकर रेल लाईनों का विस्तार किया। 1905 तक लगभग 28000 मील लंबी रेल लाईन बिछाई जा चुकी थी। कर्जन के बाद इसका तेजी से विस्तार किया गया। रेलवे प्रशासन की सक्षमता बनाएं रखने के लिए कर्जन ने 1905 में ष्रेलवे बोडष् का गठन किया।
साथ ही 1925 तक निजी कंपनियों को भी बनाए रखा। इसके बाद संपूर्ण व्यवस्था रेलवे बोर्ड ने उठाई।
प्रश्न : भारत में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के द्वारा धन निर्गमन के स्रोत क्या थे?
उत्तर : . 1. ईस्ट इण्डिया कम्पनी की लागत का खर्च।
1. आई.सी.एस. अधिकारियों के वेतन, सैनिक एवं नागरिक सेवा के कर्मचारियों के वेतन।
2. भारतीय सार्वजनिक ऋण पर दिया जाने वाला ब्याज।
3. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साझेदारों को दिया जाने वाला लाभांश।
4. व्यापार वाणिज्य में निवेश की गई पूंजी की आय।
5. गृह प्रभार (होम चार्जेस) का खर्च।
प्रश्न : धन निकासी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव बताइए ?
उत्तर : 1. भारतीय अर्थव्यवस्था का खोखलापन।
2. उत्पादन सम्बंधी मदों पर व्यय की कठिनाई।
1. विदेशी पूंजी का प्रवेश एवं ऋणग्रस्तता की स्थिति।
2. भारतीय कृषकों की निर्धनता।
3. ब्रिटिश आर्थिक नियंत्रण की शुरुआत जिसमें ब्रिटिश राजनीतिक सत्ता का सुदृढीकरण।
4. भारतीय परंपरागत उद्योगों का विनाश।
5. उत्पादन से संबंधी क्षेत्रों में बेरोजगारी की स्थिति।
6. राष्ट्रीय बचत की अवधारणा की समाप्ति।
7. कृषि का वाणीज्यीकरण।
8. औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का सुदृढीकरण।।
प्रश्न : धन निकासी का राष्ट्रवाद के विकास में योगदान बताइए?
उत्तर : 1. भारत के आर्थिक पिछड़ेपन के लिए धन निर्गमन की प्रक्रिया जिम्मेवार थी।
1. राष्ट्रवादी राजनीतिक जागरण की शुरुआत तथा भारतीय जनमत का राजनीतिकरण।
2. ब्रिटिश शासन की औपनिवेशिक शोषण की प्रवृत्तियों का भारतीय जनता के समक्ष पर्दाफाश।
3. मध्यम वर्गीय बुद्धिजीवियों द्वारा ब्रिटिश शासन के असली स्वरूप को सामने लाने का कार्य किया गया।
4. स्वराज की मांग की शुरुआत।
5. धन का निर्गमन एक आर्थिक मुद्दा था जिसने भारतीय राजनीति को सक्रिय बनाया और जिससे राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रीय संघर्ष का उदय हुआ।
प्रश्न : अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय उद्योगों की स्थिति के बारे में बताइए।
उत्तर : (1) हस्तकरघा उद्योग रू ढ़ाका, जहांनाबाद (पटना), लखनऊ आदि।
बुनाई उद्योग रू सिंकदराबाद, (बुलंदशहर), कानपुर, मुरादाबाद, प्रतापगढ़, ललितपुर, अलीपुर, मेरठ, आगरा, दिल्ली, रोहतक, ग्वालियर,इंदौर, चंदेरी, हैदराबाद, रायचूर, मदुरई। इनके सहायक उद्योग – रंगाई, सिलाई, कताई।
(2) रेशमी वस्त्र उद्योग रू बनारस, आगरा, लाहौर, पटियाला, मालवा अमृतसर, मुर्शिदाबाद, वीरभूम, बर्दवान, वानप्रस्थ, मिदनापुर व राजशाही
आदि।
(3) कंबल व्यवसाय रू पंजाब, लाहौर, लुधियाना, अमृतसर, जयपुर, जोधपुर आदि।
अन्य प्रचलित उद्योगरू भवन निर्माण, पत्थर एवं लकड़ी पर नक्काशी, ईंट एवं चूना उद्योग, नमक, चीनी, नील तांबा, पीतल. कांसा. लोहा ढलाई. जहाज निर्माण आदि उद्योग, तेल उद्योग। इन सभी उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं की मांग अंग्रेजों के आगमन से पूर्व सम्पूर्ण विश्व में थी परन्तु अंग्रेजों के आगमन के बाद इस मांग में निरंतर कमी आती गयी और भारतीय उद्योग पतन की ओर अग्रसर होते गए।
प्रश्न : बंगाल में भू-राजस्व संबंधित स्थाई बन्दोबस्त की मुख्य विशेषताएं क्या थी?
