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Categories: इतिहास

कर्नाटक के गुलबर्गा में स्थित हफ्त गुम्बज़ में किस राजवंश के मकबरे हैं ? , gulbarga haft gumbaz in hindi

gulbarga haft gumbaz in hindi कर्नाटक के गुलबर्गा में स्थित हफ्त गुम्बज़ में किस राजवंश के मकबरे हैं ?

गुलबर्गा (17.33° उत्तर, 76.83° पूर्व)
गुलबर्गा वर्तमान में कर्नाटक राज्य का जिला मुख्यालय है। प्रारंभ में यह एक हिंदू नगरी थी, जो बाद में मुस्लिम आधिपत्य में आ गया। यहां दो संस्कृतियों का अद्भुत मिलन देखने को मिलता है। जब अलाउद्दीन हसन बहमन शाह/हसन गंगू अलाउद्दीन हसन जाफर खान, जिसने दिल्ली सल्तनत के शासक मुहम्मद बिन तुगलक के विरुद्ध विद्रोह किया, ने 3 अगस्त, 1347 को बहमनी साम्राज्य की नींव रखी और अलाउद्दीन बहमन शाह के नाम से राजगद्दी पर बैठा, तो उसने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया। हसन गंगू ने यहां कई सुंदर स्थल, मस्जिदें, दर्शनीय इमारतें एवं बाजार बनवाए। बाद के शासकों ने भी हसन गंगू के मार्ग का अनुसरण किया तथा गुलबर्गा की भव्यता एवं सौंदर्य में वृद्धि करते रहे।
गुलबर्गा प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा सईद मुहम्मद गेसूदराज से भी संबंधित है, जो दक्कन में सूफी विचारों के प्रवर्तक थे। उनका मकबरा, जिसे ख्वाजा बंदानवाज दरगाह के नाम से जाना जाता है, इण्डो-सारसेनिक शैली में निर्मित है तथा उनके अनुयायियों के लिए दर्शन का एक प्रमुख केंद्र है।
गुलबर्गा अपने किले के लिए भी प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण हिन्दू शासक गुलचन्द्र ने कराया था। कालांतर में अलाउद्दीन बहमनी ने इस किले को और मजबत करवाया। इस किले में 15 प्रवेश द्वार एवं 25 तोप स्थल हैं।
गुलबर्गा की एक अन्य प्रसिद्ध इमारत जामा मस्जिद है, जो गुलबर्गा किले के अंदर बनी हुई है। यह मस्जिद स्पेन की कार्दाेवा मस्जिद की तर्ज पर अलंकृत की गई है। मस्जिद ऊपर से महराबों द्वारा आच्छादित है, जो इसे भारतीय मस्जिदों में एक अलग पहचान प्रदान करती है।
यहां एक प्रसिद्ध हिन्दू धर्माेपदेशक एवं चिंतक का स्थल भी है, जिन्होंने सामाजिक एवं धार्मिक समानता की शिक्षा दी।

