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hartley oscillator in hindi circuit working formula हार्टले दोलित्र किसे कहते हैं , चित्र , कार्यविधि सूत्र
हार्टले दोलित्र किसे कहते हैं , चित्र , कार्यविधि सूत्र hartley oscillator in hindi circuit working formula ?
हार्टले दोलित्र (Hartley oscillator)
कॉल्पिट दोलित्र के समान हार्टले दोलित्र में भी उभय उत्सर्जक प्रवर्धक का उपयोग करते हैं परन्तु इसमें प्रेरक कुण्डली के स्थान पर संधारित्र तथा संधारित्रों के स्थान पर प्रेरक कुण्डलियां परिपथ में लगाई जाती हैं। इस का मूलभूत परिपथ चित्र (6.4-5 ) में दर्शाया गया है। प्रतिरोध R1 R2, RE स्वाभिनति (self-biasing) का कार्य करते हैं जो शक्ति प्रदायक – Vcc से धारा लेकर ट्रॉजिस्टर के दिष्ट धारा प्रचालन बिन्दु का निर्धारण करते हैं। संधारित्र CE उत्सर्जक परिपथ में उपमार्ग संधारित्र (by pass capacitor) का कार्य करता है जिसकी प्रतिबाधा प्रचालन आवृत्ति पर नगण्य होती है। संधारित्र Cb संग्राहक से आधार की ओर दिष्ट धारा प्रवाह को रोकता है। संधारित्र C तथा प्रेरकत्व L= (L1 + L2 + 2M) दोलनी परिपथ होता है जिसके द्वारा उत्पन्न दोलनों को प्रवर्धक नियत आयाम के विद्युत दोलनों में परिवर्तित कर देता है।
यह दोलित्र उभय उत्सर्जक विधा में कार्य करने के कारण निवेशी वोल्टता के सापेक्ष निर्गत वोल्टता की कला 180° परिवर्तित हो जाती है। इस निर्गत वोल्टता के कुछ अंश का प्रेरक कुण्डली L1 द्वारा पुनर्निवेश कर दिया जाता है। आधार पर निवेशी वोल्टता एवं पुनर्निवेशी वोल्टता की कलाएँ समान होने के कारण स्वतः उत्तेजित दोलन के लिये कला प्रतिबन्ध सन्तुष्ट रहता है। इस दोलित्र की आवृत्ति धारिता C एवं प्रेरकत्व L1 तथा L2 के अतिरिक्त इनके मध्य अन्योन्य प्रेरकत्व (mutual inductance) पर भी निर्भर करती है।
विश्लेषण – अभिनति प्रतिरोधों R1 R2 तथा RE का मान अधिक तथा धारिता CE की प्रतिबाधा कम होने के कारण परिपथ के प्रत्यावर्ती धारा प्रचालन के लिये दोलित्र का तुल्य परिपथ चित्र (6.4-6 ) में दर्शाया गया है। ट्रॉजिस्टर में hre तथा hoe का मान नगण्य होने के कारण इनको परिपथ के विश्लेषण के लिए उपेक्षणीय माना जा सकता है। इस प्रकार चित्र (6.4-6) का संशोधित परिपथ चित्र (6.4-7) में दर्शाया गया है।
बार्कहाउजन कसौटी के अनुसार AB वास्तविक होना चाहिये जिससे पूर्ण प्रवर्धक – पुनर्निवेशी पाश में कला विस्थापन शून्य हो। अत: समी. (8) में j युक्त पद शून्य होना चाहिये।
R-C कला विस्थापक दोलित्र (R-C phase shift oscillator)
यह दोलित्र कला विस्थापक दोलित्र (phase shift oscillator) के समान कार्य करता है जिसमें ट्रॉजिस्टर उभय उत्सर्जक विधा में होता है और निवेशी वोल्टता की कला में 180° कला परिवर्तन कर देता है। धनात्मक पुनर्निवेशन (positive feed back) करने के लिए संग्राहक पर निर्गम वोल्टता के कुछ अंश में पुनः 180° कला परिवर्तन कर आधार पर पुनर्निवेश कराया जाता है। यह कला परिवर्तन तीन सोपानी R-C परिपथ से करते हैं जिसमें प्रत्येक R-C परिपथ 60° कला परिवर्तन करता है। इस सोपानी R-C परिपथ में संधारित्र श्रेणी क्रम में तथा प्रतिरोध पार्श्व पथीय लगे होते हैं परन्तु अन्तिम प्रतिरोध का मान R’ = R – hie होता है क्योंकि यह प्रतिरोध R’ ट्रॉजिस्टर के आधार से जुड़ा होता है इसलिए ट्रॉजिस्टर का निवेशी प्रतिरोध hie इसमें जुड़ कर कुल प्रतिरोध R के तुल्यजाता है। इस प्रकार तीनों R-C परिपथ समान होते हैं। इस दोलित्र का मूल परिपथ चित्र (6.4-8) में दर्शाया गया है।
इस परिपथ में R1, R2 तथा RE अभिनति प्रतिरोध है जो शक्ति प्रदायक – Vcc के साथ मिलकर ट्रॉजिस्टर के दिष्टधारा प्रचालन बिन्दु का निर्धारण करते हैं। संधारित्र CE उपमार्ग प्रदान करता है। इसकी प्रतिबाधा प्रचालन आवृत्ति पर नगण्य होती है। इस दोलित्र में वोल्टता पार्श्वपक्षीय पुनर्निवेश (voltage-shunt feed back) का उपयोग होता है। इस प्रकार का दोलित्र सामान्यत: श्रव्य आवृत्ति (audio frequency) दोलित्र के रूप में कार्य करता है।
विश्लेषण – परिपथ में अभिनति प्रतिरोध R1, R2 तथा RE का मान बहुत अधिक होने के कारण प्रत्यावर्ती धारा प्रचालन में इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तथा ट्रॉजिस्टर के नियतांक व्युत्क्रम वोल्टता अन्तरण अनुपात he तथा निर्गम चालकता hoe का मान बहुत कम होने के कारण नगण्य माना जा सकता है। उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए दोलित्र का तुल्य परिपथ चित्र (6.4-9) में दर्शाया गया है।
यह समी. (5) दोलित्र को दोलन पोषित रखने के लिए आवश्यक प्रतिबन्ध देता है ।
nkey eaRL = R लिया जाता है जिससे दोलित्र द्वारा जनित आवृत्ति
अत: दोलित्र में दोलन पोषित रखने के लिए ट्रॉजिस्टर के he का मान 56 के बराबर या अधिक होना चाहिए।
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