उत्तर : यह वार्षिक लगान व्यवस्था थी जिसे लार्ड कार्नवालिस ने 1790 में दसवर्षीय लगान में परिणत कर दिया गया था, उसे 1793 में स्थाई स्वरूप प्रदान किया गया। यह समझौता विषम जातीय समूह वाले स्थानीय जमींदारों एवं तालुकदारों के साथ किया गया, जिसके तहत जमींदारों को भूमि पर स्वामित्व के साथ-साथ उसके वंशानुक्रम को भी अपनाया गया। भू-स्वामित्व का आधार भू-राजस्व की अदायगी थी, नियत तिथि तक भूराजस्व की अदायगी न कर सकने की स्थिति में भूस्वामित्व से वंचित कर देने या नीलामी कर देने का प्रावधान था। राजस्व की निश्चित दर ब्रिटिश सरकार एवं जमींदारों के लिए क्रमशः 10ध्11 तथा 1ध्11 थी। उस समय का कुल अनुमानित लगान लगभग पौने चार करोड़ रुपए था जिसमें से नियमानुसार 89 प्रतिशत ब्रिटिश सरकार को तथा 11 प्रतिशत जमींदारों को देना तय था।
प्रश्न : रैयतवाड़ी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं क्या थी?
उत्तर : रैयतों अथवा किसानों के साथ किया गया भूमि संबंधी लगान का बंदोबस्त रैयतवाड़ी व्यवस्था के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम इसे मद्रास
में लागू किया गया, फिर इसका विस्तार बम्बई प्रेसीडेन्सी में किया गया।
विशेषताएं
1. किसानों को भूमि का वास्तविक स्वामी स्वीकार किया गया। कृषकों की भूमि के स्वामित्व की प्रमुख शर्त भू-राजस्व की नियत समय पर
अदायगी थी। इस व्यवस्था के तहत भूमि सर्वेक्षण के सिद्धांतों को अपनाया गया।
2. लगान की दरों के मामलों में यह व्यवस्था स्थाई नहीं थी अर्थात् समय-समय पर (लगभग 20-30 वर्षों के काल में लगान की दरों में
संशोधन करने का प्रावधान था।
3. प्रत्येक भूमि क्षेत्र से दिए जाने वाले राजस्व का निर्धारण सरकार करती थी।
4. इस व्यवस्था के तहत किसानों को यह छूट थी कि या तो वो सरकार को लगान देकर जमीन पर अपना स्वामित्व … बनाए रखने या लगान न दे पाने की स्थिति में या स्वेच्छा से. भूमि पर से अपना स्वामित्व हटा ले।
5. 1812 ई. में इस व्यवस्था में एक नया पहलू जोड़ा गया कि लगान चुकाने के लिए किसान अपनी जमीन दूसरे किसान को खेती के लिए दे सकता था या उससे गिरवी रख सकता था या बेच भी सकता था।
प्रश्न : महलवाड़ी व्यवस्था के बारे में बताइए।
उत्तररू यह व्यवस्था उत्तर-पश्चिम प्रांत, पंजाब तथा मध्य भारत के कुछ भागों में लागू की गई। सामान्यतः यह जमींदारी व्यवस्था का संशोधित रूप था। इसके अन्तर्गत एक सामूहिक उत्तरदायित्व निर्धारित किया गया ताकि भू-राजस्व की अदायगी को सुनिश्चित किया जा सके। अर्थात सरकार इसमें व्यक्तिगत रूप से काश्तकारों के साथ समझौता करने के स्थान पर समग्रतः पूरे ग्राम समाज के साथ समझौता करती थी। महल अथवा ग्राम के अलग-अलग भागों के मालिक अपनी-अपनी जमीन के लिए निर्धारित राजस्व का भार आपसी समझौते के अनुसार अपने प्रतिनिधि को देते थे। ये प्रतिनिधि सम्पूर्ण महल के राजस्व का भुगतान करने के प्रति उत्तरदायी होता था। इस व्यवस्था के तहत निश्चित समय का निर्धारण किया जाता था। इस व्यवस्था में राजस्व दर का निर्धारण प्रारंभ में 2/3 .. भाग तथा बाद में बैंटिक के द्वारा इसे 60 प्रतिशत कर दिया गया था। कहीं-कहीं पर यह दर 50 प्रतिशत भी थी।
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