गौड़/लखनौती (24°52‘ उत्तर, 88°08‘ पूर्व)
गौड़ पश्चिम बंगाल में स्थित है तथा इसे लखनौती एवं नूरताबाद के नाम से भी जाना जाता है। यह गौड़ नरेश शशांक की राजधानी था। शशांक हर्षवर्धन का सबसे कट्टर दुश्मन था। शशांक के उपरांत गौड़ पर पाल एवं सेन वंश के शासकों ने शासन किया।
सेन शासकों (विजयसेन, बल्लालसेन) के समय गौड़ कला एवं संस्कृति के साथ ही शिक्षा के एक प्रमुख केंद्र के रूप में भी विकसित हुआ। कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति, बखियार खिलजी के पुत्र इख्तियार खिलजी के आक्रमण के साथ ही गौड़ में मुस्लिम शासन प्रारंभ हो गया। दिल्ली शासन के बाद के दिनों में फखरुद्दीन नामक एक अफगानी व्यक्ति ने यहां अपने वंश की स्थापना की। अफगानी शासकों के समय बंगाल की राजधानी गौड़ से फिरोजशाह स्थानांतरित कर दी गई तथा धीरे-धीरे इस स्थान का महत्व समाप्त हो गया। 17वीं शताब्दी में यह मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गई। गौड़ इण्डो-इस्लामी स्थापत्य की अपनी बंगाली शैली के लिए प्रसिद्ध है। छोटा सोना एवं बड़ा सोना मस्जिद इसी स्थापत्य कला शैली के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। बड़ा सोना मस्जिद को ‘बारादुआरी‘ (12 दरवाजे) के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण 1526 में ईंटों से किया गया था। ‘कदम रसूल‘ इस स्थापत्य शैली का एक अन्य नायाब उदाहरण है। बंगाल शैली में निर्मित यह गुंबदनुमा चतुर्भुज इमारत है। यहां की अन्य प्रमुख इमारतों में तांतीपाड़ा मस्जिद, फिरोज मीनार, लखचुरी दरवाजा एवं दाखिल दरवाजा उल्लेखनीय हैं।

घंटशाला/कंटकशिला (16°9‘ उत्तर, 80°16‘ पूर्व)
घंटशाला आंध्र प्रदेश के कृष्ण (मछलीपट्टनम) जिले में स्थित है। यहां एक विशाल स्तूप है, जो आंध्र प्रदेश में प्रारंभिक सातवाहन कला के स्थापत्य एवं बौद्ध कला के अदभुत नमूने का प्रतिनिधित्व करता है।
यहां उत्खनन से दो रोमन एवं कई सातवाहन सिक्के प्राप्त हुए हैं। इन मुद्राओं की प्राप्ति से इस स्थान के व्यापारिक महत्व की सूचना मिलती है। दक्कन एवं तमिलनाडु के मुख्य वाणिज्यिक मार्ग में स्थित होने के कारण इसका व्यापारिक महत्व स्वाभाविक था। यहां से प्राप्त अभिलेखों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि घंटशाला बौद्ध धर्म की महासंधिक शाखा के अवरशिला सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र था। यहां इस सम्प्रदाय को कई धनिकों का संरक्षण प्राप्त था।
गिलुंड (25° उत्तर, 74° पूर्व) गिलुंड राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। यह स्थल
आहड़-बनास परिसर में उत्खनित उन पांच प्राचीन स्थलों में से एक है, जो दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के ताम्रपाषाण पुरातत्विक संस्कृति का भाग है। इस जगह पर बसावट 3000-1700 ई.पू. के दौरान हुई। इन प्राचीन बस्तियों को तीन सांस्कृतिक चरणों में बांटा गया है। यहां आवास के विविध ढांचे पाए गए हैं तथा साथ ही साथ लंबी समानांतर दीवारों, कार्यशालाओं, कचरे के ढेर, और स्थल के चारों ओर एक बाह्य दीवार सहित विशाल इमारतें शामिल हैं।
वर्ष 2003 में किए गए उत्खननों में 2100-1700 ई.पू. के मुहरों का एक भंडार मिला। इनके डिजाइन नमूने सामान्यतः बेहद साधारण हैं तथा ये सिंधु सभ्यता स्थलों से काफी मिलते-जुलते हैं। मध्य एशिया तथा उत्तरी अफगानिस्तान जितने दूर सांस्कृतिक समूह, जिसे पुरातत्वविद् बैक्ट्रिया-मारजियना पुरातात्विक समष्टि (BMAC) कहते हैं, की मुहरों में भी विभिन्न समानताएं मिली हैं।
जिंजी (12.15° उत्तर, 79.30° पूर्व) जिंजी तमिलनाडु के विलुपुरम जिले में स्थित है तथा अपने विशाल किले के लिए प्रसिद्ध है। यद्यपि अब इस किले का अधिकांश हिस्सा नष्ट हो चुका है। यह किला तीन पहाड़ियों पर स्थित है। ये पहाड़ियां हैं-राजगिरि, कृष्णागिरि एवं छपलिदुर्ग। ये तीनों पहाड़ियां इस किले के लिए सशक्त प्राचीर का कार्य करती हैं।
इस किले का मुख्य हिस्सा विजय नगर के शासकों द्वारा बनवाया गया था। 1565 ई. के तालीकोटा युद्ध के पश्चात यह बीजापुर के अधिकार में चला गया। —-1677 में इस किले पर शिवाजी ने अधिकार कर लिया तथा यहां उन्होंने मुगलों के विरुद्ध अपना पहला प्रतिरोध केंद्र (Resistance Centre) स्थापित किया। शंभाजी के उत्तराधिकारी राजाराम ने भी औरंगाबाद से संघर्ष के समय कुछ समय के लिए यहां प्रश्रय प्राप्त किया था। 1698 में मुगलों ने इस किले पर अधिकार कर लिया। 1750 में फ्रांसीसी जनरल बुस्सी ने इस पर अधिकार कर लिया। फ्रांसीसियों की पराजय के उपरांत 1761 में यह अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया।
गिरनार (21°29′ उत्तर, 70°30′ पूर्व) गिरनार की पहाड़ियां जूनागढ़ के बगल में सौराष्ट्र क्षेत्र में गुजरात राज्य में स्थित हैं। इसे नेमिनाथ पहाड़ी या शत्रुजय पर्वत श्रृंखला की पांचवी चोटी भी माना जाता है। जैन धर्मावलंबी इसे अपने 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का जन्म स्थान भी मानते हैं, फलतः जैन धर्म के अनुयायियों के लिए इसका धार्मिक महत्व भी है।
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में उसके राज्यपाल पुष्यगुप्त ने यहां एक विशाल जलाशय का निर्माण कराया था, जिसे सुदर्शन झील या सुदर्शन तड़ाग के नाम से जाना जाता है। कालांतर में शक शासक रुद्रदमन एवं स्कंदगुप्त के मंत्रियों चक्रपालित एवं उसके पुत्र प्राणदत्त द्वारा इस तड़ाग का जीर्णाेद्धार भी करवाया गया। इससे ज्ञात होता है कि पूरे गुप्त काल एवं उसके बाद की अवधि में भी इस जलाशय का विशेष महत्व था।
गिरनार से शक क्षत्रप रुद्रदमन का एक संस्कृत अभिलेख भी मिला है। अभी तक ज्ञात अभिलेखों में यह संस्कृत का प्रथम एवं सबसे लंबा अभिलेख है।
गिरनार में बने मंदिरों के शिखर, छत एवं स्तंभ विशिष्ट अलंकरणों से युक्त हैं। यहां के दो प्रसिद्ध जैन मंदिरों नेमिनाथ मंदिर एवं आदिनाथ मंदिरों का निर्माण चालुक्य मंत्रियों क्रमशः सज्जन एवं वत्सुपाल द्वारा करवाया गया था।
गोलकुंडा (17.38° उत्तर, 78.40° पूर्व) गोलकुंडा हैदराबाद के समीप तेलंगाना क्षेत्र में आधुनिक आंध्र प्रदेश में स्थित है। यह गोलकुंडा के कुतुबशाही वंश की प्रसिद्ध राजधानी थी, जिसने 1507 से 1687 तक शासन किया।
गोलकुंडा मध्यकालीन भारत के अपने विशाल एवं भव्य किले के लिए भी प्रसिद्ध है। यद्यपि अब यह नष्ट हो चुका है। इस किले के वास्तविक स्वरूप का निर्माण 12वीं शताब्दी में वारंगल के काकतीय शासकों ने कीचड़ (उनक) से करवाया था। 1363 में इस पर बहमनियों ने अधिकार कर लिया तथा इसे ग्रेनाइट पत्थरों से पुनर्निर्मित करवाया। इसके समीप ही कुतुबशाही शासकों के मकबरे हैं। किले के भीतर बसी नगरी हीरे के व्यापार के लिए प्रसिद्ध थी। प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा यहीं की खान से प्राप्त किया गया था। बहमनी साम्राज्य का विघटन होने के उपरांत गोलकुंडा कुतुबशाही वंश के अधिकार में चला गया। जब मुगल शासकों ने इस वंश पर दबाव बनाया तो अब्दुल कुतुबशाह ने शाहजहां के समय मुगल आधिपत्य स्वीकार कर लिया। 1687 में औरंगजेब ने गोलकुंडा पर अधिकार कर लिया तथा इस प्रकार सदैव के लिए यहां से कुतुबशाही वंश का अंत हो गया।
हैदराबाद के निजाम, निजामुलमुल्क ने 1724 में उस पर अधिकार कर लिया तथा इसके वैभव को पुनस्र्थापित किया। इसके बाद स्वतंत्रता के समय तक गोलकुंडा निजाम के अधिकार में ही बना रहा तथा अंत में आधुनिक आंध्र प्रदेश राज्य का हिस्सा बन गया तदोपरांत 2014 में तेलंगाना का।

गोली (16°18‘ उत्तर, 80°26‘ पूर्व)
गोली आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित है। यह अपने बौद्ध स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है। सातवाहन एवं इक्ष्वाकू काल में यह बौद्ध धर्म का एक प्रसिद्ध केंद्र था। सातवाहन काल में यह पूर्वी दक्कन से कर्नाटक के मध्य के प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग पर स्थित था।
यहां से प्राप्त बौद्ध स्तूप एवं अन्य स्मारक द्वितीय-तृतीय ईसा पूर्व (इक्ष्वाकू काल) तक प्राचीन हैं किंतु वर्तमान समय में इनमें से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं। गोली की कुछ स्थापत्य रचनाएं आज चेन्नई एवं न्यूयार्क के संग्रहालयों में रखी हुई हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं असाधारण एक पैनल यहां से मिला है, जिसमें नंदकालीन फौजों को दर्शाया गया है। वर्तमान समय में यह न्यूयार्क के संग्रहालय में सुरक्षित है। यहां से एक अन्य पैनल भी मिला है, जिसमें सात सिरों वाले सर्प का चित्र बना हुआ है। गोली में मल्लेश्वर मंदिर के ध्वंसावशेष भी पाए गए हैं।
गोली की रिलीफ नक्काशी में बुद्ध के विभिन्न रूपों, जातक कथाओं एवं बोधिसत्वों को विषय-वस्तु बनाया गया है।

गोप मोती (22.02° उत्तर, 69.90° पूर्व)
गोप मोती गुजरात के जामनगर जिले में स्थित है। गोप मोती अपने एक विशाल मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसे काठियावाड़ क्षेत्र का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण संभवतः 6 शताब्दी ईस्वी में हुआ था तथा यह मंदिर निर्माण की उत्तर भारतीय शैली का प्रतिनिधित्व करता है। यद्यपि यह मंदिर इस क्षेत्र के नागर शिखर शैली के मंदिरों से थोड़ा भिन्न है। ऐसा अनुमान है कि गोप मंदिर की शैली दक्कन से काठियावाड़ क्षेत्र में पहुंची होगी। दक्कन में मंजिल एवं पिरामिडनुमा आकार दोनों पाए जाते थे।
इस मंदिर में दो छज्जे हैं, जो चतुर्भुज उपासना कक्ष युक्त हैं। ऊपरी छज्जे में जाने के लिए एक मार्ग है। उपासना गृह की दीवारें साधारण एवं लम्बवत हैं, जो कि शिखर शैली से भिन्नता रखती हैं तथा चारों कोनों के शीर्ष पर एक वाटिकानुमा रचना बनी हुई है। उपासना गृह की छत संरचना में पिरामिडनुमा है, जो कि ऊपर से गुम्बद से ढका है।

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